अंगीकार और कलीसियाई अगुवाई - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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अंगीकार और कलीसियाई अगुवाई

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का पांचवा अध्याय है: अंगीकार करने वाली कलीसिया

कलीसियाई अगुवाओं के विश्वासयोग्य और फलदायक श्रम के लिए सैद्धान्तिक मानकों का बहुत महत्व है। ऐसे मानक सारांश और विधिवत रूप में पवित्रशास्त्र की कुछ अत्यन्त ही महत्वपूर्ण शिक्षाओं को बताते हैं,  एक ऐसे रूप में जिसे विशिष्ट रूप से समय के साथ परीक्षित किया गया है और अपने स्रोत के प्रति विश्वासयोग्य प्रमाणित हुआ है। जब उन्हें स्वैच्छिक रूप से कलीसिया के अगुवों द्वारा अपनाया जाता है, तो वे उन्हें मिलन का बन्धन प्रदान करते हैं जो कलीसिया की देखरेख के लिए “सत्य के स्तम्भ और आधार” (1 तीमुथियुस 3:15‌) के रूप में एकजुट होते हैं।    

सामान्यतः, अंगीकारवादी कलीसियाओं ने कलीसिया के सदस्यों के सन्दर्भ में और कलीसिया के अगुवों के मध्य सैद्धान्तिक मानक के कार्य में अन्तर किया है। सुसमाचार की आवश्यक बातों का अंगीकार किए हुए कलीसिया के सदस्य, कलीसिया के सैद्धान्तिक मानकों की, अपनी समझ, और अनुपालन में व्यापक रूप से भिन्न हो सकते हैं। सत्य के इस पूर्ण कथन की परिपक्व स्वीकृति शिष्यता के जीवन का एक लक्ष्य है, पूर्वापेक्षा नहीं। दूसरी ओर, कलीसिया के अगुवों को आवश्यक है कि कलीसिया के मानकों को अपना मानकर स्वीकार करें, कुछ महान सत्यों के एक सटीक कथन के रूप में जिन्हें वे स्वयं परमेश्वर के वचन में पाते हैं, और जो उन्हें उनके श्रम में मार्गदर्शन करेगा। इस प्रकार से, सत्य “ऐसे मनुष्यों को सौंपा गया जो दूसरों को भी सिखाने के योग्य हैं” ( 2 तीमुथियुस 2:2)। ‌    

इसलिए, सैद्धान्तिक मानक इस प्रकार से महत्वपूर्ण हैं कि वे कलीसियाई अगुवाई के लिए प्रत्याशियों के सैद्धान्तिक प्रशिक्षण को सुगम बनाते हैं। वे ऐसे प्रशिक्षण के लिए एक समान पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं, और इस लक्ष्य की तैयारी उनके शिक्षण की एक सौहार्दपूर्ण स्वीकृति होनी चाहिए। साथ ही सदस्यों को उस शिक्षा को समझाने की योग्यता और बाइबल में इसकी नींव दिखाना भी आवश्यक है।

तैयारियों के लिए सब प्राप्त होने के पश्चात्, सैद्धान्तिक मानक कलीसिया के अगुवों की परीक्षा और अनुमोदन के लिए आवश्यक हैं। सैद्धान्तिक रूप से योग्यता प्राप्त करने के लिए, सभी प्रत्याशियों को यह दिखाने के योग्य होने चाहिए कि उन्हें कलीसिया की शिक्षा की कर्तव्यनिष्ठ पकड़ है और विश्वासयोग्य अनुपालन में उन मानकों को जीने और सेवा करने की तत्परता है।

इसके अतिरिक्त, सैद्धान्तिक मानकों का कलीसियाई अगुवाई के अधिकार और शासन के लिए बहुत महत्व है। अनुग्रह द्वारा बचाए गए पापियों के रूप में, ऐसे अधिकारियों का कोई आन्तरिक अधिकार नहीं है। उनके पास जो अधिकार है वह नैतिक और आत्मिक है। कहने का अर्थ है, उनका अधिकार है परमेश्वर के लोगों के सम्मुख विश्वासयोग्यता से सत्य को प्रस्तुत करना, जिसे उनके अन्तर्गत आने वाले लोग आत्मा के कार्य के द्वारा स्वीकार करेंगे और उसका अनुसरण करेंगे। यही कारण है कि कलीसिया के अगुवों के शासन के पास दबाव डालने का उपाय नहीं है (जैसा कि नागरिक प्राधिकरण के पास होता है‌)। अपेक्षाकृत, उनका शासन निर्देश द्वारा अभ्यास करने वाला “सेवा सम्बन्धी और घोषणात्मक” है, परमेश्वर का वचन के प्रबन्धकों के समान। कलीसिया में शासन सदैव ही सत्य में निर्देश का विषय है, और सैद्धान्तिक मानक उस सत्य को एक स्वीकृत सारांश प्रदान करते हैं। ख्रीष्ट ने कलीसिया में अपने अधिकार और शासन का अभ्यास “अपने वचन और आत्मा के माध्यम से मनुष्यों की सेवकाई के द्वारा किया; इस प्रकार, मध्यस्था के साथ अपने स्वयं के अधिकार का प्रयोग किया और अपने नियमों को लागू किया।”

इसमें एक अन्तिम विचार पाया जाता है: कलीसिया के अगुवों को न केवल “खरी शिक्षा के निर्देश देने के योग्य होने की” परन्तु साथ ही “इसके विरोधियों का मुँह बन्द करने” (तीतुस 1:9) की भी बुलाहट है। इफिसियों के प्राचीनों को पौलुस द्वारा दी गयी चेतावनी पर प्रत्येक युग के कलीसिया के अगुवों को ध्यान देना चाहिए: “मैं जानता हूँ कि मेरे जाने के बाद फाड़ने वाले भेड़िए तुम्हारे मध्य आएंगे, और झुण्ड को न छोड़ेंगे। और तुम्हारे ही बीच में से ऐसे लोग उठ खड़े होंगे जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने के लिए टेढ़ी-मेढ़ी बातें करेंग” (प्रेरितों के काम 20:29-30)। इसलिए, कलीसिया के अगुवे, पद के अनुसार, “विश्वास के लिए यत्नपूर्वक संघर्ष करने के लिए बुलाए गये हैं जो पवित्र लोगों को एक ही बार सदा के लिए सौंपा गया था” (यहूदा 3)। यह उस भयावह हानि के कारण और भी अधिक महत्वपूर्ण है जो झूठे शिक्षकों के साथ आता है जो ”गुप्त रूप से घातक और विधर्मी शिक्षा का प्रचार” करते हैं और सत्य के मार्ग की निन्दा की जाती है (2 पतरस 2:1)।

सैद्धान्तिक मानक विवादों का निर्णय करने की बुलाहट में एक शक्तिशाली उपकरण प्रदान करते हैं। किसी भी नई शिक्षा पर हुए मतभेद को प्रारम्भ से आरम्भ करने की कोई आवश्यकता नहीं है। प्रश्न सदैव से है, कि पवित्रशास्त्र क्या सिखाता है? तब भी सैद्धान्तिक मानक उन बातों को निर्धारित करता है जिसे कलीसिया ने पहले से निर्णय लिया होता है जो पवित्रशास्त्र सिखाता है। वे एक ढांचा और निश्चित बिन्दु प्रदान करते हैं, जिन पर पहले सहमति हुई थी, जिनके आधार पर उस नए विषय पर लागू किया जाना चाहिए। इस प्रकार से कलीसिया की पवित्रता और शान्ति बनी रह सकती है, क्योंकि कलीसिया के अगुवे उन्हें “सौंपी गयी धरोहर की रक्षा करते हैं (1 तीमुथियुस 6:20)  और “परमेश्वर की उस कलीसिया की रखवाली करते हैं जिसे उसने अपने ही लहू से खरीदा है” (प्रेरितों के काम 20:28)।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया

डेविड एफ. कॉफिन जूनियर
डेविड एफ. कॉफिन जूनियर
डॉ. डेविड एफ. कॉफिन जूनियर फेरफैक्स, वर्जिनिया में न्यू होप प्रेस्बिटेरियन चर्च में बाइबलीय और ईश्वरविज्ञानीय शिक्षा के सहायक पास्टर हैं।