यहूदी आराधना
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मूसा की व्यवस्था तीन स्थानों में प्रमुख यहूदी भोजों और पर्वों का वर्णन करती है: निर्गमन 23, लैव्यव्यवस्था 23, और व्यवस्थाविवरण 16। निर्गमन 23 और व्यवस्थाविवरण 16 तीन “यात्रा पर्वों” पर ध्यान देते हैं जो कि फसह/अखमीरी रोटी, पिन्तेकुस्त (सप्ताहों के), और तम्बुओं के पर्व हैं। व्यवस्था की माँग थी कि सब इस्राएली पुरुष प्रतिवर्ष ठहराए गए स्थान में इन पर्वों में भाग लें (व्यवस्थाविवरण 16:16)। इन पर्वों की बड़ी सूची लैव्यव्यवस्था 23 है, जिनमें प्रथम फल का पर्व, नरसिंगों का पर्व, और प्रायश्चित्त का दिन सम्मिलित था। यद्यपि, इस बात का बहुत कम वर्णन है कि प्राचीन इस्राएली कैसे पर्वों को मनाते थे। निस्सन्देह मनाने की विधि समय के साथ परिवर्तित होती गयी, जैसा कि हमने पिछली दो पीढ़ियों में मसीही सामूहिक आराधना में परिवर्तन देखा है।
पंचग्रन्थ में वर्णित पर्वों के अतिरिक्त, इस्राएल के बाद के इतिहास में दो अन्य पर्व दिखाई देते हैं। पहला पूरीम था, जिसे एस्तेर के समय यहूदियों के उद्धार को स्मरण करने के लिए मनाया जाता था। दूसरा हनुक्काह (Hanukkah) था। यहूदियों ने एंटिओकस चतुर्थ एपिफेन्स (Antiochus IV Epiphanes) के लूटपाट के पश्चात् मन्दिर के पुनःसमर्पण को स्मरण करने के लिए मनाना आरम्भ किया था। इसकी कहानी मक्काबियों के पहले और दूसरे ग्रन्थ की अपोक्रिफा (apocrypha) पुस्तकों में बताई जाती है (1 मक्काबी 4:52-58 और 2 मक्काबी 10:6-8)।
पुराने और नए नियम के मध्य की अवधि के लेख हमें बहुत कम जानकारी देते हैं कि पर्वों का मनाया जाना कैसे परिवर्तित हुआ। बाद के रब्बियों का साहित्य हमें अधिक विस्तार से जानकारी देता है। यद्यपि, यह स्पष्ट नहीं है कि रब्बियों की सामग्री में किस सीमा तक यूनानी-रोमी समय काल का वर्णन किया गया है।
पंचग्रन्थ के निर्देशों के अनुरूप ही, फसह नए नियम के युग में एक यात्रा का पर्व बना रहा (लूका 2:41-50)। प्रायः केवल पुरुष नहीं, वरन् सम्पूर्ण परिवार भाग लेता था। फसह के मेमने मन्दिर में बलिदान किए जाते थे और फिर परिवारों के द्वारा उन्हें भूनने और खाने के लिए ले लिया जाता था। बाइबल के विवरण के अनुसार, फसह अखमीरी रोटी का पर्व आरम्भ होने के पहले की सन्ध्या है। निर्गमन 12 निर्देशित करता है कि लोग भुने हुए मेमने को कड़वे साग-पात और अखमीरी रोटी के साथ खाएँ। क्योंकि नए नियम के समय में फसह को यरूशलेम में मनाया जाता था, जो लोग उस यात्रा पर नहीं जा सकते थे, वे अखमीरी रोटी के पर्व पर अधिक ध्यान देते थे। घर से खमीर को निकालना उस पर्व का एक महत्वपूर्ण भाग था। आज भी, अनुपालक यहूदी सावधानीपूर्वक अपने घरों से सारा खमीर हटा देते हैं।
पिन्तेकुस्त (अर्थात् “पचासवाँ”) जौ के पूले हिलाए जाने के पचास दिन के बाद होता है (लैव्यव्यवस्था 23:9-21)। इसे प्रथम फल का पर्व (निर्गमन 23:16) या सप्ताहों का पर्व (व्यवस्थाविवरण) भी कहा जाता था। पिन्तेकुस्त के समय, यहूदी लोग रूत की पुस्तक पढ़ते थे क्योंकि पिन्तेकुस्त जौ और गेहूँ की फसल कटने के समय में होता था (रूत 1:22)। अन्य पर्वों के समान, प्रायश्चित्त के दिन को छोड़कर, यह पर्व उत्सव का समय था। परन्तु उसके मनाए जाने के सटीक ढंग के विषय में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। जबकि मसीही परम्परा में यह सर्वदा रविवार को होता है, यहूदी प्रचलन में यह भिन्न दिनों में होता है। यह कभी भी मंगलवार, बृहस्पतिवार, या शनिवार को नहीं होता है। पुराने और नए नियम के मध्य की अवधि में यहूदियों ने पिन्तेकुस्त को सीनै पर्वत पर व्यवस्था के दिए जाने के साथ जोड़ा (सम्भवतः निर्गमन 19:1 की तिथि को लेते हुए)। फसह के समान, नए नियम के समय में पिन्तेकुस्त भी एक यात्रा का पर्व था; प्रेरितों का काम 2 इस बात को स्पष्ट करता है (प्रेरितों के काम 20:6, 16 भी देखें)।
नरसिंगों का पर्व, जिसे अब रोश हशानाह (Rosh Hashanah) कहा जाता है (अर्थात् “नव वर्ष”) यहूदी महीने तिश्री में मनाया जाता था, जैसा कि आज है। यह समय वर्तमान पंचाँग में सितम्बर के आरम्भ से लेकर अक्टूबर के आरम्भ के समय होता है। इस पर्व में नरसिंगा का फूँका जाना और एक उत्सव भोज प्रमुख तत्व थे। यह प्रथा बहुत प्राचीन है और लगभग निस्सन्देह यूनानी-रोमी समयकाल में इन्हें मनाया जाता था।
प्रायश्चित्त का दिन उपवास और पश्चात्ताप का दिन था। यहूदी दार्शनिक फिलो (Philo) के अनुसार, इसे “केवल भक्ति और पवित्रता के विषय में उत्साही लोगों के द्वारा ही नहीं, वरन् उनके द्वारा भी मनाया जाता था जो शेष समय में कुछ भी धार्मिक नहीं किया करते थे।” पुराने और नए नियम के मध्य के समय की जुबलीस (Jubilees) की पुस्तक के अनुसार, प्रायश्चित्त का दिन यूसुफ के भाइयों के पाप और उसके कारण उनके पिता याकूब को हुए शोक से आरम्भ हुआ था। प्रेरितों के काम 27:9 प्रायश्चित्त के दिन को “उपवास का दिन” कहता है।
तम्बूओं का पर्व क्रम में अगला था, और यह प्रायश्चित्त के दिन के पाँच दिन बाद होता था। यह व्यवस्था में निर्देशित वार्षिक पर्वों में से अन्तिम पर्व था। जूबलीस 16:21-30 कहता है कि अब्राहम तम्बुओं का पर्व मनाने वाला पहला व्यक्ति था। यह दिखाता है कि यहूदी परम्परा के अनुसार अब्राहम बाद में आयी मूसा की व्यवस्था के प्रति विश्वासयोग्य था। पंचग्रन्थ में निर्धारित सभी पर्वों में से, सम्भवतः यूनानी-रोमी समय तक इस पर्व में सबसे अधिक संशोधन किया गया था। उदाहरण के लिए रब्बियों का साहित्य दिखाता है कि इस विषय पर बहुत चर्चा थी कि “तम्बू” या “झोपड़ी” कहलाए जाने वाले अस्थायी निवास को बनाने के लिए किन सामग्रियों को उपयोग किया जा सकता था। रब्बियों का साहित्य इस पर्व से सम्बन्धित कुछ जल संस्कार का भी वर्णन करता है। इन संस्कारों का उद्गम अनिश्चित है। कुछ इसे यशायाह 12:3 में देखते हैं: “अतः तुम आनन्दपूर्वक उद्धार के सोतों से जल भरोगे।” या ये संस्कार जंगल में जल के प्रावधान की ओर संकेत कर सकते हैं (निर्गमन 17; गिनती 20)। भले ही उद्गम जो भी हो, यीशु ने पर्व के अन्तिम दिन को भीड़ को दी गई बुलाहट में इसका उपयोग किया (यूहन्ना 7)।
हनुक्काह और पूरीम दोनों निर्वासन के बाद के समय में आरम्भ हुए। हनुक्काह क्रम में पहला है, जो तम्बुओं के पर्व के कुछ समय पश्चात् आता है। यहूदी इतिहासकार जोसिफस (Josephus) इसे ज्योतियों का पर्व कहता है, जबकि यूहन्ना 10:22 इसे समर्पण-पर्व कहता है। ज्योति के साथ इस पर्व के सम्बन्ध के उद्गम के विषय में विभिन्न परम्पराएँ हैं। सम्भवतः सबसे प्रचलित परम्परा यह थी कि एक आश्चर्यक्रम हुआ था जिसके कारण थोड़े से तेल के द्वारा आठ दिनों के लिए मन्दिर के दिए जलाए गए थे। उत्सव मनाना किसलेव माह के पच्चीसवें दिन आरम्भ होता, जो हमारे पंचाँग के अनुसार नवम्बर के अन्त में या दिसम्बर के आरम्भ में होता है, और इसलिए यह क्रिसमस के पास होता है। यह आनन्द और उत्सव का समय था।
पूरीम का भोज एस्तेर के समय में यहूदियों के छुटकारे के स्मरण का उत्सव मनाता है। एस्तेर की पुस्तक इस पर्व के लिए किसी धार्मिक माँगों का निर्देश नहीं देती है। परन्तु यह परम्परा विकसित हुई कि एस्तेर की पुस्तक को आराधनालय में पढ़ा जाए। लोग एक दूसरे को भोजन के उपहार भेजने के द्वारा और निर्धनों को धन देने के द्वारा इस भोज को मनाते हैं (एस्तेर 9:22)।
ये पर्व स्वयं में अहानिकार प्रतीत होते हैं, क्योंकि इनका ध्यान आनन्द मनाने और भोज करने पर है। परन्तु लगभग इन सब में एक राजनैतिक तत्व भी पाया जाता है। फसह अत्याचारी मिस्री शासकों से यहूदियों के छुटकारे को स्मरण करता है। पिन्तेकुस्त मूसा को व्यवस्था दिए जाने को स्मरण करता है, जिसके कारण वे इस्राएल नाम का राजनैतिक देश बन गए। तम्बुओं का पर्व निर्वासन के समय के बाद मनाया जाने वाला पहला पर्व था (एज्रा 3:4; नहेमायाह 8:14-18)। हनुक्काह एंटिओकस चतुर्थ एपिफेन्स के घृणित शासन के पश्चात् मन्दिर के शुद्धिकरण का उत्सव मनाता है। पूरीम एक राजनैतिक और नस्ल सम्बन्धित नरसंहार से छुटकारे का उत्सव मनाता है। पहली शताब्दी ईसवी में, यहूदी रोमी राज्य के अधीन थे। कई यहूदी यह सोचते हुए रोमी शासन से घृणा करते थे कि वे यहूदियों पर अत्याचार के इतिहास को बनाए रख रहे थे। क्योंकि तीन पर्वों ने यरूशलेम की यात्रा करने को प्रोत्साहित किया, जिसके कारण उत्साही यहूदियों की बड़ी भीड़ एकत्रित होती थी, सर्वदा विद्रोह की सम्भावना बनी रहती थी। याजकों ने यही कारण दिया कि वे यीशु को फसह के पर्व के समय क्यों नहीं पकड़ना चाहते थे (मत्ती 26:5)।
राजनैतिक तत्व के साथ पर्वों में मसीहाई आशा का भी तत्व था। मूसा और एल्लियाह को ऐसे लोग समझा जाता था जो मसीहाई दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थे। उत्सव को मनाना सर्वदा मूसा का स्मरण दिलाता था, जो मूसा के जैसे नबी की आशा को बढ़ाता था (व्यवस्थाविवरण 18:15-22; 34:10)। दाऊद, लेवी, और दानिय्येल 7 में मनुष्य के पुत्र के समान जन मसीहा के विषय में अनुमान को बढ़ावा देते थे। रोमी राज्य से छुटकारा की आशाएँ इन सभी मसीहाई तत्वों को राजनैतिक रूप देती थीं। यद्यपि कई यहूदियों ने यीशु को पुराने नियम में प्रतिज्ञा किए गए मसीहा के रूप में नहीं पहचाना, कुछ ने तो ऐसा किया। अन्यथा हमारे पास नया नियम ही नहीं होता। परन्तु शेष लोग रोमी राज्य के पराजय की आशाओं को बढ़ाते गए। 70 ईसवी की घटनाओं और यरूशलेम के विनाश में सबसे पहले इन आशाओं को कुचला। और लगभग 135 ईसवी में बार कोखबा के विद्रोह की हार ने उन आशाओं को समाप्त कर दिया। उस समय से, यहूदी पर्वों का मनाया जाना मुख्य रीति से, भले ही पूर्ण रीति से नहीं, धार्मिक क्रिया-कलाप बन गए, जिनमें बहुत ही कम राजनैतिक महत्व थे।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।