साहस क्या है?
10 दिसम्बर 2024प्रकाशन
17 दिसम्बर 2024दयालुता क्या है?
“परन्तु अपने शत्रुओं से प्रेम रखो, और भलाई करो, और उधार देकर पाने की आशा मत रखो, और तुम्हारे लिए प्रतिफल बड़ा होगा और तुम परमप्रधान के सन्तान ठहरोगे, क्योंकि वह स्वयं अकृतज्ञों और दुष्टों पर कृपा करता है” (लूका 6:35)। यीशु के ये वचन पहाड़ी उपदेश का भाग हैं, जहाँ वह समझाता है कि परमेश्वर के राज्य के अनुसार जीवन जीना कैसा होता है। अपनी इस शिक्षा में, यीशु परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले जीवन के उच्च मानकों का वर्णन करके अपने श्रोताओं को चुनौती देता है। इस खण्ड के साथ एक खतरा यह है कि कोई व्यक्ति यह सोचने के लिए प्रलोभित हो सकता है कि ख्रीष्ट के ये वचन अच्छा व्यवहार करने के विषय में अच्छा परामर्श मात्र है, न कि यह दिखाने का साधन कि अपने साथी मनुष्य और अपने सृष्टिकर्ता के प्रति अपने नैतिक दायित्व को पूरा करना कितना असम्भव है।
हमारी आधुनिक संस्कृति में, लोग साधारणतः इस बात पर सहमत होते हैं कि उन्हें एक-दूसरे के प्रति दयालु होना चाहिए। पर इसका अर्थ क्या है? कई लोग मानते हैं कि केवल अपने काम से काम रखना और दूसरों को अपनी इच्छा के अनुसार सोचने और करने देना ही दयालुता है। किन्तु यीशु कहते हैं कि अपने शत्रुओं से प्रेम करो, न कि केवल लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करो।
बाइबल के अनुसार, दयालुता प्रेम में निहित है, न कि केवल सहनशील होने में। पुराने नियम में हेसेड शब्द, जिसका अर्थ है “प्रेमपूर्ण दयालुता”, का उपयोग किया गया है यह वर्णन करने के लिए कि परमेश्वर अपने लोगों से किस प्रकार प्रेम करता है। जब हम इस बात पर विचार करते हैं कि परमेश्वर दयालुता को कैसे परिभाषित करता है, तो हमें स्वयं से सचमुच पूछना चाहिए: क्या हम दूसरों से उसी प्रतिबद्धता और देखभाल के साथ प्रेम कर सकते हैं जैसा परमेश्वर उन लोगों के लिए दिखाता है जो लगातार उसके साथ विश्वासघात करते हैं? क्या हम उन लोगों की भलाई के लिए कार्य करने में सक्षम हैं जो हमें अस्वीकार करते हैं?
प्रेरित पौलुस तीतुस 3:3 में पुष्टि करता है कि क्योंकि हम पतित हैं और परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करते हैं, इसलिए हम स्वाभाविक रूप से दूसरों से घृणा करते हैं और उनसे ईर्ष्या करते हैं। यदि यह हमारे हृदय की वास्तविकता है, तो दयालुता को समझना कठिन है क्योंकि इसका वास्तविक अर्थ लोगों से वैसा ही प्रेम करना है जैसा परमेश्वर उनसे प्रेम करता है।
पहाड़ी उपदेश में, यीशु के वचन स्वाभाविक रूप से लोगों को निराशा की ओर ले जाते हैं जब वे अपने प्राणों के अन्धकार पर विचार करते हैं। हम में से कौन उनसे प्रेम कर सकता है जो हमसे घृणा करते हैं? कौन बिना भुगतान की अपेक्षा किए उधार दे सकता है? कौन उन लोगों का भला कर सकता है जिनसे हम स्वाभाविक रूप से ईर्ष्या करते हैं?, परन्तु यीशु अपने श्रोताओं को एक परिवर्तित हृदय के स्रोत के विषय में भी बताते हैं जो दयालु होने में सक्षम है। रहस्य इन शब्दों में है, “वह उन लोगों के प्रति दयालु है जो कृतघ्न और बुरे हैं।” यह दर्शाता है कि हमें लोगों को देखने के अपने दृष्टिकोण को परिवर्तित करने की आवश्यकता है। दूसरों को तिरस्कार से देखने के स्थान पर, हमें दूसरों को उसी करुणा से देखना चाहिए जो परमेश्वर ने हमें, अपने शत्रुओं के प्रति दिखाई है (रोमियों 5:10-11)।
दयालुता का अर्थ केवल रेलगाड़ी में अपनी सीट किसी वृद्ध व्यक्ति को दे देना, या बेघरों को कुछ पैसे दे देना, या अपने जीवनसाथी के प्रति धैर्य रखने का प्रयास करना ही नहीं है। दयालुता भलाई करने की इच्छा है जो तब उत्पन्न होती है जब हम अपने दुःख को देखने के पीड़ा के साथ ही ख्रीष्ट की दयालुता को भी देखते हैं। सच्ची दयालुता इस बात को समझने से उत्पन्न होती है कि ख्रीष्ट में परमेश्वर ने हमारे साथ कैसा व्यवहार किया है। हमें न केवल क्षमा किया गया है, किन्तु हम परमेश्वर की सन्तान और परमप्रधान के उत्तराधिकारी बनाए गए हैं। दयालुता का अर्थ है दूसरों के टूटेपन में अपने टूटेपन देखना और उनकी करुणा की आवश्यकता को अपनी आवश्यकता के रूप में देखना।
सच्ची दयालुता का एक स्पष्ट उदाहरण उस क्षण में देखा जा सकता है जब उड़ाऊ पुत्र अपने पिता के पास लौट कर आता है यह आशा करते हुए कि वह अपने पिता का ऋण चुका सके (लूका 15:11-32)। पिता अपने पुत्र को देखता है और दयालुता से उसे गले लगाता है। वह न केवल अपने पुत्र द्वारा उसे और उसके परिवार को दी गई समस्त पीड़ा और लज्जा को क्षमा करता है, वरन् पिता अपने पुत्र के साथ अच्छा व्यवहार करके वास्तव में आनन्दित होता है जब वह उसे एक सुन्दर अँगूठी और नया वस्त्र देता है। दयालुता का अर्थ है कि हम इस बात से आनन्दित हैं कि परमेश्वर दूसरों से वैसे ही प्रेम करता है जैसे वह हमसे करता है। दयालुता का सच्चा अर्थ तभी समझा जा सकता है जब हम सुसमाचार के दृष्टिकोण से वास्तविकता की व्याख्या करते हैं।
दयालुता का एक और उदाहरण को मेरी कलीसिया के एक व्यक्ति की कहानी में भी देखा जा सकता है। एक दिन वह मेरे पास आया और मुझे बताया कि कैसे वह किसी से बहुत क्रोधित था। उसने मुझे बताया कि उसके और उस व्यक्ति के बीच क्या हुआ था, और उस व्यक्ति द्वारा उसे कितनी हानि पहुँचायी गयी थी। परन्तु बातचीत के अन्त में, उस व्यक्ति ने कहा: “जो इसने मेरे साथ किया है उस कारण मैं वास्तव में इस व्यक्ति से घृणा करना चाहता हूँ, परन्तु परमेश्वर उससे घृणा करने की मेरी इच्छा को नष्ट कर देते हैं। हर समय जब मैं प्रतिशोध लेने के विषय में सोचता हूँ, तो मेरे मन में यह भी आता है कि परमेश्वर सम्भवतः इस व्यक्ति से उतना ही प्रेम करते हैं जितना वह मुझसे करते हैं। और फिर मेरा क्रोध उसके लिए प्रार्थना में बदल जाता है। मैं उसके प्रति दयालु रहना चाहता हूँ, भले ही इससे मुझे बहुत दुःख हो।”
इस व्यक्ति ने बहुत ही पीड़ादायक रीति से यह समझा कि सच्चा दयालु होना केवल हेसेड, अर्थात् हमारे उद्धारकर्ता यीशु ख्रीष्ट में परमेश्वर की प्रेमपूर्ण-दयालुता, का अनुभव करने से ही आ सकता है।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।