“विश्वव्यापी” (Catholic) का क्या अर्थ है?  - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
“पवित्र” का क्या अर्थ है?
14 जून 2024
“प्रेरितीय” का क्या अर्थ है
19 जून 2024
“पवित्र” का क्या अर्थ है?
14 जून 2024
“प्रेरितीय” का क्या अर्थ है
19 जून 2024

“विश्वव्यापी” (Catholic) का क्या अर्थ है? 

इसके आरम्भिक दिनों से ही, यीशु ख्रीष्ट की कलीसिया को “विश्वव्यापी” करके वर्णित किया गया है। इस शब्द का सबसे पहला उपयोग दूसरी शताब्दी के प्रथम भाग में प्रेरितीय पिताओं के द्वारा लिखे गए उनके लेखों में पाया जाता है (एंटीओक के इग्नाटियस, स्मिर्नियंस 8.9; द मार्टर्डम ऑफ पॉलीकार्प, परिचय)। यह शब्द यूनानी भाषा के कैथोलिकोस से है, जिसका अर्थ “सम्पूर्ण” या “सार्वभौमिक” (Universal) है। आरम्भिक शताब्दियों में इस शब्द का कलीसिया के सम्बन्ध में इस प्रकार उपयोग करना समान्य था। यद्यपि, अब कैथोलिक शब्द विशिष्ट रीति से रोमन कैथोलिक के लिए उपयोग किया जाता है। परन्तु यह सम्बन्ध अपेक्षाकृत बाद का ऐतिहासिक विकास है। आरम्भिक कलीसिया ने इस शब्द का उपयोग सम्पूर्ण कलीसिया के लिए किया, पूर्व और पश्चिम दोनों कलीसियाओं के लिए।

बहुत से लोग आज उस एक सच्ची कलीसिया की खोज में हैं, अर्थात् विश्वव्यापी कलीसिया जिसकी ऐतिहासिक निरन्तरता यीशु और प्रेरितों के समय से चली आ रही है। मत्ती 16:18 में यीशु घोषणा करता है कि “मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा”। यीशु के पास एक ही कलीसिया है, इसलिए विश्वव्यापकता का प्रश्न सीधे कलीसिया के सच्चे स्वभाव से जुड़ा हुआ है। रोम और पूर्वी शास्त्रसम्मतता (Eastern Orthodoxy) कलीसिया को संस्थागत रूप में परिभाषित करती है; विश्वव्यापकता (Catholicity-कैथॉलिसिटी) को एक दृश्य संस्था के साथ सहभागिता के रूप में समझा जाता है। दूसरी ओर प्रोटेस्टेन्ट कलीसिया को प्राथमिक रीति से सैद्धान्तिक या आत्मिक सन्दर्भ में व्याख्या करते हैं। प्रोटेस्टेन्ट दृढ़तापूर्वक कहते हैं कि विश्वव्यापकता (कैथॉलिसिटी) मूल रीति से उसको सन्दर्भित करता है जो आत्मिक है। यह निसन्देह दृश्य एवं अदृश्य कलीसिया से सम्बन्धित प्रश्नों को उठाता है। धर्मसुधारकों ने इस भिन्नता को अपने कलीसियाविज्ञान में एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में सम्मिलित किया। क्या यह मात्र आपत्तिखण्डनशास्त्र था, या यह तर्कसंगत बाइबलीय प्रमाण था? क्या उनकी यह शिक्षा कभी धर्मसुधार से पहले प्रकाश में आई थी?
मत्ती 16:16 में, पतरस इस बात का अंगीकार करता है कि यीशु “जीवित परमेश्वर का पुत्र ख्रीष्ट है”। यीशु उत्तर देते हैं, “तू पतरस है और इसी चट्टान पर मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा” (मत्ती 16:18)। ऐतिहासिक रीती से, इस खण्ड ने बहुत ही अधिक विवाद को उत्पन्न किया है। क्या यह “चट्टान” पतरस का अंगीकार है जो अनन्त: ख्रीष्ट की ओर इंगित करता है जैसा कि प्रोटेस्टेन्ट बल देते हैं? या फिर क्या कलीसिया पतरस के ऊपर बनाई गई है और उसके पश्चात, पतरस के उत्तराधिकारियोंं (successors) पर, रोम के बिशप, जैसा की रोम की कलीसिया दावा करती है? हम कैसे समझ सकते हैं कि वास्तव में यीशु का क्या अर्थ है?
इफिसियों कि पत्री इस खण्ड पर एक सहायक टीका प्रदान करती है। इफिसियों 2:20 में पौलुस कहता है कि कलीसिया, “प्रेरितों और नबियों की नींव पर, जिसके कोने का पत्थर ख्रीष्ट यीशु स्वयं है बनाए गए हो”। “बनाए गए हो” का यूनानी शब्द वही है जो यीशु ने मत्ती 16:18 में उपयोग किया है। कैसे कलीसिया प्रेरितों और नबियों पर बनी हुई है? आरम्भ में यह उनकी शिक्षा पर (प्रेरितो के काम 2:42; 5:42) और ऐतिहासिक रीति से उत्प्रेरित लेखन के माध्य से बनायी गई है। सुसमाचारों के द्वारा उन्होंने यीशु ख्रीष्ट की साक्षी दी – उसके व्यक्ति और कार्य के विषय में – जो कि कलीसिया की सर्वश्रेष्ठ नींव है (1 कुरिन्थियों 3:11)। इफिसियों 1:13 में, “उसी में तुम पर भी, जब तुमने सत्य का वचन सुना जो तुम्हारे उद्धार का सुसमाचार है – और जिस पर तुमने विश्वास किया – प्रतिज्ञा किए हुए पवित्र आत्मा की छाप लगी”। पौलुस समझा रहा है कि कैसे इफिसियों की कलीसिया का निर्माण हुआ है, और ऐसा करने के द्वारा वर्णित करता है कि विश्वव्यापी कलीसिया का निर्माण कैसे हुआ। सुसमाचार की उद्धोषणा की गई, इफिसियों के लोगों ने विश्वास में प्रतिउत्तर दिया और उन पर यीशु ख्रीष्ट के साथ मिलन की छाप लगाई गई। इसलिए कलीसिया के निर्माण का साधन प्रेरितीय सुसमाचार है, अर्थात् उद्धार का एक सन्देश जो केवल विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से केवल ख्रीष्ट में है – एक सन्देश जिसकी नबूवत नबियों के द्वारा की गई और जिसकी साक्षी प्रेरितों द्वारा आँखों देखे विवरण में है। अतः मत्ती 16 की चट्टान को पतरस द्वारा ख्रीष्ट की स्वीकृती के रूप में उल्लेखित किया जाना चाहिए।

सच्ची कलीसिया के स्वभाव और विश्वव्यापकता को समझने में सुसमाचार की श्रेष्ठता और महत्वता को किसी भी रीति से कम नहीं किया जा सकता है। पौलुस ने गलातियों के लोगों को चिताया था कि जिन्होंने विकृत सुसमाचार को अपनाया और सिखाया, जिन्होंने ख्रीष्ट को त्याग दिया था और वे ईश्वरीय श्राप के अधीन था (गलातियों 1:6-8)। वह सच्ची विश्वव्यापी कलीसिया के भाग नहीं थे। इसलिए, हम वचन की स्पष्ट शिक्षा से निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि कलीसिया में वे लोग निहित है जिन्होंने सच्चे सुसमाचार को ग्रहण किया है, आत्मिक रीति से ख्रीष्ट से जुड़ गए हैं, उसकी देह – उसकी कलीसिया के सदस्य बन गए हैं (यूहन्ना 15:4-5; 17:23; रोमियों 12:12-13; इफिसियों 1:22-23)। और इसके आत्मिक स्वभाव के कारण, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह मिलन अदृश्य है। पौलुस इस्राएल का उदाहरण उपयोग करते हुए दृश्य और अदृश्य के बीच में भिन्नता को दिखाता है। वे सभी जो इस्राएल देश के दृश्य भाग थे परमेश्वर के आत्मिक राज्य के भाग नहीं थे (रोमियों 2:28-29; 9:6-7)। वचन इस बात को स्पष्ट करता है कि यह सम्भव है कि एक जन दृश्य कलीसिया का सदस्य हो और यीशु ख्रीष्ट की अदृश्य कलीसिया का भाग न हो। सबसे पहले और प्रमुख बात, सच्ची कलीसिया का एक स्वभाव यह है कि वह आत्मिक और अदृश्य है।
विश्वव्यापी कलीसिया के सच्चे सदस्य होने का अर्थ है संतों के उस प्रतिष्ठित देह का भाग बनाया जाना, परमेश्वर के चुन हुए लोग जिनका हृदय-परिवर्तित हुआ है और आत्मिक रीति से यीशु ख्रीष्ट से जोड़े गए हैं।

यद्यपि यह आत्मिक मिलन दृश्य नहीं होगा, यह मिलन स्वयं उन सभी के जीवन में दृश्य रूप से अभिव्यक्ति उत्पन्न करेगा जो ख्रीष्ट के साथ जुड़े हुए हैं। विश्वव्यापी कलीसिया के सदस्य नए स्वभाव और परिवर्तित जीवन के द्वारा प्रमाणित किए जाएँगे जो कि अधीनता, आज्ञाकारिता, प्रेम और परमेश्वर और उसके वचन के प्रति समर्पण, विशेष रीति से सुसमाचार के प्रति समर्पण में दिखाई देगा (यूहन्ना 3:3-8; 8:31-32; रोमियों 6:1-22; 2 कुरिन्थियों 5:17; गलातियों 1:6-9; फिलिप्पियों 3:3-11; तीतुस 2:11-14; 1 यूहन्ना 2:3-6)। प्रेरित यूहन्ना ने चेतावनी दी थी कि जहाँ जीवन में पवित्रता नहीं है, वहाँ ख्रीष्ट के साथ मिलन भी नहीं है, यहाँ तक कि विश्वास का अंगीकार करने वाला विश्वासी दृश्य कलीसिया का औपचारिक सदस्य क्यों न हो (1 यूहन्ना 2:3-6; 3:4-10)। यीशु ने भी अपने सन्देश और दृष्टान्तों में समान्य चेतावनी दी थी (मत्ती 7:13-23, 13:18-30; यूहन्ना 8:30-44)। साथ ही साथ, प्रत्येक वह जन जो ख्रीष्ट के साथ जुड़ा है उस दृश्य संचालित सहभागिता अर्थात् स्थानीय देह का सदस्य भी है, इसी कारण पौलुस रोम, कुरिन्थ और इफिसुस नगर की कलीसिया के विषय में बात कर सका।
यीशु ने आज्ञा दिया कि उसका सुसमाचार पूरे संसार में प्रचार किया जाए (मत्ती 28:18-20)। उसकी एक, सच्ची विश्वव्यापी कलीसिया सभी संस्कृति, जाति, लिंग, और समाजिक-राजनैतिक पृष्ठभूमि के लोगों को अपनाती है (इफिसियों 2:11-12; कुल्लुसियों 3:11; इब्रानियों 12:22-23)। यह उन लोगों के समूह हैं जिन्होंने सुसमाचार पर विश्वास और आज्ञापालन किया है, जो जीवन की पवित्रता के द्वारा ख्रीष्ट के साथ अपने मिलन का प्रमाण देते हैं। यह स्वर्ग में सिद्ध विश्वव्यापी कलीसिया का निर्माण करेंगे जहाँ, सम्पूर्ण अनन्तकाल तक वे आराधना करेंगे, सेवा करेंगे और परमेश्वर और मेमने की महिमा करेंगे (प्रकाशितवाक्य 5:8-14, 22:1-4)। सच्ची विश्वव्यापकता मूल रीति से आत्मिक है संस्थागत नहीं है।

अदृश्य कलीसिया का सिद्धान्त धर्मसुधारकों की नवीन शिक्षा नहीं थी। आरम्भिक कलीसिया में इसके सबसे दृढ़ समर्थकों में से एक ऑगस्टीन थे। उन्होंने सिखाया कि कलीसिया पतरस पर नहीं परन्तु उसके अंगीकार पर बनी है और इसलिए यह ख्रीष्ट पर बनी है: “ध्यान दे, ख्रीष्ट ने अपनी कलीसिया किसी व्यक्ति के ऊपर नहीं परन्तु पतरस के अंगीकार पर बनाई” (उपदेश 229 पृष्ठ 1 में, सन्त ऑगस्टीन के कार्य, उपदेश, खण्ड III.VI)।
यह व्याख्या आरम्भिक कलीसिया के पिताओं की विचार पद्धति को प्रदर्शित करती है। ऑगस्टीन ने सिखाया कि दृश्य कलीसिया में ऐसे बहुत सारे हैं जिन्होंने ख्रीष्ट का अंगीकार किया है, बपतिस्मा लिया और धार्मिक विधियों में भाग लिया परन्तु वह अदृश्य कलीसिया के भाग नहीं थे (यूहन्ना रचित सुसमाचार पर सन्देश, ट्रैक्टेट 27.11; बपतिस्मा पर, पुस्तक IV अध्याय 3.5)। ऑगस्टीन के अनुसार सच्ची कलीसिया में वे लोग निहित हैं जिन्होंने पश्चाताप और विश्वास किया है, जो आत्मिक रीति से ख्रीष्ट से अपने सिर के रूप में जुड़ गए हैं, और जो उसके साथ अपने रहस्यमय मिलन (union) के परिणाम स्वरूप पवित्र जीवन जीते हैं। जो लोग परिवर्तित जीवन को प्रकट नहीं करते हैं, वह उनको सिर्फ नाम का मसीही कहता है, वास्तिवक मसीही नहीं। उसने नए नियम के जंगली बीज के दृष्टान्त, जाल का दृष्टान्त , बकरियों और भेड़ों को अलग करने का दृष्टान्त, गेहूँ और जंगली बीज के दृष्टान्त की शिक्षा के अधार पर इस शिक्षा को सिखाया (सन्देश 5.3; 23.4; 88.19; 149.4; 137.9; पेटिलियन का उत्तर, पुस्तक 3, अध्याय 2.3; भजन संहिता के विषय पर 965.13; विश्वव्यापी कलीसिया की नैतिकता के विषय पर 34.76; परमेश्वर का नगर, पुस्तक 1, अध्याय 35, कलीसिया की एकता के विषय पर 34, 35)। ऑगस्टीन ने विश्वास और कार्यों पर अपने आलेख में मृत विश्वास के प्रति चेतावनी दी जो ख्रीष्ट का अंगीकार तो करता है परन्तु परिवर्तित जीवन को उत्पन्न नहीं करता है क्योंकि उसमें वास्तविक पश्चाताप का अभाव है। यह धार्मिक विधियों को शून्य और निरस्त कर देता है। ऑगस्टीन ने निश्चित ही कलीसिया को दृश्य रूप में देखा परन्तु उसने दृश्य कलीसिया और अदृश्य कलीसिया के बीच स्पष्ट रूप से भेद किया।
विश्वव्यापी कलीसिया के सच्चे सदस्य होने का अर्थ है सन्तों की उस प्रतिष्ठित देह अर्थात् परमेश्वर के चुन हुए लोगों का भाग बनाया जाना जिनका हृदय-परिवर्तित हुआ है और आत्मिक रीति से यीशु ख्रीष्ट से जोड़े गए हैं। यह उन लोगों की महान् संगति में सम्मिलित होना है जो फिरौती देकर छुड़ाए गए हैं, चंगे किए गए हैं, पुर्नस्थापित किए गए हैं और क्षमा किए गए हैं। मुख से अंगीकार किन्तु फलरहित जीवन होने की सम्भावना के गम्भीर प्रकाश में, नया नियम हमें प्रोत्साहित करता है कि हम स्वयं को जाँचें, इस बात को देखने के लिए कि हम विश्वास में हैं कि नहीं, कि हम अपनी बुलाहट और चुने जाने को सुनिश्चित कर लें (2 कुरिन्थियों 13:5)। हमारा यह एक नैतिक दायित्व है कि हम दूसरों को भी ऐसा ही करने के लिए उत्साहित करें। यह ख्रीष्ट के साथ मिलन है, न की एक दृश्य संस्था में सदस्यता जो कि हमारे लिए एक, सच्ची विश्वव्यापी कलीसिया में स्थान को बनाती है। इसलिए सारे युगों के संत एवं वचन यह घोषणा करते हैं: “तू इस योग्य है…क्योंकि तू ने वध होकर अपने लहू से प्रत्येक कुल, भाषा, लोग और जाति में से परमेश्वर के लिए लोगों को मोल लिया है” (प्रकाशितवाक्य 5:9)।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

विलियम वेबस्टर
विलियम वेबस्टर
डॉ. विलियम वेबस्टर वाशिंगटन के बैटल ग्राउंड स्थित ग्रेस बाइबल चर्च के पादरी हैं, क्रिश्चियन रिसोर्सेज नामक वेबसाइट के संस्थापक हैं, तथा सैल्वेशन, द बाइबल, एण्ड रोमन कैथोलिकिज्म सहित कई पुस्तकों के लेखक हैं।