मार्टिन लूथर के ईश्वरविज्ञान के 4 निहितार्थ - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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मार्टिन लूथर के ईश्वरविज्ञान के 4 निहितार्थ

परमेश्वर की सम्प्रभुता, अनुग्रह के द्वारा उद्धार, विश्वास के द्वारा धर्मीकरण, और ख्रीष्ट के साथ मिलन में नया जीवन ख्रीष्टीय जीवन जीने को कैसे प्रभावित करते हैं? मार्टिन लूथर के लिए इनके चार निहितार्थ हैं:

1. ख्रीष्टीय व्यक्ति धर्मी ठहराया गया है और फिर भी पापी है।

पहला निहितार्थ यह ज्ञान है कि ख्रीष्टीय विश्वासी सिमुल इयुस्टुस एट पेक्केटोर (simul iustus et peccator) है, अर्थात् एक ही समय में धर्मी ठहराया गया और फिर भी पापी है। यह सिद्धान्त, जिसकी ओर सम्भवतः लूथर को जॉन टॉलर की पुस्तक थियोलॉजिया जर्मैनिका (Theologia Germanica) को प्रेरित किया, एक ऐसा सिद्धान्त था जिसने बहुत स्थिरता प्रदान किया: स्वयं में, मैं केवल एक पापी को देखता हूँ; परन्तु जब में ख्रीष्ट में स्वयं को देखता हूँ, मैं एक ऐसे व्यक्ति को देखता हूँ जो ख्रीष्ट की सिद्ध धार्मिकता के द्वारा धर्मी गिना जाता है। इसलिए इस प्रकार का व्यक्ति परमेश्वर के सामने यीशु ख्रीष्ट के समान धर्मी के रूप में खड़ा हो सकता है—क्योंकि वह केवल ख्रीष्ट की धार्मिकता में धर्मी है। यहाँ हम सुरक्षित खड़े होते हैं।

2. ख्रीष्ट में परमेश्वर हमारा पिता बन गया है।

दूसरा निहितार्थ यह प्रकाशन है कि ख्रीष्ट में परमेश्वर हमारा पिता बन गया है। हमें ग्रहण किया गया है। लूथर के टेबल टॉक (Table Talk) के एक बहुत सुन्दर विवरण को, जॉन श्लैगिनहौफेन ने लिखा:

मेरी पत्नी केटी जितनी मित्रतापूर्ण रीति से मेरे बेटे मार्टिन से बात करती है, परमेश्वर उससे अधिक मेरे प्रति मित्रतापूर्ण व्यवहार करता है। न तो केटी और न ही मैं अपने बच्चे की आँख निकाल सकते हैं या सिर काट सकते हैं। न ही परमेश्वर ऐसा कर सकता है। परमेश्वर अवश्य ही हमारे प्रति बहुत धीरज धरता है। उसने इस बात के लिए हमें प्रमाण दिया है, और इसलिए उसने अपने पुत्र को हमारी देह में भेजा जिससे कि हम सर्वश्रेष्ठता के लिए उसकी ओर देखें।

3. सम्पूर्ण मसीही जीवन में क्रूस उठाया जाना होगा

तीसरा, लूथर बल देता है कि ख्रीष्ट में जीवन अवश्य ही क्रूस के अधीन जीवन है। यदि हमारा मिलन ख्रीष्ट के साथ हुआ है, तो हमारे जीवन उसके जीवन की पद्धति पर होंगे। सच्ची कलीसिया और सच्चे मसीही के लिए मार्ग महिमा के ईश्वरविज्ञान (थियोलॉजिया ग्लोरै-theologia gloriae) के द्वारा नहीं, वरन् क्रूस के ईश्वरविज्ञान (थियोलॉजिया क्रूसिस-theologia crucis) के द्वारा है। यह हमें भीतरी रीति से प्रभावित करता है जब हम स्वयं के प्रति मरते हैं और बाहरी रीति से जब हम कलीसिया के दुःखों में सहभागी होते हैं। मध्यकालीन महिमा के ईश्वरविज्ञान के स्थान पर क्रूस के ईश्वरविज्ञान को आना होगा। भले ही कलीसियाई विधियों के स्वभाव के समझ के विषय में लूथर और कैल्विन इस बात में सहमत हैं। यदि ख्रीष्ट की मृत्यु और पुनरुत्थान में उसके साथ हमारा मिलन हुआ है, और अपने बपतिस्मा के द्वारा चिन्हित किए गए हैं (जैसा कि पौलुस रोमियों 6:1-14) में सिखाता है, तो फिर सम्पूर्ण मसीही जीवन में क्रूस उठाया जाना होगा:

ख्रीष्ट के क्रूस का अर्थ वह लकड़ी का टुकड़ा नहीं है जिसे ख्रीष्ट ने अपने कंधों पर उठाया था और जिस पर उसे कीलों से ठोका गया था, परन्तु इसका अर्थ विश्वासयोग्य विश्वासियों के सभी दुःख हैं, जिनका दुःख उठाना ख्रीष्ट का दुःख उठाना है। “ख्रीष्ट के दुःख हमारे लिए अधिकाई से हैं” (2 कुरिन्थियों 1:5)। “अब मैं अपने दुःखों में जो तुम्हारे लिए उठाता हूँ, आनन्द करता हूँ और ख्रीष्ट के क्लेशों की घटी को उसकी देह अर्थात् कलीसिया के लिए अपने शरीर में पूर्ण करता हूँ” (कुलुस्सियों 1:24)। ख्रीष्ट के क्रूस का अर्थ वे सब दुःख हैं जिन्हें कलीसिया ख्रीष्ट के लिए उठाती है।

लूथर के लिए ख्रीष्ट की मृत्यु और पुनरुत्थान में उसके साथ विश्वासी का मिलन और दैनिक अनुभव में इसका प्रभाव, वह दृष्टिकोण है जिसके द्वारा मसीही जन जीवन के प्रत्येक अनुभव को देखना सीखता है। यह—थियोलॉजिया क्रूसिस—सब बातों को और स्पष्ट कर देता है और मसीही जीवन के सभी उतार-चढ़ाव को समझने के लिए हमें सक्षम बनाता है:

इन बातों को जानना हमारे लिए लाभदायक है, कहीं ऐसा न हो कि जब हम अपने प्रतिद्वन्दियों को हमें सताते हुए, बहिष्कृत करते हुए और घात करते हुए देखते हैं, तो हम हम दुःख के वश में आ जाएँ या निराशा में आ जाएँ। परन्तु आइए हम पौलुस के उदाहरण के अनुसार विचार करें कि हम उस क्रूस पर गर्व करें जिसे हम उठाते हैं, अपने पापों के लिए नहीं वरन् ख्रीष्ट के कारण। यदि हम केवल स्वयं ही उन दुःखों के विषय में विचार करें जिन्हें हम सहते हैं, तो वे न केवल कष्टदायक, परन्तु असहनीय भी हैं; परन्तु जब हम यह कह पाएँ: “(हे ख्रीष्ट, तेरे दुःख हमारे लिए अधिकाई से हैं;” या फिर जैसे कि भजन 44 में कहा गया है: “हम तो तेरे लिए दिन भर घात किए जाते हैं,” तो वे दुःख इस कथन के अनुसार न केवल सहज हो जाते हैं, परन्तु मधुर भी: “मेरा जुआ सहज और मेरा बोझ हल्का है” (मत्ती 11:30)

4. मसीही जीवन आश्वासन और आनन्द द्वारा चिन्हित है।

चौथा, मसीही जीवन आश्वासन और आनन्द द्वारा चिन्हित है। हम समझ सकते हैं कि यह बात धर्मसुधार (Reformation) की एक विशेषता थी। धर्मीकरण के विषय में धर्मसुधार के समय हुई पुनःखोज—कि मसीही जीवन किसी आशा किए गए लक्ष्य के लिए परिश्रम करने के स्थान पर, उस लक्ष्य के साथ ही आरम्भ होता है—अद्भुत छुटकारा लाया, जिससे कि मस्तिष्क, इच्छा-शक्ति, और स्नेह आनन्द से भर गए। इसका अर्थ था कि व्यक्ति भविष्य की स्थिर महिमा के प्रकाश में अब जीना आरम्भ कर सकता था। निस्सन्देह, उस प्रकाश ने वर्तमान जीवन को प्रभावित किया, जिसके कारण अत्यधिक विश्राम और मुक्ति का आभास हुआ।

लूथर के लिए, मसीही जीवन एक सुसमाचार-आधारित, सुसमाचार-द्वारा-निर्मित, सुसमाचार-की-बड़ाई करने वाला जीवन है जो परमेश्वर के स्वतन्त्र और सम्प्रभु अनुग्रह को प्रदर्शित करता है और उस उद्धारकर्ता के प्रति कृतज्ञता में जिया जाता है जो हमारे लिए मरा, जिसमें हम उसके साथ तब तक क्रूस उठाएँगे जब तक मृत्यु विजय में निगल ली जाती है और विश्वास दृष्टि बन जाता है।

1522 में, बॉर्ना (Borna) की कलीसिया में एक रविवार को लूथर को सुनने वालों में से कुछ सम्भवतः सोच रहे थे कि इस सुसमाचार के केन्द्र में क्या था, जिसने भाई मार्टिन को उत्साहित, और यहाँ तक कि परिवर्तित भी कर दिया था। क्या उनके साथ भी ऐसा हो सकता है? लूथर जानता था कि वे क्या सोच रहे थे। वह उनके प्रश्न का उत्तर देने के लिए पूरी तैयारी के साथ आया था:

परन्तु सुसमाचार क्या है? सुसमाचार यह है कि परमेश्वर ने पापियों को बचाने के लिए, और नरक को कुचलने के लिए, मृत्यु पर विजय पाने के लिए, पाप हटाने के लिए, और व्यवस्था को सन्तुष्ट करने के लिए जगत में अपने पुत्र को भेजा है (यूहन्ना 3:16) परन्तु आप को क्या करना होगा? केवल इतना कि इसे ग्रहण करें और अपने छुड़ाने वाले की ओर देखें और दृढ़ता से विश्वास करें कि उसने यह सब कुछ आपकी भलाई के लिए किया है और सेंतमेंत आप को सब कुछ देता है, जिससे कि मृत्यु, पाप, और नरक के सामने, आप निश्चयता के साथ और साहस के साथ इस पर निर्भर होते हुए कह पाएँगे: यद्यपि मैं व्यवस्था को पूरी नहीं करता हूँ, यद्यपि पाप अभी भी उपस्थित है और मैं मृत्यु और नरक से भयभीत होता हूँ, फिर भी मैं सुसमाचार के द्वारा जानता हूँ कि ख्रीष्ट ने मुझे अपने सारे कार्य दिए हैं। मुझे भरोसा है कि वह झूठ नहीं बोलेगा, वह अपनी प्रतिज्ञा को अवश्य ही पूरी करेगा। और इस बात के चिन्ह स्वरूप मैंने बपतिस्मा लिया है। इस बात पर मैं अपने भरोसे को टिकाता हूँ। क्योंकि मैं जानता हूँ कि मेरे प्रभु ख्रीष्ट ने मृत्यु, पाप, नरक, और शैतान को मेरी भलाई के लिए पराजित किया है। क्योंकि जिस प्रकार से पतरस कहता है, वह निर्दोष था: “उसने न तो कोई पाप किया और न उसके मुँह से छल की कोई बात निकली” (1 पतरस 2:22)। इसलिए पाप और मृत्यु उसको मार नहीं पाए, नरक उसको रोक नहीं पाया, और वह उनका प्रभु बन गया है, और उसने यह उन सब को प्रदान किया जो इसे ग्रहण करते हैं और इस पर विश्वास करते हैं। यह सब मेरे कार्य या मेरी योग्यता के कारण नहीं हुआ; परन्तु शुद्ध अनुग्रह, भलाई और दया के द्वारा हुआ है।

लूथर ने एक बार कहा, “यदि मैं विश्वास कर पाता कि परमेश्वर मुझ से क्रोधित नहीं है, मैं आनन्द के कारण अपने सिर के बल खड़ा हो जाता।” जिस दिन लूथर ने यह प्रचार किया था, सम्भवतः उसके कुछ सुनने वाले लोगों ने प्रत्युत्तर दिया और उस “आत्मविश्वास” का अनुभव किया। कौन जानता है कि उनमें से कुछ युवा श्रोताओं ने अपने मित्रों को पत्र लिखा हो और उसमें उन्हें बताया हो कि वे घर गए थे और आनन्द के कारण अपने सिर के बल खड़े हो गए थे?

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

सिनक्लेयर बी. फर्गसन
सिनक्लेयर बी. फर्गसन
डॉ. सिनक्लेयर बी. फर्गसन लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ के एक सह शिक्षक हैं और रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी विधिवत ईश्वरविज्ञान के चान्सलर्स प्रोफेसर हैं। वह मेच्योरिटी नामक पुस्तक के साथ-साथ कई अन्य पुस्तकों के लेखक हैं।