शिष्यता की स्वतंत्रता - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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शिष्यता की स्वतंत्रता

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का सोलहवां अध्याय है: शिष्यता

एक किशोर के रूप में, मैं ख्रीष्टिय विश्वास को प्रतिबंधात्मक और दमनकारी के रूप में देखता था। यह मेरा भय था कि ख्रीष्टिय जीवन शैली मुझे केवल दासत्व और दुख के जीवन से भी बाँध देगी। इसलिए, मैं प्रतीक्षा कर था कि कब मैं अपने माता-पिता की निगरानी से निकल कर विश्वविद्यालय में स्वतंत्रता से अपना जीवन जीऊंगा।

हालाँकि, परमेश्वर का धन्यवाद हो, कि मेरे हाई स्कूल के अन्तिम वर्ष में मैंने पाया कि जिसे मैं स्वतंत्रता समझ रहा था वह सच्चाई में दासत्व था और जिसे मैं दासत्व समझ रहा था, वास्तव में वह सच्ची स्वतंत्रता थी, वास्तविक स्वतंत्रता, शिष्यता की स्वतंत्रता। मैंने इस बात को समझा, कि यीशु से अलग, कहीं और सच्ची स्वतंत्रता नहीं है, केवल पाप का दासत्व है। 

मनुष्य परमेश्वर द्वारा बनाया गया कि वह पृथ्वी पर प्रभुता करे, भौतिक संसार का दोहन करे परमेश्वर की महिमा तथा मनुष्य के लाभ के लिए। परन्तु जब मनुष्य ने परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया, तब उसने अपने आप को सृष्टि की प्रभुता के अधीन पाया, उस पर प्रभुता करने के स्थान पर। हम यही अनुभव करते हैं व्यसनों के दासत्व में। मनुष्य अपनी स्वयं की वासनाओं का दास बन जाता है। वह पाप का दास बन जाता है। स्वाभाविक मनुष्य पाप के बन्धन में है।

यह निश्चित रूप से, धर्मसुधारकों (रिफॉर्मर्स) की प्रमुख अवधारणाओं में से एक थी जब उन्होंने परमेश्वर के सार्वभौमिक अनुग्रह के सुसमाचार को पुनः प्राप्त किया। मार्टिन लूथर, अपने लेख द बॉन्डेज ऑफ़ द विल  में इस बात को बड़ी स्पष्टता से कहता है। स्वाभाविक मनुष्य स्वतंत्र नहीं है वरन् पाप का दास है। वह और कुछ नहीं कर सकता है। उसे उस पाप के सामर्थ्य से मुक्त होना अनिवार्य है जो उसे बाँधे है। यह शिष्यता की स्वतंत्रता है।

यीशु ने कहा “यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे, और तुम सत्य को जानोगे, और सत्य तुम को स्वतन्त्र करेगा” (यूहन्ना 8:31-32)। यह तभी है जब हम अपने आप को यीशु की प्रभुता के अधीन लाते हैं और उसके शिष्य बनते हैं, कि हम सच्ची स्वतंत्रता का अनुभव करें। वह हमारे जीवन में पाप की सामर्थ्य को तोड़ता है और वह अपने भले राज्य में हमें स्वतंत्रता प्रदान करता है। हम वह बनने के लिए स्वतन्त्र बनते हैं जो बनने के लिए उसने हमें सृजा है—ऐसे प्राणी जो अवर्णनीय आनन्द से भरे होते हैं जब हम उसकी आज्ञाओं को मानते और उन उद्देश्यों को पूरा करते हैं जिसके लिए उसने हमें सृजा था।

तभी हम सबसे अधिक स्वतन्त्र हैं। यह अराजकता की झूठी स्वतंत्रता नहीं परन्तु सच्ची स्वतंत्रता है जिसका अनुभव तब होता है जब हम यीशु के शिष्य के रूप में परमेश्वर की महिमा के लिए जीवन जीते हैं। प्रेरित पौलुस रोमियों 6:20-23 में यही कहता है। जब हमारे पाप और मृत्यु का बन्धन परमेश्वर के अनुग्रह की सामर्थ्य से यीशु में तोड़ा जाता है, तो हम यीशु के दास (शिष्य) बन जाते हैं। यह सच में एक आनन्दपूर्ण सेवा है, क्योंकि यीशु अपने शिष्यों से पुत्र और पुत्रियों के रूप में व्यवहार करता है। वास्तव में, हम परमेश्वर की सन्तानों के आनन्दपूर्ण स्वतंत्रता में प्रवेश करते हैं।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
रोलैंड बार्न्स
रोलैंड बार्न्स
रेव्ह. रोलैंड बार्न्स स्टेट्सबोरो, जॉर्जिया में ट्रिनिटी प्रेस्बिटेरियन चर्च (पीसीए) के वरिष्ठ पास्टर हैं।