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अगम्यता

कलीसियाई जीवन का एक पुराना और प्रिय परम्परा प्रीतिभोज या संगति-भोज है। अधिक मात्रा में भोजन होता है, और सब लोग उस बहुतायत के भोज का आनन्द उठाते हैं। जब आप अपनी थाल लेकर विभिन्न व्यंजन और मिठाई के पास से निकलते हैं, आप कुछ को चुनते हैं और कुछ को नहीं। ऐसा क्यों होता है? आप कुछ को क्यों चुनते हैं और कुछ को क्यों छोड़ देते हैं? सत्य यह है कि आपके सामने के प्रत्येक व्यंजन और मिठाई आप पर प्रभाव डाल रहे हैं, और आपको प्रभावित कर रहे हैं। कैसे? आप प्रत्येक व्यंजन को अच्छा या बुरा समझते हैं, और फिर आप अच्छे की ओर आकर्षित होते हैं और बुरे से विमुख हो जाते हैं। जब आप अच्छे को लेने के लिए आगे बढ़ते हैं और बुरे को लेने से पीछे हटते हैं, आप उन व्यंजनों और उनके प्रति अपनी दृष्टिकोण के द्वारा परिवर्तित और प्रभावित हुए हैं। यह है गम्य (passible) प्राणी का जीवन।

गम्य होने का अर्थ है कि आप बाहरी प्रभाव द्वारा प्रभावित होने की क्षमता रखते हैं। आप किसी कर्ता (agent) के कर्म-विषय (patient) होने की क्षमता रखते हैं। अंग्रेज़ी में कर्म-विषय (patient) और गम्य (passible) एक ही मूल शब्द से आते हैं, पाटी-(pati) , जिसका अर्थ है “दुःख उठाना या भोगना।” कर्म-विषय वह है जो कर्ता के कार्य से दुःख उठाता है या उसको भोगता है। अतः गम्य होने का अर्थ है कि आप में किसी कर्ता का कर्म-विषय होने की क्षमता है।

जब आप प्रीतिभोज में आगे बढ़ते हैं और कुछ वस्तुओं को अपनी थाल में रखते हैं और अन्य वस्तुओं को छोड़ते हैं, आप अपनी दृष्टिकोण के अनुसार अच्छे की और अपनी दृष्टिकोण के अनुसार बुरे से दूर परिवर्तन को भोग रहे हैं। विभिन्न व्यंजन कर्ता हैं, और वे आपको, अर्थात् अपने कर्म-विषय पर, अपनी अच्छाई या बुराई (आपकी दृष्टिकोण के अनुसार) से प्रभावित करते हैं।

अच्छे की ओर और बुरे से दूर आना और जाना, ये “भोगना” लालसाएँ हैं। हम इन लालसाओं को नाम देते हैं, जैसे कि प्रेम और घृणा, आनन्द और दुःख, भरोसा और भय, दया और प्रतिशोध। जैसा कि पौलुस ने इफिसियों 2:3 में कहा, “हम सब पहले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, शारीरिक और मानसिक इच्छाओं को पूरा करते थे।”

लालसाएँ मनुष्य के शरीर और प्राण की इच्छाओं को पूरी करते हैं। वे अपने दृष्टिकोण के अनुसार अच्छे की ओर और अपने दृष्टिकोण के अनुसार बुरे से दूर आना और जाना है। पौलुस कुलुस्सियों 3:2 में मसीहियों को आज्ञा देता है कि, “अपना मन पृथ्वी पर की नहीं, परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर लगाओ।” कुछ अनुवादों में यह इस प्रकार से है, “अपनी लालसाओं को स्वर्गीय वस्तुओं पर लगाओ,” अर्थात्, “परमेश्वर की परिभाषा के अनुसार अच्छे की ओर आकर्षित हो और परमेश्वर की परिभाषा के अनुसार बुरे से दूर हो, न कि पतित मनुष्य और इसके पापी स्वभाव की परिभाषा के अनुसार।

गम्य प्राणियों का जीवन, जिसमें लालसाएँ की अनुभूति होती है, निरन्तर रीति से ऊपर और नीचे उछलता और गिरता रहता है, जो कि बाहरी प्रभावों के कारण होता है। मार्ग में हरी बत्ती हमें एक क्षण के लिए प्रसन्न करता है; और फिर लाल बत्ती हमारी मनोदषा को परिवर्तित कर देती है। अपने प्रिय खेल दल को प्राप्त एक रन या एक विकट हमें सन्तुष्टि और भरोसा देता है; फिर दूसरे दल को प्राप्त रन या विकट हमें असन्तुष्टि और भय दिलाते हैं।

अब जब हम समझते हैं कि गम्य होने का क्या अर्थ है, हम आनन्दित होकर अपने अगम्य परमेश्वर की आराधना कर सकते हैं। अगम्यता किसी बात को नकारता है। इसलिए जब हम कहते हैं कि परमेश्वर में “लालसाएँ नहीं होती हैं” या कि परमेश्वर अगम्य है, तो हम इस बात को नकारते हैं कि परमेश्वर में वे लालसाएँ हैं जिनका वर्णन हमने ऊपर किया था। परमेश्वर कभी भी किसी कर्ता का कर्म-विषय नहीं होता है। परमेश्वर कभी भी किसी ऐसी बात से प्रभावित नहीं होता है जो उसे परिवर्तित होने के लिए प्रेरित करे। सृष्टि कभी भी सृष्टिकर्ता को इस रीति से नहीं प्रभावित करता है जो सृष्टिकर्ता को किसी तथाकथित अच्छाई की ओर या तथाकथित बुराई से दूर भेजता है।

इसके स्थान पर, परमेश्वर “सर्वदा धन्य” है (रोमियों 1:25; 2 कुरिन्थियों 11:31), और हमारी धार्मिकता या दुष्टता परमेश्वर को परिवर्तित नहीं करती है (अय्यूब 35:5-8)। यह अद्भुत समाचार है, क्योंकि इसका अर्थ है कि परमेश्वर का प्रेम और उसकी दया (उदाहरण के लिए) सृजे गए प्राणियों के समान लालसाएँ नहीं, वरन् सिद्धताएँ (perfections) हैं। हमारा अर्थ है कि परमेश्वर प्रेम करने के लिए प्रेरित नहीं होता है या दया दिखाने के लिए प्रेरित नहीं होता है, वरन् वह अपनी स्वयं की भलाई की असीम परिपूर्णता से प्रेम करता है और दया दिखाता है। परमेश्वर प्रेम करने के लिए प्रेरित नहीं होता है; “परमेश्वर प्रेम है” (1 यूहन्ना 4:8)। और क्योंकि परमेश्वर का प्रेम एक लालसा नहीं है, जिस रीति से वह अस्तित्व में होने से नहीं रुक सकता है, वह प्रेम होना भी नहीं बन्द कर सकता है।

यदि परमेश्वर का प्रेम हमारी लालसाओं के समान होता, यह हमारी अच्छाई और बुराई के आधार पर निरन्तर रूप से परिवर्तित होता रहता। हमारे परिवर्वन के कारण परमेश्वर परिवर्तित होता रहता। वास्तव में, सम्पूर्ण सृष्टि के कारण सर्वज्ञानी और सर्वोपस्थित परमेश्वर निरन्तर परिवर्तित होता रहता। परन्तु परमेश्वर सृष्टि से सम्बन्ध रखता है और अपने लोगों को एक अनन्त प्रेम से ठीक इस कारण से प्रेम करता है क्योंकि परमेश्वर अपनी असीम परिपूर्णता में से हमसे प्रेम करता है न कि हम में किसी तथाकथित अच्छाई के आधार पर। सच में, “हम प्रेम करते हैं क्योंकि उसने पहले हमसे प्रेम किया” (1 यूहन्ना 4:19)। परमेश्वर के लोगों को घोषणा करनी चाहिए, “यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करुणा सदा की है” (भजन 136:1)।

उसी प्रकार, परमेश्वर हम में कुछ देखकर दया दिखाने के लिए प्रेरित नहीं होता है । हमारी दया इस बात पर निर्भर होती है कि कोई जन या कोई बात हमारी भावनाओं को कैसे प्रभावित करता है। बहुत बार लोग इसलिए निर्धनों को देते हैं क्योंकि उनको दया दिखाने के लिए प्रभावित किया गया होता है। जबकि ऐसी प्रणालियों में भ्रष्टाचार हो सकता है, हमें इस बात को मानना चाहिए कि हम बहुत लोगों के वास्तविक पीड़ा की उपेक्षा करते हैं। हम ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि हमें दया दिखाने के लिए प्रेरित होना पड़ता है परन्तु परमेश्वर की दया एक लालसा नहीं है। परमेश्वर अपनी भलाई की असीम परिपूर्णता में से असहाय लोगों की सहायता करता है, न कि भावनात्मक विनतियों के कारण। इसलिए, असहाय लोग सर्वदा परमेश्वर को पुकार सकते हैं, यह जानते हुए कि वह दयालू नहीं परन्तु स्वयं दया है। परमेश्वर दया दिखाने के लिए प्रेरित नहीं होता है; वह स्वयं दया है। आइए हम परमेश्वर की आराधना करें और उसकी बड़ाई करें और कहे, “यहोवा की करुणा के कारण हम मिट नहीं गए, उसकी दया तो अनन्त है। प्रति भोर वह नई होती रहती है; तेरी सच्चाई महान् है” (विलापगीत 3:22-23)।

क्योंकि अगम्यता बात को नकारता है, इसे मानव गम्यता के विपरीत अधिक सरलता से समझा जाता है। हमारी लालसाएँ हमारे शरीर और मनों के अधीन हैं, और जब हम हर प्रकार के कर्ताओं के कर्म-विषय बनते हैं, वे परिवर्तित होती हैं। परन्तु परमेश्वर का प्रेम और उसकी दया, और उसके अन्य गुण, केवल लालसाएँ नहीं हैं, जो परिवर्तित होती हैं। वरन्, उनमें स्वयं परमेश्वर, जो सिद्ध, असीम, और अपरिवर्तनीय है, अपनी सृष्टि पर अपनी भलाई को उण्डेलता है। परमेश्वर की स्तुति हो, क्योंकि “यहोवा सब के लिए भला है, और उसकी दया उसकी सारी सृष्टि पर है। हे यहोवा, तेरी सारी सृष्टि तेरा धन्यवाद करेगी, और तेरे भक्त तुझे धन्य कहा करेंगे!” (भजन 145:9-10)।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

सैम्यूएल डी. रेनीहैन
सैम्यूएल डी. रेनीहैन
डॉ. सैम्यूएल डी. रेनीहैन कैलिफॉर्निया के ला मिराडा में ट्रिनिटी रिफॉर्म्ड बैप्टिस्ट चर्च के पास्टर हैं। वे गॉड विदाउट पैशन्स और द मिस्टरी ऑफ क्राइस्ट, हिस कवनेनट, ऐण्ड हिस किंगडम पुस्तकों के लेखक हैं।