शिष्य अपने बच्चों की शिष्यता करते हैं - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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शिष्य अपने बच्चों की शिष्यता करते हैं

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का नोवां अध्याय है: शिष्यता

प्रभु ने परिवारों को रचा शिष्यों की उन्नति के लिए एक अनोखे स्थान के रूप में। माता-पिता को व्यवस्थाविवरण 6:6-7 में आज्ञा दी गई है परमेश्वर के वचनों के सिखाने की आज्ञा दी गई है “यत्न पूर्वक अपने बाल-बच्चों को सिखाना, तथा अपने घर में बैठे, मार्ग पर चलते और लेटते तथा उठते समय उनकी चर्चा किया करना।” नए नियम में, जब एक घर का मुखिया एक शिष्य था, तो उसके परिवार के लिए इसका प्रभाव था (लूका 19:9, 1 कुरिन्थियों 7:14, 2 तीमुथियुस 1:5)। इफिसियों 6:4 में, बच्चों की शिष्यता करने के लिए सीधी आज्ञा दी गयी है, “पिताओं, अपने बच्चों को क्रोध न दिलाओ, वरन् प्रभु की शिक्षा और अनुशासन में उनका पालन-पोषण करो।” प्रभु निश्चित रूप से अपने शिष्यों को बुलाता है कि वे अपने बच्चों की शिष्यता करें।

     नियमित शिष्यता आरम्भ करने के लिए कभी भी समय से पहले नहीं होता है। छोटे बच्चों के साथ भजन और स्तुति गीत गाएं और हर दिन पारिवारिक रीति से बाइबल को पढ़ने और प्रार्थना करने के लिए समय निर्धारित करें। समय के साथ, उनको पवित्रशास्त्र के पद याद करना सिखाए तथा सैद्धान्तिक प्रश्नोत्तरियों का परिचय कराएं (भजन 119:9-11)। प्रभु के दिन की आराधना को हर्षित बनाएं और उसे एक प्राथमिकता बनाएं। प्रायः बातें करें परमेश्वर के वचन के बारे में,  सृष्टि में उसके कार्यों के बारे में, उसके उपायों के बारे में, और उन प्रार्थनाओं के बारे में जिनका उत्तर मिला है । ये अभ्यास उनके आने वाले जीवन के लिए मंच को तैयार करेंगी।

जैसे बच्चे बढ़ते हैं, तो शिष्यता को प्रतिदिन के जीवन के साथ और भी अधिक जुड़नी चाहिए। इफिसियों 6:4 में “प्रशिक्षण” के अर्थ में , विकल्पों को सकरा करना या सीमाओं को स्थापित करना सम्मिलित है। बच्चों को परमेश्वर के वचन पर आधारित नियमों की आवश्यकता होगी ताकि वे आज्ञाकारिता और आज्ञा ना मानने के परिणामों को सीख सकें। इस प्रक्रिया को निरन्तर सम्बन्ध को तोड़ने की ओर नहीं जाना चाहिए, परन्तु इस समझ में बढ़ाना चाहिए कि अनुशासन प्रेमपूर्ण है (इब्रानियों 12:3-11)। उन्हें दिखाने का प्रयास करें कि कैसे प्रत्येक परिस्थिति ले जा सकती है या तो अलगाव की ओर या ख्रीष्ट के क्रूस और मेल-मिलाप की ओर।

       जैसे-जैसे बच्चे बढ़ते जाते हैं, वार्तालाप शिष्यता का सबसे महत्वपूर्ण पहलू बन जाता है। उद्धारकर्ता ने अपने शिष्यों से प्राप्त कई प्रश्नों के उत्तर दिया, और वैसे ही माता-पिता को भी उत्तरों का एक प्राथमिक स्रोत बनना चाहिए। यह चुनौती पूर्ण हो सकता है, इसलिए उत्तर देने, खोज करने, या स्वयं के लिए परामर्श लेने के लिए समय लेने से नहीं डरें, किन्तु प्रतिउत्तरों को देने में तत्पर रहें। अपने घर को ईश्वरीय वार्तालाप का स्थान बनाएं, यहाँ तक कि स्वस्थ्य वाद-विवाद भी करें। विशेष रूप से इस सूचना के युग में, उन्हें सिखाएं कि वे अपने स्वयं के लिए सही उत्तर कहां से खोज सकते हैं, जिसमें उन्हें अपने अगुवों के साथ सम्बन्धों को सही रखने में सहायता करना सम्मिलित है। जब प्रश्न कठिन हो जाते हैं, तो अपने बच्चों के साथ बुद्धि और पवित्र आत्मा के लिए प्रार्थना करें (लूका 11:13; याकूब 1:5)।

ख्रीष्टिय घर को एक पौधा-घर के रूप में चित्रित किया जा सकता है जहां बच्चे कुछ समय के लिए छोटे पौधों के रूप में बढ़ते हैं। उन्हें वचन के द्वारा पानी दिया जाता है और पोषित किया जाता है, लगाया और काटा-छाँटा जाता है, और एक स्तर तक वे सुरक्षित रहते हैं। एक माता-पिता होने के नाते आपकी बुलाहट है कि आप शिष्यता और  संरक्षण के लिए तत्पर रहें, परन्तु इस बात से प्रोत्साहित भी होना चाहिए कि पवित्र आत्मा प्रायः हमारी निश्चित असफलताओं के बाद भी पवित्र घरानों को विश्वास का पोषण करने के लिए उपयोग करता है। इन सबसे ऊपर, उसके कार्य पर निर्भर रहें, और यह प्रार्थना करने में विश्वासयोग्य रहें कि प्रभु उन्नति देगा।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
रॉबर्ट वैनडूडेवार्ड
रॉबर्ट वैनडूडेवार्ड
रेव्ह. रॉबर्ट वैनडूडेवार्ड पोवास्सन, ओन्टारिया में होप रिफॉर्मड् चर्च के पास्टर हैं।