वेस्टमिन्स्टर अंगीकार में परमेश्वर के प्रावधान का सारांश - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
पवित्रशास्त्र में प्रकट परमेश्वर का प्रावधान
10 फ़रवरी 2022
हमारे जीवनों में परमेश्वर का प्रावधान का लागूकरण
17 फ़रवरी 2022
पवित्रशास्त्र में प्रकट परमेश्वर का प्रावधान
10 फ़रवरी 2022
हमारे जीवनों में परमेश्वर का प्रावधान का लागूकरण
17 फ़रवरी 2022

वेस्टमिन्स्टर अंगीकार में परमेश्वर के प्रावधान का सारांश

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का तीसरा अध्याय है: प्रावधान

कभी-कभी हम परमेश्वर के मार्गों को नहीं समझ पाते हैं। जैसा कि प्रेरित पौलुस कहता है, वे अगम्य हैं (रोमियों 11:33)। इसी लिए मसीही होने के कारण हम प्रायः एक दूसरे को परमेश्वर के प्रावधान पर भरोसा करने के लिए, उसके अदृश्य हाथ को स्मरण रखने के लिए, और इस ज्ञान में विश्राम करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं कि वह सब बातों को हमारे भले के लिए उत्पन्न करता है (8:28)। हम उसके प्रावधान की दुहाई देते हैं जब उसके मार्ग “समझ से परे” होते हैं (11:33)। जब त्रासदी आ जाती है। जब आनन्द अचम्भित कर देता है। जब दुख अभिभूत कर देता है। जब अवसर खटखटाता है। जब परिस्थितियाँ हमें किनारे पर धकेल देती हैं। जब हमारे पास कोई उत्तर नहीं होते। किसी भी प्रकार से। जैसे तैसे। मसीही होने के कारण, हम जानते हैं कि समाधान परमेश्वर के प्रावधान की गहराई में स्थित है।

प्रावधान का आकर्षण यह है कि यह हमारे जीवन के सभी क्षणों—अच्छे, बुरे, और सब कुछ उसके मध्य—को परमेश्वर की सब कुछ के लिए योजना की पृष्टभूमि के सामने रखता है। हम स्वयं को बताते हैं कि परमेश्वर नियन्त्रण में है। फिर भी हम अपने जीवन की अव्यवस्थता को परमेश्वर के प्रारूप की निश्चितता से जोड़ने के लिए संघर्ष करते हैं। सीमित और पतित प्राणी होने के कारण, हम प्रायः इस पर भरोसा करने में असफल हो जाते हैं कि परमेश्वर अपनी भली और सम्प्रभु इच्छा के अनुसार हमारी अगुवाई, मार्गदर्शन, और निर्देशन करेगा। एक कारण कि मसीहियों ने प्रावधान के विषय में अधिक बात की क्योंकि हमें अनिश्चितताओं के मध्य अपने विश्वास को सम्भाल के रखना है।

जब मैं इस लेख पर कार्य कर रहा था, मैं रिफॉर्मेशन बाइबल कॉलेज के परिसर में, जहाँ मैं पढ़ाता हूँ, पैदल घूम रहा था, और रास्ते में पड़ने वाले कॉफी की दुकान से दोपहर की कॉफी खरीदते हुए अपने कार्यालय वापस आ गया। जब मैं अपनी कॉफी की प्रतीक्षा में था, मैंने अपने एक विद्यार्थी से उसके जीवन में किसी बात के विषय में पूछा। इस बात से अनभिज्ञ कि मैं प्रावधान पर एक लेख लिख रहा हूँ, वह परमेश्वर के मार्गों को सर्वदा न जानने की कठिनाई पर विचार करने लगा। उसने मुझे एक उपयोगी उदाहरण दिया। उसने मुझे बताया कि गाड़ी से यात्रा करते हुए वह स्मार्टफोन में मानचित्र खुले रखने को वरीयता देता है ताकि हर समय उसे ज्ञात रहे कि वह कहाँ है, वह कहाँ जा रहा है, और वह कैसे अपने गन्तव्य तक पहुँचेगा। परन्तु, उसने यह स्वीकार किया, कि उसे तब यात्रा करना पसन्द नहीं है जब उसके पास अनुसरण करने के लिए मानचित्र न हो, परन्तु यात्रा का मार्गनिर्देशन करने के लिए एक-एक मोड़ करते केवल मित्र या परिवार का सदस्य हो। उसने अपनी बात को कुशलता से रखा था। वह जानता था कि उसे परमेश्वर के प्रावधान पर भरोसा करना है, परन्तु उसकी इच्छा है वह मानचित्र देख सके जो उसके जीवन के निर्देशांकों का विवरण दे।

अपने उत्कृष्ट कार्य  प्रावधान का भेद (The Mystery of Providence ) में प्यूरिटन जॉन फ्लेवल बताते हैं, “यह पवित्र लोगों का कर्तव्य है, कि विशेषकर तंगहाली के समय में, अपने जीवन की सभी अवस्थाओं में और सभी पड़ावों के माध्यम से प्रावधान के प्रदर्शन पर विचार करें।” फ्लेवल, अन्य शब्दों में, मसीहियों से जीवन के प्रत्येक मोड़ पर परमेश्वर के प्रावधान पर मनन करने का और साथी मसीहियों के साथ परमेश्वर के मार्गों के विषय में बात करने का भी आग्रह करते हैं। परन्तु “प्रावधान के प्रदर्शन” पर अर्थपूर्ण रूप में विचार करने के लिए, हमें इस बात की स्पष्ट समझ होने की आवश्यकता है कि प्रावधान  शब्द से क्या अर्थ है।

प्रमुख सिद्धान्तों पर बाइबल की शिक्षा को सारांशित करने के लिए वेस्टमिन्स्टर विश्वास का अंगीकार एक उत्कृष्ट संसाधन है। अंगीकार के अध्याय 5 में, कलीसिया के इतिहास में प्रावधान की सबसे ठीक परिभाषाओं में से एक है। इस लेख के शेष भाग के लिए, हम वेस्टमिन्स्टर विश्वास के अंगीकार के अध्याय 5 के प्रथम चार भागों की जाँच करेंगे, जो प्रावधान के बाइबलीय सिद्धान्त का विवरण देते हैं।

अध्याय 5 का प्रारम्भिक भाग प्रावधान को परमेश्वर की अनन्त राजाज्ञा (WCF 3 देखें) को परमेश्वर की सृष्टि के अधिकार (WCF 4) में पूरा करने से जोड़ता है। यह बताता है:

परमेश्वर, सभी वस्तुओं का महान रचयिता सभी प्राणियों, कार्यों, और वस्तुओं को सम्भाले रखता, निर्देशित करता, व्यवस्थित करता और शासित करता है, महानतम से न्यूनतम तक, अपने सबसे अधिक बुद्धिमान और पवित्र प्रावधान के द्वारा, अपने अचूक पूर्वज्ञान, और अपनी स्वयं की इच्छा की स्वतन्त्र और अपरिवर्तनीय सम्मति के अनुसार, उसकी बुद्धि, सामर्थ्य, न्याय, भलाई, और दया की प्रशंसा और महिमा के लिए (WCF 5.1)।

वेस्टमिन्स्टर अंगीकार के लिए अत्यन्त उत्तम संदर्शिका, सच्चाईयां जिनका हम अंगीकार करते हैं (Truths We Confess)  में, डॉ. आर. सी. स्प्रोल इस अनुच्छेद को “धर्मसुधारवादी ईश्वरविज्ञान का अद्वितीय सारांश” बुलाते हैं। पहली बात, ध्यान दें कि अंगीकार प्रावधान को परमेश्वर के सृष्टि की रचना के कार्य से जोड़ता है। क्योंकि परमेश्वर ने सब कुछ को बनाया है, वह सब कुछ पर शासन करता है। परमेश्वर दूर या पृथक नहीं है। वह सक्रिय रूप से उस संसार से सम्बन्धित है जिसे उसने बनाया है, और अपनी सम्प्रभु योजना के अनुसार बड़ी और छोटी सभी बातों को निर्देशित कर रहा है। प्रिय पाठक, परमेश्वर आपके जीवन की घटनाओं से निश्चिन्त नहीं है। वह आपके दुखों से अचम्भित या अनभिज्ञ नहीं है। परमेश्वर जिसने आकाशगंगाओं को बनाया है वह आपके सिर के बालों को, आपके हृदय के डर को, आपके जीवन की घटनाओं को, और आपके भविष्य के विवरण को जानता है (मत्ती 6:25-34;10:26-33)।

बाइबल ऐसे पदों से भरी हुई है जो परमेश्वर का उसकी सृष्टि को सम्भाले हुए, निर्देशित करते हुए, व्यवस्थित करते हुए, और शासित करते हुए को प्रमाणित करती हैं। यहाँ कुछ मुठ्ठी भर उदाहरण हैं। भजन 135:6 सिखाता है कि परमेश्वर का  प्रावधान सृष्टि के सभी भाग पर फैला हुआ है: “जो कुछ यहोवा चाहता है, उसे वह आकाश और पृथ्वी पर, समुद्र और समुद्र तलों में करता है।” नीतिवचन 15:3 हमें स्मरण कराता है कि “यहोवा कि दृष्टि सब “स्थानों पर लगी रहती है, वह भले और बुरे दोनों को देखती है।” दानिय्येल 2:21-22 व्याख्या करता है कि परमेश्वर समय और युगों को बदलता है; वही राजाओं को हटाता और स्थापित करता है और बुद्धिमानों को बुद्धि और ज्ञानवानों को ज्ञान प्राप्त करता है। गूढ़ और गुप्त बातों को वही प्रकट करता है, और जो कुछ अन्धकार में है उसे जानता है, तथा प्रकाश उसी के साथ है।” प्रेरितों के काम 17:24-28 घोषित करता है कि “परमेश्वर जिसने जगत और उसमें की सब वस्तुओं को बनाया . . . वह स्वयं सबको जीवन,श्वास और सब कुछ प्रदान करता है . . . उसने उनका एक निश्चित समय तथा उनके निवास की सीमाएं निर्धारित कर दीं . . . क्योंकि उसी में हम जीवित रहते, चलते-फिरते और अस्तित्व रखते हैं।” और इब्रानियों 1:3 में कहा गया है कि परमेश्वर पुत्र, त्रियेकता का दूसरा व्यक्ति, “अपने सामर्थ्य के वचन से सब कुछ सम्भालता है।” पवित्रशास्त्र की अनगिनत साक्षी यह है कि परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी में सब कुछ पर नियन्त्रण में है। जैसा कि थॉमस वॉट्सन व्यक्त करते हैं, “परमेश्वर किसी शिल्पकार के समान नहीं है जो घर का निर्माण करता है, और फिर उसे छोड़ देता है, परन्तु विमान चालक के समान पूरी सृष्टि के जहाज का परिचालन करता है।

वेस्टमिन्स्टर अंगीकार प्रावधान को न मात्र सृष्टि से परन्तु “परमेश्वर के स्वयं की स्वतन्त्र और अपरिवर्तनीय सम्मति” से भी जोड़ता है। सृष्टि की घटनाएँ और प्रावधान संसार के लिए परमेश्वर के सिद्ध प्रारूप को प्रकट करने का प्रतिनिधित्व करती हैं। दूसरे शब्दो में, परमेश्वर अपनी अनन्त राजाज्ञा का प्रदर्शन सृष्टि और प्रावधान के कार्यों में करता है। परन्तु परमेश्वर की राजाज्ञाएँ क्या हैं? वेस्टमिन्स्टर छोटी प्रश्नोत्तरी हमें संक्षिप्त उत्तर देते हैं: “परमेश्वर की राजाज्ञा उसके अनन्त उद्देश्य हैं, उसकी इच्छा की सम्मति के अनुसार, जिससे, अपनी महिमा के लिए, जो कुछ भी होता है उसने पूर्व-निर्धारित किया है” (WSC 7)। सरल रूप में, जो कुछ भी आपके जीवन में होता है, वह परमेश्वर के अनन्त बुद्धि के कारण होता है। जैसा कि भजनकार बताता है, “हे यहोवा, तेरे कार्य तो अनगिनित हैं। तू ने यह सब बुद्धि से बनाया है“ (भजन 104:24)।

प्रावधान का सिद्धान्त हमें स्मरण कराता है कि यद्यपि परमेश्वर के स्पष्ट उद्देश्यों को हमारी दृष्टि से छिपाया जा सकता है, तब भी यह जानते हुए विश्राम पा सकते हैं कि जो कुछ भी हमारे साथ घटित होता है वह हमारे लिए परमेश्वर की भली और बुद्धिमान योजना की ओर से आता है। निश्चित ही, यह बहमूल्य सत्य नीतिवचन में हमारे लिए परमेश्वर पर भरोसा करने के लिए कई प्रोत्साहन का आधार है। हम अपना विश्वास प्रभु पर रखते हैं अपनी स्वयं की समझ पर नहीं, क्योंकि वह हमारे मार्गों को सीधा करता है (नीतिवचन 3:5-6)। प्रभु ही है जो हमारे पग को निश्चित करता है (नीतिवचन 16:9)। उसकी युक्तियाँ स्थिर रहती हैं (नीतिवचन 19:21)। एक उपाय जिससे मैं और मेरी पत्नी इन सत्यों को अपने परिवार में सुदृढ़ करते हैं वह है परमेश्वर की बुद्धि पर भरोसा करने के लिए एक दूसरे को चुनौती देना, परमेश्वर जो देता है उसमें सन्तुष्ट रहना, और प्रतिदिन जो करने के लिए परमेश्वर ने हमें बुलाता है उसमें विश्वासयोग्य रहना। हम परमेश्वर में विश्राम करते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि कुछ भी उसके प्रावधान की सीमा से बाहर नहीं है। ऐसे कोई भी “विद्रोही अणु” (“maverick molecules”) नहीं है जैसा कि डॉ. स्प्रोल कहते हैं। जो कुछ भी होता है वह उसकी इच्छा के अनुसार और उसकी महिमा के लिए होता है।

अगले भाग में, अंगीकार पहले और दूसरे कारणों के मध्य कठिन परन्तु महत्वपूर्ण अन्तर का परिचय देता है। यह बताता है:

यद्यपि, परमेश्वर के पूर्वज्ञान और राजाज्ञा के सम्बध में, पहला कारण, सभी बातें अपरिवर्तनीय रूप से और अचूक रूप से घटती हैं; तब भी, उसी प्रावधान के द्वारा, दूसरे कारणों की प्रकृति के अनुसार, चाहे आवश्यक रूप से, स्वतन्त्र रूप से या, निर्भर रूप से त्याग देने का आदेश देती हैं (WCF 5.2)।

अंगीकार में पहले, वेस्टमिन्स्टर के ईश्वरीय लोग (जैसा कि ईश्वरविज्ञानियों को सत्रहवीं शताब्दी में कहा जाता था) ने भी यही बात कही थी:

परमेश्वर, अनन्त काल से, अपनी इच्छा की अत्यन्त बुद्धिमान और पवित्र सम्मति के द्वारा, स्वतन्त्र रूप से, और अपरिवर्तनीय रूप से जो भी घटता है उसे नियुक्त करता है: इसलिए, इसके फलस्वरूप, न तो परमेश्वर पाप का कर्ता है, न ही प्राणियों की इच्छा के लिए उग्रता का प्रस्ताव दिया जाता है; दूसरे कारणों की स्वतन्त्रता या आकस्मिकता को दूर नहीं किया जाता परन्तु स्थापित किया जाता है (WCF 3.1)।

ये दो कथन सम्पूर्ण अंगीकार में सबसे अधिक दृढ़ शब्दों से भरे और ईश्वरविज्ञानी रूप से दृढ़ हिस्सों में से हैं। हम पहले ही देख चुके हैं परमेश्वर का प्रावधान उसकी सब कुछ के लिए पूर्वनिर्धारित योजना का सम्पादन और अविरत संचालन का कारण है। जब हम परमेश्वर का सृष्टि के शासन के विषय में सोचते हैं, तो हमें प्रावधान की किसी धारणा को अस्वीकार कर देना चाहिए जो यह कहती हो कि एक ओर तो परमेश्वर संसार से अलग हो गया है या दूसरी ओर यह कि वह मनुष्यों के साथ रोबोट के समान व्यवहार करता है। हम देववाद (deism) और नियतिवाद (fatalism) दोनो को अस्वीकार करते हैं, क्योंकि दोनो ही परमेश्वर के संसार के साथ के सम्बन्ध को विकृत करते हैं। देववाद में, परमेश्वर कुछ नही करता। नियतिवाद में, परमेश्वर सब कुछ करता है। इनमें से कोई भी स्थितियाँ स्वीकार्य नहीं है।

जो कुछ घटित होता है उसके लिए पहला या प्राथमिक कारण परमेश्वर को बताना और दूसरे कारणों की वैधता पर बल देने के द्वारा, अंगीकार ईश्वरीय सम्प्रभुता और मानवीय स्वतन्त्रता की पुष्टि करता है, अर्थात् परमेश्वर अपने उद्देशयों को प्राणियों के स्वतन्त्र चुनावों और अन्य द्वितीयक कारणों के द्वारा पूरा करता है। जैसा कि यूसूफ अपने भाइयों को बताता है, जिन्होंने उसे दासत्व के लिए बेच दिया था, “तुमने तो मेरे साथ बुराई करने की ठानी थी, परन्तु परमेश्वर ने उसी को भलाई के लिए ले लिया” (उत्पत्ति 50:20)। यूसूफ के भाई अपने भाई के विरुद्ध षडयन्त्र रचने और उसकी मृत्यु के विषय में झूठ बोलने के अपराधी थे (उत्पत्ति 37 पढ़ें), परन्तु परमेश्वर ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए इन घटनाओं के माध्यम से कार्य किया (उत्पत्ति 50:24 देखें)। उसी प्रकार, जैसा कि निर्गमन की पुस्तक इस्राएल के विरुद्ध फिरौन के कार्यों का इतिहास बताती है, हम सीखते हैं कि फिरौन ने अपने हृदय को कठोर किया और इस्राएल को मिस्र में दासत्व से मुक्त करने से इनकार किया (उदाहरण के लिए निर्गमन 8:32)। परन्तु हमें बार-बार यह भी बताया जाता है कि फिरौन के कार्य परमेश्वर द्वारा उसके हृदय को कठोर करने के फलस्वरूप थे (उदाहरण के लिए 9:12)। ये बाइबलीय स्थल ईश्वरीय और मानवीय इच्छा के सह-कार्य या अभिसारिता की व्याख्या करते हैं।

गीरहार्डस वोस समकालीनता के सिद्धान्त की व्याख्या करते हैं:

प्रत्येक व्यक्ति को मात्र अपने जीवन के इतिहास को देखना है यह समझने के लिए कि एक उच्चतम हाथ था जो इसे शासित करता था। इस स्तर पर परमेश्वर के सह-कार्य पर विश्वास करना उस पर हमारी निर्भरता के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है। वह हमारे स्वतन्त्र कार्यों को भी निर्देशित करता है, और जिस प्रकार वह इसे करता है वह हमारी समझ से कितना भी ऊपर हो, किसी भी स्थिति में यह एक सह-कार्य, एक समकालीनता होना चाहिए। यदि हमारी स्वतन्त्रता को बने रहना है, तो न कारण, न भाग्य, न संयोग, परन्तु केवल परमेश्वर का सह-कार्य हमें प्रभावित कर सकता है (भजन 104:4; नीतिवचन 16:1; 21:1)।

परमेश्वर सब बातों का प्राथमिक और अनन्त कारण है। परन्तु यह कथन, अंगीकार में बाइबल के सारांश के अनुसार, प्रकृति के नियमों या मानव के स्वतन्त्र कार्यों को नकारता नहीं है। परमेश्वर के प्रावधान के भेद में, परमेश्वर अपने सम्प्रभु उद्देश्यों को पूरा करने के लिए साधारण और नियमित साधनों का प्रयोग करता है। जे. ग्रेशम मैकेन परमेश्वर को सब बातों के पहले कारण के रूप में और गुरुत्वाकर्षण या हमारे व्यक्तिगत निर्णयों जैसे दूसरे कारणों के मध्य के सम्बन्ध को स्पष्ट करते हैं। वे संक्षेप में कहते हैं, “परमेश्वर अपने अनन्त के उद्देश्यों के अनुरूपता में जो है उसे पूरा करने के लिए दूसरे कारणों का उपयोग करता है। दूसरे कारण कोई स्वतन्त्र शक्तियाँ नहीं है जिसके सहयोग की उसे आवश्यकता हो, परन्तु वे साधन हैं जिनको वह जैसा चाहता है वैसे काम में लाता है।” मैकेन  इस बिन्दु पर बल देने के लिए एक उदाहरण देते हैं।

कल्पना कीजिए कि काँच के एक टुकड़े में आप गोली का छेद पाते हैं। आप स्वभाविक रूप से यह निष्कर्ष निकालेंगे कि छेद गोली के काँच के माध्यम से निकलने के द्वारा हुआ है, जो कि बन्दूक से गोली चलने के कारण हुआ, जो कि ट्रिगर के खींचने के कारण हुआ, जो कि एक व्यक्ति के बन्दूक पकड़ने के कारण हुआ। मसीहियों के रूप में, हम स्वीकार करते हैं कि परमेश्वर सब बातों पर सम्प्रभु है। क्योंकि वह जो कुछ भी होता है उसे नियुक्त करता है, वह इन घटनाओं का पहला कारण है। फिर भी हम यह नहीं कहेंगे कि परमेश्वर ने ट्रिगर को खींचा होगा। न ही हम काँच के टूटने का उत्तरदायी परमेश्वर को ठहराएंगे। मैकेन बल देते हैं कि गोली से हुई हानि के लिए बन्दूक चलाने वाला व्यक्ति ही उत्तरदायी है। परमेश्वर का प्रावधान में होकर शासन व्यक्तिगत दायित्व को अमान्य नहीं ठहरा देता।

अंगीकार समकालीनता के सिद्धान्त को यह दिखाने के लिए विकसित करती है कि परमेश्वर सम्प्रभु है और हम उत्तरदायी, नैतिक प्राणी हैं। क्योंकि परमेश्वर पहला कारण है सब कुछ के होने का, उसकी पूर्वनिर्धारित प्रारूप के अनुसार “सभी बातें अपरिवर्तनीय रूप से और अचूक रूप से घटती हैं।” संसार के लिए परमेश्वर की अनन्त योजना अपरिवर्तनीय और अविरत है। परन्तु, उसने इतिहास की घटनाओं को “दूसरे कारणों की प्रकृति के अनुसार चाहे आवश्यक रूप से, स्वतन्त्र रूप से, या निर्भर रूप से” घटित होने के लिए आदेशित किया।

ध्यान दें कि वेस्टमिन्स्टर के ईश्वरीय लोग तीन प्रकार के द्वितीयक कारणों की पहचान करते हैं: आवश्यक, स्वतन्त्र, और निर्भर। एक आवश्यक कारण, हमारे दृष्टिकोण से, वह है जिसे हमें अपने दिनों से प्रारम्भ करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, उत्पत्ति 8:22 बताता है, “जब तक पृथ्वी बनी रहेगी, तब तक:  बोनी और कटनी, सर्दी और गर्मी, ग्रीष्म और शरद, दिन और रात, समाप्त न होंगे।” हमारे लिए वर्ष की सामान्य ऋतु जीवन की लय का आनन्द उठाने के लिए आवश्यक हैं। जैसा कि यिर्मयाह 31:35 हमें स्मरण कराता है, प्रभु ने “दिन के प्रकाश के लिए” सूर्य और “रात्रि के प्रकाश के लिए” चाँद और तारों को दिया है। निश्चित रूप से, परमेश्वर को उसकी सृष्टि की आवश्यकता नहीं है। परन्तु अपनी बुद्धि में, उसने इस प्रकार से संसार को व्यवस्थित किया है कि हमें सूर्य, चन्द्रमा, और तारों की आवश्यकता है उन दिनों और रातों का अनुभव करने के लिए जिसे उसने हमारे लिए तैयार किया है (भजन 90:12 देखें)।

अगला, अंगीकार स्वतन्त्र अभिकरण को सन्दर्भित करता है। परमेश्वर ने जो कुछ भी बनाया है वह अपनी प्रकृति के अनुसार कार्य करता है। परमेश्वर ने हमें प्राणियों के रूप में नैतिक अभिकर्ता बनने के लिए बनाया है जो कि अपने विचारों, चिन्तन, भावनाओं, शब्दों, कार्यों, व्यवहार आदि के लिए उत्तरदायी हैं। हमें अपने कार्यों के लिए परमेश्वर को उत्तर देना होगा। अंगीकार बताता है कि जब परमेश्वर ने अदन की वाटिका में आदम और हव्वा को रचा, वे “पाप करने की सम्भवना में थे, उन्हें अपनी इच्छा की स्वतन्त्रता करने के लिए छोड़ दिया था, जो कि परिवर्तन के अधीन था” (WCF 4.2; WCF 3.1; 9.1–5 देखें)। अन्य बातों के साथ ही, इसका अर्थ है, कि जब हव्वा ने वर्जित फल को लिया, तो यह उसने स्वेच्छा से किया। उत्पत्ति 3:6 में वर्णित कार्यों पर ध्यान दें। स्त्री ने देखा कि भले और बुरे के ज्ञान वाले वृक्ष का फल खाने के लिए अच्छा है। उसने जो देखा उससे वह प्रसन्न हो गयी। वह उस ज्ञान की इच्छा करने लगी थी जो वह पेड़ दे रहा था। उसने फल लिया। उसने खा लिया। उसने अपने साथ अपने पति को भी दिया। और उसने भी खाया। उनके कार्यों के फलस्वरूप वे शापित हुए (उत्पत्ति 3 देखें)। प्राचीन उपदेशक के शब्दों में, “परमेश्वर ने मनुष्यों को सीधा बनाया, परन्तु उन्होंने बहुत सी युक्तियाँ निकाल ली हैं” (सभोपदेशक 7:29)। कई ऐसे प्रकार से जिन्हें हम पूर्ण रूप से समझ नहीं सकते, परमेश्वर हमारे सीमित जीवन को निर्धारित करता है बिना हमारे स्वैच्छिक कार्यों को कभी कम किए ( प्रेरितो के काम 2:22 को ध्यान से पढ़ें और परमेश्वर की निश्चित योजना और जिन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ाया उन विधर्मियों के आचरण, के मेल को देखें)।

तीसरा, परमेश्वर का प्रावधान निर्भर द्वितीयक कारणों को छूट नहीं देता है। मानवीय अभिकरण की दृष्टि से, एक निर्भर कारण वह है जो कि घटित होने के लिए कुछ अन्य पर निर्भर होता है। निर्भर कारण प्रायः “यदि-तब” के परिदृश्यों के रूप में आते हैं। पवित्रशास्त्र हमें बहुधा उदाहरण देता है। निर्गमन 21:13 और व्यवस्थाविवरण 19:5 में, यदि एक इस्राएली अनजाने में हत्या करने के लिए दोषी है, तब परमेश्वर ने उस व्यक्ति के शरण लेने के लिए भागने का एक स्थान नियुक्त किया है। 1 राजा 22:13-36 में, भविष्यद्वक्ता मीकायाह परमेश्वर के प्रवक्ता के रूप में अपनी साख प्रदर्शित करने के लिए अहाब की मृत्यु की चेतावनी देता है। यदि इस्राएल का राजा युद्ध में मर जाता है, तब मीकायाह, एक सच्चा भविष्यद्वक्ता सिद्ध होगा। परन्तु जैसा कि मीकायाह समझाता है, यदि अहाब सकुशल लौट जाता है, तब “यहोवा ने मेरे द्वारा बात नहीं की है” (पद 28)। मीकायाह की साख इस बात पर निर्भर करती है कि अहाब युद्ध से जीवित लौटता है या मृत।

जब हम प्राथमिक और द्वितीयक कारणों के मध्य के सम्बन्धों पर चर्चा करते हैं, तो हम यह पुष्टि कर रहे हैं कि परमेश्वर सब कुछ को इस प्रकार से नियुक्त और शासित करता है जो कि स्वाभविक नियमों और मानवीय गतिविधि भी समझाए जाते है। परमेश्वर की सम्प्रभुता दूसरे कारणों को नष्ट नहीं परन्तु स्थापित करती है। उसके अनन्त के उद्देश्य इतिहास में प्रावधान के क्षेत्र में कार्यान्वित हैं। सब कुछ के प्रथम कारण होने के रूप में, परमेश्वर बुद्धिमानी और उद्देश्यपूर्ण रूप से ऋतुओं के नियमित चक्रों, साम्राज्यों के उत्थान और पतन, बाज़ारों के उतार-चढ़ाव, परिमित के दैनिक प्रयास, नैतिक रूप से उत्तरदायी, निर्णय लेने वाले, पापी लोगों के माध्यम से अपनी सम्प्रभु राजाज्ञा को पूरी करता है (उदाहरण के लिए यशायाह 10:5-19, विशेषकर पद 6-7 देखें)।

वेस्टमिन्स्टर अंगीकार के अध्याय 5 के अगले दो भाग परमेश्वर के प्रावधान के विषय में महत्वपूर्ण गुण बताते हैं। पहली योग्यता चमत्कारों से सम्बन्धित है: “परमेश्वर अपने सामान्य प्रावधान में, साधनों का उपयोग करता है, फिर भी अपने आनन्द के अनुरूप, उनके बिना, उनके ऊपर और उनके विरुद्ध कार्य करने के लिए स्वतन्त्र है”  (WCF 5.3)। संसार जिसे परमेश्वर ने बनाया है वह उसके हस्तक्षेप के लिए बन्द नहीं है। सामान्यतः परमेश्वर अपने ईश्वरीय उद्देश्यों की पूरा करने के लिए द्वितीयक साधन जैसे कि प्रकृति के नियमों का उपयोग करता है। हालांकि, परमेश्वर अपने प्रायोजनिक शासन को इन साधनों तक सीमित रखने के लिए बाध्य नहीं है। वह लाल समुद्र को दो भाग करने या रोगी को चंगा करने या दुष्टात्मा को निकालने या एक व्यक्ति को मरे हुए से जिला देने के द्वारा अपनी सामर्थ्य का प्रदर्शन अपने लोगों के छुड़ाने के लिए निर्धारित कर सकता है। यह अलौकिक गतिविधियों का उद्देश्य परमेश्वर के सामान्य साधनों के उपयोग का विरोध करना या कम आंकना नहीं है परन्तु इनका उद्देश्य परमेश्वर के प्रायोजनिक शासन की सीमा को विस्तृत करना है। जैसा कि आर्चीबॉल्ड एलेक्ज़ैन्डर हॉड्ज का तर्क है, “प्रकृति और चमत्कारों का क्रम, द्वन्द्व में होने के स्थान पर,घनिष्ठ रूप से एक वृहद् प्रणाली के सहसम्बन्धी तत्व हैं।” परमेश्वर अपनी महिमा के लिए अनन्त और अपरिवर्तनीय योजना को पूर्ण करने के लिए प्राकृतिक नियम, मानवीय कार्यों, और ईश्वरीय चमत्कारों, का उपयोग करता है।

परमेश्वर के प्रावधान के विषय में अन्य गुण जो अंगीकार बताता है वह यह है कि सब कुछ पर उसकी ईश्वरीय सम्प्रभुता को किसी भी प्रकार से यह नहीं समझा जाना चाहिए कि वह पाप का कर्ता है। यह बताता है:

परमेश्वर की सर्वशक्तिमान सामर्थ्य, अचिन्तनीय बुद्धि, और असीम भलाई अपने आपको उसके प्रावधान में व्यक्त करती हैं, कि वह अपने को पहले पतन और स्वर्गदूतों और मनुष्यों के सभी अन्य पापों तक बढ़ा देती है; और वह मात्र अनुमति के द्वारा नहीं परन्तु इसके साथ एक बुद्धिमान और शक्तिशाली बन्धन के साथ जुड़ी है, जो एक विविध व्यवस्था में, अपने स्वयं की पवित्र लक्ष्यों के लिए आदेश देती है, और उन पर शासन करती है; फिर भी, जबकि पापमयता प्राणी के द्वारा होता है, परमेश्वर के द्वारा नहीं, जो कि अत्यन्त पवित्र और धर्मी होने के कारण, न तो पाप का कर्ता या समर्थक है और न हो सकता है (WCF 5.4) ।

इस भाग का केन्द्रीय बल इस दावे में निहित है कि पापमय कार्य केवल स्वर्गदूतों और मनुष्यों से होते हैं, परमेश्वर से नहीं। इस बिन्दु को सिद्ध करने के लिए, स्कॉटलैण्ड के ईश्वरविज्ञानी डेविड डिकसन मूसा (व्यवस्था. 32:4); दाऊद (भजन 5:4); दानिय्येल (दानिय्येल 9:4); हबक्कूक (हबक्कूक 1:13); पौलुस (रोमियों. 3:3-5); याकूब (याकूब 1:13-18);  और यूहन्ना (1 यूहन्ना 1:5; 2:16) की ओर संकेत करते हैं। इनके और अन्य कई बाइबलीय खण्ड के आधार पर यह दिखाने के लिए कि परमेश्वर पाप का कर्ता नहीं है वह कई तर्क देते हैं:

  • क्योंकि परमेश्वर अनिवार्य रूप से और असीम रूप से पवित्र और भला है, वह हर एक दोष और त्रुटि से शुद्ध और मुक्त है।
  • क्योंकि परमेश्वर पूर्ण रूप से सिद्ध है, वह अपने कार्य में असफल या त्रुटिपूर्ण नहीं हो सकता।
  • क्योंकि परमेश्वर संसार का न्यायी है, वह अपने पवित्र स्वभाव और व्यवस्था के विपरीत सभी पापों और अधार्मिकता को वर्जित करने वाला, घृणा करने वाला, और पलटा लेने वाला है।

प्रावधान पर वेस्टमिन्स्टर अंगीकार का अध्याय हमें इतिहास के पर्दे के पीछे ले जाता है ताकि हम पर यह प्रभाव डाला जा सके कि कुछ भी परमेश्वर के शासन के क्षेत्र के बाहर नहीं है। वह सब कुछ जानता है। उसने सब कुछ को नियुक्त किया है। वह उन सब की भलाई के लिए जो ख्रीष्ट में हैं और उसके त्रिएक नाम की महिमा के लिए सब कुछ को निर्देशित करता है (इफिसियों 1:3-14)। जब हम परमेश्वर के रहस्यमयी प्रावधान के द्वारा दबाव में और घबराए हुए और पीड़ा में और दुखी और आश्चर्यचकित होते हैं, तो वेस्टमिन्स्टर की यथार्थता हमें विलियम काउपर के साथ गाने में सहायता करता है,

कभी न असफल होने वाले कौशल की

अथाह खदानों की गहराई में    

वह अपने उज्जवल प्रारूपों को संजोता है,

और अपनी सम्प्रभु इच्छा पूरा करता है।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
जॉन डब्ल्यू. ट्वीडडेल
जॉन डब्ल्यू. ट्वीडडेल
डॉ. जॉन डब्ल्यू. ट्वीडडेल सैनफोर्ड फ्लोरिडा के रिफॉर्मेशन बाइबल कॉलेज में शैक्षिक संकायाध्यक्ष और ईश्वरविज्ञान के प्रोफेसर हैं, और प्रेस्बिटेरियन चर्च इन अमेरिका में एक शिक्षक प्राचीन हैं