राज्य में प्रवेश करना - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
The Heavenly Kingdom and the Earthly Kingdom
स्वर्गीय राज्य और संसारिक राज्य
11 अक्टूबर 2024
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साधारण आशीषें
16 अक्टूबर 2024
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राज्य में प्रवेश करना

Entering the Kingdom

पहाड़ी उपदेश का अधिकाँश भाग परमेश्वर के राज्य में जीने के विषय में यीशु की शिक्षा है। इसमें स्पष्ट और विशिष्ट नैतिक शिक्षा सम्मिलित है। यह विशिष्ट नैतिक शिक्षा मत्ती 7:12 के सुनहरे नियम के साथ लगभग समाप्त होती है। उस बिन्दु से लेकर उपदेश के अन्त तक (मत्ती 7:13-27), यीशु चार स्मरणीय अनुच्छेद-स्तर की टिप्पणियाँ देता है। चारों में पाठक पर गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता पर बल दिया जाता है कि क्या वह वास्तव में परमेश्वर के राज्य के राजा पर विश्वास करता है या नहीं।

ये चार टिप्पणियाँ एक बड़ा चुनाव प्रस्तुत करती हैं—व्यक्ति या तो राज्य में है या फिर नहीं है। हाँ, जीवन में कई परिस्थितियाँ हैं जिनमें यह जानना कठिन होता है कि क्या करना उचित है और क्या नहीं। परन्तु इस विषय के लिए, कोई अस्पष्टता नहीं है; कोई तीसरा मार्ग नहीं है। या तो व्यक्ति त्रिएक परमेश्वर के लिए जीता है या फिर नहीं।

पहली स्मरणीय टिप्पणी सकरे और चौड़े मार्ग में तुलना करती है (मत्ती 7:13-14)। सच्चा विश्वासी सकरे फाटक से राज्य में प्रवेश करता है और अपने अन्तिम घर तक सकरे मार्ग पर बढ़ता जाता है। फाटक और मार्ग का सकरापन उस पर चलने को कठिन बनाता है। रूपक के स्तर पर, सकरे मार्ग पर बड़ी मात्रा में सम्बन्धियों के साथ और सामान के साथ यात्रा करने में दीवारों और बाड़ों से टकराना सम्मिलित होता है। वास्तविकता के स्तर पर, यीशु ध्यान दे रहे हैं कि परमेश्वर के राज्य के मार्ग में कठिनाइयाँ हैं। उदाहरण के लिए, जैसा कि यीशु ने पहले कहा था, सकरी सड़क पर चलने वालों को यीशु पर उनके विश्वास के लिए अपमानित और सताया जा सकता है (मत्ती 5:11)। सामान्य रूप से, सकरे सड़क पर भीड़ नहीं होगी। “परन्तु छोटा है वह फाटक और सकरा है वह मार्ग जो जीवन की ओर ले जाता है और थोड़े ही हैं जो उसे पाते हैं” (मत्ती 7:14)।

इसके विपरीत, रूपक स्तर पर, चौड़ा फाटक और मार्ग यात्रा को सरल बनाते हैं। व्यक्ति बहुत सारा सामान ले जा सकता है, और कोई समस्या नहीं है। वास्तव में, भले ही इस मार्ग पर बहुत से लोग होंगे, यह इतना चौड़ा है कि कोई भीड़भाड़ या दूसरों के सामान से टकराना नहीं होगा। वास्तविकता के स्तर पर, यीशु ध्यान दे रहा है कि ऐसे लोग भी हैं जो वास्तव में उस पर भरोसा नहीं करते हैं। अल्पावधि में, यह एक सरल विकल्प है जिसे कई लोग चुनते हैं, परन्तु अन्त में, यह भयानक परिणाम की ओर ले जाता है। “क्योंकि विशाल है वह फाटक और चौड़ा है वह मार्ग जो विनाश की ओर ले जाता है, और बहुत से है जो उस से प्रवेश करते है” (मत्ती 7:13)।

दूसरा, राज्य के लोगों के लिए यीशु ने एक कठिनाई को बताता है (मत्ती 7:15-20)। उन पर झूठे नबियों का आक्रमण किया जाएगा। वास्तव में, ये झूठे नबी राज्य के सदस्य प्रतीत होंगे। परन्तु सच में, वे भेड़ के भेष में भेड़िए होंगे। यीशु कहता है कि उनकी बुरी शिक्षा और स्वार्थी कार्यों का “फल” अन्ततः दिखाएगा कि वे वास्तव में कौन हैं। वह अपनी बात कहने के लिए कृषि सम्बन्धी रूपकों का उपयोग करता है। अंगूर कंटीली झाड़ियों से नहीं तोड़े जाते, और अंजीर ऊँटकटारों से नहीं तोड़े जाते। अच्छे फल स्वस्थ पेड़ों से आते हैं, रोगग्रस्त पेड़ों से नहीं। बुरे फल रोगग्रस्त पेड़ों से आते हैं, स्वस्थ पेड़ों से नहीं। अन्त में, “प्रत्येक पेड़ जो अच्छा फल नहीं देता, काटा और आग में झोंक दिया जाता है” (मत्ती 7:19)।

यद्यपि बात झूठे नबियों से सम्बन्धित है, यीशु सूक्ष्मता से यह भी बल दे रहा है कि राज्य के सभी सच्चे सदस्य अच्छे “फल” उत्पन्न करेंगे (लूका 6:43-45 देखें)। वे विश्वास करेंगे और उचित कार्य करेंगे। झूठे नबी का चिह्न और राज्य के झूठे सदस्य का चिह्न एक ही है। हाँ, सच्चे विश्वासी पाप करते हैं, परन्तु सामान्य रूप से, उनका जीवन सच्चे विश्वास और अच्छे कार्य से चिन्हित होना चाहिए। जिस प्रकार झूठे नबी का चिह्न और झूठे सदस्य का चिह्न एक ही है, उसी प्रकार उनका अन्तिम गंतव्य भी—“काट दिया जाना और आग में फेंक दिया जाना”—एक ही है। यीशु पर भरोसा न करने के परिणाम बहुत बड़ा हैं।

तीसरा, मत्ती 7:21-23 में, यीशु उन लोगों के विषय में बात करता है जो वास्तव में उस पर विश्वास नहीं करते हैं। न्याय के समय, वे कह सकते हैं, “हे प्रभु, हे प्रभु,” और उन कार्यों की ओर इंगित करेंगे जो उन्होंने कहने के लिए परमेश्वर के लिए किए थे। दुर्भाग्य से, वे इन विनाशकारी शब्द सुनेंगे, “मैंने तुम को कभी नहीं जाना; हे कुकर्मियों, मुझ से दूर हटो” (मत्ती 7:23)। न्याय के समय, केवल दो समूह हैं: वे जो प्रभु के साथ हैं और वे जो उससे अलग हो गए हैं।

यीशु इस बात को जानता है कि ऐतिहासिक स्थिति में उन्हें सुनने वाले और बाद में इस पाठ को पढ़ने वाले एक मिश्रित समूह हैं। अधिकाँश स्वयं को सच्चा विश्वासी मानते हैं; यद्यपि, वास्तव में, बहुत से लोग नहीं हैं। यीशु ने अपनी टिप्पणी प्रत्येक व्यक्ति को यह विचार करवाने के लिए की कि क्या वह वास्तव में उस पर विश्वास करता है और क्या उसका जीवन उस वास्तविकता को प्रतिबिम्बित करता है। स्वर्ग के राज्य में कौन प्रवेश करेगा? “वह जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है” (मत्ती 7:21)।

कुछ लोग यीशु की बात को गम्भीरता से नहीं लेंगे—वे कलीसिया जाते हैं या “आत्मिक” हैं, और यह उनके लिए पर्याप्त है। अन्य लोग इस टिप्पणी को हृदय से लेंगे। कुछ लोग, स्वयं पर पुन: विचार करेंगे, और पहली बार सचमुच विश्वास करेंगे। जो लोग पहले से ही विश्वासी हैं, उनके लिए अपने बुलावे और चुनाव की पुष्टि करने के लिए स्वयं का पुनर्मूल्यांकन करना सर्वदा उचित होता है (2 पतरस 1:10)।

यीशु की चौथी और अन्तिम टिप्पणी बहुत प्रसिद्ध है (मत्ती 7:24-27)। मुझे यह मेरे बचपन के संडे स्कूल और छुट्टियों की बाइबल स्कूल (Vacation Bible School) के दिनों से स्मरण है। जॉन केल्विन भी इससे प्रभावित हुए थे। उन्होंने इसे “एक आकर्षक उपमा” कहकर उजागर किया।

यीशु यह घोषणा करते हुए आरम्भ करता कि राज्य का व्यक्ति वह है “जो कोई मेरे इन वचनों को सुनकर उन पर चलता है” (मत्ती 7:24)। यह एक बुद्धिमान व्यक्ति है। एक मूर्ख व्यक्ति यीशु के शब्दों को सुन सकता है परन्तु वास्तव में उस पर विश्वास नहीं करता या उनका पालन नहीं करता। यद्यपि, जो बात स्मरणीय है, वह है दोनों की तुलना करने के लिए यीशु का रूपक। बुद्धिमान व्यक्ति अपना घर चट्टान पर बनाता है। मेंह, बाढ़ और हवा इसके विपरीत आते हैं। “परन्तु वह नहीं गिरा, क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गई थी” (मत्ती 7:25)। मूर्ख व्यक्ति अपना घर रेत पर बनाता है। वही मेंह, बाढ़ और हवा इसके विरुद्ध आती है, परन्तु इस मामले में, घर गिर गया,“और पुर्णत: ध्वस्त हो गया” (मत्ती 7:27)। पुन:, दो विकल्प। चट्टान या बालू पर निर्माण करें—अर्थात, यीशु पर विश्वास करें या नहीं। ध्यान दें कि यीशु पहाड़ी उपदेश को बालू पर बने घर के साथ समाप्त करता है, और यहाँ तक ​​कि इस चुनाव के विनाश पर भी बल देता है—“और पुर्णत: ध्वस्त हो गया।”

जिनके पास सुनने के कान हैं उनके लिए मनोहर और अद्भुत रूप से, यीशु सभी चार टिप्पणियों में स्वयं की बात करता है। वह पद 13-14 में सकरा मार्ग है। “मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ” (यूहन्ना 14:6)।

मत्ती 7:15-20 में, यीशु झूठे नबियों के विरुद्ध चेतावनी देता है, और वह एक सच्चे नबी के रूप में ऐसा करता है। इसे थोड़ी देर बाद चट्टान/बालू रूपक में स्पष्ट रूप से दिखाया गया है। किसी का जीवन चट्टान या बालू पर बना है या नहीं, यह इस पर निर्भर करता है कि कोई “[उसके] शब्दों को सुनता है और उनका पालन करता है” (मत्ती 7:24)। इसके अतिरिक्त, यीशु कोई भेड़िया नहीं है परन्तु सच्चा चरवाहा है जो भेड़ों की चिन्ता करता है: “मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ सुनती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं” (यूहन्ना 10:27)।

मत्ती 7:21-23 में यीशु स्वयं को “प्रभु” और न्यायी के रूप में सम्बोधित करता है। इसके अतिरिक्त, वह परमेश्वर को “मेरा पिता” कहता है, जिसका अर्थ है कि वह परमेश्वर का अद्वितीय पुत्र है। बाद में यीशु स्वयं के विषय में और न्याय के विषय में कहता है, “पर जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, . . . और सब जातिया उसके सम्मुख एकत्रित की जाएगी; और वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा—जैसे चरवाहा भेड़ों को बकरियो से अलग करता है” (मत्ती 25:31-32)।

अन्त में, मत्ती 7:24-27 में, जैसा कि ऊपर बताया गया है, नबी होने के अतिरिक्त, यीशु मूलभूत चट्टान है: “और वह चट्टान ख्रीष्ट है” (1 कुरिन्थियों 10:4)। “क्योंकि उस नींव को छोड़ जो पड़ी है–और वह यीशु ख्रीष्ट है–कोई दूसरी नींव नहीं डाल सकता” (1 कुरिन्थियों 3:11)। ध्यान दें कि यीशु स्वयं को आधार मानकर अन्त करता है। इस आधार पर विश्वास करने की आवश्यकता है। हमारे सभी कार्य जो राज्य में होने का प्रमाण हैं, अन्ततः केवल नींव, चट्टान, प्रभु यीशु ख्रीष्ट के अनुग्रह के कारण हैं।

हाँ, एक भाव में धार्मिक विकल्प केवल दो नहीं परन्तु अनको हैं। परन्तु सही भाव में, वास्तव में केवल दो ही विकल्प हैं: ख्रीष्ट वाला विकल्प और ख्रीष्ट रहित विकल्प। ख्रीष्ट रहित विकल्प में कई उपसमुच्चय हैं, परन्तु वे सभी एक विकल्प में समा जाते हैं जो ख्रीष्ट का विरोध करता है। यीशु इस बात की घोषणा करता है कि केवल सकरा मार्ग या चौड़ा मार्ग है; केवल अच्छा फल वाला अच्छा पेड़ या बुरा फल वाला निकम्मा पेड़ ही होता है; केवल वे जो उसके साथ रहेंगे या जो उससे दूर चले जाएँगे; और अन्ततः, केवल वे ही हैं जो चट्टान पर या बालू पर निर्माण करते हैं। दो विकल्प: ख्रीष्ट या ख्रीष्ट रहित।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

रॉबर्ट जे. कारा
रॉबर्ट जे. कारा
डॉ. रॉबर्ट जे. कारा शार्लट्ट, नॉर्थ कैरोलायना में रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनेरी में महाविद्यालय के अध्यक्ष, मुख्य शैक्षिक अधिकारी, और नए नियम के प्राध्यापक हैं। वे पौलुस पर नया दृष्टिकोण की नींव तो तोड़ना (Cracking the Foundation of the New Perspective on Paul) और इब्रानियों की पुस्तक पर एक आगामी टीका के लेखक हैं।