अंगीकार और कलीसियाई सदस्यता - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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अंगीकार और कलीसियाई सदस्यता

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का छठवां अध्याय है: अंगीकार करने वाली कलीसिया

मेरे साथ एक ऐसे उपदेशक की कल्पना करें जो एक प्रतिभाशाली वक्ता है—उसकी शिक्षा स्पष्ट और प्रेरणादायक है, और वह एक गुणवान अगुवा है। उसके विषय में कुछ ऐसा है जिसका लोग अनुसरण करना चाहते हैं। उसे सम्मेलनों में बोलने के लिए आमन्त्रित किया जाता है। आप उसको और उसके परिवार को जान गए हैं, और आप इस बात से दृढ़ निश्चयी हो गए हैं कि उसकी कलीसिया ही है जो आपके लिए है। आप पास्टर से इस कलीसिया से जुड़ने के विषय में पूछते हैं, परन्तु बातें थोड़ी अस्पष्ट हैं। यहाँ समुदाय और एक दूसरे के साथ वास्तविक होने के विषय में कई बातें होती हैं, परन्तु जब आपने पूछा, “यह कलीसिया क्या विश्वास करती है?” तो आपको एक आठ-बिन्दु का संक्षिप्त विवरण दिया जाता है जिसमें केवल सुसमाचारवादी विश्वास की नाममात्र आवश्यकताएँ हैं। वे आपसे कहते हैं, “मुख्य बातों को मुख्य बातें ही रखें,” और “इस स्थान में हम कम महत्व वाले विषयों पर अधिक ध्यान दे कर फँसे नहीं रहते।” यह सब बहुत सकारात्मक सुनाई पड़ता है। परन्तु यहाँ परेशान करने वाली एक चिन्ता है: जब कुछ गड़बड़ होता है तो क्या होता है? तब क्या होता है जब कलीसिया में कठिनाईयाँ उत्पन्न होती हैं और अनुशासन की आवश्यकता होती है? कलीसिया वास्तव में कलीसियाई विधियों के और सरकार की भूमिका के विषय में क्या विश्वास करती है?  ऐसे कई विषय हैं जो उस आठ-बिन्दु के संक्षिप्त विवरण में सम्बोधित नहीं किए गए हैं।

धर्मसुधार के अनुसार, कलीसिया का एक चिन्ह, कलीसिया अनुशासन है, फिर भी यह कलीसियाई जीवन में आज एक महान उपेक्षित पहलू में से एक है। अपनी सही सोच में कोई भी यह नहीं सोचेगा कि वह अपने बच्चों को पालन-पोषण बिना अनुशासन के कर सकते हैं, और फिर भी सुसमाचारवादी कलीसियाओं ने अधिकतर पूर्ण रूप से इसकी उपेक्षा की है। एक न्यूनतम सैद्धान्तिक कथन वाली कलीसिया के लिए कठिनाई यह है कि यदि कलीसियाई अनुशासन थोड़ा भी होगा, तो अगुवों को प्रायः नियम बनाने पड़ा करेंगे। दुर्भाग्यवश, लोग उन बातों के लिए अनुशासित हो सकते हैं जो अनुशासन के योग्य बातें नहीं हैं। सिद्धान्त के वे आठ बिन्दु, यद्यपि वे सही हो सकते हैं, तब भी मण्डली के जीवन में सामना करने वाले विषयों से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

एक न्यूनतम विश्वास के कथन वाली कलीसिया में, मण्डली का स्वास्थ्य लगभग पूर्ण रूप से अगुवे के आत्मिक स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। पिछले दशक में, हमने ऐसे दुखद घटनाओं को देखा है जहाँ अगुवों का पतन हुआ है और कलीसियाएँ जिनकी वे अगुवाई करते थे उनके जाने के परिणामस्वरूप टुकड़े-टुकड़े हो गयीं।

विश्वास का पूर्ण अंगीकार परमेश्वर के वचन की स्पष्ट समझ को समझने और व्यक्त करने की माँग करता है। परमेश्वर स्वयं को बाइबल में स्पष्टता से व्यक्त करता है। जब पवित्रशास्त्र की तुलना पवित्रशास्त्र से होती है, अनिवार्य सिद्धान्त स्पष्ट हो जाते हैं, और इसलिए बाइबलीय शिक्षा के मुख्य बिन्दुओं को एक साथ सारांक्षित करना अद्भुत रूप से सम्भव है।

विश्वास का अंगीकार कलीसिया के सदस्यों के लिए बहुत सी बातों को करता है। पहला, यह हमें निष्कपट रखता है। प्रत्येक कलीसिया के पास विश्वास का अंगीकार होता है, परन्तु प्रश्न यह है कि क्या कलीसिया ने इसे लिखा है? चाहे वह वेस्टमिन्स्टर का विश्वास अंगीकार हो, 1689 लंदन बैपटिस्ट अंगीकार हो, या थ्री फॉर्म्स ऑफ यूनिटी हो, इन्होंने अंगीकार को स्पष्ट रूप से वर्णित किया है जो कलीसिया विश्वास करती है, जिसमें इससे छिपने की कोई सम्भावना नहीं है। कलीसिया के अगुवों को नियमित रूप से अपनी मण्डली को अंगीकार कराते रहना चाहिए जिससे कि वे “उस प्रकार की शिक्षा के आज्ञाकारी हो जाएं जिसके लिए तुम समर्पित हुए थे” (रोमियों 6:17)। “खरी शिक्षा का आदर्श” है जिसकी हमें अभिलाषा रखनी चाहिए (2 तीमुथियुस 1:13)।

एक अंगीकारवादी कलीसिया का एक प्रतिरूप होना चाहिए जिसके अनुसार वह चाहती है कि उसके लोग हों। ऐतिहासिक अंगीकार के मनोहर पहलूओं में से एक यह है कि वे समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। वे लोगों को ईश्वारविज्ञानी सनक या गतिशील अगुवों की दया पर नहीं छोड़ देती है। अंगीकार में पाए जाने वाले ईश्वरविज्ञानी प्रतिबिम्ब में एक परिपक्वता है जो हमें हमारे आस-पास की कुछ ईश्वरविज्ञानी त्रुटियों से संरोपित करने रखती है।

दूसरा, अंगीकार कलीसिया के सदस्यों के लिए सुरक्षा प्रदान करता है। अंगीकार वह कहता है जो सदस्यता के लिए आवश्यक है; यह दिखाता है कि अनुशासन के लिए क्या है और क्या नहीं है; यह मानदण्ड देता है जिसके द्वारा प्राचीनों को उत्तरदायी ठहराया जाता है; यह ईश्वारविज्ञानी प्रतिबिम्ब के लिए सीमा चिन्ह प्रदान करता है। अंगीकार पास्तरीय देखरेख को व्यक्त करने की एक विधि बन गया है। यह हमें ईश्वरविज्ञानीय परिपक्वता का मार्ग दिखाता है और इसलिए पास्टरों और प्राचीनों को शिष्यता के उस मार्ग के साथ चरवाही करने और प्रोत्साहित करने के सक्षम बनाता है परन्तु साथ ही जब वे सदस्य भटक जाते हैं तो उन्हें फटकारने और प्रोत्साहित करने की अनुमति देता है।

तीसरा, अंगीकार को थामे रखना हमें संसार भर की और ऐतिहास के समय की एक समान विचारधारा वाली कलीसियाओं के साथ सार्थक एकता रखने की अनुमति देता है। यद्यपि धर्मसुधारवादी अंगीकार अपने को व्यक्त करने की रीतियों में भिन्न हो सकते हैं, पर उनमें व्यक्त प्रमुख सिद्धान्त समान हैं।

चौथा, विश्वास का अंगीकार सदस्यों को एक ऐसो समाज में रहने, उसके विषय में सोचने, और उसकी आलोचना करने का उपकरण देता है जो कि उत्तरोतर रूप से सुसमाचार के प्रति शत्रुता में बढ़ती जा रही है। आज जो प्रश्न हमसे पूछे जा रहे हैं वे अत्याधिक गहन ईश्वरविज्ञानीय चिन्तन की माँग करते हैं। जब हम इन धर्मसुधारवादी अंगीकार को देखते हैं जो पवित्रशास्त्र की शिक्षा को सारांशित करते हैं, हम अपने आप को उस आशा के लिए जो हमारे भीतर है कारण देने के लिए अधिक से अधिक तैयार पाएँगे।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया

पॉल लेवी
पॉल लेवी
रेव पॉल लेवी पश्चिम लंदन में इन्टर्नैश्नल प्रेस्बिटेरियन चर्च में सेवक हैं।