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31 मई 2021क्रूस के प्रकाश में जीवन
सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का पांचवा अध्याय है: ख्रीष्ट वरन क्रूस पर चढ़ाए गए ख्रीष्ट
कई धर्मसुधारवादी विश्वासियों के समान, मैं परमेश्वर की स्तुति करता हूँ उसके अद्भुत अनुग्रह के लिए, न केवल अपने उद्धार के लिए, पर उसके बाद अनुग्रह के सिद्धान्तों को जानने के लिए उसकी स्तुति करता हूँ। मुझे स्पष्ट रूप से स्मरण है जब मैं अन्ततः इस बात को समझा कि कैसे पवित्रशास्त्र सभी बातों के ऊपर परमेश्वर की सम्प्रभुता के विषय में सिखाती है: कि वर्षों पहले मेरा पुनः जन्म हुआ था, अपने स्वयं के निर्णय से नहीं (यूहन्ना 1:13) परन्तु एक ऐसे परमेश्वर के द्वारा जो मुझ से प्रेम करता है (इफिसियों 2:4) और जिसने मुझे धर्मी ठहराया केवल ख्रीष्ट पर अनुग्रह के द्वारा केवल विश्वास के द्वारा (इफिसियों 2:8); कि वह अपनी इच्छा के उद्देश्य के अनुसार सब कुछ कर रहा है (इफिसियों 1:11); और कि मेरा जीवन और भविष्य उसके हाथों में सुरक्षित है (यूहन्ना 10:28)। मैंने आनन्द के साथ यह गीत गाना भी सीखा: “अद्भुत प्रेम! यह कैसे हो सकता है कि आप, मेरे परमेश्वर, मेरे लिए मरे?” और फिर भी, कई वर्षों तक मैंने अपने नए धर्मसुधारवादी विश्वास, और यहां तक कि ख्रीष्ट के क्रूस को, एक विचारों तक सीमित, तथा पापपूर्ण घमण्ड को बढ़ावा देने के लिए अनुमति दी। ख्रीष्ट की देह में दीन होने और दूसरों के लिए प्रेम में बढ़ने के स्थान पर, मैंने अपनी ईश्वरविज्ञानीय श्रेष्ठता में महिमा ली। आत्मा द्वारा पवित्रीकरण के कई वर्ष लगे मुझे अपने उस टूटापन और निर्बलता को दिखाने के लिए जो बने हुए थे, और मेरे क्रूसित उद्धारकर्ता के अद्भुत प्रेम को मेरे जीवन से मेरे आस पास के टूटे, निर्बल और घायल लोगों तक प्रवाहित होने के लिए।
पवित्रशास्त्र स्पष्ट रूप से पुष्टि करता है जिसे हम सामान्य प्रकाशन के द्वारा सत्य के रूप में जानते हैं: कि महिमा के इस ओर का जीवन निर्बलताओं से चिह्नित है। श्राप के कांटे, ऊँटकटारे तथा परिश्रम (उत्पत्ति 3) सभी को प्रभावित करते है। परमेश्वर के अनुग्रह से विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाने के बाद भी (रोमियों 3:24-25), और क्रूस के सामर्थी वचन के द्वारा बचा लिए जाने के बाद भी (1 कुरिन्थियों 1:18), हम इस निर्बल देह में अन्दर से कराहते हुए देह के छुटकारे की प्रतीक्षा करते हैं (रोमियों 8:23)। जब हम प्रतीक्षा करते हैं, तथापि, प्रभु यीशु ख्रीष्ट के एक देह के भाग के रूप में हमें, इस पतित संसार के बीच में सेवा करने और सहायता करने के लिए हमें तैयार किए जाने की आवश्यकता है (इफिसियों 4:12), जिसकी प्रतिज्ञा “सब जातियों के लिए प्रकाश, अन्धों की आंखें खोलने,बन्दियों को बन्दीगृह से और अन्धेरे में पड़े हुओं को काल कोठरी से निकालने” के रूप में की थी (यशायाह 42:6-7)।
दुर्भाग्यवश, प्रायः हमारी अपनी आंखों को खोले जाने की आवश्यकता होती है ताकि हम यह जान सकें कि हमारे चारों ओर क्या है और उस कार्य को जान सकें जिसे करने के लिए परमेश्वर हमें बुलाता है। श्रेष्ठ ईश्वरविज्ञानीय ज्ञान में महिमा लेने के स्थान पर, हमें परमेश्वर के आत्मा के द्वारा “आग्रह” किया जाता है कि “कायरों को प्रोत्साहित करने, निर्बलों की सहायता करने, सब के साथ सहनशीलता” दिखाने के लिए (1 थिस्सलुनीकियों 5:13)। वास्तव में, क्या हम जो क्रूस के प्रकाश में रहते हैं, वे साधन नहीं हैं जिनके द्वारा वह निर्बलों तक पहुंचता है? हमारे आगे बढ़ने के आदेश स्पष्ट हैं: “क्योंकि वह तो दुहाई देने वाले दरिद्र का, और पीड़ित तथा असहाय का उद्धार करेगा। वह कंगाल और दरिद्र पर तरस खाएगा, और दरिद्रों के प्राण बचाएगा” (भजन 72:12-13) और “ मैं निर्बलों के लिए निर्बल बना कि निर्बलों को जीत लाऊं” (1 कुरिन्थियों 9:22)।
मेरे अपने जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब मैंने अपने जिला कारागार में एक अंशकालीन पास्टर के रूप में “निर्बल और आवश्यकता में पड़े हुए लोगों” के मध्य कार्य करना आरम्भ किया। जबकि कई वर्षों तक मैं प्रकाशितवाक्य अध्याय 2 में वर्णित इफिसियों के ख्रीष्टियों के समान था जो शीघ्रता से ईश्वरविज्ञानीय झूठी शिक्षाओं की पहचान कर सकते थे परन्तु जिनमें प्रेम की कमी थी, जिला कारागार में सेवा करने से मेरी आंखें खुल गई ताकि मैं व्यावहारिक रीति से यह देख सकूं कि ख्रीष्ट का सम्पन्न कार्य, और उसका सामर्थी आत्मा क्रियाशील हैं सबसे टूटे हुए, निर्बल, भटके हुए और पीड़ित लोगों के मध्य।
मेरे मन में एक विशेष दिन सामने आता है जब मैं मध्य अमेरिका के एक युवक से मिला, जिसे कुछ ही दिन पहले एक बहुत ही गम्भीर आरोप में पकड़ा गया था, एक ऐसा आरोप जो “सम्मानजनक” लोगों में घृणा उत्पन्न कर सकता था और इतना गम्भीर कि उस पर विशेष ध्यान दिया गया कि वह आत्महत्या न करे। मैंने उसे एक स्पेनी भाषा की बाइबल दी, और फरीसी और कर वसूल करने वाले दृष्टान्त को खोला (लूका 19:9-14) और मैंने उसको प्रोत्साहित किया कि उसे ऊँची आवाज़ में पढ़ने के लिए। बाइबल उसके कोठरी के द्वार की सलाखों पर टिकी हुई थी, और मैंने देखा कि उसके चेहरे से आँसू बह रहे थे और लूका सुसमाचार के पन्नों को भिगो रहे थे। फिर वह, कर वसूल करने के समान, टूटे हृदय से पुकारा, “ हे परमेश्वर, मुझ पापी पर दया कर!” वह एक पवित्र क्षण था, परमेश्वर के आत्मा का सामर्थी कार्य था जिसके बाद एक युवक धर्मी ठहराए जाकर अपने सोने के स्थान पर वापस चला गया, और मैं मूल रूप से प्रभावित होकर घर चला गया। मैंने नये रीति से अनुभव किया कि ख्रीष्ट के क्रूस के सम्मुख, मैं और वह व्यक्ति एक ही आत्मिक देह के हिस्सा हैं: निर्बल और पीड़ित पापी, आशाहीन और अनुग्रह की आवश्यकता में। परन्तु अब, ख्रीष्ट यीशु में, हम दोनों “जो एक समय दूर थे ख्रीष्ट के लूह के द्वारा निकट लाए गए हैं” (इफिसियों 2:13)।
अभी पिछले ही सप्ताह, कारागार में एक अन्य नए विश्वासी ने सन्देश भेजा कि उसे मुझसे “कुछ पाप-अंगीकार” करने की आवश्यकता है। मेरा पहला विचार यह था कि उसके पास रोमी कैथोलिक विश्वास के कुछ बचे हुए अवशेष थे, परन्तु जब हम अन्ततः मिले, उसने विनम्रतापूर्वक स्वीकार किया कि उसने किसी विशेष बात में मुझ से सच नहीं बोला था, जिसके कारण वह तब तक नहीं सो पाया जब तक वह व्यक्तिगत रीति से क्षमा नहीं मांगा, और वह सोच रहा था कि क्या वह एक ख्रिष्टीय भी है। इस नए ख्रीष्टिय में ख्रीष्ट के सम्पन्न कार्य और आत्मा के सामर्थ्य के प्रमाण देखकर मेरा हृदय कितना आनन्द से भर गया। मैंने बाइबल खोलकर उसे रोमियों की पुस्तक से आश्वासन दिया कि उसका संघर्ष कैसे उसके धर्मी ठहराए जाने का फल था। वह अब एक नया जीवन जी रहा था, और उसके हृदय में यह युद्ध सामान्य ख्रीष्टीय जीवन का भाग था (रोमियों 6-7)। मैंने उसे दिखाया कि यह पवित्र आत्मा का कार्य था जो हम में वास करता है (अध्याय 8) जो उसे पापों को अंगीकार करने के लिए प्रेरित कर रहा था। मैंने उसे आश्वासन दिया कि मैंने उसे क्षमा कर दिया है, और कि उसे अपने उद्धार के आश्वासन में प्रोत्साहित होना चाहिए ख्रीष्ट के लहू बहाए जाने के कारण (रोमियों 3:24-25), सुसमाचार की प्रतिज्ञा के कारण (10:13), और वर्तमान में पवित्र आत्मा के सामर्थी, पापों से बोध कराने वाले कार्य के कारण।
क्रूस और मेरे लिए ख्रीष्ट के प्रेम के प्रकाश में, मैं प्रायः इस्राएल के चरवाहों को दी गई चेतावनी से कायल होता हूँ:
तुमने दुर्बल को हृष्ट- पुष्ट नहीं किया, न बीमार को चंगा किया, न घायलों को पट्टी बान्धी, न भटकी हुई को वापस लाए और खोई हुई को ढूंढा, परन्तु बल और कठोरता से उन पर प्रभुता की। (यहेजकेल 34:4)।
क्या निर्बल, भटके हुए, और आवश्यकता में पड़े हुए लोगों के लिए करुणा दिखाना हमारे धर्मसुधारवादी कलीसियाओं की एक सामान्य विशेषता है? मैं प्रार्थना करता हूँ कि यह हमारी कलीसिया की हो, और इसलिए मैं नियमित रूप से अपने लिए प्रार्थना करता हूँ, “परमेश्वर, मेरी आंखों को खोलिए और मार्ग में आने वाले प्रत्येक आत्मा के लिए मेरे हृदय को नम्र कीजिए — चाहे वे कोई भी हों, उन्होंने कुछ भी किया हो, या वे कितने निर्बल हों।” यह क्रूस के प्रकाश में जीवन जीने के अर्थ का एक भाग है।