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इब्रानियों की (पुनः) खोज करने का समय
25 अगस्त 2022![](https://hi.ligonier.org/wp-content/uploads/2022/09/1920x1080_TT_TheNewTestamentEpistles_9_Wells_Interview.jpg)
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प्राण को आकार देने वाली सुसमाचार की वास्तविकता: डेविड वेल्स के साथ एक साक्षात्कार
1 सितम्बर 2022ख्रीष्ट का परमेश्वरत्व और कलीसिया
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सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का छठवां अध्याय है: नए नियम की पत्रियाँ
ख्रीष्ट के परमेश्वरत्व से अधिक महत्वपूर्ण कलीसिया के जीवन और स्वास्थ्य के लिए कोई भी बाइबलीय सत्य नहीं है। यद्यपि यह सत्य बीज के रूप में पुराने नियम में उपस्थित है (भजन 45:6-7; 110:1; यशायाह 9:6; दानिय्येल 7:13-14), यह पूर्ण रूप से नए नियम में विकसित होता है। मैं ख्रीष्ट के परमेश्वरत्व के लिए पाँच तर्कों को देता हूँ:
पहला, यीशु की पहचान परमेश्वर के समान की जाती है। आजकल के विद्वताओं ने हमें ख्रीष्ट के परमेश्वरत्व पर तर्क करना उसी आधार पर सिखाया जिस पर आरम्भिक मसीहियों ने यीशु को सुस्पष्ट रूप से इस्राएल के एक परमेश्वर के रूप में पहचाना था (1 कुरिन्थियों 8:5-6)।
दूसरा, यीशु ऐसी भक्ति प्राप्त होती है जिसके योग्य केवल परमेश्वर ही है। आश्चर्यजनक रूप से, नया नियम न केवल पुराने नियम के एकेश्वरवाद की पुष्टि करता है, परन्तु साथ ही एक अन्य सत्य की भी पुष्टि करता है: यीशु को धार्मिक भक्ति प्रदान करना उचित और आवश्यक है। उसकी आराधना की जाती है, बपतिस्मा और प्रभु भोज में उसे सम्मानित किया जाता है, स्तुतिगानों में उसकी प्रशन्सा की जाती है, भजनों में उसकी आराधना की जाती है, और वह प्रार्थनाओं का विषय है (मत्ती 28:19; यूहन्ना 5:22-23; 1 कुरिन्थियों 11:20, इफिसियों 5:18-19; इब्रानियों 13:20-21; प्रकाशितवाक्य 22:20)।
तीसरा, यीशु आने वाले युग को लाता है। डेविड वेल्स इस बिन्दु को लेते हैं, “यीशु वह था जिसमें ‘आने वाले युग’ का आभास हुआ, जिसके माध्यम से यह कलीसिया में छुटकारे के साथ उपस्थित है, और जिसके द्वारा इसकी समाप्ति पर इसे वैश्विक रूप से प्रभावी बनाया जाएगा” (द पर्सन ऑफ क्राइस्ट, पृष्ठ 172)।
चौथा, यीशु हमें उद्धार देता है जब हम आत्मिक रूप से उसके साथ एक हो जाते हैं। पिता ने उद्धार की योजना सृष्टि की रचना से पूर्व बनाई, और पुत्र ने इसे प्रथम शताब्दी में पूरा किया। परन्तु हम उस उद्धार का अनुभव तभी करते हैं जब हम विश्वास के माध्यम से अनुग्रह के द्वारा ख्रीष्ट के साथ आत्मिक रूप से एक होते हैं। उसके साथ उसकी मृत्यु, पुनरुत्थान, स्वर्गारोहण, सत्र (session), और दूसरे आगमन में एकता ही केवल उद्धार को लाती है (कुलुस्सियों 3:1-4)। यह स्वयं परमेश्वर द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका है।
पाँचवा, यीशु परमेश्वर के कार्यों को करता है। ख्रीष्ट ने कई कार्य किए जिन्हें केवल परमेश्वर कर सकता है: सृष्टि की रचना, प्रयोजन, न्याय, और उद्धार (कुलिस्सियों 1:16- 20; इब्रानियों 1)।
कलीसिया के लिए ख्रीष्ट के परमेश्वरत्व के महत्व पर अत्याधिक बल देना कठिन है। कलीसिया के जीवन शक्ति इस बात पर निर्भर करती है कि ख्रीष्ट कौन है (परमेश्वर-मनुष्य Godman) और उसने क्या किया (मरा और जी उठा, 1 कुरिन्थियों 15:3-4)।
मसीहियत तभी है यदि ख्रीष्ट का परमेश्वरत्व सत्य है। यदि यीशु ईश्वरीय है, तब उसके दृढ़ कथन सत्य है “कि किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं, क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया है” (प्रेरितों के काम 4:12)। जी. सी. बेर्कोवर इसी बात का अनुकरण करते हैं, जब वह यह तर्क देते हैं कि ख्रीष्ट का परमेश्वरत्व मसीहियत के लिए आवश्यक है।
मसीही धर्म का हृदय इसी अंगीकार में धड़कता है कि यीशु ख्रीष्ट में, वचन के देहधारण में, परमेश्वर वास्तव में हमारे पास आया . . .। प्राचीन कलीसिया में, ख्रीष्ट के विषय में “परमेश्वर के रूप में” बोलने की प्रथा, सीधे नए नियम पर वापस जाती है जहाँ हम मनोहर ध्वनियों को ख्रीष्ट को एक वास्तविक परमेश्वर के रूप में सम्बोधित करते हुए सुनते हैं और न कि नाम के ईश्वर (quasi-God) के रूप में (द पर्सन ऑफ क्राईस्ट में उद्धृत, पृष्ठ 156-157, 161-162)।
रॉबर्ट एल. रेमण्ड ख्रीष्ट के परमेश्वरत्व के महत्व को रेखांकित करते हैं जब वे यह तर्क देते हैं कि इसकी पुष्टि या खण्डन सामान्यतः ख्रीष्ट विज्ञान और विधिवत ईश्वरविज्ञान के हर दूसरे बिन्दु को प्रभावित करता है (देखें उनके द्वारा लिखित जीसस, डिवाईन मसायाह, पृष्ठ 323)। वह यह भी बताते हैं कि यीशु के विषय में किसी का अनुमान लगाना इस जीवन से पश्चात् परिणामों का होना है, जैसा की स्वयं यीशु कहता है: “जब तक तुम विश्वास न करो कि मैं वही हूँ, तुम अपने पापों में मरोगे (यूहन्ना 8:24)। वास्तव में, यीशु दृढ़ कथन करता है: “मार्ग, सत्य, और जीवन मैं ही हूँ। बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता (14:6)।
वेल्स उन लोगों के लिए विनाशकारी प्रभावों पर शोक प्रकट करते हैं जो यीशु के परमेश्वरत्व को अस्वीकारते हैं:
उनके ख्रीष्टों (christs) की प्रशंसा की जा सकती है, परन्तु उनकी आराधना नहीं की जा सकती। वे सम्भवतः धार्मिक भक्ति को प्रेरित करते हों, परन्तु वे मसीही विश्वास को बनाए या समझा नहीं सकते। वे अपने लेखकों के विषय में बहुत कुछ और यीशु के विषय बहुत कम बताते हैं . . .। ये ख्रीष्ट (christs) शक्तिहीन हैं, और उनकी ओर खिचाव सतही है। उनकी की ओर खिचाव बाइबल के ख्रीष्ट की नहीं है (द पर्सन ऑफ क्राइस्ट, पृष्ठ 172)।
पवित्रशास्त्र का सच्चा ख्रीष्ट हमारी प्रशंसा से कही अधिक के योग्य है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ख्रीष्ट वह अनन्त वचन है जिसने नासरत के यीशु में देहधारण कर लिया। वह एक व्यक्ति में परमेश्वर और मनुष्य है और परमेश्वर और मानवजाति के मध्य एकमात्र मध्यस्थ के रूप में आराधना के योग्य है। क्योंकि वह परमेश्वर है, “जो उसके द्वारा परमेश्वर के समीप आते हैं, वह उनका पूरा पूरा उद्धार करने में समर्थ है” (इब्रानियों 7:25)। जैसा कि वेल्स हमें स्मरण कराते हैं, बाइबलीय ख्रीष्ट “वह जो परमेश्वर हमारे साथ था, हमारे पापों की क्षमा का साधन, और हमारे मेलमिलाप का अभिकर्ता है। क्षमा और मेलमिलाप वह है जो हमें केन्द्रीय रूप से चाहिए। हमें यह जानने की आवश्यकता है कि क्षमा करने वाला कोई है, कोई जो हमें क्षमा और चंगा कर सकता है, और इसीलिए वचन देहधारी हुआ था” (द पर्सन ऑफ क्राइस्ट, पृष्ठ 172)। वास्तव में, हमें यह जानने की आवश्यकता है कि देहधारी परमेश्वर हमें क्षमा करता और हमारा मेलमिलाप कराता है। उसकी अनोखी पहचान के कारण और उसके द्वारा किए गए अनोखे कार्य के कारण, कलीसिया यीशु के स्वयं की भविष्यद्वाणी की पूर्ति में खड़ी है: “मैं अपनी कलीसिया बनाऊंगा, और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे” (मत्ती 16:18)।
यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया