उदारवाद: एक भिन्न धर्म
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वेस्टमिंस्टर थियोलॉजिकल सेमिनरी में जे. ग्रेशम मेचन के साथ जुड़ने वाले मूल संकाय-सदस्यमें से एक, ऐलन मक्रे ने एक बार कहा था, “यीशु ख्रीष्ट की कलीसिया के सम्पूर्ण इतिहास में सत्य को बनाए रखने के लिए निरन्तर एक संघर्ष रहा है।” उस सार्वकालिक संघर्ष ने 1890 से 1930 के दशकों में एक बहुत ही उग्र रूप धारण कर लिया था।
नई शताब्दी की अपेक्षा ने प्रगतिशील भावना को और मनुष्य की भलाई और सम्भावित उपलब्धियों में एक अप्रतिबन्धित विश्वास को बढ़ावा दिया। प्रथम विश्व युद्ध ने इसे एक बड़ा झटका दिया, विशेषकर यूरोप में। यद्यपि, अमरीका, एक महासागर दूर होने से युद्ध से सीधे अछूता होने के कारण, 1920 के दशक में प्रगति की ओर सबसे आगे दौड़ा। वे इसे “गर्जने वाला 20 का दशक” (The Roaring Twenties) कहते थे। इस महान युग का नाम आधुनिकतावाद है। आधुनिकतावाद के प्रयासों की सूची में परमेश्वर की अस्वीकृति और धर्म की उपेक्षा करना सबसे ऊपर हैं। इस सांस्कृतिक बम ने अमरीकी कलीसिया को भारी रूप से प्रभावित किया।
जब आधुनिकतावादी लोगों कलीसिया को छोड़ने लगे और आधुनिकतावाद ने परमेश्वर को पीछे छोड़ दिया, विभिन्न सम्प्रदायों की कलीसियाओं के अगुवाओं ने अपने ईश्वरविज्ञान के विश्वासों और अपनी सेवकाई की प्राथमिकताओं पर “पुनःविचार” करना आरम्भ कर दिया। वे सांस्कृतिक वार्तालाप में पीछे रहने के लिए तैयार नहीं थे, जिसके परिणामस्वरूप कलीसियाई इतिहासकारों द्वारा कहे गए उदारवाद सामने आया। उदारवाद आधुनिकतावादी संवेदनाओं को समायोजित करता है, मुख्य रूप से अलौकिकता के प्रति घृणा और मानवीय भलाई और क्षमता में ईश्वरीय विश्वास की अभिव्यक्त करता है। इसका अर्थ है कि पवित्रशास्त्र की त्रुटिहीनता और आधिकारिकता के धर्मसिद्धान्त को हटा दिया जाएगा। इसका अर्थ है कि परमेश्वर को मात्र प्रेम और स्वीकृति के परमेश्वर बना दिया जाएगा। इसका अर्थ है कि ख्रीष्ट को एक अच्छा मनुष्य या एक बृद्धिमान शिक्षक में बदल दिया जाएगा। इसका अर्थ है कि क्रूस को प्रेम और निस्वार्थता के उदाहरण में बदल दिया जाएगा। इसका अर्थ है कि भविष्य के परमेश्वर के राज्य को यहाँ पृथ्वी पर के एक आदर्श समाज (यूटोपिया, एक आदर्श समाज) में स्थानान्तरित कर दिया जाएगा। इन धर्मसैद्धान्तिक अन्तरों का संचयी प्रभाव यह था कि कलीसिया अपने महान आदेश में परित्यक्त हो गयी, और अन्धकार में ज्याोति समान बनना समाप्त हो गयी।
परन्तु, जैसे कि मक्रे का उद्धरण हमें स्मरण दिलाता है, ऐसे लोग भी हैं जो सत्य की रक्षा करने के लिए संघर्ष में उतरते हैं। 1900 के उन आरम्भिक दशकों में, उन्हें मूलतत्ववादी (fundamentalists) कहा जाता था। मूलतत्ववादी शब्द का उपयोग सबसे पहले किसी ऐसे व्यक्ति का वर्णन करने के लिए किया गया था जो मूल बातों पर विश्वास करता था और उनके समर्थन के लिए लड़ता भी था। मूल बातों में बाइबल की त्रुटिहीनता, ख्रीष्ट का परमेश्वरत्व, क्रूस पर उसका प्रतिस्थापनीय प्रायश्चित, अश्चर्यक्रम, और सुसमाचार के प्रचार करने और विश्वास करने की आवश्यकता सम्मिलित थी। मूलतत्ववाद और उदारवाद के बीच इस विभाजन को समझने के लिए, तीन व्यक्तियों पर विचार करें: चार्ल्स ऑगस्टस ब्रिग्स (1841-1913), हैरी एमर्सन फ़ोसडिक (1878-1969), और जे. ग्रेशम मेचन (1881-1937)।
ब्रिग्स ने न्यूयॉर्क में यूनियन थियोलॉजिकल सेमिनरी (संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रेस्बिटेरियन कलीसिया या पीसीयूएसए की एक सेमिनरी) में अध्ययन किया और इसके पश्चात् विदेश जर्मनी में अध्ययन किया। ब्रिग्स ने उच्चत्तर-आलोचनात्मक मत (higher-critical theory) को सम्पूर्ण रीति से ग्रहण किया, एक ऐसा दृष्टिकोण जो रूप से बाइबल की ईश्वरीय स्त्रोत को नकारता है और इसे उसी संमीक्षा के अधीन करता है जो किसी अन्य ग्रन्थ को प्राप्त होगी। बिली सण्डे अपने सुसमाचार-प्रचार सभाओं में व्यंग्य किया करते थे: “नरक को उल्ट दें तो उसके नीचे क्या मुहर लगी मिलेगी? ‘जर्मनी में निर्मित’।” (मेड इन जर्मनी)। जब सण्डे ने ऐसा कहा, तो उनके मन में एक उच्चत्तर-आलोचना थी–और इसका सीधा प्रभाव ब्रिग्स जैसे अमेरिकी विद्वानों पर पड़ा। 1880 के दशक में, ब्रिग्स का रूढ़िवादियों के साथ, विशेषकर प्रिंसटन थियोलॉजिकल सेमिनरी के संकाय के साथ टकराव चलता रहा। 1891 में उन्होंने यूनियन में बाइबलीय ईश्वरविज्ञान के एडवर्ड रॉबिन्सन चेयर के रूप में अपने अपने आरम्भिक व्याख्यान में, ब्रिग्स ने मानो एक तोप का गोला दागा। उसने “पवित्रशास्त्र का अधिकार” शीर्षक वाले इस व्याख्यान में यह दावा किया कि मौखिक प्रेरणा का विश्वास परमेश्वर के वचन को उचित रीति से समझने के लिए एक “बाधा” है। ब्रिग्स पर विधार्मिकता का आरोप लगाया गया और 1893 में उन्हें दोषी पाया गया, जिसके कारण यूनियन सेमिनरी को उन्हें सेमिनरी से बाहर निकालना पड़ा। यूनियन ने तुरन्त एक स्वतन्त्र वित्तपोषण स्थान के माध्यम से उन्हें फिर से कार्य पर रख लिया। कहावत के अनुसार बाँध में छेद हो गया था। यूनियन प्रेस्बुतिरवाद और यहाँ तक कि अमेरिकी कलीसिया में उदारवाद का मुख्यालय बन गया, और कई विश्वविद्यालयों और सेमिनरी में शीघ्र ही बाइबल की विधर्मी शिक्षाओं के विचारों की बाढ़ सी आ गई—और सभी धर्मसिद्धान्तों पर शस्त्रसम्मत शिक्षाओं को मिटाया जाने जाने लगा।
डीट्रिक बोनहोफ़र ने 1929-30 में यूनियन में अध्ययन किया और उसने इसे बहुत ही घटिया पाया। उन्होंने न्यूयॉर्क नगर की कलीसियाओं को भी उतनी ही घटिया पाया। फ़ोसडिक की कलीसिया सहित एक के बाद एक कलीसियाओं में जाने के बाद, उन्होंने अपनी घर की रिपोर्ट में संक्षेप में लिखा, “यहाँ कोई ईश्वरविज्ञान नहीं है।” उनके कहने का वास्तव में अर्थ यह था, कि उन्होंने जो कुछ भी उपदेश मंच से सुना वह मात्र मनुष्यों के वचन थे, न कि परमेश्वर का वचन। उच्चत्तर आलोचना जर्मनी से अमेरिकी अकादमी और उसके पश्चात् अमेरिकी कलीसियाओं में भेजी गई । वास्तव में विचारों के परिणाम होते हैं। यदि ब्रिग्स अकादमी पर उदारवाद के प्रभाव को दर्शाते हैं, तो फ़ोसडिक कलीसिया पर उदारवाद के प्रभाव को दर्शाते हैं। दो बातों ने फ़ोसडिक को प्रसिद्ध कर दिया: वह चित्ताकर्षक और प्रभावशाली थे, और उनको अमेरिका के सबसे धनवान व्यक्ति, जॉन डी. रॉकफेलर का समर्थन प्राप्त था।
21 मई, 1922 को, फ़ोसडिक ने इस शीर्षक का एक उपदेश दिया: “क्या मूलतत्ववादी जीतेंगे?” इसमें उन्होंने मसीही विश्वास के विषय में “आधुनिकतावाद के स्पष्ट शब्दों में” पुनःविचार किया। यह तो स्पष्ट समायोजन (समझौता) था। उदाहरण के लिए, यदि ख्रीष्ट का कुँवारी से जन्म के विषय में उसके विचारों को देखें। फ़ोसडिक ने कहा कि मूलतत्ववादी कहते हैं कि, हमें कुँवारी जन्म को ऐतिहासिक तथ्य के रूप में और यथार्थ और अविवादित सत्य के रूप में समझना चाहिए। फ़ोसडिक ने इसका प्रतिउत्तर दिया, “कुँवारी से जन्म को महान व्यक्तित्व की व्याख्या के रूप में विश्वास करना यह उन परिचित प्रकारों में से एक है, जिनसे प्राचीन संसार असामान्य श्रेष्ठता को समझने के लिए अभ्यस्त था।” उसने आगे बुद्ध और जरथुस्त्र का उल्लेख किया कि उनका जन्म भी इसी प्रकार से हुआ था। परन्तु कुँवारी से जन्म को नकारने का अर्थ है ख्रीष्ट के परमेश्वरत्व को नकारना, और यह शास्त्रसम्मत सुसमाचार को नकारना है। एच. रिचर्ड नीबहर उदारवाद का वर्णन इस प्रकार करते हैं कि “क्रोध रहित परमेश्वर ने पाप रहित मनुष्यों को क्रूस रहित ख्रीष्ट की सेवकाई के द्वारा न्याय रहित राज्य में प्रवेश कराया।” यह फ़ोसडिक का वर्णन है।
इस मतभेद में जे. ग्रेशम मेचन आये । मेचन बॉल्टीमोर के एक अधिवाक्ता के पुत्र थे और उनकी माता मैकॉन, जॉर्जिया से थीं। उन्होंने जॉन्स हॉपकिंस में शास्त्रीय सहित्य का अध्ययन किया और फिर प्रिंसटन विश्वविद्यालय और प्रिंसटन थियोलॉजिकल सेमिनरी दोनों में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। इसके पश्चात् वे आगे की पढ़ाई के लिए जर्मनी चले गए। वे प्रिंसटन सेमिनरी में पुनः वापस आ गए, जहाँ उन्होंने 1906 से 1929 तक एक प्राध्यापक के रूप में सेवा की। इस बीच उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के मध्य फ्रांस में वाईएमसीए (YMCA) के साथ दो वर्षों की सेवा की। उन्हें “प्रिंसटन के सिंह” बेन्जामिन ब्रेकिनरिज वॉरफील्ड द्वारा मार्गदर्शन दिया गया। जब 1921 में वॉरफील्ड की मृत्यु हो गई, तो विश्वास के प्रतिरक्षक का उत्तरदायित्व मेचन पर आ गया।
मेचन ने अपनी ख्याति अर्जित कर ली थी, उन्होंने जर्मन की उच्चत्तर आलोचना का सीधे सामना किया था, और उनके पास एक तेज मन था। उन्हें शास्त्रसम्मत धर्मसिद्धान्त, अलौकिक बातें, और सुसमाचार से प्रेम था। यह सब 1923 में प्रकाशित उनकी पुस्तक, क्रिश्चियैनिटी एण्ड लिबरलिज़्म (मसीहियत और उदारवाद) में सम्मिलित था। यह पुस्तक मसीहियत के महत्वपूर्ण धर्मसिद्धान्तों को बताती है, यह दिखाते हुए कि उदारवाद मसीहियत का एक नया रूप नहीं है, परन्तु यह सम्पूर्ण रूप से एक झूठा सुसमाचार है। इसके परिणामस्वरूप, उदारवाद कोई भी आशा नहीं रखता है। उदारवाद रोटी के स्थान पर पत्थर प्रदान करता है।
मेचन की पुस्तक धार्मिक उदारवादियों के द्वारा त्यागी गयी और उनकी समीक्षाओं में उन्होंने इसकी आलोचना की गई। यह बड़ी रोचक बात है कि, वाल्टर लिपमैन और एच.एल. मेनकेन जैसे बौद्धिक आधुनिकतावादी विद्वानों ने इस पुस्तक का सम्मान किया और मेचन के तर्कों की वैधता को मान्यता दी। रूढ़ीवादियों के लिए, इस पुस्तक ने उनकी रीढ़ को दृढ़ किया कि वे विश्वास के लिए लड़ते रहना बनाए रखें । किन्तु मेचन के साथ उनकी इस पुस्तक के पश्चात क्या हुआ?
1929 में, प्रिंसटन थियोलॉजिकल सेमिनरी ने बोर्ड को पुनर्गठित किया और यह सीधे उदारवाद की ओर मुड़ गया, जिसके कारण मेचन को बाहर निकलना ही पड़ा। उन्होंने डेलावेयर नदी पार किया और फिलाडेल्फिया में वेस्टमिंस्टर थियोलॉजिकल सेमिनरी आरम्भ किया। जब मेचन ने एक नया मिशन बोर्ड को संगठित किया क्योंकि सम्प्रदायों के मिशन बोर्ड ने सुसमाचार की घोषणा से सामाजिक परिवर्तन पर ध्यान केन्द्रित किया था, तो उन्हें कलीसियाई सेवा पद से निष्काशित कर दिया गया। 1936 में, उन्होंने ऑर्थोडॉक्स प्रेस्बिटेरियन चर्च (शास्त्रसम्मत प्रेस्बुतेरवादी कलीसिया) के गठन की अगुवाई की। कुछ महीने पश्चात्, 1 जनवरी, 1937 को, मेचन की उत्तरी डकोटा में निमोनिया से मृत्यु हो गई, जहाँ उन्होंने नए सम्प्रदाय की एक कलीसिया में संकट के समय को शान्त करने के लिए यात्रा की थी।
मेचन के पहले जीवनीकार और सहकर्मी, नेड स्टोनहाउस ने जॉन बन्यन के साहसी चरित्र के आधार पर उन्हें “सत्य के लिए साहसी” कहा। और यह तो वे थे ही। मेचन की पुस्तक और उनकी लड़ाई में समयबद्धता थी। किन्तु यह एक महत्वपूर्ण शाश्वतता भी है। इसके परिणामस्वरूप, क्रिश्चियैनिटी एण्ड लिबरलिज़्म पुस्तक, प्रथम बार प्रकाशित होने के सौ वर्ष पश्चात्, आज पहले की तुलना में कहीं अधिक लागू होती है। जब हम विश्वास के लिए इस सार्वकालिक और अन्तहीन संघर्ष करते हैं, जैसा कि हमारे दिनों में प्रकट है, हम मेचन और उनकी पुस्तक के लिए परमेश्वर को धन्यवाद दे सकते हैं, और इस पुस्तक में कुछ समय व्यतीत करना हमारे लिए अच्छा होगा।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।