पवित्रशास्त्र में प्रकट परमेश्वर का प्रावधान - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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पवित्रशास्त्र में प्रकट परमेश्वर का प्रावधान

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का दूसरा अध्याय है: प्रावधान

क्या आपने किसी गैर-मसीही को यह कहते सुना है, “सब कुछ किसी न किसी कारण से होता है”? मैंने सुना है, और सम्भवतः जितना मैं गिन सकता हूँ उससे अधिक बार। मैं नहीं जानता कि जब मैं इसे सुनता हूँ तो मुझे क्या सोचना चाहिए। एक ओर, मुझे प्रसन्नता होती है जब एक गैर-मसीही यह सन्देह व्यक्त करता है कि उद्देश्यहीन बातें होती है। क्योंकि, कोई व्यक्ति इस विश्वास कि कुछ बातों का कोई उद्देश्य नहीं होता, से इस विश्वास पर कि जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है, पूर्णतया विनाशवाद की ओर मुड़ा जाता है जो कि आत्मघात या समाजविरोधी व्यवहार में फलदायी होता है। दूसरी ओर, मैं जानता हूँ कि जब अधिकतर गैर-मसीही यह अंगीकार करते हैं कि सब कुछ किसी कारण से होता है, तो उनके मस्तिष्त में उसका सही कारण नहीं होता है। प्रायः वे मात्र इस बात पर विश्वास करने को स्वीकार करते हैं कि अन्धा, अव्यक्तिगत भाग्य सब कुछ नियन्त्रित करता है। परन्तु यह पूछना उचित है कि, कैसे अन्धे, अव्यक्तिगत भाग्य के पास हर बात का कारण हो सकता है? उद्देश्य मात्र व्यक्तिगत कर्ताओं से आता है जो योजना बनाते हैं और उसका पालन करते हैं। यदि सब कुछ किसी कारण से होता है, किसी बात को—वरन्, किसी जन को—इसका कारण निर्धारित करना चाहिए।

मसीहियों के रूप में, हम जानते हैं कि सब कुछ किसी कारण से होता है क्योंकि व्यक्तिगत त्रिएक परमेश्वर ने सब कुछ की रचना की और उसके पास जो कुछ भी होता है उसके लिए एक योजना है। वह इस रीति से सब कुछ पर सम्प्रभु है कि उसकी इच्छा के बिना एक गौरेया भी भूमि पर नहीं गिर सकती (मत्ती 10:29)। वह थोड़ा बहुत नहीं, परन्तु सब कुछ अपनी इच्छा की सुमति के अनुसार करता है (इफिसियों 1:11)। यही, वास्तविक रूप से, ईश्वरविज्ञानियों का प्रावधान  शब्द से अर्थ है—परमेश्वर के पास संसार और ऐतिहासिक शासन के लिए योजना और उद्देश्य है ताकि न्यूनतम से लेकर अधिकतम सब कुछ उस योजना और उद्देश्य की उपलब्धि में योगदान देते हैं। वह इतिहास का मात्र निष्क्रिय पर्यवेक्षक नहीं है; वरन्, उसने इतिहास की रचना की है एक विशेष अन्त को प्राप्त करने के लिए और वह इतिहास को निर्देशित करता है ताकि वह निश्चित रूप से उस अन्त तक पहुँचे।

संयोग जैसा कुछ नहीं होता

सभी मसीहियों के पास परमेश्वर के प्रावधान का कुछ सिद्धान्त है क्योंकि बाइबल स्पष्ट रूप से सिखाती है कि परमेश्वर समस्त बातों पर शासन करता है। मैं किसी भी ऐसे विश्वासी को नहीं जानता जो कि इस बात का खण्डन करता हो कि प्रभु सभी बड़ी बातों पर नियन्त्रण में है जैसे कि राष्ट्रपति चुनाव, आन्धी या विश्व युद्ध। हालांकि, प्रावधान के बाइबलीय सिद्धान्त में, हम परमेश्वर के नियन्त्रण को मात्र इतिहास की प्रमुख बातों तक सीमित नहीं कर रहे हैं। हम अत्यन्त छोटी बातों के विषय में भी बात कर रहे हैं, यहाँ तक कि पासे का फेंका जाना भी। नीतिवचन 16:33 कहता है, “निर्णय के लिए चिट्ठियाँ तो डाली जाती हैं, परन्तु उसका परिणाम यहोवा की ओर से होता है।” पासे का फेंका जाना, जो कि चिट्ठी डालने की प्राचीन प्रथा के कुछ आधुनिकता के समकक्ष होगा, पूर्ण रूप से सांयोगिक परिणाम प्रतीत होता है। परन्तु ऐसा नहीं है। परिणाम ठीक वही हैं जो कि प्रभु ने ठहराया था।

परन्तु निश्चय ही, परमेश्वर को पासे के उस परिणाम पाने के लिए जिसे उसने ठहराया है, बहुत सारी बातों को करना पड़ेगा। इसे सही मात्रा के बल के साथ फेंका जाना होगा। बहुत अधिक हुआ और पासा ठहराए हुयी संख्या से आगे लुढ़क जाएगा। बहुत कम हुआ तो यह सम्भवतः लुढ़के ही नहीं। इसलिए, परमेश्वर को जो परिणाम वह चाहता है उसे प्राप्त करने के लिए पासा फेंकने वाले की भुजाओं को नियन्त्रित होगा। क्या हो यदि वहाँ हल्की हवा हो या पासे को ए.सी. के वायुमार्ग के नीचे फेंका जा रहा हो? किसी भी स्थिति में,यद्यपि हल्की हो, हवा का बल पासा घूमने के परिणाम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। अपने चुने हुए परिणाम को प्राप्त करने के क्रम में निर्देशित करने हेतु प्रभु के लिए यह कुछ और है। परन्तु हवा की गति कक्ष के तापमान से सम्बन्धित होती है, जो कि हवा के अणुओं की गति से सम्बन्धित होती है, जो कि निर्धारित होती है अणुओं में निहीत परमाणुओं से और अन्ततः अपरमाणविक कणों द्वारा। परमेश्वर द्वारा चुनी हुयी संख्या देने के लिए पासे के लिए आवश्यक स्थितियाँ उत्पन्न करनी होंगी जिसके लिए उचित तापमान को उत्पन्न करना होगा जिसके लिए इन्हें उचित रीति से चलना होगा। और यह एक विस्तृत सरलीकरण है —एक बार जब आप अवपरमाणुक स्तर पर आ जाते हैं, स्थिति वास्तव में जटिल हो जाती है।

अर्थात्, जैसा कि डॉ. आर. सी. स्प्रोल ने प्रायः हमें स्मरण कराया है, कि समस्त सृष्टि में प्रभु के निर्देश और सम्प्रभु नियन्त्रण से बाहर कार्य करने वाला एक भी “विद्रोही अणु” नहीं है। ऐसा हो भी नहीं सकता, क्योंकि यदि सबसे छोटी वस्तु भी पथ से भटक जाए तो उसका प्रपाती प्रभाव सब कुछ को परिवर्तित कर सकता है। अन्ततः जैसा कि डॉ. स्प्रोल ने हमें स्मरण कराया, संयोग जैसा कुछ नहीं होता।

प्रतिदिन का प्रावधान

यह समझ जाना कि संयोग जैसा कुछ नहीं होता, इसे प्रतिदिन के जीवन के प्रति हमारे दृष्टिकोण को प्रभावशाली रूप से पुनः तैयार करना चाहिए। आइए इसका सामना करें—हम में से अधिकान्श लोग संसार की आँखों में बहुत महत्वपूर्ण लोग नहीं हैं। हमारा स्थायी प्रभाव सम्भवतः कुछ मुठ्ठी भर लोगों पर होगा, और मृत्यु के पश्चात् हमें शीघ्र ही भुला दिया जाएगा। इस कारण से, यह सोच लेना अत्यन्त सरल है कि हमारे कार्य महत्व नहीं रखते हैं या परमेश्वर इससे सम्बन्ध नहीं रखता है। हम सोच सकते हैं कि वह विश्व अगुवों के कार्यों से सम्बन्ध रखता है, परन्तु निश्चित रूप से जब हम डाइपर बदलते हैं, अपने किशोरों को परेशानी से बचाने का प्रयास करते हैं, ऋण का भुगतान के लिए लम्बी अवधि तक कार्य करते हैं, पड़िसियों से बात करते हैं, प्रत्येक सप्ताह कलीसिया जाने के लिए संघर्ष करते हैं, विश्राम करते हैं, अपने बच्चे के साथ एक ही खेल खेलते रहते हैं, अगली परीक्षा के लिए रटते हैं, इत्यादि, तो वह हम शेष लोगों पर अधिक ध्यान नहीं देता है।

परमेश्वर के प्रावधान का सत्य हमें भिन्न बात बताता है। सर्वप्रथम, प्रावधान का अर्थ मात्र यह नहीं है कि वह सब बातों पर शासन और उन्हें निर्देशित कर रहा है परन्तु यह भी है कि वह सब कुछ को बनाए रखे हैं। उदाहरण के लिए, इब्रानियों 1:3 प्रकट करता है कि परमेश्वर अपने पुत्र के द्वारा, “अपने सामर्थ्य के बचन के द्वारा सब वस्तुओं को सम्भालता है।” परमेश्वर ने सभी वस्तुओं को बनाया मात्र नहीं है परन्तु वह सभी वस्तुओं को सुरक्षित भी रखता है (नहेमायाह 9:6)। जैसा कि थोड़े दिन पूर्व मैं अपने बच्चों से कह रहा था, यदि परमेश्वर संसार के अस्तित्व को बनाए रखना समाप्त कर दे, तो सब कुछ—हमारे सहित—तुरन्त शून्यता में चला जाएगा। प्रत्येक क्षण, हम पूर्ण रूप से परमेश्वर द्वारा उसकी सृष्टि को बनाए रखने की निरन्तरता पर निर्भर हैं। संसार अपनी सामर्थ्य पर नहीं चलता रहता है।

परमेश्वर के बनाए रखने वाले प्रावधान के सत्य से, हम उचित रूप से यह अनुमान लगा सकते हैं कि परमेश्वर ऐसा सोचता है कि सृष्टि में सब कुछ बहुत महत्वपूर्ण है, यहाँ तक कि वह भी जिन्हें हम नीरस समझते हैं। हमारा सृष्टिकर्ता वह नहीं है जो कि तुच्छ वस्तुओं पर अपना समय और ऊर्जा नष्ट करे। यह वास्तविकता कि वह सब कुछ को बनाए रखता है, हमारे सामान्य जीवनों और निर्णयों समेत, का अर्थ है इन सब वस्तुओं का मूल्य है। यह मूल्य, निस्सन्देहः हमारे पास से नहीं आता; वरन्, मूल्य इस बात में पाया जाता है कि परमेश्वर कैसे सब बातों के द्वारा हमारी भलाई और अपनी महिमा उत्पन्न करता है, कैसे उसने सब कुछ को अपनी सम्प्रभु योजना में एक साथ बुना है (यशायाह 43:6-7; रोमियों 8:28)। जैसा कि रोमियों 11:36 व्यक्त करता है: “उसी की ओर से, उसी के द्वारा और उसी के लिए सब कुछ है। उसी की महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन।”

इसलिए, परमेश्वर का शासन और बनाए रखने का कार्य तुलनात्मक रूप से जीवन की छोटी वस्तुओं में स्वयं कार्य करते हैं। भोजन में मछली के स्थान पर मुर्गा खाने का चुनाव, सामने के आंगन में पौधे लगाने के लिए फूलों का चुनाव, बेसबॉल से अधिक फुटबॉल के लिए हमारी प्राथमिकता, सीधे राजमार्ग के स्थान पर सुरम्य मार्ग लेने का हमारा निर्णय, नाई से हमारे बालों से पूरे एक इंच के स्थान पर आधा इंच काटने का निवेदन, हमारी बेटियों का फुटबॉल के स्थान पर नृत्यनाटिका की कक्षाएं लेने का हमारा चुनाव; सब कुछ अन्ततः प्रभु द्वारा शासित और निर्देशित होता है और इसलिए उसकी योजना का मूल्य होता है। यह सत्य हमें शक्तिहीन बनाने के लिए नहीं है। यदि हम मुर्गे के स्थान पर मछली चुन लेंगे तो हम परमेश्वर के राज्य के पथ-भ्रष्ट का कारण नहीं बन जाएँगे। वास्तव में, उस प्रकार का एक निर्णय, यदि सब कुछ समान रहे, निष्पक्ष है। मुर्गा या मछली खाना न तो सहज रूप से पापमय है और न ही सहज रूप से धर्मी है। तब भी, इस प्रकार की साधारण स्थिति में भी जो चुनाव हम करते हैं, परमेश्वर के राज्य पर उसके प्रभावों को हम समझ नहीं सकते।

अन्य शब्दों में कहें तो, परमेश्वर का प्रावधान बहुत अधिक प्रतिदिन की वास्तविकता है। बाइबल देववाद (Deism) के परमेश्वर को प्रकट नहीं करती है, जो कि अपनी सृष्टि से अधिकतर उदासीन और असम्बन्धित है। पवित्रशास्त्र हमें एक सच्चे परमेश्वर को प्रस्तुत करता है, जो कि निकट का परमेश्वर है (यिर्मयाह 23:23-24) मात्र इस अर्थ में नहीं कि वह अपनी सृष्टि में हर स्थान पर उपस्थित है परन्तु इसमें कि वह सृष्टि के कार्यों और उसके प्राणियों के निर्णयों में और उनके माध्यम से उपस्थित है। वह इन बातों से पृथक रहता है, परन्तु कोई भूल नहीं करता, उसका हाथ इन सबको थामे हुए है और निर्देशित करते हैं, जब वह अपनी इच्छा की सुमति के अनुसार सब कुछ करता है—मात्र थोड़ा नहीं (इफिसियों 1:11)।

असाधारण प्रावधान

हमारे महत्वहीन प्रतीत होने वाले चुनाव परमेश्वर की योजना को असफल नहीं कर देंगे, परन्तु बड़े और अधिक परिणामी निर्णयों के विषय में क्या? यह भी प्रभु की योजना का विनाश नहीं कर देंगे क्योंकि उसका प्रावधान मात्र प्रतिदिन की बातों में ही नहीं परन्तु उन बातों में भी कार्य करता है जिन्हें हम असाधारण कहते हैं—वे कार्य जो कि स्पष्ट रूप से विश्व इतिहास की अवधि और परमेश्वर के राज्य के विस्तार को प्रभावित करते हैं। वास्तव में, हम कह सकते हैं कि क्योंकि प्रभु का प्रावधान प्रतिदिन की बातों को शासित करता है, इसलिए इसे असाधारण बातों को भी शासित करना चाहिए।

दानिय्येल 2:21 कहता है कि परमेश्वर ही “राजाओं को हटाता और स्थापित करता है।” कुछ बातें विश्व के शासकों की तुलना में इतिहास के परिणाम के लिए प्रत्यक्ष रूप से अधिक उपयुक्त हैं। राजाओं का उत्थान और पतन एक असाधारण बात है जो कि निश्चित रूप से परमेश्वर की इतिहास के लिए योजना और उसके लोगों के लिए योजना को पूरा करने के अभिप्राय के अनुसार होना चाहिए। इसे स्पष्ट करने के लिए हम 538 ई.पू. में फ़ारसी सिंहासन के लिए कूस्रू राजा के राज्याभिषेक पर विचार करेंगे।

दो सौ वर्ष पूर्व, फारस के विश्व परिदृश्य में एक प्रमुख खिलाड़ी होने से पूर्व और यहाँ तक कि क्रूसू के भी जन्म से पूर्व, यहूदा के बेबीलोन में निर्वसन से पूर्व, भविष्यद्वक्ता यशायाह ने यह भविष्यवाणी की थी कि क्रूसू सत्ता में पदोन्नति करेगा, विजय प्राप्त करेगा, और यहूदी निर्वासनों को अपनी जन्म भूमि लौटने के लिए मुक्त करेगा (यशायाह 45:1-13)। परन्तु निश्चित ही, इसे होने के लिए, बड़ी संख्या में घटनाओं और निर्णयों को एक विशेष  प्रकार से होना पड़ा ताकि क्रूसू फारस का अगुवा बने और इस प्रकार से शासन करे कि यहूदी घर जा सकें। सर्वप्रथम, यहूदियों को बेबीलोन में निर्वासित किया जाना चाहिए। परन्तु यह तभी हो सकता है जब बेबीलोन, यशायाह के दिनों में राज्य करने वाले विश्व सामर्थ्य,सर्व-शक्तिशाली प्रतीत होते अश्शूर साम्राज्य पर विजय प्राप्त कर ले। परन्तु बेबीलोन तभी ऐसा करता है यदि अश्शूर साम्राज्य कई त्रुटिपूर्वक निर्णयों को लें और बेबीलोन के निवासी युद्ध भूमि में अश्शूर से अधिक प्रभावी हो जाएँ। ऐसा होने के लिए, बेबीलोन में सही रणनीतिज्ञों को प्रमुखता में आना होगा और अश्शूर के राजा को बुरे सम्मिति देने वालों का पालन करना होगा या स्वयं ही बुरे निर्णय लेने होंगे। परन्तु रणनीतिज्ञों का सही शिक्षाऔर अनुभव प्राप्त किए बिना आपके पास बेबीलोन में सही रणनीतिज्ञ नहीं हो सकते, जिसके लिए इन रणनीतिज्ञों का सही परिवारों में जन्म लेने की आवश्यकता है जो इन्हें उस शिक्षा और अनुभव प्रदान कर सके। फिर, इन परिवारों का निर्माण मात्र विवाह के सही निर्णय से होता है, इत्यादि। दूसरी ओर, अश्शूर में बुरे सम्मति देने वालों को आने के लिए इसी प्रकार की घटनाओं की श्रृंखला की आवश्यकता होगी।

क्रूसू के सत्ता में आने के लिए, उसे पहले अस्तित्व में आना चाहिए, इसलिए बच्चे को पैदा करने के लिए सही जोड़े को एक साथ आना चाहिए। उस स्थिति तक पहुँचने के लिए, दो परिवारों को क्रूसू  की माता और पिता के विवाह के लिए सहमत होना होगा। माता-पिता दोनो को क्रूसू के गर्भ में आने के लिए के प्रसव की उम्र रहने तक ऐसा कर लेना होगा, इसलिए उसके माता और पिता दोनों को दुर्घटनाओं, बिमारियों, आदि से सुरक्षित रखा जाना चाहिए जो कि उन्हें क्रूसू के जन्म लेने से पहले मार सकता है। और ऐसा होने के लिए, क्रूसू के नाना-नानी और दादा-दादी को क्रूसू के माता-पिता के बड़े होने तक उनकी देखभाल के लिए सही निर्णय लेने होंगे, जिसका अर्थ है की क्रूसू के परदादा-दादी को क्रूसू के दादा-दादी के पालन-पोषण करने में सही निर्णय लेने होंगे, और इसी प्रकार से आगे भी।

मैं यहाँ बातों को सरलीकृत कर रहा हूँ, परन्तु बिन्दु यह है कि परमेश्वर क्रूसू जैसे किसी व्यक्ति की नियुक्ति एवं उसके उत्थान को नियन्त्रित और यहूदियों को मुक्ति को, असंख्य छोटी-छोटी घटनाओं जैसे कि माता-पिता के निर्णय और उसके व्यक्तिगत इतिहास को संचालित किए बिना नहीं कर सकता।  इसे आनुवांशिक स्तर तक नीचे उतरना होगा, क्योंकि क्रूसू सत्ता में तभी आ सकता है यदि उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली उसे सत्ता लेने तक जीवित रखे। यदि किसी भी बिन्दु पर छोटी से छोटी बात भी न हो—उदाहरण के लिए, उसे प्राणघातक रोग के लिए आनुवांशिक प्रवृत्ति विरासत में मिली है—तो सब कुछ नष्ट हो गया।

लिए गए निर्णयों और किए गए कार्यों का प्रपाती प्रभाव होता है। अत्यन्त पुरानी एक असाधारण घटना में नायकों के इतिहास का पता लगाएँ, और आप यह पाएँगे कि घटना और नायक तभी वास्तविकता बनते हैं जब असंख्य लोगों के लाखों छोटे-छोटे निर्णय सही परिस्थितियों में सही व्यक्ति को लाने के लिए सही समय पर चुनाव करने के लिए मिलते हैं ताकि उस घटना को उत्पन्न कर सकें। मसीहा को दाऊद के वंश में पैदा होने के लिए (यशायाह 11:1-10), जैसा कि भविष्यद्वाणी की गयी थी, दाऊद के वंश को मसीहा के जन्म तक जीवित रहना था। और दाऊद का वंश तभी जीवित रह पाता यदि दाऊद के वंश के सदस्य और साथ ही साथ दाऊद के वंश के नियन्त्रण से बाहर के कारकों के असंख्य निर्णय, किसी न किसी रूप में,चाहे छोटी रीति से ही, वंश के संरक्षण के लिए योगदान देते। यह बात रूत की पुस्तक से स्पष्ट है, जहाँ दाऊद के अग्रदूत, बोअज़ और रूत के विवाह में संयोग की श्रृंखला समाप्त होती प्रतीत होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि परमेश्वर का प्रावधान अपनी योजना को पूरा करने के लिए असाधारण बातों में तभी कार्य करता है जब वह प्रतिदिन की बातों में भी सब कुछ को नियन्त्रित करता है। सब कुछ किसी कारण से होता है क्योंकि परमेश्वर ने सब कुछ को किसी कारण से होने के लिए व्यवस्थित किया है।

प्रावधान हम में और हमारे द्वारा

इसे जो हमें बताना चाहिए वह यह है कि मुर्गे और मछली के मध्य चुनाव, यद्यपि स्वयं में साधारणतया एक नैतिक निर्णय या तत्काल परिणामीं नहीं हैं, परन्तु अन्ततः महत्वहीन भी नहीं हैं। उदाहरण के लिए, यह भविष्य के वंशज में एलर्जी पैदा करने में भूमिका निभा सकता है, जो कि तब समुद्री भोजन के भोजनालय में न जा कर कॉफी की दुकान में जाना चुने, जहाँ वह स्थानीय लड़की से मिलता है जिसे उस दुकान की कॉफी पसन्द है और अन्ततः  उससे विवाह कर लेता है, और वे प्रभावशाली सुसमाचार प्रचारक, न्यायाधीश, या राष्ट्रपति को जन्म देते हैं जो विश्व इतिहास को आकार देते हैं। और विचार कीजिए, इस अगुवे के माता-पिता कभी नहीं मिले होते यदि उनके दूरस्थ पूर्वज ने मछली के स्थान पर मुर्गे का या मुर्गे के स्थान पर मछली का चुनाव किया होता।

साथ ही साथ, जब कि परमेश्वर का प्रावधान सब बातों को शासित करता है, वह कोई कठपुतली वाला नहीं है जो कि सभी तारों को एक साथ इस प्रकार से खींचता है जैसे हमारे निर्णय वास्तव में हमारे नहीं हों, हमारी प्रेरणाएँ महत्व नहीं रखती हों, और हमारा इतिहास के क्रम में कोई वास्तविक प्रभाव नहीं हों। प्रभु हमारे निर्णयों, कार्यों, और प्रेरणाओं में और इनके द्वारा इस प्रकार से कार्य करता है कि हमारे निर्णय, कार्य, और प्रेरणा बने रहें फिर भी परमेश्वर के उद्देश्यों की पूर्ति की ओर कार्य करते रहें। हमारे निर्णय, कार्य,और प्रेरणाएँ प्रभु के निर्णय, कार्य,और प्रेरणाओं के साथ इस अर्थ में समकालीन होने चाहिए कि वे जिसे प्रभु ने निर्धारित किया है उसे प्रत्येक मानव और ईश्वरीय नायक के स्वभाव के अनुसार पूरा करने के लिए एक साथ कार्य करें। ईश्वरविज्ञानी इसे समकालीनता का सिद्धान्त (doctrine of concurrence) कहते हैं, और इसे कुछ बाइबलीय उदाहरणों के द्वारा अच्छे से समझाया गया है।

यूसुफ का जीवन एक उत्कृष्ट उदाहरणों है, विशेषकर जब यूसुफ अपने जीवन का सार प्रस्तुत करता है। अ‍पने भाइयों द्वारा दासत्व में बेचे जाने के पश्चात्, मिस्र में दुर्व्यव्हार को सहते हुए, फिरौन के दाहिने हाथ के रूप में उभरते हुए, और परिवार के साथ मेल-मिलाप करते हुए, यूसुफ अपने भाइयों को बताता है, “तुमने तो मेरे साथ बुराई करने की ठानी थी, परन्तु परमेश्वर ने उसी को भलाई के लिए ले लिया, जैसा कि आज के दिन हो रहा है कि बहुत से लोगों के प्राण बच जाएँ” (उत्पत्ति 50:20)। जब यूसुफ के भाइयों ने उसे दासत्व में बेचा, तो उनका पापमय उद्देश्य था उससे छुटकारा पाने का। तथापि, प्रभु के पास भिन्न योजना थी। वह यूसुफ को मिस्र में लाना चाहता था ताकि यूसुफ फिरौन का दरबार में जुड़ सके और न एकमात्र संसार को आकाल से परन्तु विशेषकर इब्राहीम के चुने हुए वंश को बचाए। उसका इस अच्छे उद्देश्य को पूरा करने का और लाभकारी परिणाम प्राप्त करने का साधन यूसुफ के भाइयों में दुष्ट उद्देश्य के विकास और उनके पापमय कार्यों को करने की अनुमति देना था ताकि यूसुफ मिस्र में प्रथम स्थान पर पहुँच सके। परमेश्वर ने यह सब बिना किसी दुष्ट उद्देश्य या स्वयं दुष्टता किए बिना किया। परन्तु भाइयों और प्रभु के उद्देश्य और कार्य, यद्यपि मूलतः भिन्न थे, पर इस प्रकार से समकालीन थे कि यूसुफ मिस्र भेज दिया गया।

प्रावधान पर अपनी शिक्षा में डॉ. स्प्रोल समकालीनता की व्याख्या करने के लिए प्रायः अय्यूब 1 को देखते हैं। उस अध्याय में, शैतान अय्यूब का विनाश करने की खोज में रहता है, परमेश्वर उसे अय्यूब के पीछे जाने की अनुमति देता है, और कसदी अय्यूब के ऊँटों को चुरा ले जाते हैं। सब कुछ एक साथ आ जाता है और अय्यूब को एक बड़ी हानि होती है, परन्तु नायक सभी भिन्न-भिन्न कार्य करते हैं और भिन्न-भिन्न रूप से प्रेरित हैं। शैतान अय्यूब की प्रभु के विश्वासयोग्य सेवक के रूप में साख घटाने की खोज में रहता है, इसलिए वह अय्यूब के विरुद्ध बातें गढ़ता है। प्रभु अय्यूब को अपने विश्वासयोग्य सेवक के रूप में सिद्ध करने की खोज में रहता है, इसलिए वह शैतान को अय्यूब के विरुद्ध कार्य करने की अनुमति देता है। कसदी परमेश्वर और शैतान के मध्य के संवाद के विषय में नहीं जानते; उन्होंने एक धनवान पुरुष को देखा और उसकी वस्तुओं की अपने लिए इच्छा की, इसलिए उन्होंने अय्यूब से चुरा लिया। ये सभी बातें भिन्न-भिन्न प्रकार से संचालित होती हैं, परन्तु अय्यूब को तब तक कोई आर्थिक हानि नहीं होती जब तक कि शैतान अय्यूब की साख नहीं घटाना चाहता है, परमेश्वर उसको कार्य करने की अनुमति देता है,और कसदी अय्यूब के धन को देखते और उसकी इच्छा करते हैं। ये तीनों तत्व अय्यूब के दुख को उत्पन्न करने के लिए समकालीन हैं, परन्तु परमेश्वर इन सब में पवित्र और धर्मी बना रहता है।

सम्भवतः समकालीनता का सबसे उत्तम उदाहरण हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता का क्रूसीकरण है। जैसे कि हम घटना में विभिन्न खिलाड़ियों को देखते हैं, हम विभिन्न प्रेरणाओं और कार्यों को देख सकते हैं। (यद्यपि, निम्नलिखित उदाहरणों में, हम ध्यान देते हैं कि त्रिएकता के तीनों व्यक्ति अन्ततः एक ही प्रेरणा साझा करते हैं और प्रत्येक दूसरे के कार्यों में सहभागी होता है, उद्धार के पूरा होने में हम प्रत्येक व्यक्ति से जुड़े विशेष कार्यों पर बल दे सकते हैं।) यहूदा ने यीशु को धोखा दिया क्योंकि वह धन से प्रेरित था। यहूदी अधिकारी यीशु को प्राप्त होने वाली प्रशंसा को पसन्द नहीं करते थे और उसकी आलोचनाओं से भयभीत थे। रोमी अधिकारी चाहते थे कि यहूदी तर्क करना रोक दें ताकि उनका विवाद विद्रोह में न विकसित हो जाए। शैतान ख्रीष्ट की सेवकाई और शैतानी राज्य के विरुद्ध उसके आक्रमण को समाप्त करना चाहता था। यीशु स्वेच्छा से अपने लोगों के पापों के प्रायश्चित और अपने पिता का आज्ञापालन करने के लिए क्रूस पर चला गया। पिता ने अपने लोगों को बचाने की प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए यीशु को क्रूस पर भेज दिया। पवित्र आत्मा ने क्रूस पर यीशु को बनाए रखा ताकि प्रभावी प्रायश्चित प्राप्त किया जा सके और उद्धारकर्ता की महिमा हो (यशायाह 53; मत्ती 26:3-5, 14-16; 27:24-26; यूहन्ना 3:16; 11:45-49; रोमियों 8:32; इब्रानियों 9:14; प्रकाशितवाक्य 12:4)। छुटकारे के इतिहास के महान कार्य में सभी खिलाड़ियों को प्रायश्चित के होने के लिए कार्य करना था, और जबकि प्रत्येक प्रेरणाओं और कार्यों में भिन्न थे, प्रभु की योजनाओं और उद्देश्यों में सफलता लाने लिए सब कुछ समकालीन था। परमेश्वर ने यह सब, बिना अनुचित कार्य करे या बिना नायकों की इच्छा का उल्लंघन करे शासित किया। जैसा कि पतरस ने पिन्तेकुस्त के दिन श्रोताओं से कहा था, “इसी मनुष्य को, जो परमेश्वर की पूर्व-निश्चित योजना और पूर्वज्ञान के अनुसार पकड़वाया गया था, तुमने विधर्मियों के हाथों क्रूस पर कीलों से ठुकवा कर मार डाला” (प्रेरितों के काम 2:23)।

सब कुछ किसी कारण से

परमेश्वर के प्रावधान का अर्थ है कि सब कुछ किसी कारण से होता है, बड़ी बातें और छोटी बातें दोनों ही, अच्छा और बुरा दोनों ही। अन्ततः यह एक अच्छे कारण के लिए है, क्योंकि प्रावधान में परमेश्वर सब कुछ अपनी सिद्ध भली इच्छा की सुमति अनुसार करता है (इफिसियों 1:11)। और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है और आगे के लेखों में कहा भी जाएगा, परन्तु हमने बाइबलीय शिक्षा की मूल बातों को देख लिया है: परमेश्वर का प्रायोजनिक शासन प्रतिदिन की बातों और असाधारण बातों दोनो ही में संचालन करता है, और यह उसके प्राणियों के कार्यों में और उसके माध्यम से संचालन करता है। वास्तव में, सब कुछ जो होता है वह उस पर सम्प्रभु है, सब कुछ को उद्देश्य देता है चाहे हम इसे समझ न सकें। इसके अतिरिक्त, उसका सर्व-नियन्त्रित सम्प्रभु प्रावधान जो हम करते हैं उसे अर्थहीन नहीं बनाती है। इसके बिना, किसी बात का अर्थ नहीं है।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
रॉर्बट रॉथवेल
रॉर्बट रॉथवेल
रॉर्बट रॉथवेल टेबलटॉक पत्रिका के सहयोगी संपादक, लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ के लिए वरिष्ठ लेखक और रिफॉर्मेशन बाइबल कॉलेज के निवासी सहायक प्राध्यापक हैं।