लूका के सुसमाचार के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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लूका के सुसमाचार के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए

लूका का सुसमाचार नये नियम की सबसे बड़ी पुस्तक है और सबसे गूढ़ में से एक है। जबकि अधिकाँश ख्रीष्टीय लोग अध्याय 2 में यीशु ख्रीष्ट के जन्म से परिचित हैं, अनेकों लोग तीसरे सुसमाचार के सूक्ष्म भेदों से परिचित नहीं है जो यीशु ख्रीष्ट के व्यक्ति (the person of Christ) के विषय में हमारी समझ को बढ़ाते हैं। हम नीचे उन तीन क्षेत्रों को दिखाने का प्रयत्न करेंगे जिन्हें प्रायः अनदेखा कर दिया जाता है:  पुस्तक का उद्देश्य, दीन लोगों ऊँचा पर उठाया जाना और अभिमानियों को दीन किया जाना, और पुराने नियम का यीशु के साथ सम्बन्ध।

1. लूका का उद्देश्य।

नये नियम के लेखक प्रायः अपने पाठकों को यह सूचित नहीं करते कि वे पत्री या सुसमाचार क्यों लिख रहे हैं। परन्तु चार सुसमाचारों में दो सुसमाचार ऐसा करते हैंं। लूका 1:4 में थियोफिलुस को समझाता है कि वह उसे इसलिए लिख रहा है जिस से कि “तू उन बातों की वास्तविकता को जान ले जिनकी तुझे शिक्षा दी गई है।” यद्यपि हम थियोफिलुस के विषय में अधिक नहीं जानते हैं, विद्वान लोग मानते हैं कि वह सम्भवतः एक अयहूदी था जो यहूदी बन गया था और फिर बाद में ख्रीष्टीय विश्वास में आ गया। थियोफिलुस ने सम्भवतः लूका के सुसमाचार और प्रेरितों के काम की पुस्तक को वित्त पोषित (funded) किया होगा। क्योंकि प्रथम शताब्दी में प्रकाशित करना एक भारी व्ययपूर्ण कार्य था। किसी भी प्रकरण में, बात यह है कि लूका उन बातों की पुष्टि करने के लिए लिखता है जो थियोफिलुस पहले से ही जानता है। ऐसा प्रतीत होता है, कि थियोफिलुस यीशु के जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान की बड़ी घटनाओं से सुपरिचित है, और लूका उसके सुसमाचार को विश्वास को संरक्षित करने के उद्देश्य से थियोफिलुस के ज्ञान के रिक्त स्थान को भरने के लिए लिखता है। यह एक अच्छा महत्वपूर्ण सिद्धान्त है, जिसे कलीसिया को 21वीं शताब्दी में महत्व देना चाहिए। ख्रीष्ट की सेवकाई के विषय में किसी का ज्ञान सीधे रीति से उसके व्यक्तिगत विश्वास से जुड़ा होता है। जब हमारे मनों में सन्देह प्रवेश करता है, जैसे यह अपरिहार्य रूप से होता है, तो हमें सुसमाचार की ओर फिरना चाहिए और अपने अपने मनों को ख्रीष्ट के जन्म, जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान के सत्य से नया करना चाहिए।

2. दीन लोगों ऊँचा पर उठाया जाना और अभिमानियों को दीन किया जाना

बाइबल में स्तुतिगान प्रायः प्रमुख विषयों को समाहित करते हैं, ऐसे विषय जो सम्पूर्ण पुस्तक में बुने गए हैं (उदाहरण हेतु, दानिय्येल 2:20-23, 4:1-3, 34-35, 6:25-27)। लूका में भी चार स्तुतिगान पाए जाते हैं जो पुस्तक के ईश्वरविज्ञान का बड़ा सार प्रस्तुत करते हैं: लूका 1:46-55 (मरियम का स्तुतिगान), लूका 1:68-68-79 (ज़कर्याह का स्तुतिगान), लूका 2:14 (स्वर्गदूतों का स्तुतिगान), और लूका 2:29-32 (शमौन का स्तुतिगान)। निन्मलिखित पंक्तियाँ मरियम के स्तुति-गान से हैं, जो कि चारों में सर्वाधिक जाना पहचाना हुआ है:

उसने अपने भुजबल से सामर्थ्य के कार्य किए हैं;

और उनको तितर-बितर कर दिया जो अपने हृदय की भावनाओं में अहंकारी थे;

उसने राजाओं को सिंहासन से गिरा दिया

और दीनों को महान् कर दिया;

उसने भूखों को अच्छी वस्तुओं से तृप्त किया,

और धनवानों को खाली हाथ निकाल दिया।(लूका 1:51-53)

यह स्तुतिगान 1 शमूएल 2:1-10 में हन्ना की प्रसिद्ध प्रार्थना से स्पष्ट रूप से मिलता-जुलता है, जिसमें हन्ना ने शमूएल को देने के लिए प्रभु को धन्यवाद देती है—जो इस्राएल के इतिहास में सर्वाधिक प्रसिद्ध नबियों में से एक है—जिसने दाऊद के राजवंश को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजा यीशु, राजा दाऊद की नाई वह साधन बनेगा जिसके द्वारा परमेश्वर दीनों को महान् करेगा और राजाओं को पदावनत (नीचा) करेगा। यह समझाता है कि क्यों लूका प्रायः भाग्यों के उलटफेर को रेखांकित करता है। उदाहरण के लिए, यीशु की विश्वासयोग्य आज्ञाकारिता (लूका 4) उसे शैतान और उसके सेवकों को सृजित क्रम से बाहर निकालने का अधिकार देती है। लूका 10:18 में, यीशु यशायाह 14:12 की ओर संकेत करते हुए कहते हैं, “मैं शैतान को बिजली के समान आकाश से गिरते देख रहा था।” बात यह है कि एक रचना परिवर्तन हो रहा है—शैतान ने अपनी सामर्थ्य खो दी है (लूका 11:20-23)। इसके विपरीत, यीशु अपने सम्पूर्ण जीवन भर दीन चरित्र का प्रतीक रहा; उसका जन्म दीनहीन परिस्थितियों में हुआ (लूका 2:7), वह नासरत के साधारण से कस्बे में रहा (लूका 4:16), और वह अपने लोगों के लिए ऐसी मृत्यु से मरा जिसके योग्य न था (लूका 22:1-23:56)। परन्तु, यीशु की विश्वासयोग्यता के कारण परमेश्वर ने पुत्र को निर्दोष ठहराया और यीशु को पिता के सिंहासन पर बैठाया (24:50-53)। विश्वासियों को इस उदाहरण को ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि परमेश्वर प्रतिज्ञा करता है कि हम भी कठिन परिस्थितियों में होकर जाएँगे। जब तक हमारा दैहिक पुनरुत्थान नहीं पूर्ण हो जाता तब तक हमें सार्वजनिक रूप से निर्दोष ठहराया नहीं जाएगा। केवल अनन्त अवस्था में ही परमेश्वर के लोग महिमान्वित अस्तित्व का आनन्द ले पाएँगे।

3. यीशु और पुराना नियम

लूका ने अपने सुसमाचार का आरम्भ ख्रीष्ट की सेवकाई का विवरण देने के साथ करता है “उन घटनाओं से किया जो हमारे बीच में घटी” (लूका 1:1)। एक सावधान पाठक पूछेगा, “लूका के मन में पुराने नियम के कौन से स्थल हैं?” संक्षिप्त उत्तर: सभी। तीसरे सुसमाचार में तीस से अधिक स्पष्ट पुराने नियम के उद्धरण और सैकड़ों पुराने नियम के उल्लेख हैं , इसलिए हमें यह मान लेना चाहिए कि लूका पुराने नियम से परिचित है और इसका अर्थानुवाद करने में बड़ी गहन समझ रखता है। यीशु की सेवकाई के प्रत्येक बात पर, लूका घटना के महत्व को समझाने के लिए पुराने नियम को स्मरण रखता है। सुसमाचार के अन्त में, यीशु ने इम्माऊस के मार्ग पर दो चेलों को डाँटते हैं, और फिर, “मूसा से प्रारम्भ करके सब नबियों और समस्त पवित्रशास्त्र में से अपने सम्बन्ध की बातों का अर्थ उन्हें समझा दिया”(लूका 24:27)। यीशु केवल पुराने नियम के कुछ खण्डों को ही पूरा नहीं करता है। वह सम्पूर्ण पुराने नियम को पूरा करता है।  आज, यहाँ तक सुसमाचारवादी समुदायों में, अनेकों लोग ख्रीष्ट को केन्द्र में रखकर पुराने नियम की समग्रता (सम्पूर्णता) से पढ़ने में लजाते हैं। इस दृष्टिकोण के साथ एक समस्या यह है कि यह यीशु द्वारा पुराने नियम को पढ़ने के विषय में विफल है। यदि हमें यीशु के जैसे जीना चाहिए, तो क्या हमें भी यीशु के जैसे पढ़ना नहीं चाहिए?

जबकि लूका का सुसमाचार कभी-कभी सघन है, यह ज्ञान का कोष है जो ख्रीष्ट की देह को बढ़ाता जाता है और परमेश्वर के लोगों के विश्वास को दृढ़ बनाता है।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

बेन्जमिन एल. ग्लैड्ड
बेन्जमिन एल. ग्लैड्ड
बेन्जमिन एल. ग्लैड्ड जैक्सन, मिस्सिसिप्पी में रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी में नए नियम के सहायक प्राध्यापक हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक या सह-लेखक हैं, जिनमें आदम और इस्राएल से कलीसिया तक (From Adam and Israel to the Church) सम्मिलित है।