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योना का अभियान पवित्रशास्त्र की सबसे अधिक परिचित कहानियों में से एक है। कलीसिया में आप किसी भी बच्चे से पूछिए कि यह किसके बारे में है और आपको एक सटीक उत्तर मिलेगा। यदि आप किसी अन्य छोटे नबी, जैसे हबक्कूक के बारे में पूछते हैं, तो ऐसा होने की सम्भावना बहुत कम है। परन्तु जबकि यह पुस्तक अविस्मरणीय है, यह आवश्यक नहीं है कि यह पुस्तक हमेशा ठीक ढंग से समझी गई हो। हठी नबी और महमच्छ कहानी के मुख्य केन्द्र नहीं हैं। यह पुस्तक—जो एक प्रश्न के साथ समाप्त होती है—परमेश्वर की महिमा और अनुग्रह के प्रकाश में हमारे जीवनों के अर्थ के विषय में सावधानीपूर्वक सोच-विचार की माँग करती है।
1. योना हमें आज्ञाकारी रूप से परमेश्वर का अनुसरण करने में सहायता कर सकता है।
योना हमें एक कार्यशाला प्रदान करता है कि उस परमेश्वर को कैसे प्रतिउत्तर न दें जिसकी आज्ञा का पालन अवश्य ही किया जाना चाहिए। यह पुस्तक परमेश्वर को सम्प्रभु के रूप में प्रकट करती है। यह परमेश्वर सुझाव नहीं देता है; वह आज्ञा देता है। यहाँ तक कि मूर्तिपूजक मल्लाह भी परमेश्वर की सर्वसामर्थ्यता को स्वीकार करते हुए कहते हैं, “हे यहोवा, तू ने जो चाहा वही किया है” (योना 1:14)। परमेश्वर निर्णयात्मक रूप से कार्य करता है। उसने “एक प्रचण्ड आँधी चलाई” (योना 1:4)। उसने “ एक महामच्छ ठहराया” (योना 1:17)। कहानी पूर्णतः परमेश्वर के नियंत्रण में है।
परमेश्वर के आज्ञाएँ स्पष्ट हैं। उसके निर्देश इतने सरल हैं कि ऐसा लगता है कि वह किसी छोटे बच्चे से बोल रहा हो: “उठ,” “जा” और “ प्रचार कर।” योना ने आज्ञा का उल्लंघन इसलिए नहीं किया कि उसके पास जानकारी की कमी थी, समय का दबाव था, या बाहरी प्रभावों से उस पर के दबाव था। उसने केवल इसलिए अवज्ञा की क्योंकि वह आज्ञा मानना नहीं चाहता था, और उसकी अवज्ञा विनाश को लाई। हम भी अपने बलवे के द्वारा जानबूझकर परमेश्वर की आशीषों को नकारते हैं और उसके कठोर न्याय को आमन्त्रित करते हैं।
परन्तु जबकि आज्ञाकारिता सच्चे विश्वास का एक प्रमाण है, अधीनता परमेश्वर से प्रेम करने वाले ह्रदय से आती है। योना ने अपनी धार्मिक बातों पर घमण्ड किया और उत्तम ईश्वरविज्ञान को प्रस्तुत किया, परन्तु उसने अपने परमेश्वर के प्रति भय को बढ़ा चढ़ा कर बताया (योना 1:9)। योना अपने हृदय और अपने कार्यों के द्वारा “यहोवा की उपस्थिति से” भाग रहा था (योना 1:3, 10)। योना आत्मिक रूप से अस्वस्थ था। महामच्छ के भीतर से उसकी धार्मिक प्रतीत होने वाली परन्तु आत्म-प्रशंसा वाली प्रार्थना से लेकर पुस्तक के अंत में उसके क्रोधित स्वभाव तक, योना को उसी हृदय परिवर्तन की आवश्यकता थी जो नीनवे के पुन:उत्थान की विशेषता थी।
हवा, लहरें, पौधों, जानवरों, और यहाँ तक कि मूर्तिपूजकों की आज्ञाकारिता आत्मसंतुष्ट नबी की हठधार्मिकता के विरोध में हैं। योना हमारे लिए एक चेतावनी हो।
2. योना सुसमाचार-प्रसार की मार्गदर्शिका है।
यह बात या तो स्पष्ट लग सकती है या फिर चौंकाने वाली। यह निश्चित है कि योना की पुस्तक परमेश्वर के मिशन के बारे में है। यह खोए हुए लोगों के लिए उसकी दया के कारण था कि परमेश्वर ने योना को अपने आने वाले क्रोध के विषय में नीनवे के लोगों को चेतावनी देने के लिए भेजा (योना 4:2, 11)। परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि परमेश्वर ने गलत सुसमाचार-प्रसारक को चुना था ! इस कहानी में योना के विषय में लगभग कुछ भी ऐसा अनुकरणीय प्रकट नहीं होता है—परन्तु यही इस पुस्तक का मुख्य संदेश प्रतीत होता है। योना की सुसमाचार-प्रसार के प्रति अनिच्छा उसके पुस्तक के पाठकों को लज्जित करना चाहिए कि “राष्ट्रों के लिए प्रकाश” कठिनाई से दिखाई दे रहा था (यशा. 49:6)। हम में से जिन लोगों पर दया दिखायी गयी है उन्हें इस दया करने वाले परमेश्वर का संदेश संसार में साझा करने के लिए उत्सुक होना चाहिए।
सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात, योना की असफलता सिद्ध करती है कि वह सुसमाचार-प्रसार का नायक नहीं है; परमेश्वर है। योना की अनिच्छुक सेवा ने इस्राएल को एक उत्तम नबी की आशा करने के लिए तैयार किया जो खोए हुओं को स्वेच्छा से ढूँढ़ेगा और बचायेगा (लूका 19:10)। केवल ख्रीष्ट ही “पृथ्वी के सारे परिवारों को” आशीष देने की परमेश्वर की साहसी प्रतिज्ञा को पूरी कर सकता है (उत्पत्ति. 12:3)। नीनवे के पुन:उत्थान पिन्तेकुस्त और राष्ट्रों पर शैतान की पकड़ को ढीला करने का पूर्वाभास था। ख्रीष्ट के रूप में परमेश्वर के अवर्णनीय उपहार के कारण, एक दिन “हज़ारों और असंख्य” छुड़ाए हुए लोग मेमने की अतुलनीय मूल्य के बारे में गायेंगे जो वध किया गया था (प्रकाशितवाक्य. 5:11-12)। वास्तव में “उद्धार यहोवा ही से है” (योना 2:9)।
योना खोए हुए लोगों के प्रति परमेश्वर के प्रेमी हृदय को प्रकट करता है। नबी यह अपने स्वयं के गुण के कारण नहीं करता है परन्तु ख्रीष्ट के प्रतीक के रूप में ऐसा करता है। योना पर ध्यान दीजिए इस कारण से नहीं कि वह ईश्वरभक्ति का एक आदर्श है, परन्तु क्योंकि हमें, उसके समान, ख्रीष्ट की आवश्यकता है जिसे उसने चित्रित किया।
3. योना यीशु के विषय में है।
जब यीशु के आलोचकों ने उससे उसके द्वारा दावा किए गए पहचान की पुष्टि करने के लिए चिन्ह माँगा, तो उसने अपनी पीढ़ी को योना की ओर इंगित किया (मत्ती 12:39)। यीशु ने योना की कहानी के केंद्रीय बिंदु को अपनी स्वयं की मृत्यु और पुनरुत्थान के चित्र के रूप में व्याख्या की। योना प्रतीकात्मक रूप से मृत्यु का अनुभव करता है, क्योंकि मल्लाहों का उसे समुद्र में फेंकने के समय यही मानना था। योना को “प्रचण्ड आन्धी” से जिससे जहाज़ के “टूटने का डर” था या उसके मच्छ के पेट में तीन दिन ठहरने से जीवित बचना नहीं चाहिए था (योना 1:4)। मच्छ योना की जलमय कब्र थी; उसका समुद्र के तट पर उगल दिया जाना उसके नये जीवन की शुरूआत थी। पुराना योना— जो गैर-यहूदियों से घृणा करता था और स्वार्थी आराम चाहता था—“पुराने मनुष्यत्व” को चिह्नित करता है (इफिसियों 4:22)। नया योना—जो अभी भी अधूरा और दोषपूर्ण था—अस्पष्ट रूप से “नये मनुष्यत्व” को चिह्नित करता है (इफिसियों 4:23-24)। यीशु भी मरेगा और जी उठेगा। उसके साथ मिलन ही नई सृष्टि बनने और परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करने का एकमात्र मार्ग है (रोमि. 6:8)।
योना की चिन्हात्मक मृत्यु और पुनरूत्थान ने नीनवे के लोगों के लिए पश्चात्ताप के उसके संदेश की पुष्टि की। यदि हम यीशु के सुसमाचार का प्रतिउत्तर देने में असफल होते हैं तो हमारे पास और भी कम बहाने होंगे: “न्याय के दिन नीनवे के लोग इस पीढ़ी के लोगों के साथ खड़े होकर इन पर दोष लगाएँगे, क्योंकि उन्होंने योना का प्रचार सुनकर मन फिराया, और देखो, यहाँ वह है जो योना से भी बड़ा है” (लूका 11:32)।
योना यीशु के विषय में है (लूका 24:44-47)। केवल ख्रीष्ट में ही हम वह आज्ञाकारिता पाते हैं जो परमेश्वर के समक्ष खड़े होने के लिए आवश्यक है और अपनी स्वयं की ईश्वरभक्तिपूर्ण चाल आरम्भ करने की सहायता को पाते हैं। उसी में, हम परमेश्वर की दया का अनुभव करते हैं, और केवल यही दया हमें दूसरों पर दया करने के लिए प्रेरित करती है।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।