ईश्वरविज्ञान हमें स्तुति-गान की ओर ले जाता है - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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ईश्वरविज्ञान हमें स्तुति-गान की ओर ले जाता है

जब मैनें पहली बार 1999 में सिन्क्लेयर फर्गसन की पुस्तक द होली स्पिरिट (पवित्र आत्मा) पढ़ी, तो मैं थॉमस अक्विनास के एक उद्धरण की ओर आकर्षित हुआ, जो प्रस्तावना में उद्धरित था, “ईश्वरविज्ञान परमेश्वर से निकलता है, हमें परमेश्वर के विषय में सिखाता है, और हमें परमेश्वर की ओर ले जाता हैं।” उस कथन ने मुझ पर बड़ा प्रभाव डाला। उससे मुझे यह समझने में सहायता की कि ईश्वरविज्ञान है क्या, यह अस्तित्व में क्यों है, और यह क्या करता है।

जब मैं डॉ. फर्गसन की पुस्तक पढ़ रहा था, मुझे समझ आया कि वह मुझे न केवल ईश्वरविज्ञान सिखा रहें थे परन्तु वह मुझे यह भी सिखा रहे थे कि ईश्वरविज्ञान कैसे किया जाना चाहिए। अपनी पूरी पुस्तक में, डॉ. फर्गसन ने अपने इस सिद्धान्त पर बल दिया कि परमेश्वर के विषय में हम जो भी जानते हैं, उसे परमेश्वर द्वारा प्रकट किए गए उसके अचूक वचन से आना होगा, जो हमें परमेश्वर के विषय में सिखाता है जिससे कि हम उसे ठीक रीति से जान सकें।

परन्तु ईश्वरविज्ञान का अस्तित्व केवल ईश्वरविज्ञान के लिए नहीं है। हम ईश्वरविज्ञान का अध्यन केवल इसलिए नहीं करते हैं कि हम ईश्वरविज्ञान को जानें परन्तु इसलिए कि हम परमेश्वर को जानें। डी. मार्टिन लॉइड-जॉन्स ने लिखा, “क्योंकि ईश्वरविज्ञान अन्ततः परमेश्वर का ज्ञान है, जितना अधिक ईश्वरविज्ञान मैं जानता हूँ उतना ही अधिक इसे मुझे परमेश्वर को जानने के लिए मुझे प्रेरित करना चाहिए।” सही, बाइबलीय ईश्वरविज्ञान जो परमेश्वर से आता है अवश्य ही हमारी अगुवाई करता है कि हम परमेश्वर तो जानें, उससे प्रेम करें, और उसकी आराधना करें, और डॉ. फर्गसन अपनी पुस्तक में मुझे यही बात सिखा रहे थे। उनके ईश्वरविज्ञान सिखाने की विधि ने मेरी अगुवाई की है कि मैं न केवल ईश्वरविज्ञान जानूँ परन्तु परमेश्वर को जानूँ और पवित्रशास्त्र के परमेश्वर की आराधना करूँ न की अपने बनाए हुए ईश्वर की।

यही एक कारण है कि हम पुस्तकें पढ़ते हैं, पुस्तकें लिखते हैं, और टेबलटॉक जैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन करते हैं—जिससे कि हम जो कुछ भी सोचते हैं, कहते हैं और करते हैं, उसमें हम परमेश्वर को और अधिक से अधिक जान सकें, उससे प्रेम कर सकें, उसकी महिमा कर सकें और उसका आनन्द उठा सकें। इसलिए, जबकी टेबलटॉक के इस अंक का विषय कुछ लोगों के लिए थोड़ा शैक्षणिक प्रतीत हो सकता है, फिर भी ख्रीष्टियों कि लिए यह आवश्यक है कि वे इसका अध्यन करें। अनुपयुक्त शिक्षा और ईश्वरविज्ञानिय भ्रान्ति के कारण, यहाँ तक कि वे कलीसियाए भी जो पवित्रशास्त्र को परमेश्वर के अचूक वचन के रूप में थामें हुए हैं अनजाने में एक ऐसी पीढ़ी को बढ़ावा दे रहे हैं जो अनजाने में बाइबल के ईश्वरविज्ञान से अधिक विधर्मता को मानते हैं। हमारी पीढ़ी में बड़ी आवश्यकता केवल यह नहींं कि संसार के लोग परमेश्वर को जाने परन्तु जैसे कि डॉ. आर सी. स्प्रोल इस बात पर बल दिया करते थे कि कलीसिया परमेश्वर को जाने। परमेश्वर को जानने का अर्थ है अपने ईश्वरविज्ञान को जानना और अपने ईश्वरविज्ञान को जानने का अर्थ है इस लक्ष्य के साथ परमेश्वर के प्रकाशन को जानना कि हम परमेश्वर की ओर फेरे जा सके, परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा, परमेश्वर पवित्र आत्मा के सामर्थ के माध्यम से, परमेश्वर की आराधना करने के लिए जिससे कि केवल परमेश्वर को महिमा मिले। सरल शब्दो में, सही ईश्वरविज्ञान हमें स्तुति-गान की ओर ले जाता है।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

बर्क पार्सन्स
बर्क पार्सन्स
डॉ. बर्क पार्सन्स टेबलटॉक पत्रिका के सम्पादक हैं और सैनफोर्ड फ्ला. में सेंट ऐंड्रूज़ चैपल के वरिष्ठ पास्टर के रूप में सेवा करते हैं। वे अश्योर्ड बाई गॉड : लिविंग इन द फुलनेस ऑफ गॉड्स ग्रेस के सम्पादक हैं। वे ट्विटर पर हैं @BurkParsons.