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विश्वास-वचनों के विषय में जानने योग्य 5 बातें

अधिकतर मसीहियों ने नीकिया के विश्वास-वचन (Nicene Creed) और प्रेरितों के विश्वास-वचन (Apostles’ Creed) जैसी बातों के विषय में सुना है, परन्तु कई मसीहियों के मनों में विश्वास-वचनों के विषय में भ्रान्तियाँ भी हैं। विश्वास-वचनों के स्वभाव, इतिहास, और उद्देश्य के विषय में अनेक भ्रान्तियाँ हैं। यहाँ विश्वास-वचनों के विषय में पाँच बातें है जिन्हें आपको जनना चाहिए।

1. विश्वास-वचन (अंग्रेज़ी का creed-क्रीड) शब्द लातीनी भाषा के क्रेडो (credo) शब्द से आता है, जिसका अर्थ है “मैं विश्वास करता हूँ।”

बहुवचन में यह है क्रेडिमुस  (credimus), जिसका अर्थ है “हम विश्वास करते हैं।” यह कहा जा सकता है कि जब हम किसी विश्वास-वचन को दोहराते हैं, तो हम केवल इस विषय में कथन कर रहे हैं कि हम क्या विश्वास करते हैं। जिसका अर्थ है कि यदि आप किसी भी बात पर विश्वास करते हैं, तो आपके पास एक विश्वास-वचन है। क्या होगा यदि आप कहें कि “मैं किसी विश्वास-वचन पर नहीं किन्तु ख्रीष्ट पर विश्वास करता हूँ, तो फिर यही आपका विश्वास-वचन है। यह एक छोटा विश्वास-वचन अवश्य है, परन्तु यह विश्वास-वचन ही है। जब हम यह समझते हैं कि विश्वास-वचन मनुष्यों द्वारा लिखे गए विश्वास कथन हैं, तो यह हमें विश्वास-वचनों और पवित्रशास्त्र के मध्य पाए जाने वाले सम्बन्ध को उचित रीति से समझने में सहायता करता है। पवित्रशास्त्र उत्प्रेरित (inspired) है। 2 तीमुथियुस 3:16 में यूनानी शब्द थियोप्नूस्टोस (theopneustos) है, जिसका अर्थ  है “परमेश्वर के श्वास से निकला हुआ।” पवित्रशास्त्र परमेश्वर का उत्प्रेरित वचन है। विश्वास-वचन मनुष्यों के अ-उत्प्रेरित वचन हैं। पवित्रशास्त्र में हम परमेश्वर को यह कहते हुए सुनते हैं, “प्रभु यों कहता है . . . ।” विश्वास-वचनो में हम प्रतिक्रिया करते हैं, “हम आप पर विश्वास करते हैं . . . ।”

2. स्वयं बाइबल में भी विश्वास-वचन के जैसे सारांश कथन पाए जाते हैं।

सम्भवतः इसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण व्यवस्थाविवरण 6:4 का शेमा (Shema) है, जिसका आरम्भ होता है, “हे इस्राएल सुन! यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है।” इस छोटे विश्वास-वचन के जैसे कथन को पौलुस 1 कुरिन्थियों 8:6 में विस्तारित करता है जिससे कि यीशु ख्रीष्ट के विषय में प्रकाशन भी उसमें जोड़ा जा सके। नये नियम में अन्य विश्वास-वचन जैसे कथन भी रोमियों 10:9-10 (“यीशु प्रभु है”) और 1 कुरिन्थियों 15:2-4 में पाए जाते हैं।

3. प्रेरितों ने प्रेरितों का विश्वास वचन नहीं लिखा था।

ऐसा प्रतीत होता है कि बारह प्रेरितों ने प्रेरितों का विश्वास वचन लिखा, यह कहानी चौथी या पाँचवी शताब्दी में आरम्भ हुई, पर इस बात के लिए कोई प्रमाण नहीं है कि यह कहानी सत्य है। दूसरी और तीसरी शताब्दी में कलीसियाओं में छोटे विश्वास कथनों के होने के प्रमाण हैं। प्राचीन रोमी विश्वास वचन (Old Roman Creed) एक प्रसिद्ध कथन है। इसकी विषय-वस्तु, और अन्य कथनों की विषय वस्तु, बाद में लिखे गए प्रेरितों के विश्वास वचन से बुहत मेल खाती है। इन सब विश्वास कथनों की विषय-वस्तु उनसे भी पुरानी बपतिस्मा सम्बन्धित आराधना-पद्धति (liturgies) से ली गयी हैं, जिनमें बपतिस्मा ले रहे व्यक्ति से कुछ प्रश्न पूछे जाते थे, जिसके प्रति व्यक्ति पहले से तैयार कथन के द्वारा उत्तर देता था। इन छोटे आराधना-पद्धति के विश्वास कथनों की वही विषय-वस्तु है जो आरम्भिक विश्वास कथन में पायी जाती थी। कुछ आरम्भिक लेखक, जैसे कि आयरेनियस (Iraeneus) ने इस विषय-वचन को रेगुला फिडेय (regula fidei) या “विश्वास का नियम” कहा। यह परमेश्वर के विषय में बाइबलीय शिक्षा का सारांश था।

4. नीकिया का विश्वास वचन परमेश्वर के विषय में बाइबलीय शिक्षा को विधर्मियों से बचाने के लिए लिखा गया था।

पवित्रशास्त्र पढ़ने वाला कोई भी पाठक समझ लेगा कि यह कुछ बातों को स्पष्ट रीति से सिखाता है।

  • पहला, पवित्रशास्त्र सिखाता है कि एक और मात्र एक ही सच्चा परमेश्वर है।
  • दूसरा, पवित्रशास्त्र सिखाता है कि पिता परमेश्वर है।
  • तीसरा, पवित्रशास्त्र सिखाता है कि पुत्र परमेश्वर है।
  • चौथा, पवित्रशास्त्र सिखाता है कि पवित्र आत्मा परमेश्वर है।
  • अन्ततः, पवित्रशास्त्र सिखाता है कि पिता पुत्र या आत्मा नहीं है, पुत्र पिता या आत्मा नहीं है, और आत्मा पिता या पुत्र नहीं है।

जब ख्रीष्टियों और अख्रीष्टियों ने पूछा कि पाँचों बातें कैसे एक दूसरे से मेल खाती हैं, तो कभी-कभी एक ऐसा उत्तर सामने रखा जाता था जिसने इन बाइबलीय सिद्धान्तों में से एक या अनेकों को नकारने के द्वारा समस्याओं का समाधान निकाला। चौथी शताब्दी में, एरियस (Arius) नाम के पुरुष ने यह कहकर समस्या का “समाधान” किया कि पुत्र परमेश्वर नहीं है। इससे एक विवाद उत्पन्न हुआ जो दशकों तक बना रहा। नीकिया (325 ईसवी) और कॉन्स्टैन्टिनोपल (381 ईसवी) की महासभाओं ने इस विवाद को उत्तर दिया। इन महासभाओं के परिणाम को ही हम नीकिया के विश्वास वचन के नाम से जानते हैं। यह परमेश्वर के बाइबलीय सिद्धान्त के विषय में कलीसिया का ऐसा कथन है, जो एरियस और अन्य लोगों के मसीही-विरोधी सिद्धान्त के विरुद्ध, विश्वास का बचाव करने के लिए लिखा गया था। यह अपने पुराने छोटे विश्वास कथनों की मुख्य रूपरेखा के अनुसार है, परन्तु यह कुछ विशिष्ट भाषा को जोड़ता है जिससे कि उस विषय-वस्तु की विधर्मी विकृतियों को नकारा जा सके।

5. विश्वास वचनों का उपयोग किया जाना रोमन कैथोलिकवाद के लिए फिसलन-वाली-ढलान (slippery slope) नहीं है।

जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है, सभी मसीहियों के पास विश्वास वचन होता है, भले ही वे इस बात को मानें या न मानें। इस बात को प्रमाणित करने के लिए आपको केवल किसी भी मसीही से (जिसमें आप भी सम्मिलित हैं) पूछना है कि “आप क्या मानते हैं कि (किसी भी विषय को चुनें [जैसे कि पाप]) के बारे में बाइबल क्या सिखाती है? जो भी उनका उत्तर है, वह एक विश्वास वचन है। आरम्भिक प्रोटेस्टेन्ट विश्वासियों ने कलीसिया के प्राचीन विश्वास वचनों को नहीं ठुकराया। वे नीकिया के विश्वास वचन में समझाए गए त्रिएकता के बाइबलीय सिद्धान्त को सिखाते रहे। वे चाल्सेदोन की परिभाषा (Definition of Chalcedon) में समझाए गए ख्रीष्ट के बाइबलीय सिद्धान्त को सिखाते रहे। केवल सोसिनसवादियों (Socinians, सोलहवी शताब्दी के उदारवादी) जैसे विधर्मियों ने ही प्राचीन मसीही विश्वास वचनों को नकारा था।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

कीथ ए. मैथिसन
कीथ ए. मैथिसन
डॉ. कीथ ए. मैथिसन सैनफर्ड, फ्लॉरिडा के रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज में विधिवत ईश्वरविज्ञान के प्रोफेसर हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें द लॉर्ड्स सप्पर और फ्रम एज टु एज समिमिलित हैं।