मरकुस के सुसमाचार के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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मरकुस के सुसमाचार के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए

मरकुस का सुसमाचार चार सुसमाचारों में सबसे छोटा है, परन्तु यह ख्रीष्टविज्ञानीय (Christological) शिक्षा से भरपूर है। अन्य सुसमाचार के जैसे, मरकुस को इसके ईश्वरवज्ञानीय सन्देश की सराहना करने के लिए एक सतत कथा (narrative) के रूप में देखने की आवश्यकता है। मरकुस को एक कथा  के रूप में पढ़ने का अर्थ है कि जब हम किसी भाग को पढ़ते हैं, तो हमें उसे पूरी पुस्तक के प्रकाश में पढ़ना चाहिए।

उस प्रकाश में, यहाँ मरकुस की कथा से तीन योगदान दिए गए हैं।

1. मरकुस यीशु को परमेश्वर के दैव्य पुत्र के रूप में प्रस्तुत करता है।

कभी-कभी लोग सोचते हैं कि मरकुस का सुसमाचार हमें यीशु का मानवीय पक्ष दिखाता है, जबकि यूहन्ना का सुसमाचार, पौलुस की पत्रियाँ, इब्रानियों और अन्य नये नियम की पुस्तकें यीशु को परमेश्वर के रूप में प्रस्तुत करती हैं। निश्चित रूप से मरकुस में यीशु को वास्तव में मनुष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यीशु नया आदम है जो पूर्ण रीति से परमेश्वर की आज्ञापालन करता है और मूल रूप से अदन की वाटिका में इच्छित शान्ति पुनर्स्थापित करता है (मरकुस 1:12-13 देखें)।

यीशु की मनुष्यत्व को देखना प्रायः सरल होता है, क्योंकि यीशु स्पष्ट रूप से एक ऐसा मनुष्य है जो प्राचीन संसार में रहता है और चलता-फिरता है। वह क्रोध, करुणा, थकान, भूख, दुःख प्रदर्शित करता है और वह मरता है। हमें यीशु की पूर्ण मनुष्यत्व की पुष्टि करनी चाहिए और आनन्दित होना चाहिए, क्योंकि हमारा उद्धारकर्ता वास्तव में मनुष्य है, हमसे कम नहीं।

फिर भी, यदि हम सोचते हैं कि मरकुस यीशु को केवल  वास्तव में मनुष्य के रूप में प्रस्तुत करता है, तो हम इस सुसमाचार को बहुत कम आँकेंगे और समझने में भूल कर बैठेंगे। निस्सन्देह, मरकुस के अनुसार यीशु के विद्वतापूर्ण विवरणों में प्रायः यही बात रही है। परन्तु हमें उन स्पष्ट संकेतों को नहीं अनदेखा करना चाहिए जो मरकुस ने हमें दिए हैं कि यीशु परमेश्वर है।

मरकुस 1:1 में, सुसमाचार सन्देश परमेश्वर के पुत्र, यीशु ख्रीष्ट का सन्देश है। यह पहले से ही यीशु के परमेश्वरत्व को मानता है, जैसा कि “परमेश्वर के पुत्र” भाषा का उपयोग करने वाले भविष्य के सन्दर्भ स्पष्ट करते हैं। “परमेश्वर के पुत्र” का अगला सन्दर्भ यीशु के बपतिस्मा पर आता है, जहाँ अलौकिक स्वर्गीय वाणी यीशु को परमेश्वर के पुत्र के रूप में पहचानती है (मरकुस 1:11)। निम्नलिखित में, यीशु को कई अवसरों पर अलौकिक प्राणियों द्वारा परमेश्वर के पुत्र के रूप में पहचाना गया है (मरकुस 1:24; 3:11; 5:7-10), जिसमें रूपान्तरण की घटना भी सम्मिलित है, जहाँ हम यीशु की परमेश्वरीय महिमा की झलक देखते हैं (मरकुस 9:2-7)। वास्तव में, मरकुस में सुसमाचार के अन्त तक, जहाँ क्रूस के पास एक रोमी सूबेदार यीशु को परमेश्वर के पुत्र के रूप में स्वीकार करता है (मरकुस 15:39), कोई भी ऐसा व्यक्ति यीशु को परमेश्वर के पुत्र के रूप में स्वीकार नहीं करता है जो दुष्टात्मा-ग्रस्त नहीं है। क्रूस के बाद, हम मरकुस में स्पष्ट रूप से देखते हैं कि यीशु वास्तव में मृतकों में से जीवित हो गया है जैसा कि उसने भविष्यवाणी की थी (मरकुस 16:1-8), और यह यीशु की परमेश्वरीय महिमा की ओर भी संकेत करता है जिसकी रूपान्तरण में आशा की गई थी।

हम मरकुस में यीशु के परमेश्वरत्व को देखने के अन्य रीतियों को भी लिख सकते हैं, जैसे कि प्रभु का अपने मन्दिर में आना (यशायाह. 40:3; मरकुस 1:2-3), वह अधिकार जिसके साथ यीशु पापों को क्षमा करता है (मरकुस 2:5-6), प्रकृति पर उसका अधिकार (मरकुस 4:35-41), और मृतकों को जीवित करने का उसका अधिकार (मरकुस 5:35-43)। संक्षेप में, मरकुस में यीशु न केवल वास्तव में मनुष्य हैं, वरन् वास्तव में परमेश्वर भी हैं।

2. यीशु मरकुस में अपनी मृत्यु के अनूठे, प्रतिस्थापनीय उद्देश्य के विषय में स्पष्ट रूप से बात करता है।

मरकुस की एक अन्य प्रमुख विशेषता यीशु की मृत्यु की ऐच्छिकता (intentionality) है। कुछ लोगों ने तर्क दिया है कि सुसमाचारों में प्रायश्चित्त का कोई ईश्वरविज्ञान नहीं है। परन्तु मरकुस इस विचारधारा का खण्डन करता है, क्योंकि यीशु कम से कम दो अवसरों पर अपनी मृत्यु के उद्देश्य को स्पष्ट रूप से बताया है।

मरकुस 10:45 एक बहुत स्पष्ट स्थलों है जहाँ पर यीशु अपनी मृत्यु के उद्देश्य के विषय में बात करता है: “क्योंकि मनुष्य का पुत्र भी अपनी सेवा कराने नहीं वरन् सेवा करने और बहुतों की फिरौती के मूल्य में प्राण देने आया।” “बहुतों के लिए दिया जाना” की प्रतिस्थापनीय (substitutionary) भाषा पर ध्यान दें। यह वाक्याँश यशायाह 53:11-12 के दुःख उठाने वाले सेवक की भाषा को दर्शाता है।

यीशु की मृत्यु की प्रतिस्थापनीय प्रकृति को प्रदर्शित करने वाला दूसरा स्थल अन्तिम भोज की स्थापना के वचनों में पाया जाता है (मरकुस 14:22-25)। यहाँ यीशु रोटी और दाखरस के द्वारा दिखाता है कि उसकी देह और लहू बहुतों के लिए दिया जाएगा। यह फिर से यशायाह 53 के दुःख उठाने वाले सेवक के खण्ड को परिलक्षित करता है और स्पष्ट करता है कि यीशु ने अपनी मृत्यु को एक प्रतिस्थापनीय बलिदान के रूप में चाहा था। इसलिए जब तक वह पुनः न आ जाए यीशु की मृत्यु की स्मृति में इस भोज को तब तक मनाते रहना उचित है (देखें 1 कुरिन्थियों 11:23-26)।

3. ख्रीष्ट की मृत्यु की अनूठेपन को कम किये बिना, मरकुस ख्रीष्ट के दुःख और मृत्यु को शिष्यता हेतु उदाहरण के रूप में भी प्रस्तुत करता है।

यीशु ख्रीष्ट के क्रूस को त्रुटिपूर्ण रीति से समझने का एक ख़तरा तब है जब इसे एक प्रतिस्थापनीय मृत्यु के स्थान पर केवल उच्च आदर्शों या त्यागपूर्ण प्रेम के एक उदाहरण के रूप में देखा जाता है। निश्चित रूप से, पापियों के लिए ख्रीष्ट की प्रतिस्थापनीय, प्रतिनिधित्व वाली मृत्यु को नकारना प्रथम श्रेणी की एक ईश्वरविज्ञानीय त्रुटि है। ख्रीष्ट की मृत्यु अनूठी है और वह अपने लोगों के पापों का दण्ड चुकाती है। इसकी पुष्टि बड़े ही स्पष्टता से की जानी चाहिए।

साथ ही, मरकुस यीशु की मृत्यु को केवल एक अद्वितीय, प्रतिस्थापनीय प्रायश्चित्त के रूप में प्रस्तुत नहीं करता है। वह इसे शिष्यता के एक आदर्श के रूप में भी प्रस्तुत करता है। मरकुस में तीन बार यीशु अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान की भविष्यवाणी करता है (मरकुस 8:31-33; 9:31; 10:33-34), और तीनों प्रकरणों में वह अपनी आगामी बहिष्करण (त्यागा जाना) और दुःख के विषय में अपनी बातचीत को शिष्यता हेतु एक बुलाहट के साथ समाप्त करता है (मरकुस 8:34-38; 9:33-37; 10:35-45)। यीशु न केवल हमारे उद्धारकर्ता है, वरन् वह पतित संसार में विश्वासयोग्य जीवन जीने के लिए हमारे आदर्श भी है (1 पतरस 2:21-25)।

निष्कर्ष

मरकुस का सुसमाचार हमारे लिए एक ऐसे उद्धारकर्ता को प्रस्तुत करता है जो वास्तव में दिव्य है, वास्तव में मनुष्य है, और जो अपने लोगों के पापों के लिए प्रतिस्थापनीय प्रायश्चित्त के रूप में विशिष्ट रूप से अपना जीवन देता है। हम विश्वास के द्वारा उसकी मृत्यु से लाभान्वित होते हैं, और साथ ही में हम उससे सीखते हैं कि महिमा का मार्ग दुःख का मार्ग है।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

ब्रैन्डन डी. क्रो
ब्रैन्डन डी. क्रो
डॉ. ब्रैन्डन डी. क्रो फिलाडेल्फिया में वेस्टमिन्स्टर थियोलॉजिकल सेमिनरी में नए नियम के सहायक प्रोफेसर हैं। वह कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें द लास्ट ऐडम और द मेसज ऑफ द जेनेरल एपिस्टल्स इन द हिस्टरी ऑफ रिडेम्प्शन सम्मिलित हैं।