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आज बहुत से लोग परम सत्य के लिए संघर्ष को छोड़ देने, यह विश्वास त्याग देने कि यीशु ही स्वर्ग जाने का एकमात्र मार्ग है, और संसार भर में विभिन्न धार्मिक मान्यताओं को उद्धार के वैध मार्ग के रूप में स्वीकार करने के लिए प्रलोभित होते हैं। दुःख की बात है कि कलीसियाएँ भी इस प्रकार की व्यापक शिक्षा से अछूती नहीं रही हैं, और वास्तव में कुछ लोग दबाव के आगे झुक गए हैं, सत्य से मुँह मोड़कर त्रुटि को गले लगा लिया है। यहूदा की पत्री, जो इन समस्याओं के विषय में बहुत कुछ कहती है, प्रायः उपेक्षित रह जाती है। सम्भवतः ऐसा इसलिए है क्योंकि यद्यपि यह पत्री संक्षिप्त है, परन्तु जटिल उल्लेखों से भारी हुई है जो कभी-कभी भ्रमित कर सकते हैं। परन्तु, यहूदा का सन्देश आज विशेष रूप से आवश्यक है, क्योंकि यह उन लोगों को विश्वास के लिए संघर्ष करने और विश्वास में बने रहने के लिए स्मरण दिलाता है “जो बुलाए गए हैं, परमेश्वर पिता में प्रिय हैं तथा यीशु ख्रीष्ट के लिए संरक्षित हैं” (यहूदा 1) ।
यहूदा, जो अपने नाम से लिखे गए पत्री का लेखक है, यीशु और याकूब का छोटा भाई था, जिनमें से याकूब प्रारम्भिक कलीसिया में एक महत्वपूर्ण अगुवा था और उसके नाम से लिखे गए एक पत्री का लेखक था (मरकुस 6:1–6; प्रेरितों के काम 15:13–21; गलातियों 2:9; याकूब 1:1)। उल्लेखनीय बात यह है कि यहूदा यीशु के सांसारिक जीवन और सेवकाई के समयकाल में उसका अनुयायी नहीं था (यूहन्ना 7:5), परन्तु यीशु के पुनरुत्थान के पश्चात् बचाने वाले विश्वास में आया (प्रेरितों के काम 1:12–14)। विषय-वस्तु में समानता के कारण, यहूदा की पत्री सम्भवतः 60 के दशक के मध्य में में लिखी गई 2 पतरस की पुस्तक के समय में लिखी गई थी।
यहूदा के पत्र से पता चलता है कि वह एक विशिष्ट कलीसिया, या कलीसियाओं के समूह को लिख रहा था, जिसमें “कितने ऐसे मनुष्य चुपके से आ घुसे हैं … अधर्मी हैं, जो परमेश्वर के अनुग्रह को लुचपन में बदल डालते हैं और हमारे अद्वैत स्वामी और प्रभु अर्थात् यीशु ख्रीष्ट को अस्वीकार करते हैं” (यहूदा 4)। पुराने नियम और यहूदी साहित्य के कई उल्लेखों के कारण, यहूदा के पाठक सम्भवतः यहूदी पृष्ठभूमि से आए मसीही थे, यद्यपि कुछ विद्वानों का मानना है कि ये उल्लेख उसके श्रोताओं की तुलना में यहूदा की अपनी पृष्ठभूमि के विषय में अधिक बताते हैं।
महत्वपूर्ण बात यह है कि यहूदा ने कार्य करने के लिए अपने आह्वान को परमेश्वर के वाचायी प्रेम में आधारित किया है। सबसे पहले, वह विश्वासियों को बताता है कि परमेश्वर कौन है, उसके प्रकाश में वे कौन हैं। फिर, वह विश्वासियों को विश्वास के लिए संघर्ष करने और उसमें बने रहने के लिए कहता है। यहूदा अपने पाठकों के विचारों को त्रिएक परमेश्वर की महिमा, वैभव, प्रभुत्व और अधिकार पर केन्द्रित करता है जिससे कि वे विश्वास के लिए लड़ने और उसमें दृढ़ रहने के लिए सुसज्जित हो सकें।
1. विश्वासियों को परमेश्वर द्वारा बुलाया गया है।
यहूदा अपनी पत्री उन लोगों को सम्बोधित करता है जो “ बुलाए गए हैं” (यहूदा 1) । जब परमेश्वर किसी व्यक्ति को अपनी ओर बुलाता है, तो उनकी आँखें खुल जाती हैं “जिससे कि वे अंधकार से ज्योति की ओर तथा शैतान के राज्य से परमेश्वर की ओर फिरें” (प्रेरितों 26:18)। विश्वास द्वारा ख्रीष्ट से जुड़े हुए, वे “परमेश्वर पिता में प्रिय” हैं (यहूदा 1)। ख्रीष्ट में “संसार की उत्पत्ति से पहले” चुने गए (इफि. 1:4), वे “यीशु ख्रीष्ट के लिए सुरक्षित रखे गए” हैं (यहूदा 1)। जिन्हें परमेश्वर ने बुलाया है, उन्हें वह धर्मी भी ठहराता और महिमा भी प्रदान करता है (रोम. 8:30)। इसलिए, केवल परमेश्वर ही “तुम्हें ठोकर खाने से बचा सकता है और अपनी महिमा की उपस्थिति में निर्दोष और आनन्दित करके खड़ा कर सकता है” (यहूदा 24)।
2. विश्वासियों को अपने विश्वास के लिए संघर्ष करना चाहिए।
यहूदा ने जिन विश्वासियों को संबोधित किया, उन्हें यह लिखना “अत्यावश्यक समझा,” कि वे “उस विश्वास के लिए पूरा प्रयास करें जो सन्तों को एक ही बार सौंपा गया था” (यहूदा 3)। वह विश्वासियों को स्मरण कराता है कि उन्हें अपने विश्वास के लिए संघर्ष करना चाहिए, विशेषकर उन त्रुटिपूर्ण शिक्षाओं के मध्य जो उनकी कलीसियाओं में बिना किसी की जानकारी के प्रवेश कर गई हैं। विश्वास के लिए संघर्ष करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करने हेतु, यहूदा अपने पाठकों को परमेश्वर के न्याय का स्मरण दिलाता है, जो दुष्टों पर आता है, और भूतकाल के समय के उदाहरण देकर भविष्य में दुष्टों पर आने वाले न्याय के प्रति चेतावनी देता है (यहूदा 5-16)।
3. विश्वासियों को विश्वास में स्थिर बने रहना चाहिए।
क्योंकि विश्वासियों में सत्य के प्रति उदासीनता आ सकती है, वे बड़ी सरलता से त्रुटि को स्वीकार कर सकते हैं, परमेश्वर के सच्चे अनुग्रह को विकृत कर सकते हैं, और ख्रीष्ट को अपने स्वामी और प्रभु के रूप में अस्वीकार कर सकते हैं। इसलिए, यहूदा उन्हें कहता है कि “तुम अपने अति पवित्र विश्वास में गठकर, पवित्र आत्मा में प्रार्थना करते हुए अपने आपको परमेश्वर के प्रेम में बनाए रखो, और अनन्त जीवन के लिए उत्सुकता से हमारे प्रभु यीशु ख्रीष्ट की दया की बाट जोहते रहो (यहूदा 20–21)। इसके साथ-साथ, जो दृढ़ विश्वासी हैं, उन्हें निर्बलों पर दया करनी चाहिए और उन्हें सत्य का स्मरण दिलाकर त्रुटि करने से बचाने में सहायता करनी चाहिए (यहूदा 22–23)।
सम्भवतः आपने आज आपने विश्वास के लिए संघर्ष करना छोड़ दिया है और हमारे समाज की बहुलतावाद को गले लगाने की पुकार को धीरे-धीरे स्वीकार कर लिया है। या हो सकता है कि आप विश्वास के केन्द्रीय सिद्धान्तों से दूर हो गए हों और किसी अन्य मार्ग पर चलने लगे हों। सम्भवतः जीवन की कठिन परिस्थितियों के कारण आपने बाइबल अध्ययन करना छोड़ दिया है और अब फिर से पवित्रशास्त्र के अध्ययन के प्रति समर्पित होने की आवश्यकता है। या हो सकता आपको एक नई रीति से स्मरण दिलाने की आवश्यकता है कि झूठी शिक्षाएँ आज भी कलीसियाओं में प्रवेश कर रही हैं। सम्भवतः आपको यह स्मरण रखने की आवश्यकता है कि त्रिएक परमेश्वर कितना महान् है, विशेष रूप से एक बहुवादी समाज के बीच में। किसी भी स्थिति में, यहूदा का सन्देश हम सभी के लिए समयानुकूल है। वह हमें विश्वास के लिए संघर्ष करने और उसमें बने रहने के लिए बुलाता है, साथ ही हमें हमारे उद्धार के आश्वासन और परमेश्वर की महिमा, वैभव, प्रभुत्व और अधिकार की महानता और शाश्वतता में स्थिर करता है।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।