स्वयंभूति और सरलता - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
ईश्वरविज्ञान हमें स्तुति-गान की ओर ले जाता है
7 दिसम्बर 2023
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11 दिसम्बर 2023
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स्वयंभूति और सरलता

मसीही लोग सच्चे परमेश्वर की आराधना करते हैं, जिसका नाम “मैं हूँ” है (निर्गमन 3:14)। कुछ लोग सोच सकते हैं कि परमेश्वर के लिए यह एक भारहीन और कंगाल नाम है। आखिरकार, सब वास्तविक वस्तुओं के लिए क्या हम “वह है” नहीं कह सकते हैं, भले ही वे हाथी हों या इलेक्ट्रोन हों? तो फिर “मैं हूँ” नाम उस परमेश्वर के लिए विशेष और अर्थपूर्ण कैसे है जिसकी हम आराधना करते हैं और जिस पर हम जीवन, श्वाँस, और सब कुछ के लिए निर्भर हैं (प्रेरितों के काम 17:25)। निर्गमन 3 में परमेश्वर द्वारा मूसा के ऊपर अपने नाम का अद्भुत प्रकटीकरण का सन्दर्भ इस्राएल को मिस्र के दासत्व से छुड़ाने कि उसकी प्रतिज्ञा है। मूसा इस छुटकारे का कार्य के लिए अपने स्वयं की अपर्याप्ता को मानता है (निर्गमन 3:11)। मूसा और इस्राएल की सन्तानों को आश्वस्त करने के लिए कि वह इस अकल्पनीय उद्धार के लिए सिद्ध रीति से पर्याप्त है, परमेश्वर स्वयं की पहचान को इस असमान्य नाम से जोड़ता है। यह नाम कारण देता है कि परमेश्वर सिद्ध रीति से भरोसेमन्द क्यों है।

ईश्वरविज्ञानियों ने लम्बे समय से इस नाम से समझा है कि यह परमेश्वर के सम्पूर्ण आत्म-निर्भरता (self-sufficiency) और उसके अस्तित्व के असीमित प्रचुरता (plenitude) को बताता है। परमेश्वर मूसा से यह नहीं कहता है कि “मैं यह हूँ” या “मैं वह हूँ” परन्तु केवल कहता है, “मैं जो हूँ सो हूँ।” वह अपने अस्तित्व को किसी विशेष बात के रूप में न समझाता है न संक्षिप्त में बताता है, और इस प्रकार से वह इस अबोधगम्य सत्य को हम पर प्रकट करता है कि वह स्वयं ही अपने अस्तित्व का कारण है। यही कारण है कि हम पूर्णतः और बिना संकोच किए उस पर भरोसा कर सकते हैं—क्योंकि वह किसी बात पर निर्भर नहीं है, यहाँ तक कि अपने अस्तित्व पर भी, जो उससे पृथक है—निर्भर नहीं है। यदि परमेश्वर किसी भी रीति से आश्रित प्राणी होता, तो उस स्थिति में उस पर हमारा भरोसा परमेश्वर से हटकर उस आधारभूत वास्तविकता पर आश्रित होता। परन्तु पवित्रशास्त्र पूर्णतः स्पष्ट है कि अस्तित्व के सम्बन्ध में परमेश्वर से अधिक मौलिक और परम और कुछ नहीं है। वही है जिसकी ओर से, और जिसके द्वारा और जिसके लिए सब कुछ है (रोमियों 11:36)। उन सब प्राणियों के, जो ईश्वरीय नहीं है, अस्तित्व के कारण को अन्ततः स्वयं परमेश्वर में पाया जा सकता है। और यदि हम पूछे, “परमेश्वर क्यों” तो इसका उत्तर है “परमेश्वर।” “मैं हूँ” के रूप में परमेश्वर स्वयं के अस्तित्व का आधार है। उचित रीति से कहा जाए, तो परमेश्वर का अस्तित्व नहीं है, वरन् परमेश्वर स्वयं ही अस्तित्व है, और इस बात की पुष्टि शताब्दियों से ईश्वरविज्ञानी करते आए। उसके अस्तित्व में वह सब वास्तविकताएँ पाई जाती हैं जिन्हें हम उसमें देखकर वर्णन करते हैं—उसकी बुद्धि, सामर्थ्य, भलाई, उसका न्याय, प्रेम, सत्य, इत्यादि। परमेश्वर के होने के विषय में हमें सोचना है कि यह अस्तित्व की असीम परिपूर्णता है न कि केवल यह विचार कि वह “कहीं है।”

परमेश्वर की स्वतन्त्र आत्म-निर्भरता के सिद्धान्त के लिए दिया गया नाम स्वयंभूति (aseity) है। अंग्रेजी में यह लातीनी अ सेय से लिया गया है, जिसका अर्थ है, “स्वयं से।” डच धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञानी हरमन बाविंक (Herman Bavinck) कहते हैं, “जब पवित्रशास्त्र में परमेश्वर प्रकट करता है कि वह स्वयंभूति रखता है, तो वह स्वयं को परम अस्तित्व के रूप में प्रकट करता है, उस जन के रूप में जो परम अर्थ में अस्तित्व में है। बाविंक आगे कहते हैं, “इस सिद्धता के द्वारा परमेश्वर सारतात्त्विक रूप से और मौलिक रूप से सब सृजे गए प्राणियों से भिन्न है।” सृजे गए प्राणी, इस कारण से कि वे सृजे गए प्राणी हैं, अपने अस्तित्व, स्वभाव, कार्य, इत्यादि के लिए अन्य कारणों पर निर्भर होते हैं। परन्तु परमेश्वर के अस्तित्व और कार्य किसी और कारण पर निर्भर नहीं होता है। वह सब को देता है परन्तु किसी से कुछ प्राप्त नहीं करता है। जैसा कि परमेश्वर अय्यूब 41:11 में अय्यूब से पूछता है, “किसने मुझे दिया है कि मैं उसे लौटाऊँ? सम्पूर्ण आकाश के नीचे जो कुछ है वह मेरा है।”

परमेश्वर की स्वयंभूति और स्वतन्त्रता के विषय में भ्रान्तियाँ उठ सकती हैं। सबसे पहले, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि स्वयंभूति का अर्थ यह नहीं है कि परमेश्वर स्वयं का कारण (cause)है। वह इस अर्थ में स्वयं से है कि अपने स्वयं के अस्तित्व, सारतत्त्व और कार्य के लिए स्वयं ही पर्याप्त कारण (reason) है। इसका यह अर्थ नहीं है कि वह स्वयं का कारण है। क्योंकि वह सब सृजी गई वस्तुओं का परम और प्रथम कारण है, परमेश्वर को उन वस्तुओं में नहीं गिना जाना चाहिए जिनको अस्तित्व में लाया जाता है। यदि ऐसा होता, तो वह सब कुछ का परम और प्रथम कारण नहीं होता; उससे पहले कुछ और अस्तित्व में होता। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि कोई भी वस्तु स्वयं का कारण नहीं हो सकता है क्योंकि कारण बनने के लिए अनिवार्य रूप से कारक को पहले से अस्तित्व में होना चाहिए। यदि वह है ही नहीं तो वह कुछ कर नहीं सकता।

दूसरा, ईश्वरीय स्वयंभूति का अर्थ यह नहीं है कि परमेश्वर बाहरी कारणों से स्वतन्त्र है परन्तु किसी रीति से भीतरी कारणों पर निर्भर होकर अस्तित्व में है। कुछ आधुनिक ईश्वरविज्ञानी कहते हैं कि स्वयंभूति का केवल यही अर्थ है कि परमेश्वर अपने से बाहर किसी कारण पर निर्भर नहीं करता है, जबकि यह सम्भव है कि वह विभिन्न भागों का बना है और इसलिए वह एक रीति से उन भागों पर निर्भर है। परन्तु, यदि परमेश्वर भागों का बना होता, तो तब भी उसको किसी बाहरी कर्ता की आवश्यता होती जो उन भागों को एकता प्रदान करे, और इस प्रकार से बाहरी वस्तु पर निर्भरता की समस्या अब भी बना रहता। स्वयंभूति का अर्थ है परमेश्वर सब कारणों से स्वतन्त्र था, भले ही वह भीतरी हो (जैसा कि भागों से) या बाहर हो (जैसा कि किसी निर्माता से)।

अन्त में, व्यक्ति इस बात को लेकर चिन्तित हो सकता है कि ईश्वरीय स्वयंभूति किसी रीति से परमेश्वर को अपने सृजे गए प्राणियों के साथ अर्थपूर्ण और निकटतम सम्बन्ध से वंचित करता हो। यदि परमेश्वर अपने अस्तित्व और जीवन के प्रत्येक आयाम में सच में स्वतन्त्र है, तो इसका परिणाम देववाद (Deism) का दूरस्थ ईश्वर कैसे नहीं है? निश्चित रूप से मसीहियों को परमेश्वर के विषय में यह नहीं सोचना चाहिए कि वह असमीप है और अपने प्राणियों से दूर है। उसी में हम जीवित रहते, चलते-फिरते और अस्तित्व रखते हैं (प्रेरितों के काम 17:28)। स्वयंभूति का अर्थ है कि इसका विपरीत सत्य नहीं है। परमेश्वर सृजे गए प्राणी में या सृजे गए प्राणी से न तो जीवित रहता है न ही चलता-फिरता या अस्तित्व रखता है। वह हम में से प्रत्येक के उतना ही निकट है जितना कि हमारा अस्तित्व है क्योंकि वही हमारे अस्तित्व का तात्कालिक कारण है। परन्तु वह इस सम्बन्ध में हमारे निकट नहीं है कि वह हम से कुछ प्राप्त करता है। क्योंकि परमेश्वर “मैं हूँ” है, और इसके साथ अ सेय है, यही कारण है कि वह हमें सब कुछ प्रदान कर सकता है—अस्तित्व, सारतत्त्व, और सक्रियता। यह हमें परमेश्वर के अस्तित्व की प्रचुरता से दिया जाता है। परमेश्वर को हमसे दूर करने के विपरीत, उसकी स्वयंभूति ही वह कारण है कि वह बहुतायत से और प्रावधान करने के द्वारा हमसे अतिनिकट हो सकता है। वह दाता के रूप में, न कि प्राप्तकर्ता के रूप में हमारे पास है।

ईश्वरीय सरलता के सिद्धान्त को प्रायः परमेश्वर की स्वयंभूति के साथ रखा जाता है। एक अर्थ में सरलता इस सत्य को बनाए रखने का साधन है कि परमेश्वर की स्वयंभूति और स्वतन्त्रता सत्य हैं। यह सिद्धान्त दावा करता है कि परमेश्वर के भाग नहीं हैं। इस शिक्षा को कलीसियाई पिताओं, मध्ययुग के दार्शनिकों, और प्रोटेस्टेन्ट ईश्वरविज्ञानियों की आरम्भिक पिढ़िओं के लेखों में पाया जाता है। इसको कुछ धर्मसुधारवादी अंगीकार कथन में व्यक्त किया गया है। जो वस्तु भागों के बने होते हैं, अपने अस्तित्व के कुछ आयाम के लिए अपने भागों पर निर्भर होते हैं। इसके साथ-साथ , भाग और पूरा वस्तु एक दूसरे से भिन्न होते हैं। गाड़ी का इंजन गाड़ी नहीं है। पंखुड़ी फूल नहीं है। श्वानदन्त का रूप कुत्ता नहीं है। भौतिक देह मनुष्य नहीं है। इत्यादि। पूरी वस्तु के अस्तित्व के कुछ आयाम के लिए इनमें से प्रत्येक भाग आवश्यक है। यद्यपीअस्तित्व के सम्बन्ध में पूरी वस्तु अपने किसी भी भाग से महान् है, फिर भी वह अपने अस्तित्व के लिए अपने भागों पर निर्भर है। यदि परमेश्वर अस्तित्व का परम प्रथम कारण है, अर्थात् वह “मैं हूँ” है और उसमें उन नाम की परिपूर्णता है, तो फिर उसका अस्तित्व उन प्राणियों के जैसे नहीं हो सकता है जो भागों पर निर्भर होते हैं।

ईश्वरीय सरलता ईश्वरविज्ञान पर बहुत अधिक प्रभाव डालता है। इसका अर्थ है कि परमेश्वर के पास इस रूप में अस्तित्व, सारतत्त्व, या गुण नहीं है कि वह उनसे अपने अस्तित्व की एकता के लिए कुछ प्राप्त करता है। इसके विपरीत, परमेश्वर सरलता से अपना अस्तित्व, सारतत्त्व, और गुण है। उसके अस्तित्व की एकता उससे अधिक आधारभूत किसी अन्य बात का परिणाम नहीं है। इसका यह अर्थ भी है, कि परमेश्वर के गुण, यद्यपि हमारे विचारों में और हमारी बातों में भिन्न हैं, परमेश्वर में विभिन्न गुणों के समूह के रूप में नहीं हैं। प्यूरिटन (Puritan) जॉन ओवन लिखते हैं, “परमेश्वर के गुण, जो स्वयं में परमेश्वर के सारतत्त्व में अलग तत्व प्रतीत होते हैं, मूल रीति से सब के साथ एक साथ ही हैं, और उनमें से प्रत्येक परमेश्वर के सारतत्त्व के साथ एक है। इसका अर्थ है कि परमेश्वर सरल रीति से वह प्रेम है जिसमें होकर वह प्रेम करता है, वह बुद्धि है जिसके द्वारा वह बुद्धिमान है, वह सामर्थ्य है जिसके द्वारा वह सामर्थी है, इत्यादि। और ये सभी ईश्वरीय सद्गुण स्वयं में ईश्वरीय है, अर्थात् परमेश्वर का परमेश्वर होने का गुण। ईश्वरीय सरलता केवल इस बात को नहीं कहता है कि परमेश्वर के गुणों में सामन्जस्य है—यह बात पवित्र स्वर्गदूतों के विषय में भी कहा जा सकता है—वरन् यह कहता है कि प्रत्येक गुण, यद्यपि विभिन्न रीतियों से प्रकट होते है और हमारे द्वारा विभिन्न रीतियों से समझे जाते हैं, वास्तव में स्वयं सरल परमेश्वर ही है।

स्वयंभूति और सरलता के सिद्धान्तों से सम्बन्धित भले ही कितने रहस्य प्रतीत होते हों, यह स्पष्ट होना चाहिए कि परमेश्वर वास्तव में परमेश्वर नहीं होता यदि वह यदि वह भागों से निर्मित होता और सिद्ध रीति से आत्म-निर्भर नहीं होता। क्योंकि वह भागों से नहीं निर्मित है, वह टूट नहीं सकता है। क्योंकि उसके लिए टूटकर भागों में बट जाना असम्भव है। क्योंकि वह अ सेय और सरल है, हम बिना संकोच किए स्वयं को उस पर और उसके वचन पर छोड़ सकते हैं।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

जेम्स ई. डोलेज़ल
जेम्स ई. डोलेज़ल
डॉ. जेम्स ई. डोलेज़ल कैलिफॉर्निया के बेकर्सफील्ड के रेडियस थियोलॉजिकल इन्स्टिट्यूट में निर्देशक और ईश्वरविज्ञान के प्राध्यापक हैं, और इसके साथ वे पेन्सिलवेनिया के लैंगहॉर्न में कैर्न विश्वविद्यालय के ईश्वरविज्ञान के विद्यालय में पढ़ाते भी हैं। वे ऑल दैट इस इन गॉड और गॉड विदाइट पार्ट्स पुस्तकों के लेखक हैं।