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मैं अपने विश्वास में कैसे बढ़ सकता हूँ

How-Can-I-Grow-in-My-Faith

– जेरेमी-वाकर

कल्पना कीजिए समुद्री आँधी में डूबते हुए किसी व्यक्ति की, जिस पर एक जीवन-रक्षक-बेल्ट  फेंका जाता है। हताश में, वह उसे पकड़ लेता है, उससे चिपक जाता है, उसके भीतर समा जाता है। अन्त में वह उन भयानक लहरों पर तैरने लगता है। परन्तु अभी भी वह भय और सन्देह से भरा हुआ है, वह चिन्तित है कि कहीं जीवन-रक्षक-बेल्ट उसे धोखा न दे दे, और वह गहरे समुद्र में डूब न जाए। कल्पना कीजिए कि फिर वह देखता है कि उस बेल्ट से एक छोटी सी जलरोधक पुस्तिका भी बंधी हुई है। वह चिन्तित व्यक्ति ऐसी परिस्थितियों के होने पर भी उस पुस्तिका को पढ़ना आरम्भ करता है और पाता है कि पुस्तिका में जीवन-रक्षक-बेल्ट  के गुणों का विवरण दिया गया है। वह पढ़ता है कि यह किस सामग्री से बनी है, इसकी बनावट की विशेषताएँ क्या है, और इसकी असाधारण तैरने की क्षमता और विश्वसनीयता कितनी अधिक है। वह आगे पढ़ता है कि कैसे इसका पूर्ण रीति से परीक्षण किया गया है, कैसे इसने प्रचण्ड समुद्र में भी भारी से भारी भार को सहन किया है, तथा इसे थामे रहने वाला कोई भी व्यक्ति कभी डूबा नहीं है। जैसे-जैसे वह पढ़ता गया, उसका आत्मविश्वास और अधिक बढ़ता गया।   

क्या वह अभी भी समुद्री आँधी के बीच में फँसा हुआ है? हाँ। क्या कभी-कभी आने वाली कुछ बड़ी लहरें उसे अभी भी गहरी चिन्ता में डाल सकती हैं? हाँ। क्या वह पहले से अधिक सुरक्षित है? नहीं। वह इस समय भी उतना ही सुरक्षित है जितना कि तब था जब उसने पहली बार उस जीवन-रक्षक-बेल्ट को पकड़ा था, पर अब उसे इस बात पर अधिक भरोसा है कि यह उसे सभी संकटों और कठिनाइयों से बचाए रखेगा, जब तक कि उसे अन्ततः पानी से बाहर निकालकर सुरक्षित रूप से भूमि पर नहीं लाया जाता।

इस उदाहरण की सीमाओं को स्वीकार करते हुए, आइए हम इससे विश्वास की वृद्धि के लिए कुछ समानताएँ लें। जब कोई पापी मनुष्य पहली बार यीशु पर भरोसा करता है, तो वह पापी उद्धार पाता है और सुरक्षित भी हो जाता है। कोई भी, कुछ भी, उसे यीशु के हाथों से छीन नहीं सकता है। वह जितना सुरक्षित हो सकता है, उतना हो चुका है। परन्तु हो सकता है कि वह अपनी सुरक्षा को पूरी रीति से समझ न पाया हो। वह ख्रीष्ट के पास आने लायक  पर्याप्त बातें तो जानता है, परन्तु जिस ख्रीष्ट के पास वह आया है, उसके विषय में उसे और अधिक जानने की आवश्यकता है। उसका भरोसा तब ही बढ़ेगा जब वह उस उद्धारकर्ता को और अधिक जानने लगेगा जिस पर उसने विश्वास किया है। परन्तु यह कैसे सम्भव हो सकता है?    

सर्वप्रथम, आत्मिक उन्नति पवित्रशास्त के माध्यम से होती है। यह वह पुस्तक है जो न केवल ख्रीष्ट में विश्वास करने के द्वारा मनुष्य को उद्धार पाने के लिए बुद्धिमान बनाती है, वरन सम्पूर्ण रीति से परमेश्वर का जन भी बनाती है। मसीहियों को सदैव सुसमाचार की आवश्यकता होती है। हमें अपनी आँखें ख्रीष्ट पर लगाए रखनी चाहिए, अपने विश्वास के प्रेरित और महायाजक, ख्रीष्ट यीशु पर ध्यान देना चाहिए (इब्रानियों 3:1)। ध्यान दें कि मसीही जीवन के सभी फंदों, दुखों, और झूठी शिक्षाओं के सभी छल कपट के विरुद्ध, प्रेरितों ने परमेश्वर के लोगों के विश्वास को बढ़ाने के लिए ख्रीष्ट और उसके क्रूस पर चढ़ाए जाने को उनकी आँखों के सामने रखा। पवित्रशास्त्र में ख्रीष्ट के विषय में अध्ययन करने से हम यीशु की ओर देखते हैं, जो हमारे विश्वास का कर्ता और सिद्ध करने वाला है, और इस प्रकार हमारा विश्वास बढ़ता है।

विश्वास में बढ़ने का दूसरा उपाय है परमेश्वर से प्रार्थना करना कि उसका आत्मा अधिक विश्वास उत्पन्न करे। वह विश्वास का दाता है, इसलिए उसे ही विश्वास को दृढ़ करना होगा। शिष्यों ने प्रार्थना की, “हमारा विश्वास बढ़ा!” (लूका 17:5) एक चिन्तित पिता ने चिल्लाकर कहा, “मैं विश्वास करता हूँ; मेरे अविश्वास का उपचार कर!” (मरकुस 9:24)। ऐसी प्रार्थनाएँ हमें स्मरण कराती हैं कि सच्चा विश्वास दुर्बल या दृढ़ हो सकता है और साथ ही ऐसी प्रार्थनाएँ हमें दिखाती हैं कि विश्वास बढ़ाने का एक उपाय  माँगना होता है। प्रत्युत्तर में ख्रीष्ट हमें अपने विषय में और भी अधिक बताता है। सम्भवतः हमारे पास इसलिए नहीं है क्योंकि हमने माँगा नहीं (याकूब 4:2)?

विश्वास बढ़ाने का एक और उपाय है सन्तों के साथ संगति। संसार हमारे विश्वास को क्षीण करेगा और शैतान हमारे विश्वास पर आक्रमण करेगा, हमें ख्रीष्ट से दूर करेगा, हमें सत्य से भटका देगा, तथा अन्य बातों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करने की माँग  करेगा। इन सब बातों को प्रभावहीन करने की एक बहुत ही सुखद विधि यह है कि परमेश्वर के लोगों के साथ समय बिताएँ तथा उन विषयों पर चर्चा करें जो राज्य से सम्बन्धित हैं (मलाकी 3:16-18)। पवित्र लोगों के साथ ऐसी संगति में, स्वर्गीय वस्तुयों के प्रति हमारी समझ ताज़ा होती है और उसमें नयापन भी आ जाता है, साथ ही सांत्वना भी प्राप्त होती है (1 थिस्सलुनीकियों 4:18, 5:11)। इससे हमें स्वयं अपने तथा दूसरों के विषय में अनुभव मिलता है। बाइबल पढ़ने से  हमें यह पता चलता है कि परीक्षाओं के माध्यम से परमेश्वर के लोगों का विश्वास कैसे बढ़ता है। विश्वास के पिता अब्राहम के पास विश्वास की परीक्षाएँ और विजय दोनों थीं (रोमियों 4:20)।भजनकारों ने परमेश्वर के पिछले कार्यों को स्मरण करके स्वयं को दृढ़ किया। यह महत्वपूर्ण बात है कि हम अन्य विश्वासियों के विषय में पढ़ें और सुनें, अर्थात् उनके पहले के जीवन में और वर्तमान समय में प्रभु ने किस प्रकार से उन्हें स्थिर किया तथा कैसे उनकी सहायता की। इस बात पर विचार करें कि प्रत्येक वह लहर जो हमें डुबोती नहीं है, उस चट्टान की दृढ़ता को पुनः प्रमाणित करती है जिस पर हम खड़े हैं, हमारे महान जीवन-रक्षक के प्रभावकारिता को। यह मात्र हमारा विश्वास नहीं है जो हमें बचाता है। प्रभु पर भरोसा करने के स्थान पर अपने विश्वास की सामर्थ  पर भरोसा करने का खतरा है। यह ख्रीष्ट है जो हमें विश्वास के द्वारा बचाता है। ख्रीष्ट ही वह सामर्थी व्यक्ति है जिसके साथ विश्वास जुड़ा हुआ है, और यह वह है जिस पर हम भरोसा करते हैं, और वही हमें बचाता है। जैसे-जैसे हम उसकी ओर देखते हैं, हमारा विश्वास और अधिक बढ़ता है।  आइज़ैक वॉट्स के शब्दों में इस प्रकार कहा गया है:

यदि मृत्यु की सभी सेनाएँ, 

और नरक की अनजानी शक्तियाँ, 

क्रोध और द्वेष के अपने सबसे भयानक रूप धारण कर लें, 

तो भी मैं सुरक्षित रहूँगा, क्योंकि ख्रीष्ट 

महान् सामर्थ्य और संरक्षक अनुग्रह प्रकट करता है।  

यह लेख मसीही शिष्यत्व की मूल बात संग्रह का हिस्सा है।       

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।