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कठिनाइयों और परीक्षाओं में बच्चों की चरवाही करना

Shepherding-Children-through-Hardships-and-Trials

स्कॉट जेम्स

अपने बच्चों को दुःख और कठिनाइयों से पीड़ित देखना अत्यन्त कठिन हो सकता है। यहाँ तक कि वे माता-पिता भी जो अपनी समस्याओं से निपटने में सक्षम होते हैं, वे भी प्रायः तब स्वयं असहाय होने की अनुभूति करते हैं जब उनका बच्चा पीड़ित होता है। तो हम अपने बच्चों को ऐसी परिस्थितियों में कैसे स्वस्थ और परमेश्वर का सम्मान करने वाली रिती से चरवाही कर सकते हैं? जब हमारे बच्चें कष्ट में हो , तो यहाँ तीन बातें  हैं जिनके द्वारा हम उन्हें सहारा दे सकते हैं।

विश्वासयोग्य उपस्थिति प्रदान करें

माता-पिता और देखभालकर्ताओं के रूप में, जब हम अपने बच्चों को पीड़ित देखते हैं, तो हमारी पहली प्रवृत्ति तुरन्त कुछ कर के समस्या हल करने की होती है। कभी-कभी तत्काल हस्तक्षेप करना आवश्यक होता है। परन्तु कई बार ऐसा भी होता है कि कठिनाइयों का सामना कर रहे बच्चे हमारी समस्या-समाधान कौशलों से अधिक हमारी विश्वासयोग्य उपस्थित की आवश्यकता होती है। हम अपने अनुभव से जानते हैं कि संकट के समय में, कभी-कभी हम केवल किसी प्रियजन की उपस्थिति से सान्त्वना पाना चाहते हैं—कोई ऐसा जो धैर्यपूर्वक हमारे साथ बैठे, न कि हमें turant ठीक करने की शीघ्रता  करे, कोई जिसके साथ हम सुरक्षित होने की अनुभूति करें। हमारे बच्चे भी ऐसे ही आश्रय की लालसा रखते हैं, और माता-पिता होने का एक सबसे बड़ा विशेषाधिकार यही है कि हम अपने घरों में परमेश्वर के इस उत्तम स्वभाव को प्रतिबिम्बित कर सकते हैं।

यदि पालन-पोषण की तुलना चरवाही से की जाए, तो यह वही भाग है जहाँ चरवाहा अपनी भेड़ों को इतना अच्छी तरह जानता है कि केवल उसकी उपस्थिति ही झुंड के लिए सांत्वना होती है। इसी प्रकार, हम परमेश्वर की शान्ति को मूर्त रूप दे सकते हैं, साथ ही अपने बच्चों को उनके परम चट्टान और शरणस्थान (भजन 18:2) की ओर इंगित भी कर सकते हैं। जब संकट हमारे बच्चों के जीवन में घुस आता है, हमें उनके लिए वहाँ होने का अवसर मिलता है, जो उनकी व्यथा के प्रति एक शान्त आश्वासन को प्रदान करता है। इससे पहले कि हम वर्तमान संकट को हल करने के लिए एक उँगली भी उठाएँ, हमारी उपस्थिति और व्यवहार हमारे बच्चों को दिखा सकता है कि हम उनके साथ हैं और उनके लिए हैं, और इससे भी बढ़कर, परमेश्वर भी है। आवश्यकता के समय में, हम अपने बच्चों को स्मरण करा सकते हैं कि प्रभु उन सभी के निकट है जो उसको पुकारते हैं (भजन 145:18)।

बुद्धिमानी से चरवाही करना

जब हम बच्चों के जीवन में विश्वासयोग्य उपस्थिति बनाए रखते हैं, तो यह हमें यह बुद्धि भी देता है कि कब और कैसे उचित हस्तक्षेप करना है। जैसे चरवाहा अपनी भेड़ों को जितना जानता है, उतना ही उन्हें उचित देखभाल और संरक्षण भी दे सकता है। यह सम्बन्धपरक बुद्धिमता अमूल्य होगी जब आप अपने बच्चों को जीवन की अनेक बाधाओं से निपटने में सहायता करेंगे।

फिलिप्पियों को लिखे अपने पत्र में, पौलुस हमें शालीन उपस्थिति और सूचित, संलग्न देखभाल के बीच संतुलन की झलक देता है। वह शान्ति बोता है, स्मरण कराते हुए कि “प्रभु निकट है; [इसलिए] किसी भी बात की चिन्ता न करो,” साथ ही फिलिप्पियों की देखभाल की प्रशंसा करता है: “तुमने मेरे दुख में सहभागिता करके अच्छा किया” (फिलिप्पियों 4:5–6, 14)। पौलुस और फिलिप्पियों के लिए, उनके द्वारा साझा की गई शान्ति ने समयोचित दया और करुणा के कार्यों का मार्ग प्रशस्त किया।

एक बुद्धिमान चरवाहा जानता है कि कब केवल उपस्थिति पर्याप्त है और कब सक्रिय सहायता की आवश्यकता है। कभी-कभी इसका अर्थ है सुरक्षा-दीवार बनना, फिर भी उन्हें अपनी चुनौतियों से स्वयं निपटने के लिए स्थान देना; कभी-कभी इसका अर्थ है प्रत्यक्ष सहायता प्रदान करने के लिए कदम उठाना। स्थिति जो भी हो, जब हमारे बच्चे कठिनाइयों और परीक्षाओं से दबे हों, तो हमें उनके बोझ को सहन करने के लिए उनके साथ आने के अवसरों की खोज में रहना चाहिए (गलातियों 6:2)। इसके लिए भी बुद्धि की आवश्यकता होती है क्योंकि प्रत्येक स्थिति और प्रत्येक बच्चा भिन्न होता है। यहाँ कोई एक ही नियम सभी पर लागू नहीं होता, इसलिए परमेश्वर की बुद्धि आवश्यक है कि हम हर बच्चे की स्थिति और उसकी क्षमता के अनुसार उसका साथ दें। जैसे-जैसे हम कठिनाई की गम्भीरता और किसी विशेष बच्चे की उससे निपटने की क्षमता का आकलन करते हैं, तो बुद्धि का अर्थ यही है कि हमारी भागीदारी परिस्थिति के अनुसार ढली हुई हो।

उन्हें आशा से भरे क्षितिज की ओर इंगित करें

परीक्षा चाहे कैसी भी हो, और हम चाहे कितनी भी सावधानीपूर्वक अपने बच्चों को उसमें सहारा दे रहे हों, फिर भी एक संकुचित दृष्टि का शिकार होने का खतरा बना रहता है। जब हम अपने बच्चों के साथ कठिन परिस्थितियों से गुजरते हैं, तो यह सम्भव है कि हम समस्या में इतने उलझ जाएँ कि उद्धारकर्ता की ओर अपनी दृष्टि उठाना ही भूल जाएँ। हममें से कुछ यह जानबूझकर करते हैं; परन्तु, प्रायः यह केवल इसलिए होता है कि हमारे बोझ—विशेष रूप से जब हमारे बच्चे प्रभावित होते हैं—हम पर इतना दबाव डालते हैं कि हम केवल साँस लेने का प्रयास करते हैं। जैसे-जैसे हम केवल जीवित रहने का प्रयास करते रहने की स्थिति में चले जाते हैं, तो हम अपने आसपास की परिस्थितियों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं और बड़े परिप्रेक्ष्य को देखना भूल जाते हैं। कठिनाइयों के समय में हमारे बच्चों की भी ऐसी ही प्रतिक्रिया हो सकती है, जिसका अर्थ है कि हमें हमारी सच्ची आशा कहाँ पाई जाती है, इसे स्मरण कराने का अवसर मिलता है। जैसे चरवाहा अपने झुण्ड को सुरक्षित चराई की ओर निर्देशित करता है, वैसे ही हम, जो बच्चों के साथ छाया की घाटी से गुजरने के लिए बुलाए गए हैं, उनकी दृष्टि को क्षितिज की ओर, ख्रीष्ट में हमारी आशा की ओर निर्देशित करने का विशेषाधिकार रखते है। उनकी परिस्थितियाँ कितनी भी अंधेरी क्यों न हों, हम उन्हें यीशु की ओर देखने में सहायता कर सकते हैं, जो जगत की ज्योति है (यूहन्ना 8:12) और जिसका धर्मी मार्ग “दिन की पूर्णता तक अधिकाधिक बढ़ता जाता है” (नीतिवचन 4:18)। हम अपने बच्चों को अंधेरे से परे, घाटी से ऊपर और बाहर, यीशु के अद्भुत प्रकाश में अटल आशा की ओर देखने में सहायता करते हैं तो कितनी शान्ति मिलती है।                

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।