शिष्य, शिष्य बनाते हैं - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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शिष्य, शिष्य बनाते हैं

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का आठवां अध्याय है: शिष्यता

तीतुस 2 नई वाचा के जोशपूर्ण  जीवन का वर्णन करता है जहाँ पर पास्टर खरी शिक्षा सिखाता है और एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी की शिष्यता करती है; और कई बार शिष्यता लिंग-विशेष पर आधारित होती है, “वृद्ध स्त्रियाँ . . . अच्छी बातें सिखाने वाली हों और युवा स्त्रियों को प्रोत्साहित करें (पद 3-4)।

स्त्रियाँ भली बातों को सिखाती हैं उस खरी शिक्षा पर पुनः बल देते हुए जो हमारे पुलपिट से सिखाई जाती है। हम यह दिखाने के द्वारा प्रशिक्षित करते हैं कि खरी शिक्षा कैसे हमारे दृष्टिकोण और कार्यों को प्रभावित करता है और बदल देता है। पौलुस ने इस शिक्षा और सम्बन्ध पर आधारित शिष्यता का पालन किया। वह थिस्सलुनीकियों को लिखता है, “तुम्हारे मध्य हमने ऐसी विनम्रता दिखाई जैसे एक दूध पिलाने वाली मां अपने बच्चों का लालन-पालन कोमलता से करती है। . . . हमें प्रसन्नता हुई कि न केवल तुम्हें परमेश्वर का सुसमाचार सुनाए वरन् तुम्हारे लिए अपने प्राणों को भी दे दें” (1 थिस्सलुनीकियों 2:7-8)।

स्त्रियाँ आत्मिक रीति से स्त्रियों की माताएं बनती हैं सुसमाचार और हमारे जीवनों को बांटने के द्वारा जब हम उन्हें प्रोत्साहित और तैयार करते हैं परमेश्वर की महिमा के लिए जीने के लिए। यह कलीसिया के जीवन में इतना महत्वपूर्ण है कि जब परमेश्वर ने अपने पुत्र को संसार में भेजा, तो उसने मसीहा की माता बनने के लिए चुनी हुई युवती को शिष्यता में बढ़ाने के लिए एक वृद्ध महिला को उपलब्ध कराया। इलीशिबा और मरियम तीतुस 2 की शिष्यता की प्रणाली को प्रकट करती हैं।

जब इलीशिबा गर्भवती हुई, तो उसने कहा, “इन दिनों में मुझ पर कृपा-दृष्टि करके, मनुष्य में मेरे अपमान को दूर करने के लिए ही प्रभु ने मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया है” (लूका 1:25), यह प्रार्थना हन्ना की प्रार्थना की गूँज है, “हे सेनाओं के यहोवा, यदि तू अपनी दासी के दुख पर सचमुच ध्यान करे” (1 शमूएल 1:11)। 

स्वर्गदूत का मरियम को सन्देश के बाद, मरियम “शीघ्रता से” इलीशिबा के घर गई। जवान स्त्री गई; और वृद्ध स्त्री ने स्वागत किया।

 “इलीशिबा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण थी” (लूका 1:41)। परमेश्वर हमें शिष्य बनने और बनाने का सामर्थ्य देता है।

“धन्य है वह स्त्री जिसने विश्वास किया . . . जो कुछ प्रभु ने उससे कहा” (पद 45)। इलीशिबा मरियम को सिखाती है कि परमेश्वर के वचन का पालन करने से धन्य होने का आभास मिलती है।

जब मरियम दैनिक कार्यों में इलीशिबा की सहायता करती होगी, जब वे पत्नी और माँ होने के बारे में बात कर रहीं होंगी, यह कल्पना करना कठिन नहीं है कि इलीशिबा बार बार कहती होगी कि “मरियम, यहोवा ने मुझ पर दृष्टि की…यहोवा ने मुझ पर दृष्टि की…उसने मेरे अपमान को दूर किया है।” और मरियम के गीत में, उसकी आत्मिक माता, अर्थात् इलीशिबा के साथ एक सुन्दर निरन्तरता दिखाई देता है: “मेरा प्राण प्रभु की बढ़ाई करता है क्योंकि उसने अपनी दासी की दीन-हीन दशा पर कृपा दृष्टि की है” (पद 46 और 48)।

मरियम इलीशिबा के घर से परमेश्वर की महिमा करने के लिए तैयार होकर चली गई, यहां तक कि क्रूस के समय भी जब पिता ने मरियम के पुत्र से मुंह फेर लिया था क्योंकि उसके ऊपर मरियम और हमारे पाप लदे हुए थे, ताकि हम परमेश्वर की महिमा के लिए कोरम डेया, अर्थात् उसकी उपस्थिति में रह सकें। हम उस कहानी को सुनाते रहते हैं—उसने मुझ पर कृपा-दृष्टि की। परमेश्वर हमें ऐसे शिष्य होने के लिए बुलाता है जो शिष्यों को बनाते हैं। वाचाओं की यह निरन्तरता आकर्षक है। परिणाम भी आकर्षक है “जिससे कि परमेश्वर के वचन का निरादर न हो” (तीतुस 2:5)।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
सूज़न हन्ट
सूज़न हन्ट
सूज़न हन्ट एक पत्नि, माता, दादी, और पूर्व निर्देषक हैं प्रेस्बिटेरियन चर्च ऑफ अमेरिका की महिलाओं की सेवा का। वे लेखक हैं स्पिरिछुअल मदरिंग और टाइटस 2 टूल्स का, जो व्यवहारिक सुझाव देती है तीतुस 2 शिष्यता सेवकाई और अगुवों के प्रशिक्षण को बनाने और लागू करने के लिए।