मसीही जीवन के लिए लूथर का परामर्श - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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मसीही जीवन के लिए लूथर का परामर्श

परमेश्वर की सम्प्रभुता, अनुग्रह द्वारा उद्धार, विश्वास द्वारा धर्मीकरण, और ख्रीष्ट के साथ मिलन में नया जीवन, मसीही जीवन जीने के लिए इन सब बातों का क्या अर्थ है? लूथर, चार निहितार्थों को रखते हैं:

पहला निहितार्थ यह ज्ञान है कि मसीही विश्वासी सिमुल इस्टस एट पेकेटर (simul iustus et peccator) है, अर्थात् एक ही समय में धर्मी ठहराया गया और फिर भी एक पापी। यह सिद्धान्त, जिसके कारण लूथर सम्भवतः जॉन टॉलर की थियोलोजिआ जर्मनिका (Theologia Germanica) के द्वारा प्रेरित हुए होंगे, एक अत्यन्त स्थिर सिद्धान्त था: अपने आप मे, मैं केवल एक पापी को देखता हूँ; परन्तु जब मैं स्वयं को ख्रीष्ट में देखता हूँ, मैं एक व्यक्ति को देखता हूँ जो उसकी सिद्ध धार्मिकता के साथ धर्मी गिना जाता है। ऐसा एक व्यक्ति इसलिए परमेश्वर के सम्मुख यीशु ख्रीष्ट के समान धर्मी के रूप में खड़े होने के योग्य है—क्योंकि वह केवल उस धार्मिकता में धर्मी है जो कि ख्रीष्ट की है। यहाँ हम सुरक्षित खड़े हैं।

दूसरा निहितार्थ यह खोज है कि परमेश्वर ख्रीष्ट में हमारा पिता बन गया है। हम स्वीकार किए गए हैं। लूथर की टेबल टॉक  पुस्तक (Table Talk) में, सम्भवतः सबसे अच्छा विवरण में से एक, कुछ अवसादग्रस्त, फिर भी अत्यन्त प्रेम किए गए, जॉन श्लैगिनहौफिन द्वारा अभिलिखित किया गया था:

परमेश्वर को मुझसे अधिक मित्रवत होना चाहिए और मेरी केटी जैसे छोटे मार्टिन से बात  करती है उससे भी अधिक मित्रवत रीति से बात करनी चाहिए। न ही केटी और न ही मैं जानबूझ कर अपने बच्चे की आँख नोच सकते हैं या सिर फोड़ सकते हैं। परमेश्वर को हमारे साथ धैर्य रखना चाहिए। उसने इसका प्रमाण भी दिया है, और इसलिए उसने अपने पुत्र को हमारे शरीर में भेजा ताकि हम उत्तम के लिए उसकी ओर देखें।

तीसरा, लूथर इस बात पर बल देते हैं कि ख्रीष्ट में जीवन अनिवार्य रूप से क्रूस की अधीनता का जीवन है। यदि हम ख्रीष्ट से जुड़े हैं, तो हमारा जीवन उसके अनुरूप होगा। सच्ची कलीसिया और सच्चे मसीही दोनों के लिए मार्ग महिमा के ईश्वरविज्ञान  (theologia gloriae) से हो कर नहीं अपितु क्रूस के सिद्धान्त (theologia crucis) से हो कर जाता है। यह हमें भीतर से प्रभावित करता है जब हम स्वयं के लिए मरते हैं और बाहर से प्रभावित करता है जब हम कलीसिया के दुखों में सहभागी होते हैं। महिमा का मध्यकालीन ईश्वरविज्ञान को क्रूस के सिद्धान्त से अभिभूत हो जाना चाहिए। कलीसियाई विधियों की सटीक प्रकृति की समझ में उनके सभी मतभेदों में भी, इस बात पर लूथर और केल्विन एकमत हैं। यदि हम ख्रीष्ट के साथ उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान में एक हैं, और हमारे बपतिस्मे के द्वारा यह चिन्हित होता है (जैसा कि पौलुस रोमियों 6:1-14 में सिखाता है), तो सम्पूर्ण मसीही जीवन एक क्रूस-उठाने के समान होगा:

ख्रीष्ट का क्रूस उस लकड़ी के टुकड़े को नहीं प्रकट करता है जिसे ख्रीष्ट ने अपने कंधों पर उठाया था, और जिस पर बाद में उसे कीलों से ठोका गया था, परन्तु सामान्यतः यह उस विश्वासयोग्य के कष्टों को प्रकट करता है, जिसके दुख ख्रीष्ट के दुख हैं, 2 कुरिन्थियों 1:5: “ख्रीष्ट के दुख हमारे लिए अधिकाई से हैं”; फिर से: “मैं अपने दुखों में जो तुम्हारे लिए उठाता हूँ, आनन्द करता हूँ और ख्रीष्ट के क्लेशों की घटी को उसकी देह अर्थात् कलीसिया के लिए अपने शरीर में पूर्ण करता हूँ” (कुलुस्सियों 1:24)। इसलिए ख्रीष्ट का क्रूस सामान्यतः कलीसिया के उन सभी कष्टों को प्रकट करता है जो वह ख्रीष्ट के लिए उठाती है।

विश्वासी का ख्रीष्ट में उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान के साथ मिलन और दैनिक अनुभवों में इसका कार्य, लूथर के लिए, देखने वाले वे ऐनक बन गए जिसके माध्यम से एक मसीही जीवन के प्रत्येक अनुभवों को देखना सीखता है। यह—थियोलोजिआ क्रूसिस (theologia crucis)—वह है जो सब बातों को अधिक ध्यान में लाता है और हमें मसीही जीवन के उतार-चढ़ाव को समझने के योग्य बनाता है।

इन बातों को जानना हमारे लिए लाभप्रद है, कहीं ऐसा न हो कि हम अत्याधिक शोक में डूब जाएं या निराशा में पड़ जाएँ जब हम यह देखें कि हमारे विरोधी क्रूरता से हमें सताते, बहिष्कृत करते, और मार डालते हैं। परन्तु आइए अपने आप में सोचें, पौलुस के इस उदाहरण के पश्चात् कि हमें उस क्रूस में महिमा करनी चाहिए जिसे हम उठाते हैं, अपने पापों के लिए नहीं, परन्तु ख्रीष्ट के लिए। यदि हम केवल उन दुखों के विषय में सोचे जिन्हें हम सहते हैं, तो वे न केवल कष्टदायक परन्तु असहनीय है; परन्तु जब हम कह सकें: “तेरे दुख (ऐ ख्रीष्ट) हमारे लिए अधिकाई से हैं”; या जैसा कि भजन 44 में कहा गया है: “हम तो तेरे लिए दिन भर घात किए जाते हैं,” तब ये दुख न केवल सहज, परन्तु साथ ही मधुर भी हैं, इस कथन के अनुसार: “मेरा जुआ सहज और मेरा बोझ हल्का है” (मत्ती 11:30)।

चौथा, मसीही जीवन आश्वासन और आनन्द के साथ चिन्हित किया जाता है। यह धर्मसुधार की विशिष्टतायाओं में से एक था और ऐसा होना समझ में भी आता है। धर्मसुधार की पुनर्खोज धर्मीकरण के सम्बन्ध में— कि एक आशान्वित आगमन के दिशा मे कार्य करने के स्थान पर, मसीही जीवन वास्तव में इससे ही आरम्भ होता है— अद्भुत छुटकारा लेकर आया है, मन , इच्छा, और स्नेह को आनन्द से भर दिया है। इसका अर्थ यह है कि अब एक व्यक्ति अभी ही महिमा में निश्चित भविष्य के प्रकाश में जीवन जीना आरम्भ कर सकता है। निस्सन्देह, वह प्रकाश वर्तमान जीवन में प्रतिबिम्बित होता है, जो गहन आराम और मुक्ति लाता है।

अपने सिर के बल खड़े होना

लूथर के लिए, मसीही जीवन एक सुसमाचार-आधारित, सुसमाचार-निर्मित, सुसमाचार-आवर्धक(magnifying) जीवन है जो परमेश्वर के स्वतन्त्र और सम्प्रभु अनुग्रह को प्रदर्शित करता है और जो हमारे लिए मरा उस उद्धारकर्ता के प्रति कृतज्ञता में जीवन जीता है, और क्रूस-सहन करने में उसके साथ तब तक जुड़ा रहता है जब तक कि मृत्यु को विजय मे निगल न लिया जाए और विश्वास दृश्य न हो जाए।

सम्भवतः, 1522 में, जब लोग बोर्ना में कलीसिया में एक रविवार को लूथर को प्रचार करते हुए सुन रहे थे, उनकी मण्डली के कुछ लोग  सोच रहे होयएंगे कि इस सुसमाचार के केन्द्र में ऐसा क्या निहित है जिसने भाई मार्टिन को न केवल परिवर्तित वरन् इतना उत्साहित कर दिया है। क्या यह उनके लिए भी हो सकता है? लूथर ने उनके मनों को पढ़ लिया। वह उपदेश मंच पर इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए पूरी तैयारी के साथ आए थे:

परन्तु सुसमाचार क्या है? वह यह है, कि परमेश्वर ने अपने पुत्र को संसार में भेजा पापियों को बचाने के लिए। यूहन्ना 3, 16, और नरक को कुचलने, मृत्यु पर विजय पाने, पाप को दूर करने और व्यवस्था को सन्तुष्ट करने के लिए। परन्तु आपको क्या करना है? कुछ नहीं, बस इसको स्वीकार करें और अपने छुड़ानेवाले की ओर देखें और दृढ़ता के साथ विश्वास करें  कि यह सब उसने आपकी भलाई के लिए किया और सब कुछ सेंत-मेंत मे आपको अपना मानते हुए देता है, ताकि मृत्यु, पाप और नरक के भय में, आप साहसपूर्वक उसपर निर्भर हो सकें और आत्मविश्वास के साथ कह सकें: यद्यपि मैं व्यवस्था को पूरा नहीं करता हूँ,  यद्यपि पाप अभी भी उपस्थित है और मैं मृत्यु और नरक का भय रखता हूँ, फिर भी सुसमाचार के द्वारा मैं जानता हूँ कि ख्रीष्ट ने अपने सारे कार्य मुझे प्रदान किए हैं। मुझे निश्चित है कि वह झूठ नहीं बोलेगा, अपनी प्रतिज्ञाएँ निश्चित रूप से पूरी करेगा। और इसके एक चिन्ह के रूप में मुझे बपतिस्मा मिला है. . . . .

इस बात पर मैं अपना भरोसा रखता हूँ। क्योंकि मैं जानता हूँ कि मेरे प्रभु ख्रीष्ट ने मेरी भलाई के लिए मृत्यु, पाप, नरक, और शैतान पर विजय प्राप्त की है। क्योंकि वह तो निर्दोष था, जैसा कि पतरस कहता है: “उसने न तो कोई पाप किया और न उसके मुँह से छल की कोई बात निकली” 1 पतरस 2:22। इसलिए पाप और मृत्यु उसे घात नहीं कर सकीं, नरक उसे पकड़ कर न रख सका, और वह उनका प्रभु बन गया, और यह उन सबको दे दिया जो इसे स्वीकार करते और इसपर विश्वास करत हैं। यह सब मेरे कार्यों और गुणों के कारण नहीं होता, परन्तु शुद्ध अनुग्रह, भलाई और दया के कारण होता है। 

लूथर ने एक बार कहा था, “यदि मुझे विश्वास हो  कि परमेश्वर मुझसे क्रोधित नहीं है, तो मैं आनन्द में अपने सिर के बल खड़ा हो जाऊंगा”। सम्भवतः उसी दिन उनमें से कुछ लोगों ने जिन्होंने उसे प्रचार करते सुना प्रत्युत्तर दिया और उस “आत्मविश्वास” का अनुभव किया। कौन जानता है की कुछ युवा श्रोताओं ने अपने मित्रों को लिखा भी हो और उन्हें बताया हो कि वे घर गए और आनन्द के लिए अपने सिर के बल खड़े हो गये?

सम्पादक का नोट: यह पोस्ट द लेगसी ऑफ लूथर का एक अंश है और सर्वप्रथम 29 अक्टूबर, 2018 को प्रकाशित हुआ था।          

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

सिनक्लेयर बी. फर्गसन
सिनक्लेयर बी. फर्गसन
डॉ. सिनक्लेयर बी. फर्गसन लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ के एक सह शिक्षक हैं और रिफॉर्म्ड थियोलॉजिकल सेमिनरी विधिवत ईश्वरविज्ञान के चान्सलर्स प्रोफेसर हैं। वह मेच्योरिटी नामक पुस्तक के साथ-साथ कई अन्य पुस्तकों के लेखक हैं।