स्वयं को सुसमाचार प्रचार करना - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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स्वयं को सुसमाचार प्रचार करना

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का आठवाँ अध्याय है: सुसमाचार का मुख्य केन्द्र

प्रभु के उद्धार में बड़ी सुरक्षा पाई जाती है। परमेश्वर ने हमें जगत की उत्पति से पूर्व ख्रीष्ट में चुना, और उसका निर्णय स्थिर है। पवित्र आत्मा ने हमारे नए जन्म को होने दिया है, और ऐसा कोई भी यन्त्र नहीं है जिससे हम उसके द्वारा दिए गए जीवन को नष्ट कर सकें। प्रत्येक विश्वासी ख्रीष्ट के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया है, और पवित्रशास्त्र में हम कहीं भी कोई ऐसा मार्ग नहीं देखते हैं जिसके द्वारा हम अक्रूसित हो सकें। प्रत्येक जिसने यीशु ख्रीष्ट में विश्वास किया है, धर्मी ठहराया गया है, और मनुष्य या शैतान का कोई भी कार्य परमेश्वर के निर्णय को पलट नहीं सकता है। यीशु अपने सभी लोगों पर अपनी सार्वभौमिक देखभाल बनाए रखता है। जो उसके हाथों में हैं, उन्हें छीना नहीं जा सकता है। फिर भी, हमारे उद्धार की सुरक्षा और परमेश्वर के समक्ष यीशु ख्रीष्ट के माध्यम से खड़े होने के बाद भी, हम समस्या में पड़ सकते हैं जब हम सुसमाचार की आशा से भटक जाते हैं। 

और हम भटकते हैं। जबकि भटकाव अनैतिकता में गिराने के रूप में आ सकता है, यह प्रायः एक एक प्रकार की ख्रीष्टीयता का स्वांग रचकर आता है। कई लोगों के लिए, ख्रीष्टिय जीवन सटीक सैद्धान्तिक शिक्षा के द्वारा चलित होता है। हो सकता है कि हम उचित रीति से अपने अंगीकार की विरासत मूल्य देते हैं और सुदृढ़ ईश्वरविज्ञान के महत्व को देखते हैं, परन्तु यह स्वयं वह लक्ष्य बन सकता है जिसके लिए हम प्रयास करते हैं जबकि प्रकिया में सम्पूर्ण ईश्वरविज्ञान का सुसमाचार के साथ जो सम्बन्ध को खो देते हैं। ज्ञान प्रायः “घमण्डी बनाता है” और इसके परिणाम से आने वाला घमण्ड हमें सुसमाचार पर की सुसमाचार पर आधारित निर्भरता से हटाकर अंगीकार पर आधारित निर्भरता की ओर ले जाता है। कुछ ख्रीष्टीय लोग अपने आत्मिक जीवन को भावनाओं पर आधारित करते हैं—हृदय की गहरी भावनाएं जो अक्सर परमेश्वर के गहन सत्य से जुड़ी होती हैं। किन्तु जबकि परमेश्वर के सत्य कभी नहीं बदलते हैं, उनके प्रति हमारा अनुभव बदलता है। और जब भावनाएँ वहाँ नहीं होती हैं, हमारा विश्वास संकट में पड़ जाता है। अपनी भावनाओं पर भरोसा पाने में, हम उस बात से भटक जाते हैं जो जीवन और मृत्यु में हमारी एकमात्र आशा होनी चाहिए। हम में से कई लोग सुसमाचार से दृष्टि हटा लेते हैं जब हम स्वयं के कार्यों पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं और इस बात पर कि हम स्वयं आत्मिक रीति से कितना अच्छा कर रहे हैं। स्वनिर्धारित मानकों के स्तर से स्वयं को मापने के द्वारा, हम स्वयं को दृढ़ या निर्बल सोचते हैं, किन्तु इन सभी बातों में हल पाया जाता है हमारे उत्तम करने में, बजाय ख्रीष्ट के कार्य के स्थान में।

मौलिक रूप से, सुसमाचार भुला दिया जाता है जब यह परमेश्वर के समक्ष हमारी निरन्तर बनी रहने वाली आशा और भरोसे के रूप में कार्य नहीं करता है, या जब यह ख्रीष्टिय जीवन के व्यावहारिक, दैनिक जीवन के लिए अनावश्यक हो जाता है। जिस सुसमाचार जिसको हम प्रायः भूल जाते हैं, उसे हमारी प्राणों की सुरक्षा के लिए पुन: प्राप्त किया जाना चाहिए और स्मरण रखना चाहिए, और यह स्वयं को सुसमाचार प्रचार करने के माध्यम से किया जाता है।

अपने आप को सुसमाचार का प्रचार करना स्वयं को क्षमा, शुद्धिकरण, सशक्तिकरण और उद्देश्य के लिए यीशु के पास लौटने के लिए बुलाना है। यह सन्देह और भय को परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के द्वारा उत्तर देना है। क्या मेरे पाप मुझे दोषी ठहराते हैं? यीशु ने उन सभी को अपने लहू में ढांप दिया है। क्या मेरे कार्य पर्याप्त नहीं हैं? यीशु की धार्मिकता को अब मेरी धार्मिकता के रूप में गिना जाता है। क्या संसार, शैतान और मेरा अपना शरीर मेरे विरुद्ध षड्यंत्र रच रहे हैं? स्वर्ग में मेरे पिता की इच्छा के बिना मेरे सिर से एक बाल भी नहीं गिर सकता है, और उसने मेरी देखभाल करने और मुझे सर्वदा के लिए बनाए रखने की प्रतिज्ञा की है। क्या मैं वास्तव में स्वयं का इनकार कर सकता हूँ, अपना क्रूस उठा सकता हूँ, और यीशु के पीछे चल सकता हूँ? हाँ, क्योंकि परमेश्वर मुझ में सक्रिय है, अपनी सुइच्छा के लिए मुझ में मेरी इच्छा और कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिए। स्वयं को सुसमाचार का प्रचार करना इसी के जैसा दिखाई देता है।

यह निजी और व्यक्तिगत प्रचार तभी हो सकता है जब परमेश्वर का वचन जाना और उस पर विश्वास किया जाता हो; जब परमेश्वर की व्यवस्था हमारे पाप और बेबसी को प्रकट करती है, और उसका अनुग्रह उस पाप को ढांपता और हमारी निर्बलताओं पर विजय पाता है। स्वयं को सुसमाचार प्रचार करना केवल बाइबल का अध्ययन करने का कार्य नहीं है (हालाँकि हम उस कार्य में स्वयं को प्रचार कर सकते हैं), लेकिन यह सक्रिय रीति से उसके पुत्र में परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर विश्वास करने के लिए स्वयं को बुलाना है।

हम स्वयं को प्रचार करते हैं प्रार्थना और पवित्रशास्त्र पर मनन करने के अनुशासन के माध्यम से। प्रार्थना करने में, हम परमेश्वर की ओर देखते हैं कि वह अनुग्रहकारी रीति से हमारी आवश्यकताओं को पूरी करे, और इस कार्य में ही हम विश्वास का अभ्यास करते हैं। प्रभु की प्रार्थना की अपनी व्याख्या में, थॉमस मैनटन ने कहा, “प्रार्थना … परमेश्वर की सुनवाई में स्वयं को प्रचार करना है। हम स्वयं को उत्साहित करने के लिए परमेश्वर से बात करते हैं, उसकी जानकारी के लिए नहीं, किन्तु स्वयं की उन्नति के लिए।” परमेश्वर के वचन में प्राप्त सुसमाचार की प्रतिज्ञाएं हमें प्रार्थना में मार्गदर्शन प्रदान करती हैं, तथा यीशु की सेवा और बलिदान की सुरक्षा की ओर हमारी अगुवाई करती हैं। मनन करने के द्वारा, हम सुसमाचार को स्मरण करते हैं; प्रार्थना के द्वारा, हम सुसमाचार को अपनी महान आशा के रूप में दावा करते हैं।

हममें से अधिकांश लोगों को पुनः सुसमाचार को खोजने की आवश्यकता है। और इस तरह की पुनः प्राप्ति की प्रतिदिन आवश्यकता है क्योंकि हमारी आवश्यकता सदैव बनी रहती है और हमारे हृदय भटकने के आदि हैं। लेकिन सुसमाचार की पुनः प्राप्ति तभी होती है जब हम अपने पापों का भार, अपने शरीर की कमज़ोरी, और अपने विश्वास की निर्बलता को अनुभव करते हैं। इसका अर्थ यह है कि केवल वे ही जो स्वयं को अयोग्य पापी जानते हैं और परमेश्वर के वचन को सत्य मानते हैं, सुसमाचार को केवल शुभ सन्देश करके ही नहीं, बल्कि अपने प्राणों के लिए शुभ सन्देश पाएंगे।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
जो थॉर्न
जो थॉर्न
रेव. जो थॉर्न सेंट चार्ल्स, इलिनोइ के रेडीमर फेलोशिप के संस्थापक और प्रमुख पास्टर हैं, और डाॉक्ट्रिन और डिवोशन पॉडकास्ट के संचालक हैं। वे नोट टु सेल्फ और द हार्ट ऑफ द चर्च सहित अन्य पुस्तकों के लेखक हैं।