हमारे जीवनों में परमेश्वर का प्रावधान का लागूकरण - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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हमारे जीवनों में परमेश्वर का प्रावधान का लागूकरण

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का चौथा अध्याय है: प्रावधान

प्रावधान के सिद्धान्त से अधिक व्यावहारिक कुछ नहीं है, क्योंकि यह विश्वास और ईश्वरीय भय दोनों को उत्पन्न करता है। जब ख्रीष्ट हमें सिखाता है कि चिन्ता से कैसे व्यवहार करना है, वह हमें स्मरण कराता है कि परमेश्वर पिता हर एक छोटे पक्षी को खिलाता और हर एक फूल को सुन्दर रंगों के वस्त्र पहनाता है (मत्ती 6:25)। तो फिर, उसके अपने प्रिय बच्चों की देखभाल के लिए हमें कितना अधिक उस पर भरोसा करना चाहिए? चाहे कोई इसे स्वीकार करने को तैयार हो या न हो, हर कोई निरन्तर परमेश्वर की उपस्थिति में जीवित रहता है। जितना अधिक विश्वासी परमेश्वर के प्रावधान के लिए जागरुक होता है, उतना ही अधिक उसके विषय में कहा जा सकता है, जैसा कि बी. बी. वॉरफील्ड लिखते हैं, “हर स्थान पर वह परमेश्वर को उसके शक्तिशाली कदमों को देखता है, हर स्थान पर वह उसकी शक्तिशाली हाथ के कार्यों का, उसके शक्तिशाली हृदय के स्पन्दन का आभास करता है।”

हमारा परमेश्वर नियन्त्रण में है। यद्यपि हम परमेश्वर के मार्गों की गहराई को पूर्ण रूप से नहीं जान सकते, फिर भी हम यह पुष्टि कर सकते हैं कि “उसी के ओर से, उसी के द्वारा, और उसी के लिए, सब कुछ है; उसी की महिमा युगानुयुग होती रहे” (रोमियों 11:36)। ऐसी बहुत सी बातें हैं जिनका कारण हम नहीं जानते, परन्तु हम यह जानते हैं कि सब कुछ को किसने नियुक्त किया है। ओबडायाह सेजविक लिखते हैं, “कोई भी उतना योग्य नहीं है कि संसार पर शासन कर सके जितना कि वह है जिसने इसे बनाया है।” उसकी सिद्ध बुद्धि, पवित्रता, न्याय, सामर्थ्य, प्रेम, और भलाई असफल नहीं होंगी।

फलस्वरूप, हम जहाज पर सवार उस छोटे बच्चे के समान हो सकते हैं जो कि तब भी शान्त रहता है जब हवा और लहरें उसके आस-पास उग्र हो रही होती हैं। जब उससे पूछा गया कि इतने प्रचण्ड आन्धी में वह शान्त कैसे रहा, उसने उत्तर दिया, “मेरे पिता जहाज के कप्तान हैं।” कलीसिया कितना अधिक गा सकती है: “परमेश्वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट के समय तत्पर सहायक। इसलिए हम नहीं डरेंगे, चाहे पृथ्वी उलट जाए, और पर्वत समुद्र-तल में जा पड़े” (भजन संहिता 46:1-2)।

परमेश्वर का प्रावधान विश्वासियों को कई प्रकार से लाभ पहुँचाता है। आइए इनमें से पाँच पर विचार करें।

परमेश्वर की पैत्रिक सम्प्रभुता में भरोसा

सर्वप्रथम, परमेश्वर-केन्द्रित मसीही विश्वावलोकन हमारे इस विश्वास को स्थापित करता है कि हमारा पिता अपने पुत्र के माध्यम से पवित्र आत्मा के द्वारा सब बातों पर राज्य करता है। हाइडलबर्ग प्रश्नोत्तरी कहती है:

हमारे प्रभु यीशु ख्रीष्ट का अनन्त पिता (जिसने कुछ नहीं से स्वर्ग और पृथ्वी बनायी, जो कुछ उसमें है उसके द्वारा; जो इसी प्रकार अपनी अनन्त सम्मति और प्रावधान के द्वारा इसे थामे रखता और शासन करता) उसने अपने पुत्र ख्रीष्ट के लिए, मेरे परमेश्वर मेरे पिता, जिस पर मैं पूर्ण रूप से भरोसा करता हूँ, कि मुझे कोई सन्देह नहीं है, वह मेरे प्राण और देह के लिए आवश्यक सभी वस्तुएँ प्रदान करेगा; और इसके अतिरिक्त, कि जो कुछ भी विपत्ति वह इन आँसुओं की घाटी में मुझ पर डालेगा, वह मेरे लाभ के लिए हो जाएगी; क्योंकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर,और इच्छुक होने के कारण, एक विश्वासयोग्य पिता होने के कारण वह ऐसा करने के योग्य है। (प्र&उ. 26)।

प्रावधान और लेपालकपन के सिद्धान्त परमेश्वर की सन्तानों को अद्भुत आत्मविश्वास के साथ सुदृढ़ करने में साथ देते हैं। सम्प्रभु परमेश्वर यीशु ख्रीष्ट में उनका प्रेमी पिता है, ताकि जीवनभर वे उसके द्वारा एक पिता के रूप में “दया पाएँ, सुरक्षा पाएँ, भरण पोषण किए जाएँ, और ताड़ना पाएँ; फिर भी कभी त्यागे न जाएँ” जैसा कि वेस्टमिन्स्टर विश्वास का अंगीकार कहता है (12.1)। जॉन कॉटन ने कहा, “क्या स्वर्ग और पृथ्वी के परमेश्वर का आपका पिता कहलाना साधारण बात है, जब्कि आप मात्र एक मनुष्य हैं?” हमारे पिता के रूप में, परमेश्वर निश्चय ही “यहाँ पुत्र के लिए प्रावधान और यहाँ के बाद एक उत्तराधिकारी के लिए प्रावधान” देगा, क्योंकि “परमेश्वर हमें पोषित करता है” और “उसने हमें एक विरासत दी है।”

हम एक जोखिम भरे संसार में रहते हैं। रोग,आपदा, और युद्ध प्रतिदिन कई लोगों को अनन्तकाल में ले जाते हैं। दुष्ट लोग ईश्वरीय और निर्दोष लोगों पर अत्याचार और उनके साथ दुर्व्यवहार करते। हमारी आँखों से छिप कर, शैतान और उसकी सेना गर्जने वाले सिंह के समान इस ताक में रहते हैं कि लोगों को फाड़ खाएँ और उन्हें अनन्त दण्ड की ओर घसीट लाएँ (1 पतरस 5:8)। पाप के छल और लालसा हमारे हृदयों में उग्र होते रहते हैं, जिस कारण से हम अपने आप से कभी सुरक्षित नहीं हैं। यथार्थवाद माँग करता है कि हम ऐसे जोखिम भरे स्थान पर बुद्धिमानी और समझदारी के साथ रहें।

फिर भी, मसीहियों को भय और चिन्ता से जीने की नहीं है, परन्तु रोमियों 8:28 की प्रतिज्ञा को पकड़े रहने की आवश्यकता है: “हम जानते हैं कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं उनके लिए वह सब बातों द्वारा भलाई उत्पन्न करता है।” थॉमस वॉट्सन ने लिखा है: “परमेश्वर का अपनी सन्तानों के साथ एक विशेष प्रावधान द्वारा विभिन्न व्यवहार करना उनके भले के लिए हो जाता है। ‘जो यहोवा की वाचा और उसके नियमों का पालन करते हैं, उनके लिए उसके सब मार्ग करुणा और सच्चाई के हैं’ (भजन 25:10)।” उन्होंने निष्कर्ष निकाला, “ वह बड़ा कारण कि क्यों सब बातों द्वारा भलाई उत्पन्न होती है, वह है परमेश्वर का उसके लोगों में बहुत ही विशेष रुचि होना। प्रभु ने उनके साथ वाचा बाँधी है। ‘वे मेरी प्रजा ठहरेंगे और मैं उनका परमेश्वर ठहरूँगा’ (यिर्मयाह 32:38)।”

परमेश्वर का प्रावधान उसके वाचा के लोगों को सान्त्वना देता है। सेजविक ने कहा है:

किसी भी भले व्यक्ति को किसी भी वस्तु की घटी न होगी जो उसके लिए भली है। मुझे उस वस्तु की घटी हो सकती है जो अच्छी है, परन्तु उसकी नहीं जो मेरे लिए अच्छी है: “यहोवा अनुग्रह और महिमा देता है, जो खरी चाल चलते हैं उनसे वह कोई अच्छी वस्तु रख न छोड़ेगा” (भजन 84:11)।

परमेश्वर का अपनी जीवित कलीसिया के लिए विशेष प्रावधान है क्योंकि हम उसकी आँख की पुतली, उसकी भेड़े, उसकी सन्तानें, और उसके निज भाग हैं (ज़कर्याह 2:8; यशायाह 40:11; 49:15; मलाकी 3:17)। उसकी अपने लोगों के लिए देखभाल पूर्ण रूप से अनुग्रहकारी, कोमल, रहस्यमय, महिमावान, सटीक, और प्रायः असाधारण है।

परमेश्वर के प्रावधान में विश्वास परमेश्वर के प्रति मसीही की सेवा का सहयोग करता है। यह शैतान के सारे आक्रमणों के विरुद्ध उसकी ढाल है (इफिसियों 6:16)। वॉरफील्ड ने कहा, “परमेश्वर के सार्वभौमिक प्रावधान में एक दृढ़ विश्वास सभी सांसारिक समस्याओं का हल है।” भय से शक्तिहीन होने या चिन्ता द्वारा चलाए जाने के स्थान पर, एक पक्का विश्वासी ईश्वरीय प्रावधान की स्थिर भूमि पर खड़ा होता है और अपने स्वामी की इच्छा के प्रति दृढ़ आज्ञाकारिता और समर्पण में अग्रसर होता है।

प्रार्थना में बच्चे समान विश्वास   

दूसरा, जो लोग परमेश्वर के प्रावधान पर विश्वास करते हैं वे प्रार्थना के लोग होते हैं जो यह जानते और विश्वास करते हैं कि उनका प्रावधान करने वाला परमेश्वर आज्ञा देता, सुनता और प्रार्थनाओं के उत्तर देता है। वे जानते हैं कि “प्रत्येक अच्छी वस्तु और हर एक उत्तम दान तो ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है, जो कभी बदलता नहीं और न छाया के समान परिवर्तनशील है” (याकूब 1:17)।

जॉन कैल्विन ने कहा है:

मात्र इस बात को पकड़ कर रखना पर्याप्त नहीं है कि एक है जिसका सभी को सम्मान और प्रेम करना चाहिए, जब तक कि हम भी यह न मान लें कि वह हर एक भली वस्तु का सोता है, और जिसे हमें उसके सिवा कहीं और नहीं खोजना चाहिए। . . .  बुद्धि और प्रकाश की, या धार्मिकता या सामर्थ्य या सच्चाई की या, खरी सच्चाई की कोई भी बूँद न मिलेगी जो कि उससे न बहती हो, और जिसका वह कारण न हो।

प्रार्थना बच्चे समान विश्वास की पुकार है। जब हम प्रार्थना करते हैं, जैसा कि हमारे प्रभु ने सिखाया है “हे हमारे पिता तू जो स्वर्ग में है . . . हमारे दिन भर की रोटी आज हमें दे” (मत्ती 6:9,11), हम परमेश्वर को “सब भली बातों का एकमात्र सोता स्वीकार करते हैं, और उसकी आशीष के बिना न हमारी देखरेख न परिश्रम” हमें वह दिला सकता है जिसकी हमें आवश्यकता और इच्छा है, और इसलिए, “हम अपना भरोसा सभी प्राणियों से हटा लेते हैं और एकमात्र उसमें रखते हैं (हाइडलबर्ग प्रश्नोत्तरी 125)।

प्रभु हमें हर आवश्यकता, अपनी सारी निर्बलता, अपनी सारी चिन्ताओं के साथ उसने पास जाना सिखाता है। यह जानते हुए कि वह हमारा प्रबन्धक है, हमें उससे अपना भोजन और पेय, स्वास्थ्य, वस्त्र, परिवारों में अच्छे सम्बन्ध, अपनी बुलाहट में सफलता, अपनी कलीसियाओं में आत्मा का सामर्थ, और अपने राष्ट्र के लिए शान्ति की खोज करनी चाहिए। हमें [अपनी] समस्त चिन्ता उस पर डाल देनी चाहिए, क्योंकि वह हमारी चिन्ता करता है (1 पतरस 5:7)।

परमेश्वर के प्रावधान को जानना नम्रता को प्रोत्साहना देता है, जो प्रार्थना के लिए महत्वपूर्ण है। पवित्रशास्त्र हमें स्मरण कराता है कि हम कितना भी कठिन परिश्रम कर लें, हमें तब तक कुछ नहीं मिल सकता जब तक हम उसके हाथ से न प्राप्त करें (भजन 104:28; यूहन्ना 3:27)। वास्तव में, उसके सक्षम बनाए बिना हम एक उंगली नहीं हिला सकते, आँख नहीं झपका सकते, और कोई विचार नहीं सोच सकते। हमारे पास हो सकता है सबसे महानतम कौशल या अनुभवों और सन्दर्भों की अत्यन्त प्रभावशाली सूची होगी, परन्तु “वही तुझको सम्पत्ति प्राप्त करने की सामर्थ्य देता है” (व्यवस्थाविवरण 8:18)। यहाँ तक कि सामर्थ्य और कौशल होने के बाद भी, हम पूरा दिन परिश्रम कर के भी अपने लक्ष्य को पाने में असफल हो सकते हैं। “यदि घर यहोवा ही न बनाए, तो बनाने वाले व्यर्थ परिश्रम करते हैं। जब तक यहोवा ही नगर की रक्षा न करे, तो पहरेदार का जागना व्यर्थ है” (भजन 127:1)।

इसलिए, हमें एकमात्र परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए और सारी भली वस्तुओं की खोज उसी से करनी चाहिए। प्रभु करे, कि हम उस पर अपनी निरन्तर निर्भरता का सही अर्थ पा सकें। प्रायः ही लोग दिन प्रतिदिन कार्य पर जाते हैं, किराने का समान लेते हैं, दवाईयाँ लेते हैं, बिल भुगतान करते हैं, और सुखों का आनन्द लेते हैं—परन्तु उस पर और इस तथ्य पर विचार नहीं करते कि सब कुछ उसकी इच्छा पर निर्भर है। उनके हृदय घमण्ड से भर जाते हैं, वे प्रभु को भूल जाते हैं, और वे कहते हैं, “मैंने यह सारी सम्पत्ति अपने सामर्थ्य तथा बाहुबल से कमाई है” (व्यवस्थाविवरण8:17)। उनकी प्रार्थनाहीनता वह कील है जो उनकी आत्मिक निष्क्रियता के सन्दूक को बन्द कर देती है। परन्तु परमेश्वर की सन्तान में लेपालकपन का आत्मा है जो उसके हृदय में पुकारता है, “हे अब्बा, हे पिता” (गलातियों 4:6)। वह आत्मा-प्रभावित प्रवृत्ति के द्वारा जानता है कि बुराई से सारा छुटकारा और भली वस्तुओं का आनन्द उसके पिता से ही आता है। और इसलिए, वह प्रार्थना करता है। और आप? क्या आप प्रार्थना करते हैं? क्या आपकी प्रार्थनाएँ निष्ठापूर्वक उसकी खोज के लिए होती हैं जो सभी भली बातों का सोता है? क्या आप वास्तव में प्रावधान के परमेश्वर में विश्वास करते हैं?

विपत्ति में धैर्य

हाइडलबर्ग प्रश्नोत्तरी परमेश्वर के प्रावधान को जानने के तीन और लाभों पर प्रकाश डालता है:

कि हम विपत्ति में धैर्यवान रहें; सम्पन्नता में धन्यवादी रहें; और यह कि सब बातों में, जो कि आने वाले समय पर हम पर बीतेगा, हम अपना दृढ़ विश्वास अपने विश्वासयोग्य परमेश्वर और पिता में रखें, कुछ भी हमें उसके प्रेम से अलग नहीं करेगा; क्योंकि सभी प्राणी उसके हाथ में इस प्रकार से हैं, कि उसकी इच्छा के बिना वे कुछ नहीं कर सकते। (प्र&उ. 28)

इसलिए, तीसरा लाभ, विपत्ति में धैर्य है। हम स्वाभाविक रूप से विपत्ति का प्रत्युत्तर आत्मकेन्द्रित कड़वाहट या निराशा में डूब कर देते हैं। फिर भी, हमारी परिस्थितियाँ चाहे अशान्त या कष्टदायी हों, मसीही को परमेश्वर के प्रावधान पर विश्वास करके आन्तरिक शान्ति का विकास करना चाहिए। दाऊद कहता है, “मैं अपना मुँह नहीं खोलता, क्योंकि तूने यह किया है” (भजन 39:9‌)। दुख में ईश्वरीय शान्ति अपने हृदयों को कठोर करके और अपने मनोभावों को छुपाने से नहीं आती परन्तु आन्धी के मध्य में परमेश्वर के साथ बने रहने से आती है।

विपत्ति में मसीही धैर्य (“धीरज”) परमेश्वर के आत्मा का एक अलौकिक फल है (गलातियों 5:22)। अविश्वासी कठोरता से स्वयं को उन परिस्थितियों पर छोड़ सकते हैं जिन्हें वह नहीं बदल सकते; परन्तु विश्वासी, विश्वास में दृढ़ रहते हैं, यह विश्वास करते हुए कि बड़ी बुराई भी उनके प्रेमी और विश्वासयोग्य परमेश्वर के हाथ में लाभ में परिवर्तित हो जाएगी, और उनके लिए भलाई के लिए होगी। परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा और प्रार्थना के उत्तर में, हम “उसकी महिमामय शक्ति के अनुसार सब प्रकार की सामर्थ से बलवन्त बन सके और जिस से हर प्रकार की दृढ़ता और धैर्य प्राप्त कर सकें” (कुलुस्सियों 1:11)। आत्मा के द्वारा, ख्रीष्ट के चेले स्वेच्छा से क्रूस उठाने वाले हैं (लूका 9:23)।

वे जो प्रावधान में विश्वास करते हैं अपने कष्टों में परमेश्वर के उद्देश्यों में विश्राम पाते हैं। वे परमेश्वर के उसकी सन्तानों को उनके दुखों और परीक्षाओं के द्वारा परिपक्व पवित्रता में प्रशिक्षित करने के ध्येय को समझते और स्वीकार करते हैं (नीतिवचन 3:11-12; इब्रानियों 12:5-11)। वे कहते हैं, “पीड़ित होने से पहले मैं भटक गया था, परन्तु अब मैं तेरे वचन को मानता हूँ। . . . मुझे पर जो क्लेश आया वह मेरे लिए भला ही हुआ कि मैं तेरी विधियों को सीख सकूं (भजन 119:67,71)। यद्यपि वे प्रायः यह नहीं देख सकते कि वह कैसे, वे फिर भी भरोसा करते हैं कि, उनके संघर्षों के द्वारा परमेश्वर स्वयं को महिमावान्वित करता है, विशेषकर यह दिखाने के द्वारा कि परमेश्वर उनके विश्वास और ईश्वरीय भय के योग्य है तब भी जब वह उन्हें यहाँ और अभी खुशी नहीं देता है (अय्यूब1:1, 8-11, 20-21)। वे ख्रीष्ट के साथ मिलन और सहभागिता में रहते हैं और उसके साथ दुख उठाने में आनन्दित होते हैं, यह जानते हुए कि एक दिन वे उसके साथ महिमा में राज्य करेंगे (रोमियों 8:17)। उन्होनें निश्चय किया है “वह दौड़ जिसमें हमें दौड़ना है धीरज से दौड़ें, और विश्वास के कर्ता और सिद्ध करने वाले यीशु की ओर अपनी दृष्टि लगाए रहें” (इब्रानियों 12:1-2)।

परमेश्वर के उद्देश्यों में मसीही की आशा इस विश्वास पर निर्भर करती है कि परमेश्वर वास्तव में सब कुछ को नियन्त्रण करता है। जॉहेन्स वेन्डरकेम्प ने कहा है, “जो कुछ भी घटता है यदि कोई भी सार्वभौमिक शासक उसे निर्देशित नहीं करता, तो कैसे भले मनुष्य अपने क्लेशों में शान्त और स्वयं को सान्त्वना दे सकते हैं? क्या उनकी स्थिति दुष्टों से भी बुरी न होगी?”

अत्यन्त बड़ी परीक्षाओं में से एक जो एक विश्वासी सह सकता है वह है आत्मिक अन्धकार की परीक्षा। वेस्टमिन्स्टर विश्वास का अंगीकार 18.4 लिखता है, “सच्चे विश्वासियों का उनके उद्धार का आश्वासन सम्भवतः विभिन्न प्रकार से हिल सकता है, क्षीण हो सकता है, और ठहर सकता है,” कभी-कभी “परमेश्वर के अपने मुख का प्रकाश हटा लेने के द्वारा और दुख उठाना जैसे उसका भय मानना कि प्रकाश के बिना अन्धकार में चलना हो” (यशायाह 50:10 देखें)। एन्थनी बर्गेस समझाते हैं कि परमेश्वर हो सकता है कि एक विश्वासी के उसके प्रेम के प्रति आनन्द और आश्वासन को हटा ले ताकि उसकी प्रिय सन्तान पाप के कड़वाहट को चख सके और उसे घृणा करना सीख सके, नम्रता में बढ़ सके, आनन्द और शान्ति को बहुमूल्य जाने और उन्हें सुनिश्चित न मान लें, आज्ञाकारिता के द्वारा परमेश्वर को महिमान्वित करे,और दूसरों को सान्त्वना देने के लिए करुणा में वृद्धि करे।

अन्धकार में चलने वाला पवित्र जन चाहे इसे आत्मिक लाभ समझ सकता है या नहीं, पर वह यह जानकर विश्राम पा सकता है कि उसका सम्प्रभु परमेश्वर अपनी महिमा और अपने चुने हुओं के भले के लिए सदा कार्य करता है। विलियम गर्नल ने कहा है, “मसीही को पीछे हटने वाले परमेश्वर में भरोसा करना चाहिए।”

प्रिय विश्वासी, एक क्षण के लिए कल्पना कीजिए कि जीवन में सब कुछ “आपके अनुसार” चला। आपको कभी कष्ट नहीं हुआ। आपने कभी विपत्ति का सामना नहीं किया। आप कैसे होंगे? मैं जानता हूँ कि मैं कैसा होता: मैं बिगड़ा हुआ, अपरिपक्व, स्व-केन्द्रित, अभिमानी पापी होता जो केवल स्वयं में विश्वास करता। यद्यपि मेरी देह सर्वदा इसे स्वीकार न करना चाहता, मैं अन्दर ही अन्दर जानता कि मुझे हर उस दुख की आवश्यकता है जिसे मेरे स्वर्गीय पिता ने मुझे स्वंय से छुड़ाने के लिए और तीव्रता से अपने पुत्र के समान बनने के लिए मेरे मार्ग में भेजा है। बिना विपत्ति के, मैं कभी भी पाप से घृणा करने वाला, ख्रीष्ट-प्रेमी, और एक पवित्रता के पीछे चलने वाला नहीं होता। मैं वह मसीही नहीं होता जो मैं हूँ। मैं सोचता हूँ कि आप मुझसे भिन्न नहीं हैं।

हमारे सभी कष्टों में, विशेषकर जब हम कष्टों से निकल जाते हैं (इब्रानियों 12:11), हम यह पाते हैं कि हमारे दुखों की कड़वाहट की तुलना में परमेश्वर के भले उद्देश्य की मिठास कहीं अधिक है। हमारा प्रिय परमेश्वर अपनी प्रिय सन्तानों का एक भी आँसू व्यर्थ नहीं करेगा (भजन संहिता 56:8)। सैमुअल रैदर्फोर्ड ने कहा, “जब मैं कष्टों के तलघर में होता हूँ, मैं प्रभु की उत्तम दाखमधु की खोज करता हूँ।”

सम्पन्नता में कृतज्ञता

प्रावधान का चौथा लाभ, जिसका अभ्यास करना उतना ही कठिन हो सकता है जितना कि विपत्ति में धैर्य का है, वह है सम्पन्नता में धन्यवादी होना। यद्यपि विपत्ति वास्तविक, बहुधा आने वाली, और कभी कभी अत्याधिक तीव्र होती है, हम परमेश्वर की अच्छी सृष्टि में लिप्त है, जिसे धन्यवाद के साथ ग्रहण करना चाहिए (1 तीमुथियुस 4:4)। परमेश्वर “हमारे सुख के लिए सब कुछ बहुतायत से देता है” (6:17)। हमें कभी भली वस्तुओं की कमी नहीं होती, और इसलिए, प्रावधान के परमेश्वर की प्रशंसा के कारणों की भी कमी नहीं होनी चाहिए (इफिसियों 5:20)। विल्हेल्मस ए. ब्रेकल ने कहा है, “परमेश्वर के प्रावधान का उचित उपयोग आपको आभार का एक विशिष्ट माप प्रस्तुत करेगा और आपको प्राण और देह के लिए प्राप्त होने वाली सभी भलाई के एकमात्र देने वाले के रूप में प्रभु में परिणीत होना सिखाएगा।”

आभार,भक्ति के लिए आवश्यक है। धन्यवाद के बिना, हम परमेश्वर की इच्छा का पालन नहीं कर सकते: “प्रत्येक परिस्थिति में धन्यवाद दो, क्योंकि ख्रीष्ट यीशु में तुम्हारे लिए परमेश्वर की यही इच्छा है” (1 थिस्सलुनीकियों 5:18)।

कैल्विन ने कहा है,

मैं उस आदर को “भक्ति” कहता हूँ जो कि परमेश्वर के प्रेम से जुड़ी हुई है जिससे उसके लाभों का ज्ञान प्रेरित करता है। क्योंकि मनुष्य जब तक यह नहीं जान जाता कि वह सब कुछ के लिए परमेश्वर का ऋणी है, कि वह अपने पिता की देखभाल से पोषित होता है, कि वह उसके सब भले का कर्ता है, कि उन्हें उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं खोजना चाहिए —वे कभी भी स्वेच्छा सेवा करने के लिए तैयार नहीं होंगे। 

विपत्ति और सम्पन्नता दोनों के अपने खतरे हैं। “मुझे न तो धन न निर्धनता दे। प्रतिदिन की रोटी मुझे खिलाया कर, कहीं ऐसा न हो कि मैं तृप्त होकर तेरा इन्कार करके कहूँ, यहोवा कौन है? या मैं घटी में पड़कर चोरी करुं और अपने परमेश्वर का नाम कलंकित करूँ” (नीतिवचन 30:8-9)। विपत्ति और सम्पन्नता दोनों के साथ कर्तव्य जुड़े हुए हैं: “क्या तुम में कोई दुखी है? तो वह प्रार्थना करे। क्या कोई प्रसन्न है? तो वह स्तुति के भजन गाए” (याकूब 5:13)।

कृतज्ञता के केन्द्र में परमेश्वर की भली वस्तुओं को देखने के द्वारा स्वयं परमेश्वर की भलाई की सराहना करने का विश्वास है। मसीही परमेश्वर के उपहारों से अधिक उससे प्रेम करता है और, प्रति दिन की दया के लिए आभारी होते हुए, प्रभु को अपना भाग मानता है (विलापगीत 3:22-24)। वह गाता है, “धन्य हो प्रभु, जो प्रतिदिन हमारा बोझ उठाता है, परमेश्वर, जो हमारा उद्धार है” (भजन 68:19)।

लोग कभी कभार ही उन भली वस्तुओं की सराहना करते हैं जो उन्हें मिलती है, क्योंकि वे स्वयं को यह सोच कर भ्रमित कर रहे होते हैं कि वह इसके योग्य हैं। कुछ ने ही याकूब से यह शिक्षा ली है, “मैं तो तेरी सब करुणा और सब सच्चाई के उन कामों के योग्य नहीं हूँ जो तू ने अपने दास पर प्रकट किए” (उत्पत्ति 32:10)। सच्चाई यह है कि हम परमेश्वर के क्रोध की ज्वाला में तड़पने और पानी की एक बून्द से भी वंचित होने के योग्य हैं (लूका 16:24-25)।

जब मैं अपने पिता से उनके हृदय के ऑपेरशन (open-heart surgery) के पश्चात् मिलने गया, मैंने उन्हें धन्यवाद के साथ रोते हुए पाया। जब मैंने पूछा कि वह इतने आभारी क्यों हैं, तो उन्होंने कहा: “एक नर्स अभी आयी और उसने एक बर्फ के टुकड़े से मेरे होंठों को नम किया, और मैं अधोलोक में उस धनी व्यक्ति के विषय में सोचने लगा जिसके पास अपनी जीभ को ठण्डी करने के लिए एक बून्द पानी की नहीं थी। मैं उसके भाग के योग्य हूँ।”

क्या आप कभी बर्फ के टुकड़े के लिए सच में आभारी रहे हैं? परमेश्वर आपकी और मेरी सहायता करे कि हम उसके और एक दूसरे के द्वारा दिखायी गयी छोटी से छोटी दयालुता के लिए आभारी हों।

एक अज्ञात भविष्य के लिए एक अच्छी अपेक्षा

अन्त में, प्रावधान हमें मसीहियों के रूप में अज्ञात भविष्य के लिए परमेश्वर में एक आश्वस्त भरोसा प्रदान करता है। इसलिए, मसीहियों को सर्वदा आशावादी होना चाहिए। हाइडलबर्ग प्रश्नोत्तरी 28 कहती है कि प्रावधान का सिद्धान्त हमें “अपना दृढ़ भरोसा अपने विश्वासयोग्य परमेश्वर और पिता में रखने के लिए” प्रेरित करता है। वस्तुतः, डच भाषा में लिखा है, “अच्छी अपेक्षा रखो।” परमेश्वर की सन्तान, क्या तुम्हें अपने भविष्य के लिए एक अच्छी अपेक्षा है? हमारे परमेश्वर का हाथ संसार पर राज्य करता है, और कोई भी उसके उद्देश्य को पूरा होने से रोक नहीं सकता (दानिय्येल 4:35)। “परमेश्वर ने हमें प्रकोप के लिए नहीं, परन्तु हमारे प्रभु यीशु के उद्धार प्राप्त करने के लिए ठहराया है” (1 थिस्सलुनीकियों 5:9)। आप पिता और पुत्र के हाथ में हैं, और उससे सुरक्षित संसार में कोई स्थान नहीं है (यूहन्ना 10:28-29)।

क्योंकि परमेश्वर सभी बातों पर राज्य करता है, हम अभी आनन्द मना सकते हैं कि हम अपनी अनन्त मीरास में एक दिन सुरक्षित पहुँचेंगे। पौलुस कहता है, “यदि परमेश्वर हमारे पक्ष में है, तो कौन हमारे विरुद्ध है? वह जिसने अपने पुत्र को भी नहीं छोड़ा परन्तु उसे हम सब के लिए दे दिया, तो वह उसके साथ हमें सब कुछ उदारता से क्यों न देगा” (रोमियों 8:31-32)? पौलुस प्रावधान के निश्चित परिणाम में गर्व करता है:

मुझे पूर्ण निश्चय है कि न मृत्यु न जीवन, न स्वर्गदूत न प्रधानताएं, न वर्तमान न भविष्य, न शक्तियां, न ऊँचाई न गहरायी, और न कोई सृजी हुई वस्तु हमें परमेश्वर के प्रेम से जो हमारे प्रभु यीशु ख्रीष्ट में है, अलग कर सकेगी (पद 38-39)।

प्रावधान के सिद्धान्त का यह भी तात्पर्य है कि इसका विपरीत सत्य है। यदि परमेश्वर आपके विरुद्ध है, तब कौन आपकी सहायता कर सकता है? यदि आप अपने पापों में बने हुए हैं और उसके पुत्र को टूटे हृदय के विश्वास के साथ ग्रहण नहीं करते हैं तो पूरी सृष्टि में कोई भी आपको परमेश्वर के क्रोध से नहीं बचा सकता। यदि आप एक अपश्चातापी विश्वासी हैं, तो आप समझ लीजिए कि आप प्रावधान के परमेश्वर के शत्रु हैं। आप उसकी पैत्रिक सम्प्रभुता पर भरोसा नहीं कर रहे परन्तु उसे अत्याधिक क्रोधित कर रहे हैं और अपनी कल्पना के देवताओं की आराधना करने को वरीयता दे रहे हैं। आप गर्व के साथ स्वयं पर भरोसा कर रहे हैं, प्रार्थना में उसके अनुग्रह को खोजने के स्थान पर। आपके पास धन्यवादी हृदय नहीं है, यद्यपि प्रतिदिन आप परमेश्वर की हवा में सांस लेते और उसका पानी पीते हैं। यदि आप पश्चाताप नहीं करेंगे, तब वह आपसे सब कुछ अच्छा ले लेगा और अपनी सम्प्रभु शक्ति का उपयोग आपको सर्वदा के लिए दण्डित करने के लिए करेगा।

अपने प्रावधान के द्वारा, प्रभु इस दुष्ट संसार में से लोगों को अपने पास एकत्रित कर रहा है। परमेश्वर का सबसे असाधारण प्रावधान पापियों को छुड़ाने के लिए अपने पुत्र को भेजना है (गलातियों 4:4-5)। जब बुरे लोगों ने यीशु को क्रूस पर चढ़ाया, उन्होंने परमेश्वर के सम्प्रभु उद्देश्य को पूरा किया कि उसका पुत्र बहुतों के लिए फिरौती के रूप में मरा (मरकुस10:45; प्रेरितों के काम 4:27-28)। परमेश्वर ने ख्रीष्ट को अपनी सामर्थ्य से मरे हुए से जिलाया, और अब ख्रीष्ट राजाओं के राजा और प्रभुओं के प्रभु के रूप में परमेश्वर के दाहिने हाथ पर बैठा है (भजन 2:6, 110:1)।

आज, परमेश्वर सुसमाचार के माध्यम से कार्य कर रहा है ताकि हर कोई जो पाप से फिरे, ख्रीष्ट में भरोसा करे, और प्रभु का नाम ले वह बचाया जाएगा (रोमियों 10:13)। क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर के प्रावधान ने यह व्यवस्था करी कि यह लेख आपको मिल जाए ताकि आपका हृदय परिवर्तित हो और आप ख्रीष्ट का अनुसरण करने लगें? यदि आप अभी तक अपने पाप से बचाए नहीं गए हैं, तो पहचान लें कि आप इन शब्दों को संयोग से नहीं पढ़ रहे हैं। परमेश्वर आपसे बात कर रहा है। परमेश्वर के अनुग्रह से, आप जिस पर पहले भरोसा करते थे उससे फिर जाएँ और अपनी आशा जीवित परमेश्वर पर रखें। और तब आनन्दित हों, क्योंकि जो लोग उसकी बुलाहट द्वारा परिवर्तित हुए, जो लोग परमेश्वर से प्रेम करते हैं उनके लिए वह सब बातों के द्वारा भलाई उत्पन्न करता है (रोमियों 8:28)। महिमा के मार्ग पर अपने सभी कष्टों में, वे कह सकते हैं, “हम जयवन्त से भी बढ़कर हैं” (पद 37)।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।