अंगीकार और कलीसिया का मिशन - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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6 अक्टूबर 2022
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अंगीकार और कलीसिया का मिशन

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का सातवां अध्याय है: अंगीकार करने वाली कलीसिया

अंगीकार की आज नकारात्मक ख्याति है। प्राचीन कलीसिया और धर्मसुधार की कलीसियाओं ने जाँचे और परखे विश्वास वचन और अंगीकार हमें विरासत में दिए। उनमें, कलीसिया ने “उस विश्वास जो पवित्र लोगों को एक ही बार सदा के लिए सौंपा गया” (यहूदा 3) के आधिकारिक सारांश मिले हैं। आज, यद्यपि, एक व्यापक और आवेश युक्त मत है कि कलीसियाएँ जो खुल कर अंगीकार को थामे हुए हैं वे सामान्यतः महान आदेश को ठीक से पूरा नहीं कर रही हैं क्योंकि वह अंगीकार करने वाली कलीसियाएँ हैं। ऐसा माना गया है, उनके अंगीकार करने वाले मानक, उनकी सुसमाचार प्रचार में सहायता नहीं कर रहे हैं। इसके विपरीत, उनके मानक संसार को स्पष्ट और सरल सुसमाचार के सन्देश को लाने के किसी भी सच्चे प्रयास में निश्चित रूप से बाधाएँ डाल रहे हैं।

दुर्भाग्यपूर्ण, उस अवलोकन में कुछ सच्चाई है। अंगीकार करने वाली कलीसियाएँ प्रायः उत्साह के साथ संसार को सुसमाचार प्रचार नहीं करती जैसा उन्हें करना चाहिए। प्रायः, उनके अंगीकार के विषय में तर्क वितर्क बाहरी व्यक्ति को ईश्वरविज्ञान के सूक्ष्मतर, गूढ़ बिन्दु के विषय में मात्र भीतर के तर्क वितर्क दिखाई देते हैं। इसलिए, कई लोग सोचते हैं कि धर्मसुधार का विचारपूर्ण अंगीकार का मानक स्वयं में ही कलीसिया के सच्चे मिशन के कार्य के लिए बाधा है। मसीही प्रभाव के पश्चात के जर्मनी (post-Christian Germany) में कलीसिया रोपण के कार्य में सन्लग्न एक सेवक के रूप में, मुझे एक से अधिक बार सदाशयी मसीहियों द्वारा सुसमाचार लाने, कलीसिया रोपण, और नए परिवर्तित लोगों से प्रश्न करने के लिए अंगीकार को एक उपकरण के रूप में उपयोग न करने के लिए बताया गया।

परन्तु क्या यह निन्दनीय तथ्य कि अंगीकार करने वाली कलीसियाओं में प्रायः सुसमाचार प्रचार के उत्साह की कमी होती है यह सिद्ध करता है कि समस्या स्वयं अंगीकार में निहित है? क्या अंगीकार मिशनरी (missionary) सन्दर्भ में “कार्य नहीं” करता? बल्कि इसके विपरीत है। जब कि अंगीकार करने वाली कलीसियाएँ, महान आदेश को पूरा करने में शिथिल हो सकती हैं, और प्रायः होती हैं, समस्या स्वयं अंगीकार में नहीं है।

अंगीकार का सच्चा ध्येय

मसीही की सच्ची बुलाहट है अपना क्रूस उठाना और ख्रीष्ट का अंगीकार करना। बहुधा, आज संसार के कई क्षेत्रों में मिशनरी सन्दर्भ में, वे एक जैसे ही हैं। ख्रीष्ट का अंगीकार करना अपरिहार्य रूप से कई स्थानों पर विश्वासी के जीवन में एक तत्काल जोखिम ला सकता और प्रायः लाता है। यह हमें एक अच्छी स्थिति में लाता है। यीशु स्वयं प्रथम शहीद थे जो अपने अंगीकार के कारण मरने के लिए इच्छुक था। उसके चेलों को निश्चित रूप से अपने स्वामी से बड़े होने की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए (यूहन्ना 13:16)। उसने अपने चेलों से यह अंगीकार करने कि वह कौन था और कौन है (मत्ती 10:32; 16:15), और ऐसा करने से पूर्व दाम को जानना और और परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने की इच्छा, सम्भवतः मृत्यु की माँग की (10:27-28)। अंगीकार हमारे हृदय की वो कायलता है जो बाइबल वास्तव में जो सिखाती है, ऐसी कायलता जिसे इतनी दृढ़ता से थामा जाता है कि हम इसके सत्य से समझौता करने के स्थान पर समय से पहले मर जाएं। कोई भी मसीही कभी किसी ऐसी बात के लिए दण्ड सहने का इच्छुक नहीं हुआ है जिसको वह “काफी हद तक” सत्य मानता हो। परन्तु मसीही वास्तव में अंगीकार के कारण मरे हैं जिसे वह मानते हैं कि वह पूर्ण सत्य है—बिना किसी अपवाद या विशिष्टता के।

हम कलीसिया के लगभग प्रत्येक अंगीकार की उत्पत्ति से हो कर जा सकते हैं और दिखा सकते हैं कि वे आरामदेह अध्ययन में नहीं लिखे गए परन्तु सताव की अग्नि में विकसित हुए और लहू में लिखे गए। वे प्रमाण हैं कि शहीदों के लहू वास्तव में कलीसिया का बीज हैं। एक उदाहरण पर्याप्त होना चाहिए। जब गाइडो डे ब्रेस ने 1561 में बेल्जिक अंगीकार लिखा, उन्होंने स्पेन के शासक फिलिप द्वितीय को एक पत्र भी प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने अंगीकार के पीछे का तर्काधार दिया था। उन्होंने लिखा:

निर्वासन, कारावास, कष्ट, यातनाएँ, और अनगिनत अन्य सताव स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करते हैं कि हमारी इच्छा और कायलता शारीरिक नहीं हैं, क्योंकि यदि हम इस सिद्धान्त को स्वीकार और बनाए नहीं रखते तो हम अत्यन्त सरल जीवन व्यतीत कर सकते थे। परन्तु अपने सम्मुख परमेश्वर के भय मानने से, और यीशु ख्रीष्ट की चेतावनी के भय में रहते हुए, जो कहता है कि वह हमें परमेश्वर और अपने पिता के सम्मुख त्याग देगा यदि हम मनुष्यों के सामने उसका इनकार करेंगे, हमें छोड़े जाने का दुख उठाना होगा, हमारी जीभ काट दी जाएगी, हमारे मुँह को बन्द कर दिया जाएगा और हमारे पूरे शरीर को जला दिया जाएगा, क्योंकि हम जानते हैं कि जो ख्रीष्ट के पीछे चलेगा उसे अपना क्रूस उठाना पड़ेगा और अपना इनकार करना होगा।

डे ब्रेस और अनगिनत अन्य लोग शहीद होने के इच्छुक थे, और अपने अंगीकार के कारण वास्तव में शहीद हुए भी। परन्तु क्यों? क्योंकि वे जानते थे अंगीकार के सत्य का इनकार ख्रीष्ट का इनकार करना है। और ख्रीष्ट का इनकार करना प्राण के लिए घातक है और वह लोगों के उद्धार की एकमात्र आशा को भी छीन लेता है। वे अंगीकार और मरने के इच्छुक थे जिसका कारण और कोई नहीं बल्कि सुसमाचार का आगे बढ़ना था। इच्छुक होना, चाहें विवश हो कर, बोधनीय शब्दों के साथ ख्रीष्ट का अंगीकार करना ही प्रत्येक महान और विश्वासयोग्य मिशनरी प्रयत्न के पीछे की हृदय की अभिवृत्ति है।

यद्यपि कलीसिया के प्रथम अंगीकार रुढ़िवादिता के कथनों के विचार से था—अर्थात्, ईश्वरविज्ञानी सत्य के—वे कभी भी केवल कलीसिया के लिए नहीं थे परन्तु सदैव संसार के झूठी विश्वास की प्रणालियों के साथ जुड़ने के के विचार के साथ थे। कलीसिया के अंगीकारों में कोई मृत रुढ़िवादिता नहीं है। वे सदैव हमें चुनौती देते हैं, और वे सदैव संसार को चुनौती देते हैं।

अंगीकार सुसमाचार के प्रचार के लिए एक मार्गदर्शक होने के अभिप्राय से भी थे। कोई भी पुराना “सुसमाचार प्रचार” संसार को विश्वासयोग्यता से सुसमाचार प्रचार नहीं करेगा परन्तु केवल वही करेगा जो परमेश्वर के वचन के सत्य के साथ अनुबन्ध में हैं जैसा कि कलीसिया के अंगीकारों में सारांशित है। अंगीकार वस्तुतः शब्दों को हमारे मुख में रखते हैं—बाइबलीय शब्द, विश्वास करने के हमारे अनुभव से अर्थ निकालने के शब्द, और शब्द जिनका हम उपयोग कर सकते हैं और करना चाहिए जब हम ख्रीष्ट की साक्षियों के रूप में संसार में जाते हैं। अंगीकार नए परिवर्तित लोगों और चेलों को मसीही विश्वास, वह सब कुछ जो ख्रीष्ट ने हमें सिखाया है, (मत्ती 28:20) की पूर्ण सीमा और विषय वस्तु के विषय में प्रश्नोत्तर करने के लिए समय के साथ परखे गए उपकरण हैं। वे हमें शब्द देते हैं जिसके द्वारा हम, युवा और वृद्ध एक समान, विश्वास की विषय वस्तु को अपना सकते हैं। परन्तु इन सबमें, सबसे अधिक अपरिवर्तित अंगीकारों का ध्येय सदैव से लोगों को ख्रीष्ट में उद्धार के लिए जीतने के लिए सच्चे विश्वास और सुसमाचार की सकारात्मक घोषणा रही है और रहेगी।

अंगीकार का कार्य

हम प्रायः अंगीकार को कुछ प्राचीन, यहाँ तक कि गतिहीन के रूप में गलत समझ लेते हैं। हम अंगीकार को “रुढ़िवाद” के अन्दर दर्ज किए दस्तावेज के समान समझ लेते हैं और आवश्यकता न पड़ने तक दराज में रख देते हैं, कि यदि कभी आवश्यकता पड़ी तो। परन्तु वास्तव में, विश्वास का अंगीकार एक बहुत ही शक्तिशाली और गतिशील घटना है। यह कुछ ऐसा है जो—हमारे साथ, कलीसिया के साथ, और संसार के साथ होता है। जैसा कि डोरोथी सेयर्स कहती हैं, “हठी सिद्धान्त (dogma) नाट्य है”। एक ठोस, बाइबलीय अंगीकार आत्मा के माध्यम से संसार में लोगों, कलीसिया को रचने और उनको छुड़ाने में परमेश्वर की सहभागिता के नाट्य को बताता है। जो हम अंगीकार करते हैं वह तुरन्त पूर्ण, अस्तित्ववादी रूप में हमें सम्मिलित करता है। जब विश्वासी अपने मुख को हृदय से अंगीकार के साथ खोलता है, जब कलीसिया एक साथ अपने मुख को समय के साथ परखे गए अंगीकार के साथ खोलती है, तो यह परमेश्वर के सत्य की दोधारी तलवार के साथ एक दृश्यमान और अदृश्य संसार का आत्मा द्वारा संचालित आमना-सामना है। यह एक घटना है जिसमें परमेश्वर स्वयं न्याय के लिए और खोए हुओं को बचाने के लिए आता है। सुसमाचार के प्रचार और विश्वास के अंगीकार के मध्य कोई विरोधाभास नहीं है। पूर्ववर्ती उत्तरावर्ती का कार्य और परिणाम है। विश्वास का अंगीकार सबसे अधिक कल्पनीय संस्कृति विरोधी कार्य है। यह संसार के अविश्वासपूर्ण धारणाओं पर युद्ध की घोषणा करता है जो अन्यथा अविवादित हो सकते हैं।      

आइए अंगीकार करें

अंगीकार कलीसिया का एक ध्वनि यंत्र है। जब कलीसिया अपने विश्वास का अंगीकार नहीं करती, तो यह शान्त हो जाता है। इसके पास अविश्वासी संसार को कहने के लिए कुछ नहीं होता। परन्तु जब ऐसा होता है, तो परमेश्वर अपने उद्धार के कार्य में अत्याधिक इसका उपयोग करता है। तो, चुने हुओं के कारण, आइए विश्वास के अंगीकार को दृढ़ता से थामे रहें। आइए भीतर के तर्क वितर्क में लगे न रहें परन्तु अंगीकार को अपनाएं और उस प्रकार से इसका प्रयोग करें जैसा सदैव से इसको प्रयोग करने का विचार था: एक ध्वनि यन्त्र के रूप में जो शैतान और संसार के झूठों को बाहर निकालता है, सत्य के एक मार्गदर्शक और बचाव के रूप में, और खोए हुओं को परिवर्तित करने के साधन के रूप में।

सच्चा अंगीकारवाद सदैव दिखाई देने वाला होता है। यह हमें सदैव आत्मिक युद्ध अउर सम्भवतः शहादत की ओर ले जाता है। यद्यपि, वह वो मिट्टी है जिसमें हृदय परिवर्तन होता है और कलीसिया विकसित होती है। यह सम्भवतः सबसे महत्वपूर्ण सीख है जो मैंने मिशन के क्षेत्र में सीखी है।

एक अविश्वासी संसार में सत्य के शब्दों से ख्रीष्ट का अंगीकार करना कलीसिया के मिशनरी आदेश में कोई बाधा नहीं है। अपेक्षाकृत, यह इस बात का हिस्सा है कि कलीसिया कैसे महान आदेश को पूरा करती है।    

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया

सेबेस्टियन हैक
सेबेस्टियन हैक
सेबेस्टियन हैक हीडलबर्ग,जर्मनी में सेल्बस्टैंडिग इवैंजलिश रिफॉर्मियर्ट किर्च (Selbständige Evangelish-Reformierte Kirche) के आयोजन पास्टर हैं।