इब्रानियों की (पुनः) खोज करने का समय - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
पतरस और यहूदा में आशा
23 अगस्त 2022
ख्रीष्ट का परमेश्वरत्व और कलीसिया
30 अगस्त 2022
पतरस और यहूदा में आशा
23 अगस्त 2022
ख्रीष्ट का परमेश्वरत्व और कलीसिया
30 अगस्त 2022

इब्रानियों की (पुनः) खोज करने का समय

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का पांचवा अध्याय है: नए नियम की पत्रियाँ

नए नियम की सभी पत्रियों में से, कई मसीही को इब्रानियों की पत्री विचित्र और भिन्न प्रतीत होती है। इसमें हम मलिकिसिदक और हारून, स्वर्गदूतों और मूसा, बलिदानों और याजकों के संसार में प्रवेश करते हैं। इसमें बहुत अधिक पुराना नियम है, यह अत्यधिक जटिलताएँ, और यह भ्रमित करने वाली भी प्रतीत होती है।

यदि ऐसा है, तो यह समय है इब्रानियों की (पुनः) खोज करने का। परन्तु कैसे?

बड़े चित्र को देखते हुए

बाइबल की किसी पुस्तक का अध्ययन करते समय प्रथम कार्य है “बड़े चित्रण” को समझने का प्रयास करना। दूसरा सबसे सरल (परन्तु सामान्यतः सबसे अच्छी) रीति है पुस्तक को शीघ्रता से पढ़ना, स्वाभाविक विभाजनों पर ध्यान देना, मुख्य विषयों को अलग करना, और भावार्थ या कथासार की एक संक्षिप्त रूपरेखा लिखना।

टेबलटॉक  के पाठकों के लिए सबसे सरल (वास्तव में दूसरी सबसे अच्छी) रीति है (निस्सन्देहः) के वे अपनी रिफोर्मेशन अध्ययन बाइबल (Reformation Study Bible) से परामर्श लेना। वहाँ हमें एक प्रयास मुक्त रूपरेखा मिलती है।

परन्तु एक समझौता की विधि आरम्भ करने के लिए एक अच्छा स्थान हो सकता है: अपने स्वयं की रूपरेखा का प्रयत्न करें, हमारी अध्ययन बाइबल से परामर्श लें, और फिर नोट्स की तुलना करें।

वास्तव में, इब्रानियों में बड़ा चित्र अत्यन्त स्पष्ट है। सीधे शब्दों में, “यीशु सबसे श्रेष्ठ है।”

यीशु: स्वर्गदूतों से श्रेष्ठ है (अध्याह1-2); मूसा से श्रेष्ठ है (3:1-4:12); याजकों और महायाजकों से श्रेष्ठ है (4:13-7:28); और पुराने नियम के बलिदानों से श्रेष्ठ है (अध्याय 8-10)।

क्योंकि ऐसा है, विश्वास के उन वीरों के समान जो मसीहा के आने की प्रतिक्षा में थे, हमारे लिए आवश्यक है कि: जब हम  अपनी आँखे उसकी ओर लगाए रखते हुए अपने विश्वास में दृढ़ रहें (अध्याय 11-12‌) और नयी वाचा के समुदाय के रूप में एक साथ रहें (अध्याय 13)।

यदि हम छोटी विवरणों में खो गए, तो इब्रानियों की पुस्तक एक लम्बी, चक्रव्यूह के समान लगेगी। परन्तु यदि हम बड़े चित्र को थामे रहें, तो हम देखेंगे कि लेखक ने क्यों यह सोचा कि उसने “संक्षेप में लिखा है” (13:22)।

जगमगाते सितारे

इस ढांचे के भीतर बहुमूल्य खज़ाना पाया जाता है। वह पाँच रत्न यह हैं:

पहला, इब्रानियों यीशु से भरा हुआ पत्र है और उसकी महिमा को दिखाता है। जितना अधिक हम पत्र को पढ़ते हैं, उतना अधिक हमें आभास होता है कि यह स्वर्गदूतों, मूसा, मलिकिसिदक, हारून, या पुरानी वाचा की आराधना के विषय में नहीं है। सच्चाई यह है कि परमेश्वर ने छुटकारे के इतिहास की अवधि को इतना अधिक सुसंगत किया है कि यह सब यीशु के विषय में है।

दूसरा,  इब्रानियों हमें यह देखने में सहायता करता है कि कैसे पुरानी और नयी वाचाओं का सम्बन्ध एकता और विविधता का है। लेखक ने यह आरम्भ में ही बता दिया था: “प्राचीन काल” में परमेश्वर ने नबियों के द्वारा पूर्वजों से बार-बार तथा अनेक प्रकार से बात की। “इन अन्तिम दिनों में” परमेश्वर ने हमसे अपने पुत्र के द्वारा बातें की। इन दोनों कथनों में, बाइबल के सम्पूर्ण सन्देश का सार दिया गया है: पुराने नियम का प्रकाशन अपूर्ण और बहुमुखी है;  यीशु ही पूर्ण और अन्तिम है। उसने परमेश्वर को सिद्धता से प्रकट करता है, क्योंकि “वह उसकी महिमा का प्रकाश और उसके तत्व का प्रतिरूप है” (1:3)।

पुराना नियम प्रतिरूपों और छायाओं से भरा हुआ है (9:23; 10:1)। यीशु ही मूलरूप और वास्तविकता है।

तीसरा, इब्रानियों  ने यीशु की मानवता की वास्तविकता का हृदयस्पर्शी ढंग से वर्णन किया है। आरम्भ में—यदि हम लेवीय व्यवस्था की अपरिचितता में फँस गए—तो सम्भवतः हम इस पर ध्यान न दे पाएँ। परन्तु पुनः पढ़ें, और यह स्पष्ट हो जाएगा।

परमेश्वर का पुत्र हमारे समान हो गया, हमारे मानव मूल को साझा किया, परीक्षा में डाला गया, दुख उठाया, और मृत्यु का स्वाद चखा (2:10, 11, 14, 18)। वह हमारे लिए एक भाई बन गया (पद 17)। इसी लिए वह परीक्षा में पड़ने वालों की सहायता करने में सक्षम है (पद 18)।

परमेश्वर का पुत्र हमारी निर्बलताओं को साझा करता है और वह उसी मानवता को स्वर्ग में ले गया  जिसमें उसने इसका स्वाद चखा था। उसके माध्यम से हम विश्वास के साथ परमेश्वर के सिंहासन के सम्मुख आ सकते हैं, यह जानते हुए कि हमारी निर्बलताओं के लिए वहाँ दया है और हमारी पापमयता के लिए अनुग्रह (4:14-15)।

परमेश्वर का पुत्र प्रार्थना और आँसुओं का मनुष्य बन गया। दुख में उसकी आज्ञाकारिता का अभ्यास किया गया। हम अपने उद्धार के स्रोत के रूप में उस पर भरोसा कर सकते हैं (5:7-9)।

चौथा, इब्रानियों आश्चर्यजनक रूप से यीशु की महिमा की व्याख्या करता है। प्रत्येक अध्याय इस ओर इंगित करता है। केवल बड़े स्थलों को पढ़ने के लिए समय निकालना उपयोगी है। इसमें इब्रानियों 1:3; 2:9; 3:3; 4:14; 5:9; 6:20; 7:22; 8:1; 9:15; 10:12; 11:40-12:2; और 13:8 सम्मिलित है। यीशु “कल, आज और सर्वदा समान है,” अर्थात्, वह ही है जो पुरानी वाचा में अपूर्ण और आरम्भिक रूप से प्रकट हुआ, पूर्णतः नयी वाचा में प्रकट किया गया, और अन्ततः अन्त के दिनों में (eschaton) प्रकट किया जाएगा।

पाँचवा, इब्रानियों हमसे एक बड़ी पास्तरीय संवेदनशीलता से बात करता है। अन्ततः, यह “एक प्रोत्साहना का शब्द” है। यह दुख उठाने, सताव के भय, निराशा के जोखिम, पाप के विरुद्ध हमारे संघर्षों, पीछे हटने की सम्भावनाओं, विवेक की निन्दक ध्वनि से उत्पन्न आत्मिक पक्षाघात, और हमारे आश्वासन में कमी हो सकने की सम्भावनाओं जैसे विषयों में यथार्थवादी है। यह ईश्वरविज्ञान में कथित हर एक आत्मिक रोग का उपचार है जिसे समृद्ध जटिलता से सम्बन्धित महान सादगी के रूप में चिन्हित किया गया है: अपनी आँखे यीशु पर लगाएँ, जो हमारी बुलाहट का प्रेरित और महायाजक, हमारे विश्वास का कर्ता और सिद्ध करने वाला (3:1, 12:2)। सब कुछ इस प्रकाश में देखें कि यीशु कौन है, उसने क्या किया है, और वह आज भी क्या कर रहा है। आप वहाँ त्रुटि नहीं करेंगे।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया

सिनक्लेयर बी. फर्गसन
सिनक्लेयर बी. फर्गसन
डॉ. सिनक्लेयर बी. फर्गसन लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ के एक सह शिक्षक हैं और रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी विधिवत ईश्वरविज्ञान के चान्सलर्स प्रोफेसर हैं। वह मेच्योरिटी नामक पुस्तक के साथ-साथ कई अन्य पुस्तकों के लेखक हैं।