प्रेरितों के काम के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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प्रेरितों के काम के विषय में 3 बातें जो आपको जाननी चाहिए

प्रेरितों के काम की पुस्तक नये नियम की पुस्तकों में विशिष्ट है। चार सुसमाचार यीशु की सांसारिक सेवकाई, बलिदानपूर्ण मृत्यु, और विजयी पुनरुत्थान की साक्षी देते हैं। इक्कीस पत्रियाँ उसकी पहचान और उसके कार्य का वर्णन करती हैं और उसके छुटकारे के प्रतिउत्तर में विश्वास-निर्मित प्रेम को निर्देशित करती हैं। प्रकाशितवाक्य की पुस्तक संसार के सब दिखाई देने वाले संकटों के पीछे छिपे संषर्ष को प्रकट करती है, और हमें आश्वस्त करती है कि मेमना विजयी हुआ है। परन्तु केवल प्रेरितों के काम की पुस्तक ही उन मूलमूत दशकों का वर्णन करती है जिनमें जी उठे, स्वर्गारोहित प्रभु ने अपनी कलीसिया की नींव डाली थी।

1. प्रेरितों के काम वह ज्योति है जो सुसमाचारों और पत्रियों के मध्य “सुरंग” को प्रकाशित करती है।

यदि हमारे पास प्रेरितों के काम की पुस्तक न होती जैसा कि हम नये नियम में पढ़ते हैं, तो हम बिना प्रकाश वाले डिब्बे में यात्रियों के जैसे आभास करेंगे जब उनकी ट्रेन एक काली सुरंग में प्रवेश करती है, और अन्ततः दिन के प्रकाश में निकलती है। जैसे-जैसे हमारी आँखे पुनः समायोजित होती हैं, हम देखते हैं कि बहुत कुछ परिवर्तित हो चुका है: नये सह-यात्री, नये कुली, नये चालक।

जैसे ही सुसमाचार समाप्त होते हैं, फिर से जी उठे यीशु “कई प्रमाणों” के माध्यम से अपने पुनरुत्थान की वास्तविकता को प्रदर्शित कर रहा है (प्रेरितों के काम 1:3, लूका 24, मत्ती 28, मरकुस 16 और यूहन्ना 20-21 का सार)। यद्यपि उसकी प्रेरितीय साक्षी सब यहूदी हैं, यीशु उन्हें सभी राष्ट्रों तक अपने अपने सुसमाचार को लेकर जाने हेतु आदेश देता है। जैसे ही सुसमाचार समाप्त होते हैं, यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले की भविष्यवाणी को अभी भी पूरा होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि यीशु “पवित्र आत्मा और आग से” बपतिस्मा देगा (लूका 3:16), जो यीशु कहता है वह शीघ्र ही पूरा होगा (लूका 24:49; यूहन्ना 15:26)।

यह सुरंग में जाने का समान है। जब हम बाहर निकलते हैं, तो सहसा हम पौलुस से मिलते हैं, जो स्वयं को यीशु ख्रीष्ट का प्रेरित कहता है, परन्तु जब यीशु मरियम और पतरस और अन्य लोगों के सामने दिखाई दिया तो वह कहीं नहीं था। यीशु के पुनरुत्थान के बीस वर्ष के पश्चात्, पौलुस यूनानी-रोमी नगरों में ख्रीष्टीय विश्वासियों को पत्रियाँ लिख रहा है: थिस्सलुनीके, गलातिया, कोरिन्थ, रोम, फिलिप्पी, इफिसुस, कुलुस्से। पौलुस इस बात को स्वीकार करता है कि उसने एक समय यीशु और उसके लोगों पर अत्याचार किया था, परन्तु अब वह सम्पूर्ण हृदय से यीशु की प्रभु के रूप में सेवा करता है। इतना बड़ा उलट-फेर कैसे हुआ?

पौलुस जिन समूहों को लिखता है वे बाहरी लोग हैं, “अ-यहूदी” जो पहले “इस्राएली प्रजा कहलाए जाने से वंचित थे, प्रतिज्ञा की गई वाचाओं के भागीदार न थे” (इफिसियों 2:11-13)। इसलिए, यीशु का दर्शन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर परमेश्वर के अनुग्रहमय राज्य के प्रसार पर पूरा साकार हो रहा है। किन घटनाओं ने इस्राएल की “खोई हुई भेड़” (मत्ती 15:24) से “और भेड़ें” जो भेड़शाला की नहीं है (यूहन्ना 10:16) पर ध्यान परिवर्तित कर दिया? 

पौलुस की मण्डलियाँ ने एक ही आत्मा द्वारा एक ही देह होने के लिए बपतिस्मा पाया। (1 कुरिन्थियों 12:13)। “वे आत्मा के अनुसार चलते हैं,”  इसलिए उन्हें “आत्मा के अनुसार चलना” चाहिए, आत्मा का फल लाना चाहिए (गलातियों 5:16-25)। मसीहा की सेवकाई का चर्मोत्कर्ष (यूहन्ना के अनुसार)—परमेश्वर के आत्मा का उण्डेला जाना—कब और कैसे हुआ?

प्रेरितों के काम सुरंग में तेज ज्योति है जो इन प्रश्नों का उत्तर देती है। पिन्तेकुस्त के दिन, यीशु अपने अनुयायियों को पवित्र आत्मा में बपतिस्मा देता है (प्रेरितों के काम 1:4-5; प्रेरितों के काम 2)। बाद में, प्रभु ने पतरस को अयहूदियों के साथ शुभ समाचार साझा करने और चमत्कार को देखने के लिए भेजा क्योंकि आत्मा परमेश्वर के घराने में उनका स्वागत करता है (प्रेरितों के काम 10-11)। हम शाऊल (जिसे बाद में पौलुस के नाम से जाना गया) से मिलते हैं जो यीशु की महिमा से अन्धा होगा गया था और सताने वाले से “मार्ग” का प्रचारक बन गया था (प्रेरितों के काम 9)। जैसे ही पौलुस “राष्टों में ज्योति” लाने हेतु समुद्र और भूमि पर यात्रा करता है (प्रेरितों के काम 1:8, 13:46-47), हम उन मण्डलियों की पिछली कहानी को सुनते हैं जिन्हें वह पत्र लिखता है (प्रेरितों के काम 13-28)। परमेश्वर कितना बुद्धिमान और दयालु है कि उसने लूका को उसकी पहली “पहली पुस्तक” (तीसरा सुसमाचार) को इस दूसरे खण्ड के साथ पूर्ण करने के लिए प्रेरित किया।

प्रेरितों के काम सुसमाचार और पत्रियों को यह बताते हुए जोड़ता है कि कैसे प्रभु ने अपनी कलीसिया की आधारशिला रखी, परमेश्वर का आत्मा उण्डेला गया, और अनुग्रह में अ-यहूदियों को स्वीकार किया गया।

2.  जी उठा और राज्य करने वाला ख्रीष्ट प्रेरितों के काम के नाटक में मुख्य नायक है।

अपने सुसमाचार का वर्णन “वह सब जो यीशु ने करना और सिखाना आरम्भ किया” के रूप में करते हुए लूका का तात्पर्य यह है कि प्रेरितों के काम बताता है कि स्वर्गारोहण के पश्चात् यीशु क्या करता और सिखाता रहा (प्रेरितों के काम 1:1-2)। क्योंकि प्रेरितों के काम पतरस के प्रेरितीय सेवाओं (प्रेरितों के काम 1-12) और पौलुस (प्रेरितों के काम 13-28) के प्रेरितीय सेवाओं का वर्णन करता है, शीर्षक “सभी प्रेरितों के कार्य” इस पुस्तक से बहुत पहले ही जुड़े हुए थे।

फिर भी, लूका चाहता है कि हम जानें कि वास्तविक नायक जो कलीसिया के विकास को निर्देशित और ससक्त बनाता है, वह स्वयं जी उठा प्रभु है।

जिस प्रकार यीशु ने अपनी सांसारिक सेवकाई के अन्तराल प्रेरितों को चुना (प्रेरितों के काम 1:2), उसी प्रकार यहूदा के स्थान पर एक व्यक्ति को यीशु ने चुना (प्रेरितों के काम 1:21-26)। पिन्तेकुस्त में आत्मा का उतरना यीशु का कार्य है: “इसलिए परमेश्वर के दाहिने हाथ पर सर्वोच्च पद पाकर और पिता से पवित्र आत्मा की प्रतिज्ञा प्राप्त करके, उसने इस उण्डेल दिया जिसे तुम देखते और सुनते भी हो” (प्रेरितों के काम 2:33)। 

यीशु वह प्रभु है जो विश्वासियों की संख्या में “प्रतिदिन” जोड़ता जाता था जो उद्धार पाते जाते थे, उनको “प्रभु प्रतिदिन उनमें मिला दिया करता था” (प्रेरितों के काम2:47, 5:14, 11:21-22)। जैसे ही एक लंगड़ा जन मन्दिर के आंगन में छलांक लगाकर कूदता है, पतरस और यूहन्ना चकित भीड़ का ध्यान अपने ऊपर से हटाकर सच्चे चंगाई देने वाले की ओर निर्देशित करते हैं:   “उसके नाम ने—उसके नाम पर विश्वास ने—इस जन को शक्ति दी है जिसे आप देखते हैं और जानते हैं, उस विश्वास ने जो यीशु के द्वारा है सब लोगों के समझ इस जन को पूर्ण चंगाई दी है” (प्रेरितों के काम 3:12,16; पुनः प्रेरितों के काम 4:9-10 में)। जब सताने वाला अन्धा शाऊल पूछता है, “प्रभु, तू कौन है?” उत्तर आता है: “मैं यीशु हूँ जिसे तू सताता है” (प्रेरितों के काम 9:5 बल जोड़ा गया है)। यीशु ने शाऊल को “अरयहूदियों, राजाओं और इस्राएलियों के सामने मेरा नाम प्रकट करने के लिए” चुना (प्रेरितों के काम 9:15)। यीशु वह प्रभु है जिसकी सुरक्षा में पौलुस और बरनाबास नये विश्वासियों और प्राचीनों को नियुक्त करते हैं (प्रेरितों के काम 14:23); जो लुदिया के हृदय को सुसमाचार के लिए खोलता है (प्रेरितों के काम 16:14-15); जो कुरिन्थ में पौलुस को प्रोत्साहित करते हैं, “इस नगर में मेरे बहुत से लोग हैं” (प्रेरितों के काम 18:10), और बन्दीगृह में भी प्रोत्साहित करता है (प्रेरितों के काम 23:11)।

प्रेरितों के काम निरन्तर उसके आत्मा के माध्यम से कलीसिया में महान् प्रभु की व्यक्तिगत उपस्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करता है। ख्रीष्ट कोई अनुपस्थित निरंकुश जन नहीं है, जो दूरस्थ और अगम्य है। यद्यपि वह स्वर्ग में परमेश्वर के दाहिने हाथ राज्य करता है फिर भी यीशु यहाँ पृथ्वी पर “परमेश्वर हमारे साथ” है। अपने सामर्थी आत्मा के द्वारा वह कलीसिया के जीवन को सम्भाले रहता है और कलीसिया की उन्नति करता है। यीशु अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरा करता है:

 “मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा” (मत्ती 16:18)।

“मैं तुम्हें अनाथ नहीं छोड़ूँगा, मैं तुम्हारे पास आऊँगा” (यूहन्ना 14:18)।

“मैं युग के अन्त तक सदैव तुम्हारे साथ हूँ” (मत्ती 28:20)।

प्रेरितों के काम हमें यीशु को जीवन्त रूप से जीवित, सम्प्रभुता के साथ राज्य करते हुए, और अपनी कलीसिया में अपने आत्मा के माध्यम से सदैव उपस्थित रहते हुए, पृथ्वी के अन्त तक परमेश्वर के अनुग्रह का प्रकाश फैलाते हुए दिखाता है।

 3. प्रेरितों के काम कलीसिया की उन्नति को वचन की उन्नति के समतुल्य करता है। 

जैसा कि लूका अपने सुसमाचार में करता है (लूका 1:18; 2:20, 52; 4:14, आदि) उसी प्रकार प्रेरितों के काम में लूका विशिष्ट घटनाओं के अपने वृतान्तों के बीच, उन घटनाओं के चल रहे परिणामों को साराँश को जोड़ता है। पिन्तेकुस्त के दिन हजारों लोगों के हृदय परिवर्तन के पश्चात् “वे प्रेरितों से लगातार शिक्षा पाने, संगति रखने, रोटी तोड़ने, और प्रार्थना करने में स्वयं को समर्पित कर रहे थे,” संसाधनों को साझा कर रहे थे, मन्दिर में स्तुति कर रहे थे और एक साथ भोजन कर रहे थे (प्रेरितों के काम 2:42-47, 4:3235, 5:12-16, 9:31; 16:5)।

इन साराँशों में बार-बार आने वाला विषय वचन की उन्नति/बढ़ना होना है:

प्रेरितों के काम 6:7 : परमेश्वर का वचन फैलता गया और यरूशलेम में चेलों की संख्या अत्याधिक बढ़ती गई।

प्रेरितों के काम 12:24: परन्तु परमेश्वर का वचन बढ़ता और फैलता गया।

प्रेरितों के काम 19:20: इस प्रकार प्रभु का वचन सामर्थ्य के साथ फैलता और प्रबल होता गया।

लूका कलीसिया की संख्यात्मक आकार और आत्मिक परिपक्वता दोनों में उन्नति की बात कर रहा है। वह कलीसिया की उन्नति को “वचन के बढ़ने” के रूप में वर्णित करता है क्योंकि प्रेरितों द्वारा आत्मा की सामर्थ्य में प्रचार किया जाने वाला वचन अजेय हथियार है जिसके द्वारा ख्रीष्ट हृदयों को अपना बना लेता है, और वह पोषण है जो परमेश्वर की सन्तानों को परिपक्व बनाता है।

कलीसियाई जीवन और मिशन में परमेश्वर के वचन की केन्द्रीय भूमिका पूरे प्रेरितों के काम में उपदेशों और भाषणों की प्रधानता में दिखाई देती है। आत्मा के उतरने से पहले ही, पतरस ने एकत्रित विश्वासियों को समझाया कि कैसे यहूदा का विश्वासघात और उसके स्थान पर किसी को रखा जाना पवित्रशास्त्र को पूरा करता है (प्रेरितों के काम 1:15-22)। पिन्तेकुस्त पर, पतरस दिखाता है कि कैसे भजन 16 और 110 और योएल 2 ने यीशु के पुनरुत्थान, स्वर्गारोहण और आत्मा के उण्डेले जाने की भविष्यवाणी की थी (प्रेरितों के काम 2:14-36)। मन्दिर की भीड़ और उनके अगुवों को पतरस और यूहन्ना साक्षी देेते हैं कि केवल यीशु का नाम ही बचाता है। स्तिफनुस ने इस्राएल के परमेश्वर द्वारा भेजे गए छुड़ाने वालों को अस्वीकार करने के लज्जाजनक इतिहास का सर्वेक्षण किया, जिसका चर्मोत्कर्ष धर्मी यीशु की मृत्यु में हुआ (प्रेरितों के काम 7:2-53)। पतरस अयहूदियों को सुसमाचार सुनाता है (प्रेरितों के काम 10:34-43)। आराधनालयों में, पौलुस मसीहा यीशु में पवित्रशास्त्र की पूर्तिकरण को दिखाता है (प्रेरितों के काम 13:16-41, 17:2-4,11,17)। वह बहु-ईश्वरवादी मूर्तिपूजकों (प्रेरितों के काम 14:14-17), नगर के दार्शनिकों  (17:22-31), यहूदी भीड़ (प्रेरितों के काम 22:1-22), और अयहूदी शासकों (प्रेरितों के काम 26:1-23) को वचन का प्रचार करता है। प्रेरित कलीसिया के विवादों को सम्बोधित करने के लिए (प्रेरितों के काम 15:7-21) और कलीसिया के अगुवों को तैयार करने लिए (प्रेरितों के काम 20:18-35) वचन का प्रचार करते हैं। जब प्रेरितों के काम समाप्त होता है, तो पौलुस रोम के बन्दीगृह में है, परन्तु वह अभी भी “प्रभु यीशु ख्रीष्ट के विषय में निडर होकर और बिना किसी रुकावट के शिक्षा दे रहा है” (प्रेरितों के काम 28:30-31)।
जिस पुस्तक को कलीसिया ने प्रेरितों के काम  कहा है उसमें इतने प्रचारित वचन क्यों हैं? प्रेरितों के काम यह महत्वपूर्ण बात सिखाता है:  ख्रीष्ट की कलीसिया बाजार के विश्लेषण या मानवीय रणनीति के माध्यम से नहीं बढ़ती और उन्नति करती है—यहाँ तक कि चिन्हों और आश्चर्यकर्मों से भी नहीं, जिसके द्वारा परमेश्वर ने एक बार प्रेरितों की साक्षी की पुष्टि की (इब्रानियों 2:3-4, 2 कुरिन्थियों 12:11-12)—वरन् अनुग्रह के वचन  के माध्यम से बढ़ती है जिसको उन्होंने आत्मा की सामर्थ्य में पवित्रशास्त्र से प्रचार किया था।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

डेनिस ई. जॉनसन
डेनिस ई. जॉनसन
डॉ. डेनिस ई. जॉनसन वेस्टमिंस्टर सेमिनरी कैलिफोर्निया में व्यावहारिक ईश्वरविज्ञान के सेवामुक्त प्रोफेसर हैं, और डेटन, टेनेसी में वेस्टमिंस्टर प्रेस्बिटेरियन चर्च के सहायक पास्टर हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें वॉकिंग विद जीज़स थ्रू हिज़ वर्ड और हिम वी प्रोक्लेम सम्मिलित है।