साहस क्या है? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ %
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साहस क्या है?

यह चौंकाने वाली बात है कि प्रकाशितवाक्य 21:8 में यूहन्ना की बुराइयों की सूची कायरों से आरम्भ होती है। हत्यारों, जादूगरों और झूठों के साथ, कायरों का अन्तिम भाग भी आग की झील होगा। यदि कायरता अविश्वासियों का गुण है, तो इसका निहितार्थ यह है कि एक सच्चे मसीही का एक चिह्न साहस है। परन्तु यदि हम विश्वासयोग्य हैं, तो हम में से कई लोग यह स्वीकार करेंगे कि साहस वह गुण नहीं है जिसके विषय में हम प्रायः सोचते हैं या जिसकी आकाँक्षा करते हैं। हम परपेचुआ को सिहों को खिलाए जाने को चित्रित करते हैं या भूमिगत कलीसिया के अगुवों के सामने आने वाले खतरों पर विचार करते हैं और सोचते हैं कि क्या साहस एक साधारण कार्यालय की नौकरी करने या एक गृहनी के दैनिक काम के लिए प्रासंगिक है।

हमें चाहिए कि हम इस गुण को समझने और विकसित करने का प्रयास करें, और धन्यवाद हो कि पवित्रशास्त्र हमें इससे सीखने के लिए अनेक उदाहरण प्रदान करता है। जबकि उन सभी का उल्लेख करना बहुत कठिन है, कुछ मुख्य उदाहरण इस गुण की एक आधारभूत परिभाषा को स्पष्ट करने में सहायक होंगे: साहस प्राण के लिए परमेश्वर की ओर से सामर्थ्य है जो कठिनाई या खतरे के होते हुए भी सही और आवश्यक कार्य करने में प्रकट होती है।

“परमेश्वर की ओर” शब्द महत्वपूर्ण है, क्योंकि यद्यपि विश्वासी और अविश्वासी समान रूप से साहसपूर्वक संकट का सामना कर सकते हैं, एक मसीही गुण के रूप में साहस इस अर्थ में अलग है कि यह परमेश्वर के भय में निहित है। परमेश्वर के भय में, इब्रानी दाइयों ने साहसपूर्वक फिरौन की जानलेवा आज्ञा का उल्लंघन किया और ओबद्याह ने दुष्ट ईज़ेबेल से एक सौ भविष्यद्वक्ताओं को छिपाया (निर्गमन 1:17; 1 राजा 18:3–4)। परमेश्वर उनके विचारों में था, और वे उसके सामने रहते थे। सम्भवतः नहेमायाह ने इसे सबसे सरलता से कहा था जब इस्राएल के शत्रु यरूशलेम की दीवार के पुनर्निर्माण के उनके काम का विरोध करने के लिए एकत्र हुए थे: “उनसे मत डरो, प्रभु जो महान् और भययोग्य है उसी को स्मरण करो, और लड़ो…” (नहेमायाह 4:14)।

परमेश्वर का भय मानने वाला जीवन परमेश्वर को स्मरण रखता है। परमेश्वर की वास्तविकता एक उपरान्त विचार नहीं होता; यह पहले से ही गणना में होती है। साहसी निर्णय लेने और साहसी कार्य पूरा करने से पहले, आत्मा में एक दृढ़ और स्थिर जड़ विकसित हो रही थी; परमेश्वर की उपस्थिति, सामर्थ्य और प्रतिज्ञाओं को स्मरण करके एक आन्तरिक साहस विकसित किया जा रहा था।

हम पवित्रशास्त्र में बार-बार ऐसे उदाहरण देखते हैं जहाँ परमेश्वर भयभीत लोगों को इस प्रतिज्ञा के साथ तैयार करता है, “मैं तुम्हारे साथ रहूँगा।” परमेश्वर की उपस्थिति ने मूसा को फिरौन के पास जाने के लिए, यहोशू को कनान पर विजय पाने के लिए और यिर्मयाह को साहसपूर्वक नबूबत करने के लिए तैयार किया। इन लोगों के लिए, साहस इस ज्ञान से पोषित हुआ कि उनके साहसिक कार्य अकेले एक व्यक्ति का प्रदर्शन नहीं होंगे; वे अकेले आगे बढ़ने की साहस नहीं कर सकते थे, और उन्हें ऐसा करने की आवश्यकता भी नहीं थी।

साहस तब भी विकसित होता है जब परमेश्वर का भय मानने वाला परमेश्वर की सामर्थ्य को स्मरण करता है। दाऊद के पास केवल मुट्ठी भर पत्थरों के साथ गोलियत के सामने खड़े होने का साहस क्यों था? वह जानता था कि उसका परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, कि “प्रभु तलवार या भाले से नहीं बचाता है,” और वह एक छोटे से पत्थर को उठाकर उस विशालकाय को मार गिराने में सक्षम था (1 शमूएल 17:47)। इसी प्रकार, जब सीरिया की विशाल सेना ने उन्हें घेर लिया, तो एलीशा ने अपने सेवक से कहा, “मत डरो, क्योंकि जो हमारे साथ हैं, वे उनसे अधिक हैं जो उनके साथ हैं” (2 राजा 6:16; 2 इतिहास 32:1–8 में सन्हेरीब के आक्रमण के प्रति राजा हिज़िकिय्याह की साहसी प्रतिउत्तर भी देखें)। विकट परिस्थितियों में बचाने की परमेश्वर की सामर्थ्य कोई अत्यावश्यक प्रश्न का विषय नहीं था, परन्तु शान्तिपूर्वक स्वीकार करने की एक निश्चितता थी।

अन्त में, साहस तब जीवन्त होता है जब कोई परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं से अधिकाधिक परिचित होता है और आश्वस्त होता है कि परमेश्वर अपने वचनों को पूरा करता है। जब नबी अजर्याह ने राजा आसा को परमेश्वर की प्रतिज्ञा को स्मरण दिलाया कि जो लोग उसे खोजते हैं, वह उन्हें आशीष देगा, परन्तु जो उससे दूर हो जाते हैं, उन्हें त्याग देंगे, तो आसा ने “साहस किया और यहूदा और बिन्यामीन के सारे देश से घृणित मूर्तियों को दूर कर दिया” (2 इतिहास 15:8)। जब मोआबियों और अम्मोनियों ने यहूदा के खिलाफ़ रैली निकाली, तो यहोशापात ने प्रभु से अपने प्रातिज्ञाओं के अनुसार उन्हें बचाने की विनती की, यह विश्वास करते हुए कि जैसे उसने सुलैमान से प्रतिज्ञा किया था, परमेश्वर अपने लोगों को सुनेगा और बचाएगा जब वे उसके मन्दिर से विनम्रतापूर्वक पुकारेंगे (देखें 2 इतिहास 20:1–12)।

साहसी मसीही प्रतिदिन परमेश्वर का भय मानते हुए और उसे स्मरण करते हुए जीवन जीते हैं—उसकी उपस्थिति, सामर्थ और प्रतिज्ञाओं को। वे इस बात से भली-भाँति अवगत रहते हैं कि वे जिस भी परिस्थिति में स्वयं को पाते हैं, विश्व के परमेश्वर के प्रति उनके मन और हृदय का स्वभाव यह निर्धारित करेगा कि वे साहस के साथ कार्य करेंगे या कायरता से।

परन्तु सार यह है: परमेश्वर के विषय में सही ढंग से सोचना साहस को प्रेरित नहीं करेगा जब तक कि उन विचारों का पालन भजनकार की साहसिक घोषणा के साथ न किया जाए: “यहोवा मेरे सहायको में मेरी ओर है” (भजन 118:7)। जब तक परमेश्वर मेरे सहायक के रूप में मेरी ओर नहीं है, जब तक वह मेरे लिए है और मेरे विरुद्ध नहीं है, तब तक साहस की माँग करने वाले अवसरों की अनिश्चितता भयावह होगी। क्यों? क्योंकि साहस के साथ काम करना सांसारिक सुख या सफलता की गारंटी नहीं है। हर साहसी कार्य को तुरन्त सुरक्षा और सहजता के साथ पुरस्कृत नहीं किया जाता है। कभी-कभी परमेश्वर अपने बच्चों को सही काम करने की अनुमति देता है और फिर उन्हें उसके लिए दुःख उठाना पड़ता है।

हम उस वास्तविकता को कैसे समझते हैं? हम शद्रक, मेशक और अबेद-नगो के साथ यह कहने की सामर्थ्य कैसे एकत्र कर सकते हैं, “परन्तु यदि नहीं,” या पौलुस के साथ यह कहने की सामर्थ्य कैसे एकत्र कर सकते हैं कि “चाहे जीवन से या मृत्यु से” (दानिय्येल 3:18; फिलिप्पियों 1:20)? हमारा साहस सर्वशक्तिमान परमेश्वर, हमारे पिता, के भय में स्थिर होना चाहिए जो अपने बच्चों के शाश्वत भले के लिए सभी बातों – सभी परिणामों – पर बुद्धिमानी से कार्य कर रहा है। और भले ही वह साहसी कार्य को छोटे या बड़े दुःख में परिणत होने के लिए उपयुक्त समझता हो, हम विश्वास कर सकते हैं कि वह दिन आ रहा है जब वह अपने विश्वासयोग्य बच्चों को इकट्ठा करेगा और उन्हें अपनी उपस्थिति में शाश्वत सुरक्षा में ले जाएगा।

 यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

टेसा थॉम्पसन
टेसा थॉम्पसन
टेसा थॉम्पसन ' लाफिंग एट द डेज़ टू कम: फेसिंग प्रेजेंट ट्रायल्स एंड फ्यूचर अनसर्टेन्टीज विद गॉस्पेल होप' की लेखिका हैं ।