दोहरा उपचार
27 मई 2021क्रूस के प्रकाश में जीवन
29 मई 2021छुटकारा लागू किया गया
सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का चौवथा अध्याय है: ख्रीष्ट वरन क्रूस पर चढ़ाए गए ख्रीष्ट
किसी भी अन्य बालक के जैसे जन्म लेकर (गलातियों 4:4), यीशु “बुद्धि, डील-डौल और परमेश्वर तथा मनुष्यों के अनुग्रह में” बढ़ता गया (लूका 2:52)। कुछ लोगों द्वारा उसे एक श्रेष्ठ नायक के रूप में चित्रित करने के समकालीन प्रयासों के होते हुए भी, मरियम की मांस-और-लहू की सन्तान में “न रूप था, सौन्दर्य कि हम उसे देखते, न ही उसका स्वरूप ऐसा था कि हम उसको चाहते” (यशायाह 53:2)। परमेश्वर का पुत्र हम में से एक बन गया और मानसिक, शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक रूप से परिपक्व होता गया।
यद्यपि वह कभी भी अनाज्ञाकारी नहीं था, उसने अधीनता सीखी (इब्रानियों 5:8)—अपने विश्वास के कदम के साथ, वह अपरिपक्वता से नैतिक उत्कृष्टता तक बढ़ा। वह, पूर्ण अर्थ में, एक साधारण पुरुष था जो परखा गया था और जिसका जीवन सत्यापित था: “इसलिए यह आवश्यक हुआ कि सब बातों में अपने भाईयों के समान बने” (2:17) और वह “दुख उठाने के द्वारा सिद्ध” किया गया (10 पद)।
फिर भी यीशु जितना साधारण है, उसका जीवन सामान्य से बहुत परे है। परमेश्वर-मनुष्य ने एक परमेश्वरीय रूप से नियुक्त, अद्वितीय, और निर्णायक ऐतिहासिक भूमिका निभाई। अदन के आदम के जैसे, अन्तिम आदम—यीशु ख्रीष्ट—एक सार्वजनिक पुरुष था। उसकी प्रतिनिधित्व की बुलाहट में, यीशु “दयालु और विश्वासयोग्य महायाजक” बना जिसने “लोगों के पापों का प्रायश्चित” किया (पद 17)। केवल इस एक पुरुष ने उस असाधारण, स्थायी सेवा को पूर्ण किया है।
इस प्रकार यीशु का मानवीय अस्तित्व उसके सार्वजनिक कार्य द्वारा मूल्य प्राप्त करता है। प्रत्येक क्षण, उसने स्वयं से और अपने लोगों से परे एक दृष्टि के साथ कार्य किया। प्रमुख नबी के रूप में, उसने अपने लोगों से बातें की। पवित्र महायाजक के रूप में, उसने अपने लोगों के लिए विनती की। राजाओं के राजा के रूप में, वह अपने लोगों के ऊपर राज्य करता है। यीशु अपने लोगों के लिए जीने, मरने, और पुनः जी उठने के लिए आया। वह चरवाहा है; हम उसकी भेड़ें हैं। वह पवित्र छुटकारा देने वाला है; उसके द्वारा हम पूर्ण रीति से छुड़ाए जाते हैं।
इस रीति से, बाइबलीय उद्धार की जड़े इस महिमामय हमारे-लिए-ख्रीष्ट विषय से जीवन प्राप्त करती हैं। ख्रीष्ट कोने का पत्थर है; हम “जीवित पत्थर” है जो “आत्मिक भवन” बनते जाते हैं (1 पतरस 2:5)। इतिहास की महान वास्तुशिल्प परियोजना हम में से प्रत्येक को हमारे परमेश्वर के द्वारा नियुक्त स्थान में रखती है—प्रत्येक जीवित पत्थर मुख्य कोने के पत्थर द्वारा समर्थित और बना रहता है। ख्रीष्ट दाखलता है; हम शाखाएं हैं। जीवन हम में प्रवाहित होता है, क्योंकि हम उस पर निर्भर हैं (यूहन्ना 15:4)। ख्रीष्ट पति है; हम उसकी दुल्हन हैं (प्रकाशितवाक्य 21:2; इफिसियों 5:18-33 देखें)। उद्धारकर्ता हमें वाचा के सम्बन्ध में होकर, आत्मीयता, और अपरिवर्तनीय रूप से हमें थामता है।
इस एक पुरुष का कार्य वास्तव में दूसरों को कैसे आशीष देता है? पिता की बुद्धि के अनुसार, स्वर्ग से भेजा गया परमेश्वर का पुत्र छुटकारे को पूरा करता है; पुत्र का आत्मा अपने लोगों के लिए उस छुटकारे को लागू करता है। अनुग्रह के द्वारा, आत्मा परमेश्वर के लोगों को इतिहास के वास्तविक ख्रीष्ट के साथ मिलाता है। पुत्र आत्मा में उद्धार दिलाने के लिए करता है; परमेश्वर के लोग उसी आत्मा के द्वारा उसके उद्धार के कार्य में सहभागी होते हैं। पिता के इच्छा से, आत्मा हमें पुत्र के साथ मिलाता है।
यह बाद में सोचा गया कोई ईश्वरविज्ञानीय विचार नहीं है कि, आत्मा के इस कार्य में तीन भिन्न फिर भी अविभाज्य विशेषताएं पाई जाती हैं। हमारे प्रति यह अनुग्रह जगत की उत्पत्ति से पूर्व परमेश्वर की बुद्धि से परिपूर्ण और अनुग्रहकारी इच्छा में आरम्भ होता है (इफिसियों 1:3-6)। यह ख्रीष्ट की सेवकाई में ऐतिहासिक खिंचाव को प्राप्त करता है, जहाँ आत्मा हमें ख्रीष्ट में उसकी स्वयं की मृत्यु, गाड़े जाने, जी उठने में रखता है (रोमियो 6:1-4; इफिसियों 2:6)। तब हमें विश्वास देते समय, आत्मा इस अनुग्रहकारी मिलन को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करता है (इफिसियों 1:13-14)। संक्षेप में, ख्रीष्ट के साथ मिलन परमेश्वरीय चुनाव और वाचा के उद्देश्य से आरम्भ होता है। छुटकारे की परमेश्वरीय पूर्तिकरण में, आत्मा हमें ख्रीष्ट से जोड़ता है। विश्वास के क्षण में, आत्मा ख्रीष्ट के कार्य को हमारे पास तुरन्त, व्यक्तिगत रूप से और उद्धारात्मक रूप से लागू करता है।
आत्मा की इस सेवकाई को समझना हमें उद्धार के विषय में एक निर्जीव वस्तु के रूप में कल्पना करने से रोकेगा। उद्धार को पहले एक वरदान के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए जिसे खोले जाने की आवश्यकता है, परन्तु उस व्यक्तिगत उद्धारकर्ता के रूप में जिसे हम ग्रहण करते हैं। सुसमाचार का दाता स्वयं वरदान है।
यीशु ख्रीष्ट ने “हमारे लिए स्वयं को दिया” (तीतुस 2:14), और हम उसे पवित्र आत्मा के द्वारा प्राप्त करते हैं: “परमेश्वर ने अपने पुत्र के आत्मा को, ‘जो हे अब्बा, हे पिता,’ कहकर पुकारता है, हमारे हृदयों में भेजा है” (गलतियों 4:6) और “तुम . . . शारीरिक दशा में नहीं परन्तु आत्मिक दशा में हो, यदि किसी में ख्रीष्ट का आत्मा नहीं तो वह उसका जन नहीं” (रोमियों 8:9)। पवित्र आत्मा हमें साधारण, किन्तु असाधारण मनुष्य से जोड़ता है। हम ख्रीष्ट में रखे जाते हैं और वह हम में। हम उसके हैं, और वह हमारा है।
तब धर्मी ठहराया जाना, पवित्रीकरण, लेपालकपन और महिमान्वीकरण के जैसे सुसमाचार के मूल आशीष का क्या होता है? केवल इसलिए कि ख्रीष्ट में उन्हें सुरक्षित किया है, वे हमारे पास आते हैं। धर्मी ठहराया जाना एक घोषणात्मक कल्पित कथा नहीं है; ख्रीष्ट वास्तव में हमारे लिए धर्मी ठहरा (1 तीमुथियुस 3:16)। पवित्रीकरण कोई कल्पनात्मक विचार नहीं है; ख्रीष्ट ने वास्तव में पाप की शक्ति को परास्त किया (रोमियों 6:10-11)। लेपालकपन कोई अवास्तविक परिवारिक स्तिथि प्रदान नहीं करता है, ख्रीष्ट के श्रेष्ठ पुत्रत्व में हम सच में परमेश्वर की सन्तान बन जाते हैं (1:4; 8:15-17; 1 यूहन्ना 3:1-3)। महिमान्वीकरण काल्पनिक भविष्य की प्रतिज्ञा नहीं करता है; ख्रीष्ट का पुनरुत्थान सन्तों की एक फसल का प्रथम फल है (1 कुरिन्थियों 15:12-22)। ख्रीष्ट से जीवन देने वाला आत्मा (पद 45) उन सब के लिए पुनरुत्थान की महिमा को बढ़ाती है जो उसके आत्मा के द्वारा उसके हैं। परमेश्वर के लोगों के लिए शारीरिक पुनरुत्थान हमारे प्रभु के शारीरिक पुनरुत्थान के जैसे ही निश्चित है।
ख्रीष्ट का जीवन हमारे लिए था और है। उसकी मृत्यु उसके लिए नहीं थी; यह हमारे लिए थी और है। उसका पुनरुत्थान उसके लिए नहीं था, यह हमारे लिए था और है। उसके कार्य के बिना कोई उद्धार है ही नहीं; आत्मा द्वारा लागू किए गए उसके कार्य के बिना, हमारे लिए कोई उद्धार नहीं है। आत्मा हमें अपना बनाता है और अपरिवर्तनीय रीति से हमें ख्रीष्ट के साथ जोड़ता है। हमारी सुसमाचार की आशा यही है: पवित्र आत्मा द्वारा, हम ख्रीष्ट यीशु को प्राप्त करते हैं जो हमारे लिए आया और हम में वास करता है। हम में ख्रीष्ट हमारी “महिमा की आशा” है (कुलुस्सियों 1:27)।