बाइबलीय भण्डारीपन क्या है? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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बाइबलीय भण्डारीपन क्या है?

वह अवधारणा जो नए नियम में ख्रीष्ट के सम्मुख सेवक होने के अर्थ को समझाती और परिभाषित करती है, वह शब्द भण्डारीपन  है। अर्थशास्त्र और नैतिक और भावनात्मक बातें जो प्राय: इसके आसपास हैं नित्य बातचीत के विषय और समाचार में मुख्य पृष्ठ के विषय होते हैं। यह विशेष रूप से सत्य है चुनाव के वर्ष में, जब अधिकतर वाद-विवाद अर्थशास्त्र के विषयों पर आधारित होता है। हम जो आरम्भ में नहीं देखते हैं वह है कि अन्य विषय, जैसे कि शिक्षा और गर्भपात, भी अर्थशास्त्र के प्रश्न हैं। बड़े रूप में समझे जाने पर अर्थशास्त्र केवल धन, कर या व्यवसाय से नहीं वरन् संसाधनों के प्रबन्धन से जुड़ा हुआ है। इस में हमारे सभी संसाधन सम्मिलित हैं, जैसे कि हमारे अजन्में हुए बच्चें और शैक्षिक सामग्रियां और नीतियाँ।      

दूसरे शब्दों में, हम अपने संसाधनों का उपयोग कैसे करते हैं, यह अर्थशास्त्र का विषय है, और बाइबलीय समझ में यह भण्डारीपन की मुख्य चिन्ता है। भण्डारीपन और अर्थशास्त्र के बीच शाब्दिक सम्बन्ध पर विचार करें। अंग्रेज़ी के शब्द  ईकॉनॉमिक्स (अर्थशास्त्र) और ईकॉनॉमी  (अर्थव्यवस्था) यूनानी शब्द ओइकोनोमिया, से आते हैं, जो दो भागों  से बना है: ओइकोस, “घर” या “घराना” के लिए शब्द, और नोमोस, “व्यवस्था” के लिए शब्द।  इस प्रकार ओइकोस  और नोमोस  का एक साथ शाब्दिक अर्थ “घर के नियम” है।

ओइकोनोमिया  शब्द का अंग्रेज़ी में “ईकॉनॉमी” (अर्थव्यवस्था) के रूप में लिप्यंतरण किया गया है। ओइकोनोमिया  शब्द को अनुवाद करने वाला अंग्रेज़ी शब्द—लिप्यन्तरण न करते हुए—स्टुवर्डशिप  (भण्डारीपन) शब्द है। इस प्रकार, भण्डारीपन और अर्थशास्त्र निकटता से जुड़े हुए विचार है, और वास्तव में, नए नियम के ख्रीष्टीय के लिए, इनके मध्य में कोई अन्तर नहीं था।

प्राचीन काल में एक भण्डारी वह व्यक्ति होता था जिसको घराने के कारोबार पर शासन करने का उत्तरदायित्व और अधिकार दिया गया होता था। उदाहरण के लिए, कुलपति यूसुफ पोतिपर के घराने में एक भण्डारी बन गया था: उसने घर में सब कुछ का प्रबन्ध किया और उसे घर पर शासन करने का अधिकार दिया था (उत्पत्ति 39:1-6अ)। उस भूमिका में, वह घराने का अच्छी रीति से प्रबन्ध करने के लिए उत्तरदायी था; उसको परिवार के संसाधनों की क्षति नहीं करनी थी, वरन् बुद्धिमानी से निर्णय लेने थे।

फिर भी, भण्डारी की भूमिका कुछ ऐसी नहीं थी जो केवल यूनानी प्रबन्धन प्रणाली में बढ़ना आरम्भ हुई, न ही यह यूसुफ के समय में मिस्रियों द्वारा इसका आविष्कार किया गया। भण्डारी की भूमिका भण्डारीपन के सिद्धान्त से आती है, जिसकी जड़ मानव जाति की सृष्टि में है।

उत्पत्ति के आरम्भिक अध्यायों में भण्डारीपन की नींव को देखें। हम उत्पत्ति 1:26-28 में पढ़ते है:

तब परमेश्वर ने कहा, “हम मनुष्य को अपने स्वरूप में, अपनी समानता के अनुसार बनाएं। और वे समुद्र की मछलियों और आकाश के पक्षियों पर तथा घरेलू पशुओं और सारी पृथ्वी और हर एक रेंगनेवाले जन्तु पर जो पृथ्वी पर रेंगता है, प्रभुता करें।” इस प्रकार परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में सृजा। परमेश्वर ने अपने ही स्वरूप में उसको सृजा। उसने  नर और नारी करके उनकी सृष्टि की। परमेश्वर ने उन्हें आशीष दी, और उनसे कहा, “फूलो-फलो और पृथ्वी में भर जाओ और उसे अपने वश में कर लो, और समुद्र की मछलियों तथा आकाश के पक्षियों और पृथ्वी पर चलने-फिरने वाले प्रत्येक जीव-जन्तु पर अधिकार रखो।”

बाइबल के सबसे पहले पृष्ठ पर, हम देखते हैं मनुष्यों की सृष्टि को —परमेश्वर के स्वरूप में बनाए गए, जिसने आरम्भ में स्वयं को सभी वस्तुओं के सृष्टिकर्ता के रूप में प्रकट किया—और उसके बाद स्वरूप धारकों की बुलाहट को जिन्हें एक निश्चित रीति से उसका अनुकरण करना था: फलप्रद होने के द्वारा। मनुष्य को फूलने-फलने की आज्ञा दी गई थी। यह फलप्रद होने के लिए आज्ञा थी, जिसका सम्बन्ध भण्डारीपन से है। इस प्रकार, भण्डारीपन के लिए चिन्ता की जड़ सृष्टि में है।

कभी-कभी हम सोचते हैं कि नया नियम परिश्रम, उद्योग या फलप्रदता से सम्बन्धित नहीं है, परन्तु यह केवल इस बात से सम्बन्धित है कि हम एक-दूसरे से प्रेम करें और अनुग्रह के द्वारा जीएं, कार्यों के द्वारा नहीं। परन्तु यदि हम यीशु के दृष्टान्तों और भाषा की जाँच करें, हम फलवन्त होने के लिए बुलाहट पर बल को देखते हैं। यीशु अपने लोगों को बुलाता है फलवन्त होने के लिए न केवल प्रजनन के माध्यम से प्रजातीय वृद्धि में, वरन् राज्य के लिए। यह सृष्टि की आज्ञा का विस्तार है कि उसके लोगों को फलप्रद होना चाहिए।

आदम और हव्वा को दूसरी आज्ञा पृथ्वी पर प्रभुता करने की दी गई थी। परमेश्वर ने आदम और हव्वा को अपने उप-अधिकारियों के रूप में स्थापित किया, जिनको उसके स्थान पर सारी सृष्टि पर शासन करना था। ऐसा नहीं है कि परमेश्वर ने मानव जाति को पृथ्वी पर स्वतंत्र स्वामित्व दिया। वह फिर भी उसका अधिकृत क्षेत्र बना हुआ है। परन्तु परमेश्वर ने आदम और हव्वा को जन्तुओं, पौधों, समुद्रों, नदियों, आकाश और पर्यावरण पर अधिकार करने के लिए बुलाया। उनको एक लापरवाह तानाशाह के जैसे अधिकार नहीं जताना था, जिसके पास अपनी इच्छा के अनुसार कुछ भी करने के लिए पूर्ण स्वतंत्रता है, क्योंकि परमेश्वर ने आदम और हव्वा को पृथ्वी के स्वामी नहीं बनाया। उसने उनको पृथ्वी के भण्डारी बनाया, जिनको उसके नाम और उसकी महिमा के लिए कार्य करना था।

इस आदेश को देने के तुरन्त बाद, परमेश्वर ने एक हरी-भरी और सुन्दर वाटिका की सृष्टि की और आदम और हव्वा को उसमें रखा (उत्पत्ति 2:15)। उसने उन्हें “काम करने और देखभाल करने” की आज्ञा दी। कार्य करने और देखभाल करने की यह आज्ञा महत्वपूर्ण है मनुष्यों को दी गई उत्तरदायित्व को समझने के लिए, जो कि परमेश्वर के स्वरूप में बनाए जाने के सौभाग्यशाली स्थान और पृथ्वी पर प्रभुता दिए जाने के साथ जाता है।   

सृष्टि के समय, जिस आदेश को परमेश्वर ने मानव जाति को दिया था, लोगों को इस सृष्टि के क्षेत्र पर परमेश्वर के भण्डारीपन को प्रतिबिम्बित करने के लिए था। इसमें धार्मिक कार्य या कलीसिया से कहीं अधिक सम्मिलित है। इसका सम्बन्ध है कि हम कैसे वैज्ञानिक प्रयासों में जुड़ते हैं, हम कैसे व्यापार करते हैं, हम एक-दूसरे के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, हम जानवरों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, और हम पर्यावरण के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। पृथ्वी पर प्रभुता करना पृथ्वी का शोषण, लूट-मार, समाप्ति, या नष्ट करने का अधिकार नहीं है; यह उत्तरदायित्व है अपने घर पर भण्डारीपन करने की, कार्य करने और देखभाल करने के द्वारा। अपने घर में कार्य करने और देखभाल रखने का अर्थ है कि उसे बिखरने से बचाना, उसे व्यवस्थित रखना, उसे बनाए रखना, उसको संरक्षित करना और उसे सुन्दर बनाना। पर्यावरण की पूरी विज्ञान की नींव इस सिद्धान्त पर आधारित है। परमेश्वर ने नहीं कहा, “आज से, तुम्हारा सारा भोजन तुम पर स्वर्ग से गिरेगा।” उसने कहा, “तुम्हें मेरे साथ कार्य करना है फलप्रद होने में: खाद डालना, जुताई, रोपाई, पुनः पूर्ति करना आदि।”

अगली आज्ञा जो आदम और हव्वा को वाटिका में दी गई, जानवरों का नाम रखना था (उत्पत्ति 2:19)। इसके सबसे मूल अर्थ में, यह विज्ञान का आरम्भ था: प्रजाति, प्रकार, और रूपों में भेद करना सीखना, और जिस प्रकार से हम उसकी जाँच करते हैं, वास्तविकता को परखने के लिए। यह भी हमारे भण्डारीपन का भाग है—उस स्थान के बारे में सीखना जहाँ हम रहते हैं और उसकी देखभाल करना। ये सिद्धान्त केवल किसी एक घर के लिए नहीं वरन् पूरे ग्रह के लिए हैं।

कुछ लोग इतने उम्रदार हैं कि वे बीसवीं शताब्दी के अमेरिकियों की आश्चर्यजनक उपलब्धि को याद कर सकते हैं जब पहली बार अंतरिक्ष यात्रियों को चन्द्रमा पर भेजा गया था। निस्संदेह, उस स्मृति में अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग के पहला कदम हैं जब उसने मानवता की लम्बी छलांग की बात की। उस मानव उपलब्धि को केवल मनुष्य के घमण्ड के रूप में देखा जा सकता है—या हम इसे उस आदेश की पूर्ति के रूप में देख सकते हैं जिसे परमेश्वर ने हमें सृष्टि पर प्रभुता करने के लिए दिया था।

मूल रूप से, भण्डारीपन है परमेश्वर द्वारा उसकी सृष्टि पर दी गई प्रभुता को कार्यान्वित करना, उसकी सृष्टि की देखभाल, उत्तरदायित्व, रखरखाव, सुरक्षा, और सौंदर्यीकरण में हमारे सृष्टिकर्ता परमेश्वर के स्वरूप को प्रतिबिम्बित करते हुए।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।