अपरिवर्तनीयता - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
स्वयंभूति और सरलता
8 दिसम्बर 2023
अगम्यता
12 दिसम्बर 2023
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अपरिवर्तनीयता

“परमेश्वर की अपरिवर्तनीयता” वाक्यांश का अर्थ है कि परमेश्वर परिवर्तित नहीं होता है और वह परिवर्तित नहीं हो सकता है (गिनती 23:19; 1 शमूएल 15:29; भजन 102:26–27; मलाकी 3:6; इब्रानियों 6:13–20; वेस्टमिन्स्टर विश्वास अंगीकार 2.1; वेस्टमिन्स्टर दीर्घ प्रश्नोत्तरी 7; वेस्टमिन्स्टर लघु प्रश्नोत्तरी 4)। यह तीनों व्यक्तियों के विषय में सत्य है—अर्थात् पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के विषय में—क्योंकि परमेश्वर अविभाज्य रूप से एक है और उसकी पहचान को उसके गुणों से अलग नहीं किया जा सकता है।

अपरिवर्तनीयता सम्बन्धित है सरलता (simplicity) (परमेश्वर को भागों में नहीं बाँटा जा सकता है) और अगम्यता (impassibility) (परमेश्वर बाहरी प्रभावों द्वारा सीमित नहीं है) से। क्योंकि कोई भी सृजी गई शक्ति या सत्ता परमेश्वर पर अतिक्रमण नहीं कर सकता है, वह अनन्तकाल से वही है जो वह है। यदि परमेश्वर परिवर्ति होता, तो इसका अर्थ है कि या तो वह किसी उत्तम स्थिति की ओर परिवर्तित होगा या किसी उत्तम स्थिति से परिवर्तित होगा, और इन दोनों स्थितियों में यह अर्थ निकलता कि वह कभी न कभी उत्तम से कम स्थिति में हो सकता है। या, परमेश्वर के ऊपर किसी बाहरी शक्ति या सत्ता का सामर्थ्य होता। ये दोनों सुझाव वैध नहीं हो सकते हैं।

आलोचनाएँ

  1. कुछ लोगों का तर्क है कि अपरिवर्तनीयता यह मानता है कि परमेश्वर स्थैयिक (static) है, कंक्रीट के खंड के समान। जी.डब्ल्यू.एफ. हेगेल (G.W.F. Hegel) (1770–1831) के समय से, बहुत लोगों ने यह माना है कि परमेश्वर बनने की स्थिति में है, अर्थात् कि वह गतिशील (dynamic) और परिवर्तन के अधीन है। इसके अनुसार परमेश्वर और सृष्टि वास्तव में एक दूसरे पर निर्भर हैं, और एक साथ आगे बढ़ते हैं। यह बात पवित्रशास्त्र से हटकर है और सृष्टिकर्ता और सृष्टि के मध्य के भेद को धुँधला करता है या मिटा देता है।

इसके साथ-साथ, परमेश्वर की अपरिवर्तनीयता के लिए इस स्थैयिक अवधारणा की आवश्यकता नहीं है। त्रिएकता के भीतर, पुत्र की शाश्वत उत्पत्ति और पवित्र आत्मा का अग्रसर होना प्रकट करते हैं कि परमेश्वर स्वयं जीवन है, जो अपरिवर्तनीय रूप से गतिशील है। अपरिवर्तनीयता सरलता से दावा करता है कि परमेश्वर अनन्तकाल के लिए अपने प्रति सत्य है। वह स्वयं जीवन है और वह ऐसा बना रहता है। हरमन बाविंक (Herman Bavinck) ने ठीक कहा है: “परमेश्वर का स्वभाव है कि वह उत्पन्न करता है और फलवन्त होता है।”

  1. थॉमस अक्वायनस (Thomas Aquinas) द्वारा अरस्तू के गतिहीन चालक (Unmoved Mover) के विचार के उपयोग के प्रति लोगों ने असहजता व्यक्त किया है। परन्तु थॉमस इस बात का दावा करने के लिए इसे उपयोग करता है कि सब सृजे गए वस्तुएँ किसी अन्य वस्तु द्वारा प्रभावित होते हैं। परन्तु, सब वस्तुओं के सृजनहार और पालनहार होने के कारण परमेश्वर सब वस्तुओं को प्रभावित करता है, परन्तु वह स्वयं बाहरी सृजित शक्तियों या बाधाओं के अधीन नहीं है। उसे हिलाया नहीं जा सकता है। यह उसकी सर्वसामर्थ्य और सम्प्रभुता और कुछ नहीं में से सृष्टि करने से भी सम्बन्धित है, क्योंकि शेष सभी वस्तुएं सृजे गए और निर्भर हैं (यह भी सम्भव है कि वे होते ही नहीं; वे पूर्ण रूप से उसकी इच्छा पर निर्भर हैं; वह उन्हें समाप्त कर सकता है)। किसी ने कहा है कि यह आपत्ति इस बात को मानती है कि परमेश्वर सबसे अधिक गतिशील रूप से गतिहीन चालक है।
  2. बाइबल के कई कथन इस बात को कहते हैं कि परमेश्वर ने अपना मन बदला या फिर वह पछतावा जैसी भावनाओं को व्यक्त किया है (उदाहरण के लिए, उत्पत्ति 6:6; 1 शमूएल 15:11, 35; योना 3:10; 4:2)। परन्तु इन सब परिस्थितियों में, स्टीवन जे. डूबी (Steven J. Duby) तर्क देते हैं,, “यह कहना उचित है कि परमेश्वर अपने सृजे गए प्राणियों के प्रति नहीं बदलता है, वरन्, परमेश्वर के सृजे गए प्राणी उसके प्रति बदलते हैं,” और इस बात को मानवरूपी भाषा में व्यक्त किया जाता है, जिससे कि हम उसे समझ सकें।
  3. तथाकथित “सुसमाचारवादी” खुले ईश्वरविज्ञानियों (open theists) ने तर्क दिया है कि एक परिवर्तनीय परमेश्वर प्रार्थना में एक रोचक पारस्परिक सम्बन्ध को बढ़ावा देता है जिसमें होकर हम परमेश्वर के निर्णयों में योगदान कर सकते हैं। परन्तु इस प्रकार के दावों में यह सम्भावना निहित है कि परमेश्वर की अनन्त योजनाओं को ऐसे वस्तुओं और प्राणियों द्वारा बाधित किया जा सकता है जिनकी सृष्टि उसने स्वयं की, और वह एक निर्बल और असहाय दर्शक मात्र रह जाता है। यह भी पवित्रशास्त्र के विरुद्ध है।

बाइबलीय और ईश्वरविज्ञानीय आयाम
परमेश्वर जीवित परमेश्वर है, जो स्वयं जीवन है। उसके सृजे गए प्राणियों को उसके द्वारा दिया गया सीमित, निर्भर जीवन का उपहार एक स्वतन्त्र और सम्प्रभु निर्णय है जो उसके अपरिवर्तनीय स्वभाव पर आधारित है। जैसा कि बाविंक ने लिखा, यदि पिता पुत्र को उत्पन्न नहीं कर पाता या (पुत्र के साथ) आत्मा को अग्रसर नहीं कर पाता, तो उसमें स्वतन्त्र होकर सृष्टि को अस्तित्व में लाने की क्षमता नहीं होती। सनातन से उत्पन्न करने और अग्रसर करने का यह अर्थ नहीं है कि परमेश्वर परिवर्तित होता है; वह सनातन काल से ऐसा है और वह किसी बाहरी प्रभावों के कारण सनातन काल से ऐसा नहीं है, क्योंकि ऐसे कोई प्रभाव थे ही नहीं।

अपरिवर्तनीयता का अर्थ है कि परमेश्वर अपरिवर्तनीय रूप से अपने प्रति और इसलिए अपने उद्देश्यों और अपनी प्रतिज्ञाओं के प्रति सच्चा है (मलाकी 3:6)। वह सम्प्रभु है और बाहरी कर्ताओं या सामर्थों के अधीन नहीं है। इसके कारण उसका चरित्र न परिवर्तित होता है और न ही परिवर्तित हो सकता है। यह उसके सभी सृष्टि, प्रावधान, और अनुग्रह के बाहरी कार्यों की नींव है। यह हमारे विश्वास और आश्वासन का आधार है (इब्रानियों 6:13-20)।

कुछ लोगों ने कहा है कि देहधारण परमेश्वर के लिए कुछ नया था। इसमें पुत्र ने, जो त्रिएकता का एक जन है, स्वयं का मिलन एक स्थायी, अनन्त मानव स्वभाव के साथ किया, और उस कार्य में उसका मानव स्वभाव का निर्माण हुआ। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से, यह एक वास्तविक घटना थी जो केवल दो हजार वर्ष पहले हमारे संसार में हुई। उससे पहले वह नहीं हुई थी, और उसके पश्चात, वह हो चुकी थी।

परन्तु यह आदि से परमेश्वर का निर्णय था कि वह यीशु ख्रीष्ट में देहधारी होगा और तब से अनन्त काल तक, वह हमारे चुनाव की और उसके साथ मिलन की नींव होगा (इफिसियों 1:4)। इसके साथ, देहधारण में परमेश्वर परिवर्तित नहीं हुआ। पुत्र इस अर्थ में मनुष्य नहीं बना कि वह एक मनुष्य में परिवर्तित हो गया। उसने स्वयं को न बढ़ाया न अपने आप में कुछ जोड़ा। ऐसा करना तो देहधारण नहीं वरन् रूपान्तरण होता। इसके स्थान पर, मानव स्वभाव के साथ स्थायी मिलन करते हुए कि वह उसका मानव स्वभाव बना (फिलिप्पियों 2:6-7) पुत्र ने इस रीति से देह को धारण किया कि पुत्र या वचन के रूप में, उसने नासरत के यीशु के अनुभवों को एक मनुष्य के रूप में अनुभव किया, और उस समय में वह वही बना रहा जो वह सदा से था और है (यूहन्ना 1:1-4, 14-18; इब्रानियों 13:8)। उस से, परमेश्वर इस संसार में मानव जीवन की प्रक्रियाओं को, जिनमें दुःख उठाना, मृत्यु, गाड़ा जाना, और पुनरुत्थान सम्मिलित हैं, एक मानव दृष्टिकोण से जानता है। परमेश्वर की अपरिवर्तनीयता इस बात को सुनिश्चित करती है।

निहितार्थ और तार्किक परिणाम
(सरलता और अगम्यता के साथ) अपरिवर्तनीयता सम्पूर्ण ईश्वरविज्ञान के लिए नींव है। यह छुटकारे के कार्य के लिए आधार प्रदान करता है, क्योंकि परमेश्वर अपनी वाचा और उसकी प्रतिज्ञाओं के प्रति सच्चा बना रहता है। यह हमारे आश्वासन के लिए एक महत्वपूर्ण चट्टान है (इब्रानियों 6:13-20), क्योंकि “यहोवा की करुणा अपने भक्तों पर सदा-सर्वदा बनी रहती है” (भजन 103:17)।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

रॉबर्ट लीथम
रॉबर्ट लीथम
डॉ. रॉबर्ट लीथम वेल्स में यूनियन स्कूल ऑफ थियोलॉजी में विधिवत और ऐतिहासिक ईश्वरविज्ञान के प्रोफेसर हैं। वे अनेक पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें द होली ट्रिनिटी और यूनियन वित क्राइस्ट सम्मिलित हैं।