शिष्य प्रभु में अपने माता-पिता की आज्ञा मानते हैं - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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शिष्य प्रभु में अपने माता-पिता की आज्ञा मानते हैं

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का दसवां अध्याय है: शिष्यता

यदि, वास्तव में, एक शिष्य एक सीखने वाला है, तो फिर शिष्यता के लिए माता-पिता के साथ बच्चों के सम्बन्ध से अधिक अनुकूल कोई और सम्बन्ध नहीं है। परिवार लगभग प्रत्येक समय, संस्कृति और धर्म में पहली शासन-प्रणाली है। जीवन का आरम्भ एक सम्बन्ध और अधिकार दोनों के साथ होता है। इस प्राकृतिक अर्थव्यवस्था में, इच्छुक समूह, पारिवारिक प्रेम, आत्महित, परम्परा और समुदाय के अनुसार एक ऐसे वातावरण का निर्माण करने के लिए कार्य करते हैं जो स्वास्थ्य, वृद्धि, शिक्षा और प्रौढ़ता की ओर परिपक्वता को बढ़ावा देता है। किन्तु यह सामान्य व्यवस्था एक विश्वस्तरीय मानक को पूरा नहीं करती है। माता-पिता कठोर, कोमल, व्यवहारिक, आदर्शवादी, ध्यान रखने वाले, ध्यान न रखने वाले, संकीर्ण या खुले विचार के हो सकते हैं—इससे पहले कि वे आपके लिए अपने लक्ष्यों से सम्बन्धित एक शब्द भी कहें।

किन्तु ख्रीष्टिय घर के पास  विधि और लक्ष्य दोनों हैं जो परमेश्वर द्वारा प्रकट किए गए वचन में हैं। इफिसियों 6:1-4 के सरल रूप पर विचार कीजिए:

“हे बालको, प्रभु में अपने माता-पिता की आज्ञा मानो, क्योंकि यह उचित है। अपने माता-पिता का आदर कर—यह पहली आज्ञा है जिसके साथ प्रतिज्ञा भी है—जिससे  कि तेरा भला हो और तू पृथ्वी पर बहुत दिन जीवित रहे। पिताओ, अपने बच्चों को क्रोध न दिलाओ, वरन् प्रभु की शिक्षा और अनुशासन में उनका पालन-पोषण करो।” 

आज्ञा: प्रभु में आज्ञा मानो। मूल्यांकन: यह उचित है। प्रतिज्ञा: समृद्धि और जीवन। विधि: प्रभु की शिक्षा और अनुशासन में। तरीका: बिना क्रोध के। यह शिष्यता है: उन बातों का पालन करना सीखना जो सही और भले हैं शिक्षण, उदाहरण, चेतावनी, और अभ्यास के द्वारा।

बच्चे के दृष्टिकोण से, शिष्यता में आगे बढ़ाने के लिए जीवन में कोई अन्य व्यवस्था इतनी अनुकूल नहीं जितना की घर है। यह स्थान बदलने की मांग नहीं करता है, यह आपका कुछ खर्च नहीं कराता है और आपके पास कोई अन्य शिक्षक नहीं होगा कि आपकी सफलता में स्वयं इतने रुचिकर हैं। ख्रीष्टीय शिष्यों के घर में केवल बड़े होने में, यदि आप कुछ सीख सकते हैं, तो आप लगभग निश्चित रूप से निष्ठा, सम्मान, अधीनता, और प्रभु की सेवा करना तो सीखेंगे ही।

इन सब को माता-पिता और बच्चे के द्वारा वाचा के दायित्वों के सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए। व्यवस्थाविवरण 6:4–9 के प्रतिमान का पालन करें: यह ईश्वरविज्ञान के साथ आरम्भ होता है (“यहोवा एक ही है”)। यह सम्बन्ध से बात करता है (“अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम कर”)। यह निर्देश देता है, (“आज मैं जिन वचनों की आज्ञा तुझे दे रहा हूँ वे तेरे मन में बनी रहें”)। यह पीढ़ियों पर लागू होता है (“और तू उनको यत्नपूर्वक अपने बाल-बच्चों को  सिखाना”)। और यह कार्यप्रणाली प्रदान करता है (“बैठे . . . चलते . . . लेटते उनकी चर्चा किया करना”)। जहां संसार के परिवारों के पास शिष्यता का एक सामान्य प्रकार है, वहीं ख्रीष्टिय घरों में सुसमाचार पर आधारित शिष्यता है, जो आधारित है ख्रीष्ट के उद्धार देने के कार्य पर, उसके वचन की सत्यता पर, उसके राज्य की व्यवस्था पर, और प्रेम के स्वभाव पर। यह शिष्यता भले के लिए है (नीतिवचन 1:9)। परमेश्वर माता-पिताओं को यह सिखाने के लिए बाध्य करता है। परमेश्वर बच्चों को अपने माता-पिता से इसे सीखने के लिए बाध्य करता है।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
स्कॉटी ऐंडर्सन
स्कॉटी ऐंडर्सन
रेव्ह स्कॉटी ऐंडर्सन सिम्प्सनविल, एस.सी के वुडरफ रोड प्रेस्बिटेरियन चर्च परिवारों और जवानों के सहायक-पास्टर हैं।