पवित्र आत्मा की सेवा - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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पवित्र आत्मा की सेवा

धर्म-सुधारकों ने ख्रीष्ट की सम्पूर्ण देह के लिए पवित्र आत्मा के वरदानों पर अत्यधिक बल दिया। जॉन कैल्विन का वर्णन उचित रीति से किया गया है कि वह “पवित्र आत्मा का ईश्वरविज्ञानी” (बी.बी. वॉरफील्ड) है । फिर भी धर्म-सुधारवादी ख्रीष्टियों को सर्वदा पवित्र आत्मा के वरदानों से सम्बन्धित विचारों को लेकर “निंदा कि दृष्टि” से देखा जाता है।

हमारा विश्वास है कि परमेश्वर ने उद्देश्यपूर्ण रूप से कुछ वरदानों को दिया (विशेष रूप से आश्चर्यकर्म करने की सामर्थ्य, प्रकाशन देने वाली भविष्यवाणी का वरदान, और अन्य भाषायें बोलने का वरदान) केवल एक सीमित समय के लिए। ऐसा विश्वास करने के लिए हमारे पास बाइबल से ठोस प्रमाण है:

  1. इन वरदानों का अस्थायी प्रदर्शन परमेश्वर के काम करने की रीति के अनुरूप है। प्रचलित विचारों के विपरित, ऐसे वरदान बाइबल के इतिहास में अनियमित रीति से दिए गए। उनका घटित होना सामान्य रीति से कुछ ही समयकाल के लिए हुआ लगभग एक पीढ़ी के समय के लिए।
  2. इन वरदानों के कार्य को, अर्थात् प्रकाशन (अब ख्रीष्ट के वापस आने तक जो बंद हो गई) को व्यक्त करना एवं पुष्टि करना, स्वयं नए नियम में रेखांकित किया गया है (प्रेरितों का काम 2:22, 14:3; देखें 2 कुरन्थियों 12:12; इब्रानियों 2: 3-4)।
  3. नए नियम का इतिहास संकेत करता है कि प्रेरितों के युग के समाप्ति तक इन वरदानों की भूमिका नए नियम के पूरा होने के द्वारा समाप्त हो रही थी। इस प्रकार, कोई वर्णन नहीं है उनकी उपस्थिति का—या और अधिक महत्वपूर्ण रूप से, उनके भविष्य में प्रयोग नियमों का—पासबानीय पत्रियों में।

यहाँ  पर बाइबलीय ख्रीष्टविज्ञान के सन्दर्भ में और अधिक कहा जा सकता है, क्योंकि पिन्तेकुस्त के दिन अन्य भाषाएं, भविष्यवाणी और आश्चर्यकर्म के वरदान के उण्डेले जाने का उद्देश्य विशेष रूप से ख्रीष्ट के राज्याभिषेक को चिह्नित करना था। इसलिए, अपने आप में इसका उद्देश्य था कलीसिया के जीवन में अस्थायी होना। परन्तु इस सन्दर्भ में, सम्भवतः अधिक महत्वपूर्ण है धर्म-सुधारवादी शिक्षा के एक और प्रायः उपेक्षित पहलू पर बल देना। यह महान प्यूरिटन जॉन ओवेन के कुछ शब्दों में अच्छी रीति से व्यक्त किया गया है:

यद्यपि ये सभी वरदान और संचालन कुछ मायनों में  समाप्त हो गए, उनमें से कुछ पूर्ण रीति से और उनमें से कुछ उनके तत्कालिक संचार के तरीके और श्रेष्ठता में ; फिर भी जहाँ तक उसने कलीसिया के आत्मिक निर्माण की बात है उनमें कुछ समरूप है जो था और बना हुआ है।

इसका अर्थ क्या है? केवल यह: एक ही आत्मा कलीसिया को अस्थायी और निरन्तर चलने वाले वरदान दोनों देता है। इसलिए हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए, जब हम दोनों में सामान्य सूत्र पाते हैं।

सम्भवतः सबसे महत्वपूर्ण सामान्य सूत्र है प्रकाशित करने में आत्मा की सेवा—वह हमारे मन को प्रकाशित करता है जिससे हम परमेश्वर की इच्छा और उद्देश्य को जानें, देखें, समझें, और लागू करें। अस्थायी वरदान में प्रकाशन के लिए तत्कालिकता थी। आत्मा ने प्रेरितों को “सब कुछ” सिखाया (यूहन्ना 14:26) और उसने उनको “सम्पूर्ण सत्य” में अगुवाई की (यूहन्ना 16:13)। अब, फिर भी, वह हम में इस कार्य को उस पवित्रशास्त्र के माध्यम से जारी रखता है जिसे हमारे लिए लिखने के लिए उसने प्रेरितों को सक्षम बनाया। वास्तव में, विदाई के वार्तालाप में (यूहन्ना 14-16), हमारे प्रभु ने प्रेरितों के लिए स्पष्ट कर दिया कि यह उनके जीवन में आत्मा की एक केन्द्रीय सेवा होगी: वह उनको स्मरण दिलाएगा कि यीशु ने क्या कहा था (सुसमाचार), सत्यता में अगुवाई करेगा (पत्रियां), और आने वाली बातों को दिखाएगा (उदाहरण: प्रकाशितवाक्य)।

तो क्यों आजकल ख्रीष्टीय लोग—अपने पिताओं के विपरीत जाकर—परमेश्वर से तत्कालीन प्रकाशन का अनुभव करने के लिए इतने प्यासे हैं, जबकि हमारे लिए उसकी इच्छा पवित्र आत्मा के चल रहे कार्य है जिसमें वह हमारे समझ को खोलता है नए नियम के प्रकाशन के माध्यम से? इसके तीन कारण प्रतीत होते हैं:

  1. सीधे प्रकाशन को पाना अधिक रोमाँचक है बाइबल के प्रकाशन से। यह अधिक “आत्मिक” और “परमेश्वरीय” लगता है।
  2. बहुत लोगों के लिए, यह कह पाना अधिक आधिकारिक लगता है कि, “परमेश्वर ने मुझ पर यह प्रकट किया है,” यह कहने के तुलना में कि, “बाइबल मुझे ऐसा बताती है।”
  3. सीधा प्रकाशन पाना हमें परमेश्वर की इच्छा जानने के लिए कठिन बाइबल अध्ययन और ख्रीष्टिय सिद्धान्तों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता से मुक्त कराता है। तत्कालीन प्रकाशन कि तुलना में, बाइबल अध्ययन—वास्तव में—उबाऊ लगता है।

ऐसा न हो कि हम भयभीत हो जाएं और एक प्रकार की घेराबंदी मनोवृत्ति विकसित कर लें, धर्म-सुधारक ख्रीष्टियों के रूप में, यहाँ कुछ बातें हैं जिन्हें हमें मन में रखना चाहिए प्रकाशन के कार्य के विषय में: 

  1. यीशु ने इसका अनुभव किया। हाँ, हमारे प्रभु ने भविष्यवाणी की; हाँ उसने आश्चर्यकर्म किए। परन्तु हम प्रतीयमानवाद के दोषी होंगे (वह विचार कि यीशु का मनुषयत्व केवल हमारे समान प्रतीत हुआ) और पवित्रशास्त्र के प्रति असत्य होंगे यदि हम यह पहचानने में असफल रहें कि यीशु बुद्धि और परमेश्वर के अनुग्रह में बढ़ता गया (लूका 2:52) धैर्यपूर्वक पुराने नियम के शास्त्रों का मनन करते हुए।( मैं सोचता हूँ कि सम्भवतः उसने उन्हें कण्ठस्थ किए होंगे) यशायाह की तीसरी सेवक की गीत (यशायाह 50:4-11) हमें एक हृदय स्पर्शी अद्भुत चित्रण देता है प्रभु यीशु के प्रतिदिन उठने का, अपने पिता पर निर्भर कि वह अपने वचन के समझ में उसे प्रकाशित करे ताकि वह एक बुद्धि की आत्मा और समझ से भरपूर मनुष्य के समान सोचे, अनुभव करे, कार्य करे और जीवन जीए (यशायाह 11:2 से आगे)।
  2. यह वह परमेश्वरीय विधि है जो विश्वसनीय ख्रीष्टिय वृद्धि को उत्पन्न करती है, क्योंकि इस में सम्मिलित है मन का नया हो जाना (उसका रुकाव नहीं) (रोमियों 12:2) और यह प्रगतिशील है (यह समय लेता है और हमारी इच्छा की आज्ञाकारिता की मांग करता है)। कभी-कभी परमेश्वर शीघ्रता से कार्य करता है। परन्तु उसका सामान्य तरीका है धीरे से और निश्चित रूप से कार्य करना हमें प्रगतिशील रीति से हमारे प्रभु यीशु की तरह धीरे-धीरे बनाना।
  3. आत्मा का परमेश्वर के वचन के साथ हमारी सोच को प्रकाशित और परिवर्तित करने के कार्य का परिणाम एक ईश्वरभक्त प्रवृत्ति का विकास है जो कभी-कभी आश्चर्यजनक तरीके से संचालित होता है। एक अच्छे रीति से सिखाए गए और आत्मा द्वारा प्रकाशित विश्वासी में पवित्रशास्त्र का प्रकाशन उसके मानसिकता में इतना जुड़ जाता है कि परमेश्वर की इच्छा प्रायः स्वभाविक और तुरन्त स्पष्ट भी प्रतीत होता है—ठीक वैसे जैसे संगीत का एक भाग अच्छी तरह से या बुरी तरह से बजाया जाना एक अच्छे अनुशासित संगीतकार के लिए तुरन्त स्पष्ट है। यह वही आत्मिक अभ्यास है जो परखने की क्षमता को उत्पन्न करता है (देखिये, इब्रानियों 5:11-14)।

कभी-कभी अच्छे उद्देश्य रखने वाले ख्रीष्टिय लोग आत्मा के प्रकाशन के कार्य को नए प्रकाशन के साथ गड़बड़ा सकते हैं, जिसके कारण, दुर्भाग्य से, गम्भीर ईश्वरविज्ञानीय भ्रम और सम्भावित रूप से दुःखद व्यावहारिक परिणाम हो सकते हैं। परन्तु प्रकाशन का सिद्धान्त हमारे अनुभव के कुछ अधिक रहस्यमय तत्वों की व्याख्या करने में सहायता करता है बिना इस दावे का सहारा लिए कि हमारे पास नए प्रकाशन और नबूवत का वरदान है। यहाँ पर स्वर्गीय जॉन मुर्रे ने बड़ी बुद्धिमानी से बात की: “जैसे-जैसे हम इस प्रकाशन के प्राप्तकर्ता हैं और इसके प्रति प्रतिक्रिया करते हैं, और जैसे-जैसे पवित्र आत्मा परमेश्वर की इच्छा को करने में हमारे भीतर क्रियाशील है, हमारे पास भावनायें, विचार, दृढ़ विश्वास,  तीव्र इच्छा, अवरोध, बोझ, एवं संकल्प होंगे। आत्मा के द्वारा परमेश्वर के वचन के प्रकाशन और निर्देश अपने आप को हमारे चेतना पर इन रीतियों से केन्द्रित करेंगे। हम रोबोट नहीं हैं . . . हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि (ये बातें) . . . आवश्यक रूप से तर्कहीन या कट्टर रीति से गूढ़ हैं।

परमेश्वर का वचन, परमेश्वर के आत्मा द्वारा प्रकाशित, जैसे कि भजन 119 बहुत ही भव्य रूप से दिखाता है, आत्मिक स्थिरता और स्वतंत्रता का मार्ग है। यह हमारी दृढ़तापूर्वक अगुवाई करता है प्रतिदिन हमें परमेश्वर की इच्छा को जानने, उससे प्रेम करने, और उसे करने में। यह आनन्द लाता है ज्योति के माध्यम से।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

सिनक्लेयर बी. फर्गसन
सिनक्लेयर बी. फर्गसन
डॉ. सिनक्लेयर बी. फर्गसन लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ के एक सह शिक्षक हैं और रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी विधिवत ईश्वरविज्ञान के चान्सलर्स प्रोफेसर हैं। वह मेच्योरिटी नामक पुस्तक के साथ-साथ कई अन्य पुस्तकों के लेखक हैं।