पवित्रशास्त्र में बुलाहट के उदाहरण - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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पवित्रशास्त्र में बुलाहट के उदाहरण

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का चौथा अध्याय है: परमेश्वर की इच्छा को ढूंढना

जीवन के किसी न किसी समय पर, हर कोई पूछता है, मैं यहां किसलिए हूँ? सांसारिक उद्देश्य का बड़ा प्रश्न नहीं (मानव और विश्व इतिहास किसलिए है?), परन्तु व्यक्तिगत मानव बुलाहट से सम्बन्धित विशेष प्रश्न। दूसरे शब्दों में, हम जो परमेश्वर के स्वरूप में बनाए गए हैं एक दूसरे से परस्पर परिवर्तित क्यों नहीं हो सकते हैं। ऐसा क्यों है कि कोई लेखक है और दूसरा बैंक कर्मचारी? क्यों कोई किसान और दूसरा सैनिक है? क्या ऐसे निर्णय संयोग या केवल वातावरण की परिस्थिति के अनुरूप लिए गए हैं, या क्या वे कुछ गहरी बात करते हैं जो व्यक्ति के हृदय में घटित होती है?

बुलाहट: बाइबल आधारित विचार

पवित्रशास्त्र विभिन्न प्रकार की बुलाहट के विषय में बात करता है। परमेश्वर ने लोगों को वह सुनने के लिए बुलाया जो वह उनसे कह रहा था, कभी-कभी विशेष रीति से, जैसे कि युवा नबी शमूएल के साथ हुआ (1 शमूएल 3), और कभी-कभी सामान्य रीति से, जैसा कि लोगों के लिए नबियों की बुलाहट, “प्रभु का वचन सुनो!” एक विशेष प्रकार की बुलाहट भी थी जो बाइबल में नबियों के लिए थी, एक ऐसी घटना जिसमें विशेष रूप से परमेश्वर परमेश्वरीय सभा से अपने नबियों को सम्बोधित करता है और नबूवत के कार्य को करने के लिए आदेश देता है। उदाहरण के लिए, मन्दिर में यशायाह की बुलाहट में नबूवत के लिए बुलाहट के मूल तत्व सम्मिलित थे: एक स्वर्गीय दर्शन, स्वर्गीय प्राणियों और प्रभु के बीच पारस्परिक क्रिया, नबी की हिचकिचाहट, एक चिह्न प्रदान किया जाना, और स्पष्ट नबूबत का सन्देश जो लोगों के लिए था (यशायाह 6)। अन्य नबियों ने नबूवत के कार्य कुछ इसी प्रकार से प्राप्त किया: यहेजकेल बंधुवाई में बुलाया गया, और प्रेरित पौलुस दमिश्क के मार्ग पर बुलाया गया—एक बुलाहट जिसे उसने अपनी सेवकाई में सन्दर्भित किया अपने प्रेरित होने की सत्यता के प्रमाण के रूप में।

हालाँकि, एक वास्तविक बुलाहट को असाधारण होने की आवश्यकता नहीं है, यहां तक कि पवित्रशास्त्र के उदाहरण में भी। उदाहरण के लिए, दाऊद को परमेश्वर द्वारा इस्राएल का राजा होने के लिए चुना गया था जबकि शमूएल नबी ने लड़के में उन स्पष्ट शारीरिक गुणों को नहीं देखा जो उसने एक राजा होने में अपेक्षा की थी। परन्तु, परमेश्वर, “हृदय को देखता है” (1 शमूएल 16:7), और दाऊद की आन्तरिक विश्वासयोग्यता ने उसे सिंहासन के लिए उपयुक्त ठहराया जैसे कि शाऊल की अविश्वासयोग्यता ने उसे नहीं ठहराया। फिर भी, के लिए दाऊद की बुलाहट और सिंहासन पर उसकी स्थापना के बीच कई वर्ष बीत गए , और इसने अवसर को उत्पन्न किया कि दाऊद को उस बुलाहट के लिए तैयार किया जाए जिसे परमेश्वर ने उसके जीवन के लिए रखा था। एक चरवाहे के रूप में, युवा दाऊद ने झुण्ड की रखवाली तथा अगुवाई करने के लिए आवश्यक साधारण कौशल सीखा (पुराने नियम में राजा के लिए चरवाही करना एक सामान्य संकेतिक प्रसंग है)। उसने परमेश्वर पर भरोसा करना भी सीखा कि वह उसे से की गई प्रतिज्ञाओं के प्रति विश्वासयोग्य रहेगा, और प्रभु पर इस भरोसे ने दाऊद वह साहस प्रदान किया जिसकी उसे गोलियत के साथ युद्ध में आवश्यकता थी, एक घटना जिसमें दाऊद ने एक विश्वासयोग्य राजा-योद्धा के अनुरूप व्यवहार किया, जो कि शाऊल की पूर्ण रीति से अराजकीय व्यवहार से विपरीत था। दरबार में संगीतकार के रूप में, दाऊद शाऊल के अस्थिर व्यवहार और इस्राएल राज्य के संचालन से परिचित हो गया, और सम्भवतः उसने इस्राएल के कवि और भजनों के मुख्य लेखक के रूप में अपनी कला को विकसित किया। इन सभी स्थितियाँ ने दाऊद के जीवन में विशेष क्षण प्रदान किए, जिसमें उसने इस्राएल के दूसरे राजा के रूप में अपनी बुलाहट को पूरी की। हमें किसी भी समय पर उसको दिए गए कार्य और पूर्ण रूप से उसकी बुलाहट के बीच बड़े भेद करने से सावधान रहना चाहिए। उसकी बुलाहट उसके जीवन के कार्यप्रणाली में संघटित रूप से पूरी हुई, जिसके कारण हम कुछ साहस के साथ कह सकते हैं कि चरवाहों के मध्य युवा दाऊद विश्वासयोग्यता से उस बुलाहट का अनुसरण कर रहा था जिसे परमेश्वर ने उसके जीवन में निर्धारित किया था।

एस्तेर की कहानी परमेश्वरीय बुलाहट के एक अन्य पहलू की ओर हमारे ध्यान को आकर्षित करती है जो आज हमारे लिए विशेष रूप से प्रासंगिक है। इस कहानी में, एस्तेर ने फारसी साम्राज्य के ऊँचे स्तरों पर चढ़ने के अवसर को प्रतिउत्तर दिया। वह स्वाभाविक रीति से शारीरिक सुन्दरता और बुद्धि के वरदान से परिपूर्ण थी, और यह वरदान ने उसे राजा के भीतरी क्षेत्र में सम्मिलित होने का अवसर प्रदान किया। एस्तेर की बुलाहट की विशिष्ठता, फिर भी, हामान का उदय और उसके षड्यंत्र के द्वारा यहूदी शरणार्थियों को नाश करने की युक्ति के समय तक स्पष्ट नहीं थी। उसके भाई मोर्देके मानव बुलाहट की एक परिभाषा दी जब उसने एस्तेर को प्रोत्साहित किया कि वह “ऐसे समय ही के लिए” बनायी गयी थी (एस्तेर 4:14)। परमेश्वर ने अपने लोगों को छुड़ाने के लिए उसी को बुलाया था।

एस्तेर की पुस्तक बाइबल की पुस्तकों में उल्लेखनीय है क्योंकि यह एकमात्र बाइबल की पुस्तक है जिसमें स्पष्ट रूप से प्रभु का नाम नहीं लिया गया है। परमेश्वर के विषय में बात की अनुपस्थिति सामर्थी रीति से पाठक को परमेश्वर के लोगों के कठिन संसार की समझ प्रदान करती है जब बाइबल के विश्वास का सामान्य लक्षण प्रत्यक्ष नहीं थे, जितने कि वे निर्वासन से पूर्व यहूदा में थे। परन्तु परमेश्वर का स्पष्ट रूप से नाम का न होना यह भी व्याख्या करता है कि हमारे वर्तमान संसार में एक बुलाहट का अनुभव करना कैसे प्रतीत होता है। अधिकाँशतः, ख्रीष्टिय बुलाहट निर्णय लेने की बात है हमारे व्यक्तिगत वरदान, हमारी व्यक्तिगत रुचि और हमारे व्यक्तिगत लक्ष्य, हमारे आस-पास के लोगों का बुद्धिमानी का परामर्श, और हमारे जीवन में उत्पन्न होने वाले अवसरों को ध्यान में रखते हुए। 

सामान्य मानवीय बुलाहट उस नाटकीय वेशभूषा के साथ नहीं होती हैं जैसा कि बाइबल के नबियों और योद्धाओं के साथ हुईं, फिर भी उनकी और और प्रत्येक अन्य मनुष्य की बुलाहट के बीच एक महत्वपूर्ण समानता है। हम परमेश्वर के द्वारा उसके स्वरूप में बनाए लोगों के समान जीवन जीने के लिए बुलाए गए हैं (उत्पत्ति 1:26-27)। इस बुलाहट में सृष्टिकर्ता को सम्मान देना और पहली आज्ञा के अनुसार कार्य करना सम्मिलित है जिसे सांस्कृतिक आदेश के रूप में भी जाना जाता है, जो परमेश्वर की ओर से है, “फूलो-फलो और पृथ्वी में भर जाओ और उसे अपने वश में कर लो” (28 पद, 9:1 भी देखें)। यह समझता है कि पृथ्वी में फूलने-फलने तथा भरने की प्रेरणा क्यों इतनी गहराई से सभी मनुष्यों में निहित है, यद्यपि यह पतन के प्रभाव के कारण अत्यन्त विकृत और दूषित हो गई है।

हम यह कह सकते हैं कि सभी मनुष्यों के लिए यह सामान्य बुलाहट प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तिगत बुलाहट के रूप का आधार बनती है, क्योंकि यह सृष्टि के हमारे विशेष स्थान को सृष्टि के भाग के रूप में अभिव्यक्त करती है जो परमेश्वर के स्वरूप में बनाया गया है। प्रत्येक व्यक्ति विशेष रीति से सांस्कृतिक आदेश में भाग लेने के लिए परमेश्वर द्वारा बुलाया गया है, और उस बुलाहट में वे सभी रीतियाँ सम्मिलित हैं जो एक व्यक्ति संसार से सम्बन्ध रखता है, जिसमें कार्य, पारिवारिक सम्बन्ध, कलीसिया में भाग लेना, राजनीतिक भागीदारी, आदि हैं। इनमें से प्रत्येक क्षेत्र में परमेश्वर के स्वरूप को धारण करने वाले को सम्पूर्ण संसार में जीवन को आगे बढ़ाने की बड़ी योजना में सम्मिलित होने के लिए बुलाया जाता है, एक ऐसा कार्य जो “बेडौल और वीरान” में से सम्पन्न सृष्टि को बनाने का परमेश्वर के ईश्वरीय कार्य को दर्शाता है (उत्पत्ति 1:2)। यह वह भव्य कार्य क्षेत्र है जिसमें व्यक्तिगत जीवन पाया जाता है। उत्पत्ति 1-2 में हमारे पहले माता-पिता के समान, हम सभी एक महत्वपूर्ण अर्थ में सार्वभौमिक सृष्टिकर्ता-राजा के अधिकार के अधीन सह राज-प्रतिनिधि के रूप में सृष्टि को भरने तथा उस पर शासन करने के कार्य में भाग ले रहे हैं।

कोई भी कार्य इतना छोटा नहीं है कि वह इस बड़े, सार्वलौकिक बुलाहट को व्यक्त न करता हो। कुछ लोग ऐसे कार्य के लिए बुलाए गए हैं जो बड़े और वैश्विक स्तर पर भी घटित होते हैं जबकि दूसरे लोग अपनी बुलाहट को छोटे और स्थानीय स्तर पर करते हैं। कुछ प्रकट रूप से छोटी बुलाहट का प्रत्याशित रीति से भारी प्रभाव होता है (मोनिका, हिप्पो के ऑगस्तीन की प्रार्थना करने वाली माँ, स्मरण आती है)। सभी बुलाहट के श्रेष्ठ अर्थ हैं क्योंकि मानवीय बुलाहट परमेश्वर के स्वरूप को धारण करने वालों होने की हमारी स्थिति से उत्पन्न होती हैं। इसमें शिक्षकों के द्वारा अपने विद्यार्थियों के विचारों को उनके विशेषताओं के क्षेत्र में निर्मित करना, पुलिस अधिकारियों के द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र में व्यवस्था लाना, और प्लम्बरों के द्वारा समाज में पानी के प्रवाह तथा उसके उपयोग करने को व्यवस्थित करना सम्मिलित हैं। इसमें वे लोग भी सम्मिलित हैं जो उद्योगशाला में कार्य करते हैं ऐसे उपकरणों और यंत्र बनाते हुए जो मानव समाज में काम आते हैं।

वर्तमान में ख्रीष्टिय बुलाहट

ख्रीष्टियों के लिए, बुलाहट से सम्बन्धित एक अनोखी और व्यापक धारणा है। मानव जाति के पतन के परिणामस्वरूप, हमारे सारे कार्य श्राप के प्रभावों और परमेश्वर से अलगाव के अधीन आ गए। मनुष्य अभी भी परमेश्वर के स्वरूप में बने हैं, परन्तु वह स्वरूप वाटिका में हमारे पहले माता-पिता के तथा और प्रत्येक पतित मनुष्य के पापमय विद्रोही कार्य के परिणामस्वरूप बिगड़ गया है। यह बात कि जो व्यक्ति ख्रीष्ट में नहीं है अपने जीवन में एक बुलाहट का अनुसरण कर सकता है, परमेश्वर के सामान्य अनुग्रह का एक दयापूर्ण कार्य है। किन्तु, वे जो कोई यीशु ख्रीष्ट के साथ मिलन के द्वारा परमेश्वर के साथ उद्धार और मेल-मिलाप पाते हैं, परमेश्वर के छुड़ाए हुए स्वरूप के दृष्टिकोण से बुलाहट के प्रश्न के पास आते हैं। उनके छुटकारे के कारण, वे अपने कार्य में वास्तविक रीति से परमेश्वर की महिमा कर सकते हैं।

धर्मसुधारकों ने ख्रीष्टिय जीवन में इस विश्वव्यापी बुलाहट पर विशेष बल दिया। उनके लिए ख्रीष्टिय बुलाहट या यह अर्थ था कि प्रत्येक प्रयास ऐसे किया जाना चाहिए जैसा कि वह प्रभु की सेवा में है और उसकी महिमा के लिए है (कुलुस्सियों 3:22-24; 1 कुरिन्थियों 10:31)। इसका यह अर्थ है कि ख्रीष्टिय बुलाहट को पदानुक्रमिक रीति से नहीं समझा जाना चाहिए, जिसमें कलीसियाई सेवकाई को अन्य प्रकार के कार्यों और लक्ष्यों के सामान्य बुलाहट के तुलना में एक पवित्र बुलाहट माना जाता है। इसके विपरीत, परमेश्वर के राज्य में सभी व्यवसाय महत्व रखती हैं। बुलाहट की यह बड़ी समझ उस बाइबल आधारित विचार की पुष्टि करती है कि मानवीय जीवन का प्रत्येक पहलू, भले ही वो अगुवा हो या फिर मण्डली, वे परमेश्वर की आराधना के लिए अवसर उपलब्ध कराते हैं। क्योंकि, हमें संसार में, परमेश्वर से प्रेम करने के लिए बुलाया गया है अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व, सम्पूर्ण हृदय, स्वयं और व्यक्तिगत प्रयास के साथ (व्यवस्थाविवरण 6:4-5)।

जब आज ख्रीष्टीय अपने स्वयं के बुलाहट को समझना चाहते हैं, उन्हें बाइबल के नबियों के असाधारण अनुभव के जैसे कुछ अपेक्षा नहीं करनी चाहिए, परन्तु वे उन नबूवत के विवरणों में हमारे स्वयं की बुलाहट के लिए एक सहायक समानता अवश्य पाते हैं। बाइबल के नबियों के जैसे, ख्रीष्टियों को यह पहचानना चाहिए कि उनकी बुलाहट परमेश्वर की ओर से आती है। वह ही है जो बुलाता है, यद्यपि उन कई आवाजों के बीच जो प्रत्येक समय हमें बुलाते रहते हैं परमेश्वरीय आवाज को पहचानना कठिन हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप, ख्रीष्टियों को उसकी इच्छा के अनुरूप बनने के लिए परमेश्वर के वचन से प्रार्थना के साथ भरना चाहिए।

हमें यह भी पहचानना चाहिए कि हमारी बुलाहट बदल सकती हैं। यशायाह और यहेजकेल नबियों ने अपने जीवन के विभिन्न चरणों में अलग-अलग बुलाहट प्राप्त किए, और हमें भी यह अपेक्षा करनी चाहिए कि हमारी बुलाहट हमारे जीवन के समय काल में बदल सकती हैं जब नए अवसर हमारे लिए उपलब्ध हो जाते हैं तथा जब आसपास के अन्य लोगों की आवश्यकताएं बदलती रहती हैं।

उनके जीवन के लिए परमेश्वर की बुलाहट को पहचानते समय, तो ख्रीष्टीय लोग पवित्रशास्त्र में पाए गए उदाहरणों से बहुमूल्य शिक्षाओं को सीख सकते हैं।

पहला, हमारे जीवन में परमेश्वर की बुलाहट हमें अपने सम्पूर्ण जीवन से प्रभु हमारे परमेश्वर से प्रेम करने का अवसर देता है (व्यवस्थाविवरण 6:4-5); इसलिए, उसकी बुलाहट हमसे पाप करने की मांग नहीं कर सकती। ख्रीष्टिय बुलाहट को परमेश्वर पर हमारे विश्वास के अभिव्यक्ति के रूप अनुसरण किया जाना चाहिए, और हम किसी भी प्रकार की बुलाहट को निरस्त कर सकते हैं जो केवल पापमय, हानिकारक, या विश्वास हीन स्थिति में पूरा किया जा सकता है।

दूसरा, परमेश्वर को अपने लोगों को बुलाहट के उत्तम उपहार देना प्रिय लगता है (भजन 37:4; मत्ती 6:28-33; 7:11), इसलिए ख्रीष्टियों को अपने हृदयों को अपने ख्रीष्टिय बुलाहट से इस प्रकार जोड़ना चाहिए ताकि वह बुलाहट उनकी धर्मी अभिलाषाओं की स्वाभाविक रीति से वृद्धि का कारण हो। साथ ही साथ, जब एक ख्रीष्टीय उस बुलाहट का अनुसरण करता है, जो परमेश्वर ने उसे दिया है, तो उसे अपनी इच्छाओं को उस कार्य के द्वारा निर्मित होते हुए पाना चाहिए जिसे परमेश्वर ने उसके सम्मुख रखा है। इसका यह अर्थ नहीं है कि थकान और यहां तक कि निराशा कभी-कभी नहीं आ सकते हैं, परन्तु सचेत तथा पश्चात्तापी विश्वासी बुलाहट के लिए दृढ़ होता है विरोध के मध्य में भी। जैसे ही वह उन बातों का अनुसरण करता है जिसे वह स्वाभाविक रीति से करने में रुचि रखता है, तो उसे एक स्पष्ट समझ प्राप्त होगी कि कौन से तत्व उसे आनन्द और सन्तुष्टि प्रदान करते हैं। ख्रीष्टियों को अपनी भावनाओं को परिपक्व होने तथा उस कार्य के द्वारा निर्मित होने की अपेक्षा करनी चाहिए उस कार्य के द्वारा जिसे वे कर रहे हैं जब तक कि वे उस कार्य में भी आनन्द प्राप्त करना आरम्भ करते हैं जो पहले असंतोषजनक था। 

तीसरा, परमेश्वर अपने लोगों का निर्माण उनके बुलाहट के लिए करता है (यिर्मयाह 1:5)। इस जीवन के अधिकांश गतिविधियों में किसी न किसी प्रकार की कुशलता सम्मिलित होती है जिसे उचित रीति के लिए किया जाना चाहिए। कुछ बुलाहट को केवल साधारण कुशलताओं की आवश्यकता होती है, जबकि अन्य को प्रशिक्षण के वर्षों, यहाँ कि दशकों की आवश्यकता होती है। व्यक्तिगत वरदान कुशलता से इस अर्थ में भिन्न है कि वरदान साधारण रीति से जीवन में प्रशिक्षण के माध्यम से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। प्राकृतिक और आत्मिक वरदान भी परखने की प्रक्रिया को निर्देशित कर सकते हैं। कुछ ख्रीष्टीय लोग स्वाभाविक रूप से शिक्षक हैं, जबकि अन्य लोगों को दूसरों को प्रोत्साहित करने या देखभाल करने का वरदान प्राप्त है। सभी ख्रीष्टियों जैसे-जैसे परिस्थिति आती हैं सब वरदानों को उपयोग करने के लिए प्रयास करना चाहिए, परन्तु पवित्रशास्त्र यह बताता है कि कुछ ख्रीष्टीय लोग अनुग्रह के द्वारा एक वरदान के लिए अधिक उपयुक्त होते हैं दूसरे की तुलना में (रोमियों 12:6-8)। परमेश्वर के सभी वरदानों के जैसे, हम विश्वासयोग्य प्रबन्धक होने के लिए बुलाए गए हैं, हमारे वरदानों को उन बुलाहटों में निवेश करने के लिए जहाँ उनका सबसे अच्छी रीति से उपयोग किया जा सके। 

नबियों से चेतावनी का एक शब्द: परमेश्वर को हमारी निर्बलताओं में अपनी सामर्थ्य को दिखाना प्रिय लगता है। मूसा को बोलने की किसी प्रकार की समस्या थी, परन्तु वह परमेश्वर का प्रवक्ता होने के लिए चुना गया (निर्गमन 4:10)। यशायाह की अशुद्ध होंठो को पवित्रता का तथा लोगों के विरुद्ध न्याय का सन्देश दिया गया (यशायाह 6:5)। यिर्मयाह ने सोचा होगा कि वह एक नबी होने के लिए बहुत ही छोटा है ( यिर्मयाह 1:6)। कलीसिया को सताने के कारण पौलुस ने स्वयं को पापियों में सबसे बड़ा पापी माना (1 तीमुथियुस 1:15)। कभी-कभी किसी ख्रीष्टीय को ऐसे कार्य के लिए बुलाया जाता है जो इतना असम्भव प्रतीत होता है कि यदि इस कार्य को सफल होना है तो इसमें परमेश्वर का होना आवश्यक है।

चौथा, ख्रीष्टिय बुलाहट परमेश्वर और दूसरों के लिए एक सेवा है। यदि कोई व्यक्ति एक ऐसे बुलाहट का अनुसरण करता है जिसका अन्त स्वार्थी और प्रताड़ित करना है, तो वह बुलाहट परमेश्वर को महिमा नहीं देती है। विलियम पर्किन्स लिखते हैं, “हमारे जीवन का सच्चा लक्ष्य है मनुष्य की सेवा करने के द्वारा परमेश्वर की सेवा करना।” पड़ोसी के लिए हमारे प्रेम को स्वाभाविक रीति से परमेश्वर के प्रेम से प्रवाहित होना चाहिए (लैव्यव्यवस्था 19:18, मत्ती 22:38-39), और ख्रीष्ट के साथ हमारे मिलन को हमारी व्यक्तिता नैतिकता को प्रभावित करना चाहिए जिससे कि हम अपनी हानि में भी उनकी सहायता करने के लिए तैयार रहें (फिलिप्पियों 2:1-11)।

अन्त में, ख्रीष्टिय बुलाहट एक गुप्त या रहस्यमय बात नहीं है जो प्रकट होने के लिए प्रतीक्षा कर रही हैं। जब परमेश्वर अपने लोगों को बुलाता है, 

तो वह उन्हें सुबुद्धि के साथ परमेश्वर के वचन की शिक्षा को लागू करके आस-पास के संसार को प्रतिउत्तर देने के लिए बुलाता है, यह जानने के लिए कि उन्हें किसी भी समय या स्थिति में क्या करने के लिए बुलाया जा सकता है। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, मानवीय बुलाहट मानवीय जीवन के समय काल में विकसित और परिपक्व हो सकती है। एक व्यक्ति की बुलाहट की एक विशेष समझ के महाविद्यालय से स्नातक हो सकता है जो उसके जीवन के समय काल में कई बार परिवर्तित हो सकती है। उस परिवर्तन का अर्थ यह नहीं है कि उसने आनाज्ञाकारिता किया है या किसी प्रकार से अपने जीवन में परमेश्वर की बुलाहट के विषय में अनजान है।

एक बुलाहट व्यक्ति को पाप से नहीं बचा सकती है या न ही उसे परमेश्वर के सामने सही ठहरा सकती है, परन्तु बुलाहट बचाए हुए लोगों के लिए एक स्वाभाविक चिन्तन का विषय है। कई प्रकार से, ख्रीष्टिय कार्य का प्रश्न इस बात को सम्बोधित करता है कि कोई विशेष व्यक्ति किस लिए बचाया गया है। डच ईश्वरविज्ञानी हरमन बाविंक लिखते हैं, “हमारे सांसारिक कार्य को सच में पूर्ण करना ही हमें अनन्त उद्धार के लिए तैयार करता है, और अपने मनों को ऊपर की बातों की ओर लगाना हमें सांसारिक इच्छाओं की वास्तविक सन्तुष्टि के लिए तैयार करती हैं।” इस जीवन में परमेश्वर की बुलाहट का अनुसरण करते हुए, हम अनन्त काल के लिए तैयार होते हैं। अनन्तकाल को सर्वदा अपने सम्मुख ध्यान में रखकर, हम आज अर्थपूर्ण सन्तुष्टि को प्राप्त करते हैं।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
डॉ. स्कॉट रेड
डॉ. स्कॉट रेड
डॉ. स्कॉट रेड वाशिंग्टन डी.सी. में रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनेरी में पुराने नियम के प्राध्यापक हैं। वह द होलसम इम्पेरेटिव पुस्तक के लेखक हैं।