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लिखने हेतु कीबोर्ड पर उंगलियां रखने से पहले, मैंने अपनी पत्नी से पूछा कि क्या मुझे यह लेख लिखना चाहिए। इससे पहले कि मैं एक भी शब्द लिखता, मैंने उससे पूछा कि क्या मैं वास्तव में योग्य हूँ। उसने कुछ क्षणों के लिए इस पर विचार किया और कहा, “हाँ, मुझे लगता है कि आप हैं।” मैं उसकी पुष्टि के लिए आभारी था, फिर भी हम दोनों को यह स्वीकार करना पड़ा कि मसीही जीवन के कई भागों को करने से अधिक कहना सरल है, जीने की तुलना में वर्णन करना सरल है। और यह विषय कोई अपवाद नहीं है। निस्वार्थ रूप से जीने के लिए योजना बनाना और प्रतिज्ञा करना और प्रार्थना करना बहुत सरल है, परन्तु वास्तव में इसे पल-पल और दिन-प्रति-दिन करना कठिन है। यह इस जगत में उस व्यक्ति के साथ निस्वार्थ रूप से रहने के विषय में भी सच है जिसे मैं सबसे अधिक प्रेम करता हूँ।
मैंने प्रायः विवाहित जीवन के इस असामान्य विरोधाभास पर विचार किया है—कि जिस व्यक्ति से मैं सबसे अधिक प्यार करता हूँ, मैं उसी के विरुद्ध मैं सबसे अधिक पाप करूँगा। हमारी निकटता के कारण, हमारी घनिष्ठता के कारण, क्योंकि हमने अपने जीवन को एक साथ जीने का वचन दिया है “जब तक मृत्यु हमें अलग नहीं करती,” मेरे पास अपनी पत्नी से प्रमे करने के लिए जीवन भर के अवसर होंगे, परन्तु उसे चोट पहुँचाने के लिए भी, मेरी पत्नी को आशीषित करने के लिए, परन्तु उसके विरुद्ध पाप करने के लिए भी। हर दिन मुझे उसके साथ निस्वार्थ रूप से जीने का अवसर मिलेगा, परन्तु उसके साथ स्वार्थी रूप से जीने के प्रलोभन से लड़ने का भी अवसर मिलेगा।
परमेश्वर का वचन यह स्पष्ट करता है कि यह प्रत्येक पति का दायित्व है कि वह अपनी पत्नी के साथ समझदारी से जीवन व्यतीत करे—अर्थात् उसे विशेष सम्मान देते हुए (1 पतरस 3:7)। परमेश्वर यह स्पष्ट करता है कि जबकि एक पति को अपनी पत्नी की अगुवाई करने के लिए बुलाया जाता है, उसे इस प्रकार से अगुवाई करना है जो प्रेम से चिह्नित है, नियन्त्रण से नहीं, और उसे त्यागपूर्ण रीति से अगुवाई है, न कि प्रभुता जताते हुए (इफिसियों 5:25-31)। यदि एक पत्नी की बुलाहट अपने पति की अगुवाई के अधीन होने और उसे सम्मान दिखाने के लिए है, तो पति की बुलाहट इस प्रकार से अगुवाई करने की है, जिससे पत्नी के लिए अनुसरण करना और इस प्रकार से प्रेम करना सरल हो जाए जो पति को उसके सम्मान के योग्य बनाता है। उसे स्वयं से अधिक पत्नी के विषय में सोचना है, उसे अपनी भलाई से पहले पत्नी की भलाई के विषय में सोचना चाहिए, और स्वयं की हानि करते हुए भी उससे प्रेम करना चाहिए। संक्षेप में, उसे निस्वार्थ रीति से जीना है।
निस्वार्थ रीति से जीने का अर्थ है सम्पूरकता के विषय में जागरूकता के साथ जीना, अर्थात् पुरुषों और महिलाओं के बीच के अन्तर को समझते हुए और अपनाते हुए। प्रत्येक पुरुष के भीतर कुछ गहरी बात है जो बिना कहे मानता है कि विवाह सरल होगा और उसका मिलन दृढ़ होगा यदि उसकी पत्नी केवल उसके जैसी होती—यदि वह एक पुरुष के जैसे सोचती और एक पुरुष के जैसे तर्क करती, और एक पुरुष की इच्छाओं की अनुभूति करती है। फिर भी परमेश्वर ने अपनी महिमा को दो ऐसे लिंगों में प्रदर्शित करने के लिए चुना है, जो अद्भुत रूप से भिन्न और आश्चर्यजनक रूप से सम्पूरक हैं। एक पति जो सच में अपनी पत्नी से प्रेम करता है वह एक ऐसा पति है, जो भिन्नताओं से लड़ने के स्थान पर उन्हें स्वीकार करता है, जो उन्हें त्रुटि के स्थान पर परमेश्वर की रूपरेखा की विशेषता के रूप में देखता है। वह अपनी पत्नी को ध्यान से सुनता है; वह उसे प्रेमपूर्वक सान्त्वना देता है; वह स्वेच्छा से उसके लिए उपलब्ध कराता है। वह समझता है और स्वीकार करता है कि उसकी पत्नी भयानक और अद्भुत रीति से परमेश्वर के स्वरूप में हर प्रकार से बनायी गयी है जैसा वह स्वयं है, उसकी समानताओं और उसकी भिन्नताओं दोनों में।
अतः निस्वार्थ भाव से जीने का अर्थ है करुणा दिखाते हुए जीना। कुलुस्सियों को लिखते समय, पौलुस कहता है, “हे पतियो, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम करो, और उनके साथ कटु व्यवहार न करो” (कुलुस्सियों 3:19)। निश्चित रूप से उसने उस विशेष प्रोत्साहन को सम्मिलित नहीं किया होता यदि यह एक सामान्य प्रलोभन को प्रतिबिम्बित नहीं करता। और हर पति को यह स्वीकार करना चाहिए कि वह सरलता से अपनी पत्नी से कठोर, क्रूरतापूर्वक, तीखे या अगम्भीरता से व्यवहार कर सकता है। फिर भी वह पति जो अपनी पत्नी का आदर करना चाहता है, उसके साथ दया और गरिमा, चिन्ता और करुणा के साथ व्यवहार करेगा। वह गम्भीर होगा कि परमेश्वर ने उसे एक पत्नी प्रदान की है, वह सम्मानित होगा कि परमेश्वर ने इस विशेष पत्नी को उसे सौंपा है, और उसे वह सारा प्रेम और स्नेह देने के लिए उत्सुक होगा जिसे परमेश्वर ने उसे दिया है। वह कोमल और सहनशील होगा और सदैव पश्चाताप करने के लिए तत्पर रहेगा, क्षमा मांगने और सम्बन्ध को पुनः स्थापित करने के लिए तत्पर रहेगा जब उसने उसके विरुद्ध पाप किया है।
निस्वार्थ भाव से जीना का अर्थ है एक साथी के रूप में भी जीना। यह “उस पत्नी के साथ जीवन का आनन्द लेना है जिसे आप प्यार करते हैं, अपने व्यर्थ जीवन के सभी दिनों के लिए जो उसने आपको सूर्य के नीचे दिया है” (सभोपदेशक 9:9)। एक भक्तिपूर्ण पति विवाह सम्बन्धों की स्वतन्त्रता और घनिष्ठता का आनन्द उठाता है और अपनी पत्नी को अपने सबसे प्रिय साथी और सबसे घनिष्ठ मित्र के रूप में आनन्दित होता है। यद्यपि प्रत्येक विवाह कभी-कभी कठिन होता है और यद्यपि किसी भी सम्बन्ध को बनाए रखने में प्रयास की परिश्रम की आवश्यकता होती है, फिर भी वह अपनी पत्नी का आनन्द लेने और विवाह के सम्बन्ध की विशिष्ट खुशियों और अद्भुतता का आनन्द लेने के लिए समर्पित है। वह अपनी पत्नी की स्त्रीत्व के साथ आने वाली विशिष्ट शक्तियों को अपनाता है, वह जो विशिष्ट अन्तर्दृष्टि लाती है उसकी प्रशंसा करता है, और जो उसे सुखद लगता है उसका आनन्द लेना सीखता है। जैसे-जैसे वह अपने स्वभाविक स्वार्थ को दूर करता है, वह सबसे निकटतम और सबसे प्रिय प्रकार की मानवीय संगित के अद्भुदता के प्रति जागरूक होता जाता है।
कोई भी अच्छा पुरुष अपनी पत्नी के लिए मरने के लिए तैयार होगा—उस गोली को लेने के लिए जो उसकी पत्नी को लगी होगी, उस पीड़ा का स्वागत करने के लिए जो उसकी पत्नी को दुख देती। परन्तु कुछ ही पुरुष हैं जो अपनी पत्नी के लिए जीने के लिए तैयार है—उस स्वार्थ को हटाने के लिए जो सदैव बहुत पास रहता है और इसके स्थान पर अपनी पत्नी की भलाई और उसकी खुशी के लिए जीने के लिए। परन्तु कोई भी पति उस व्यक्ति की तुलना में अधिक ख्रीष्ट के समान व्यवहार नहीं कर रहा है, जो अपनी पत्नी की भलाई को अपनी भलाई से पहले समझता है, जो अपने स्वाभाविक आत्म-महत्व को मारता है जिससे कि वह परमेश्वर द्वारा दी गई अपनी पत्नी के साथ वास्तव में निःस्वार्थ रूप से रह सके।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।