बातों में नहीं, वरन् सामर्थ्य में। - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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बातों में नहीं, वरन् सामर्थ्य में।

2021 के ग्रीष्मकाल ने ओलंपिक देखने के लिए विश्व के ध्यान को टोक्यो की ओर आकर्षित किया। ये प्रतियोगिताएँ न केवल राष्ट्रीय गौरव के समय हैं, वरन् कैमरों के चालू होने से पहले की गई वर्षों के कठिन परिश्रम का पुरस्कार भी हैं। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे व्यक्तियों द्वारा अविश्वसनीय बाधाओं की कहानियां आलेखित की गई हैं, जिन्होंने स्वर्ण जीतने के लिए असम्भव प्रतीत होने वाली बाधाओं को पार किया।
फिर भी, ये कहानियाँ और इनके जैसी अनगिनत अन्य कहानियाँ कितनी भी अद्भुत क्यों न प्रतीत होती हों, परिवर्तित मसीहियों के जीवन की वास्तविकता की तुलना में ये कुछ नहीं हैं। अपनी पिछली अपरिवर्तित अवस्था में वे मन से अन्धे (मत्ती 15:14), सुनने में बहरे (यूहन्ना 8:47), हृदय से निर्बुद्धि (रोमियों 1:21), अपनी इच्छाओं में विद्रोही (पद. 32), अपने पापों में मरे हुए (इफिसियों 2:1) और अपने आत्मिक स्वभाव में शैतान के वंशज थे (यूहन्ना 8:44)। फिर भी, बाद में मसीहियों के रूप में उन्हें धर्मी घोषित किया गया (फिलि. 3:9), एक नया स्वभाव दिया गया (इफिसियों 4:24), एक नई सृष्टि घोषित की गई (2 कुरिन्थियों 5:17), परमेश्वर द्वारा प्रेम किया गया (यूहन्ना 14: 21), स्वतन्त्र किया गया (गलातियों 5:13), परमेश्वर की सन्तान बना दिया गया (यूहन्ना 1:12) और ख्रीष्ट के सह-वारिस बना दिया गया (रोमियों 8:17)। यह कैसे सम्भव है? एक व्यक्ति मृत्यु से जीवन की ओर, शैतान की सेवा से उद्धारकर्ता की आराधना की ओर कैसे जा सकता है? यह केवल कठिन स्थिति नहीं है। यह तो असम्भव है। फिर भी यीशु के शब्द सत्य हैं: “मनुष्यों के लिए यह असम्भव है, परन्तु परमेश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है” (मत्ती 19:26)।
पौलुस इसी विषय में 1 कुरिन्थियों 4:20 में बात कर रहा है: “क्योंकि परमेश्वर का राज्य बातों में नहीं परन्तु सामर्थ्य में है”। पौलुस को उन झूठी बातों को सम्बोधित करना पड़ रहा है जो उसके कुरिन्थुस से चले जाने के पश्चात् प्रचलित हुए, विशेष रूप से सच्ची सेवकाई और झूठी सेवकाई के सम्बन्ध में। बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोग आए थे और वे कुरिन्थियों की नई कलीसिया के लोगों को भटका रहे थे। परन्तु लोगों को यह कहने के स्थान पर कि वे अपने चुने हुए मार्ग पर जाएँ, वह सच्ची सामर्थ्य की लेखापरीक्षा करने की माँग करता है। अब ध्यान रहे, पौलुस अपनी और अपनी सामर्थ्य की प्रशंसा नहीं कर रहा है। वरन् इसके विपरीत, पौलुस स्वयं को दास (1 कुरिन्थियों 4:1) और एक मूर्ख (पद। 10) कहता है। इसके विपरीत पौलुस अपनी प्रेरिताई उंगली और उनके ध्यान को उस ओर इंगित करता है और निर्देशित करता है जहाँ सच्ची सामर्थ्य पाई जाती है: अर्थात् सुसमाचार की ओर। उसने एक और कलीसिया से कहा कि यह “हर एक विश्वास करने वाले के लिये उद्धार के निमित्त परमेश्वर की सामर्थ है” (रोमियों 1:16)।
इसलिए, पहली शताब्दी के सभी “बुद्धिमान” शिक्षक या इक्कीसवीं शताब्दी के “प्रभावकों” हमें अपनी सावधानीपूर्वक तैयार की गई छवियों और स्मरण रखे जाने वाले पंक्तियाँ जो ट्विटर पर तो पोस्ट किए जाते हैं पर हमारी बाइबल में नहीं पाए जाते हैं न दिखाएँ। आइये हम सच्ची सामर्थ्य की बात करते हैं। आइए परिवर्तित जीवन की सामर्थ्य के बारे में बात करते हैं। ऐसे लोगों के विषय में जो विद्रोही थे पर आराधक बन गए। जो भगोड़े थे पर सन्तान बन गए। जो मरे हुए थे पर जीवित कर दिए गए। यह है सच्ची सामर्थ्य। शेष सब तो शब्द मात्र ही हैं। आपके शब्द, परमेश्वर के नहीं।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

एरिक बैनक्रॉफ्ट
एरिक बैनक्रॉफ्ट
रेवेरेन्ड एरिक बैनक्रॉफ्ट मयैमी में ग्रेस चर्च के पास्टर हैं।