अंगीकार और आराधना - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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अंगीकार और आराधना

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का चौवथा अध्याय है: अंगीकार करने वाली कलीसिया

मेरे बचपन की कुछ स्मृतियाँ प्रभु के दिन पर आराधना में मेरे परिवार के साथ होने पर केन्द्रित हैं। धर्मसुधारवादी और प्रेस्बिुतरवादी कलीसियाएँ जिनमें हम भाग लेते थे, अर्थप्रकाशक प्रचार, भजन-गायन, और प्रार्थना आराधना के निश्चित तत्त्व थे, जैसे कि मसीही कलीसिया के ऐतिहासिक विश्वास वचन और अंगीकार थे। हम नियमित रूप से प्रेरितों के विश्वास वचन और नीकिया के विश्वास वचन—या विश्वास का वेस्टमिन्स्टर अंगीकार, वेस्टमिन्स्टर लघु धर्मप्रश्नोत्तरी, या हायडलबर्ग धर्मप्रश्नोत्तरी में से कुछ विशेष सैद्धान्तिक कथनों का अंगीकार करते थे। हमारे पास्टर अपने उपदेशों में वेस्टमिन्स्टर लघु धर्मप्रश्नोत्तरी में से सैद्धान्तिक कथनों को उद्धृत करते थे। यद्यपि मैं उस समय इस बात से अनभिज्ञ था, ये ऐतिहासिक सूत्रीकरण बाइबलीय सिद्धान्त, आराधना, और मसीही जीवन के सम्बन्ध में मेरे युवा मस्तिष्क को आकार दे रहे थे। एक दशक पूर्व, मुझे एक धर्मसुधारवादी और प्रेस्बिुतरवादी कलीसिया का रोपण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैंने उत्साहपूर्वक अपनी आराधना सभा में निर्देश के स्पष्ट उद्देश्य के लिए—साथ ही साथ मसीही विश्वास और परमेश्वर की आराधना के मूलभूत सत्यों के संरक्षण के लिए कई ऐतिहासिक विश्वास वचनों और अंगीकारों को समाविष्ट किया।

1973 के अपने लेख “आने वाले कल की कलीसिया के लिए अंगीकार की ओर” (Towards a Confession for Tomorrow’s Church) में जे. आई. पैकर ने इस बात पर बल दिया कि ऐतिहासिक विश्वास वचन और अंगीकार कलीसिया को चार प्रमुख उत्तरदायित्वों को पूरा करने में सहायता करती हैं—यह हैं आराधनात्मक, घोषणात्मक, उपदेशात्मक, और अनुशासनात्मक कार्य। तद्अनुसार, कलीसियाओं को इन ऐतिहासिक सैद्धान्तिक कथनों का उपयोग अपनी आराधना (आराधनात्मक), साक्षी (घोषणात्मक), शिक्षा (उपदेशात्मक), और अविनाशिता (अनुशासनात्मक) में करना चाहिए। पैकर यह स्पष्ट करने के लिए आगे बताते हैं कि कैसे ये प्रत्येक में कार्य करते हैं:

उनका आराधनात्मक कार्य है परमेश्वर के प्रेम के कार्यों को बताना और एक उत्तरदायी समर्पण को शब्दों में डाल कर उसकी महिमा करना। उनका घोषणात्मक कार्य है समुदाय जिस बात का समर्थन करते हैं उनकी घोषणा करना, और इसलिए उन समुदायों को ख्रीष्ट की कलीसिया, विश्वव्यापी विश्वास की संगति के रूप में पहचान करना। उनका उपदेशात्मक कार्य है निर्देश के आधार के रूप में कार्य करना। उनका अनुशासनात्मक कार्य है विश्वास की सीमा को स्थापित करना जिसके भीतर प्रत्येक अंगीकार करने वाला समूह रहना चाहे, और इसलिए इसके पादरी वर्ग और साधारण सदस्यों पर किसी भी प्रकार के सैद्धान्तिक प्रतिबन्ध या निर्देश जो लागू होने के लिए उचित लगें उनकी नींव डालना।

आराधनात्मक कार्य अत्यन्त विस्तृत है, क्योंकि आराधना में घोषणात्मक, उप्देशात्मक, और अनुशासनात्मक कार्यों के तत्त्व सम्मिलित हैं। ऐतिहासिक विश्वास वचन और अंगीकार विश्वासियों की एकत्रित सभा की, पवित्रशास्त्र के मूलभूत सत्यों की घोषणा करने में सहायता करता है। वे सेवकों को परिष्कृत सैद्धान्तिक सूत्रीकरण प्रदान करते हुए उपदेशात्मक कार्यभार को करते हैं जो कि उनकी पवित्रशास्त्र से परमेश्वर की सम्पूर्ण सम्मति को सही से सिखाने और प्रचार करने में सहायता करता है। वे अनुशासनात्मक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते हैं, अगुवों और सदस्यों को सैद्धान्तिक मानक देते हुए जिसके द्वारा एक दूसरे को उत्तरदायी ठहराया जा सके। उनकी स्पष्ट सैद्धान्तिक परिभाषाएँ सुरक्षा के लिए रक्षा पटरी के रूप में कार्य करती हैं जो कि आराधना के सन्दर्भ में क्या सिखाया और घोषित किया जाता है। जैसा कि पैकर समझाते हैं:

अधिकृत सैद्धान्तिक सूत्रीकरण (मानक, जैसा कि प्रेस्बुतरवादी लोग ऐतिहासिक रूप से उन्हें कहते थे) के बिना कलीसिया स्पष्ट रूप से “सत्य के स्तम्भ और आधार” (1 तीमुथियुस 3:15) के रूप में अपने चरित्र के बनाए रखने की हानि में है। मान लिया कि, विश्वास का कोई मानवीय सूत्र न पूरा है न अन्तिम; फिर भी सूत्रसंहिता एक सीमा तक सत्य हो सकते हैं, और झूठे मार्गों को छोड़ने के लिए अत्यन्त लाभकारी हैं, और प्रत्येक पीढ़ी को मसीहियत क्या है को यथासम्भव स्पष्ट करने का कार्य पूरा करने में सहायता करते हैं।

जब मसीही सार्वजनिक रूप से उन सत्यों का अंगीकार करते हैं जिनका कलीसिया ने सदैव अंगीकार किया है, तो परमेश्वर कलीसिया और संसार के मध्य—साथ ही साथ सच्चे और झूठे शिक्षकों के मध्य अन्तर बताता है। ऐतिहासिक सैद्धान्तिक मानक “विश्वास जो पवित्र लोगों को एक ही बार सदा के लिए सौंपा गया” (यहूदा 3) की इस अभिव्यक्ति में शास्त्रसम्मत शिक्षा और झूठी शिक्षा के मध्य एक तीक्ष्ण रेखा खींचते हैं।

अन्ततः, ऐतिहासिक सैद्धान्तिक सूत्रसंहिता त्रिएक परमेश्वर के मूलभूत सत्यों पर स्थिर विश्वासियों के मस्तिष्कों को ध्यान में रखते हुए आराधनात्मक कार्य का समर्थन करते हैं —जो कि उनकी आराधना का विषय है। वे अपने त्रिएक और ख्रीष्ट विज्ञानीय कथनों में एकीकृत हैं। कलीसिया के ऐतिहासिक विश्वास वचन और अंगीकार श्रेष्ठ रूप से त्रिएकतावादी (Trinitarian) और ख्रीष्ट केन्द्रित (Christocentric) हैं। इसके अतिरिक्त, सत्रहवीं शताब्दी के धर्मसुधारवादी अंगीकार और धर्मप्रश्नोत्तरी विस्तार में समझाती है, कि पवित्रशास्त्र के अनुसार परमेश्वर की आराधना करना क्या है। विश्वास का वेस्टमिन्स्टर अंगीकार में प्रभु के दिन की आराधना (Lord’s Day worship (WCF 21)) के विषय में एक पूरा अध्याय है, और वेस्टमिन्स्टर वृहद धर्मप्रश्नोत्तरी प्रथम चार आज्ञाओं (WLC 105, 108–10, 117) के अर्थप्रकाशन को बाइबलीय आराधना के विषय के रूप में अच्छे से समझाती है।

क्योंकि परमेश्वर की उचित आराधना पवित्रशास्त्र के अनन्त सत्य में निहित है, कलीसियाओं को बाइबलीय सत्य के दीर्घकालिक ऐतिहासिक सूत्रीकरण का उत्साह से स्वागत करना चाहिए। ऐसा करना कलीसिया की मसीहियत के सत्य के संरक्षण और परमेश्वर की सही आराधना के विरुद्ध सभी संरक्षण और विरोध में सहायता करेगा।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया

निक बैट्ज़िग
निक बैट्ज़िग
रेव. निक बैट्ज़िग चार्ल्सटन, साउथ कैरोलायना में चर्च क्रीक पीसीए में वरिष्ट पास्टर, और लिग्मिएर मिनिस्ट्रीज़ के एक सहायक सम्पादक हैं।