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यह सम्भव है कि वासना के पाप का पहला प्रकटीकरण वाटिका में हुआ हो, ठीक उसी समय जब पुरुष और स्त्री ने अपना दुःखद चुनाव किया था। जब हव्वा ने सर्प के प्रलोभनों पर विचार किया, तो उसने देखा कि वह फल, अन्य बातों के साथ-साथ, “आँखों के लिए लुभावना” था (उत्पत्ति 3:6)। निस्सन्देह, किसी वस्तु को देखने में सुखद होने में स्वाभाविक रूप से कुछ भी अनुचित नहीं है। परन्तु उत्पत्ति 3 इतिहास के सबसे कुख्यात पाप का अभिलेख है। इसलिए, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि हव्वा की उस फल को देखने की लालसा एक वासनापूर्ण दृष्टि थी। यह एक लालचपूर्ण दृष्टि थी; किसी ऐसी वस्तु को प्राप्त करने की तीव्र लालसा जो उसके लिए उचित नहीं था।
क्योंकि हव्वा पाप के स्वभाव के बिना उत्पन्न हुई थी, इसलिए फल के प्रति उसकी वासना (या अधिक सटीक रूप से, वह जो मानती थी कि फल उसे दे सकता है) प्रलोभन के बाहरी स्रोत के प्रतिउत्तर में जानबूझकर चुना गया पाप था। हम इसे “बाहरी प्रलोभन” कहते हैं। यद्यपि, हम अपनी आदिमाता की तुलना में और भी कठिन स्थिति में हैं। पाप के प्रति स्वाभाविक रूप से झुकाव के साथ जन्म होने के कारण, हम बिना किसी बाहरी स्रोत के उकसावे के अपने आप ही वासनापूर्ण इच्छाएँ उत्पन्न करने में सक्षम हैं। हम इसे “आन्तरिक प्रलोभन” कहते हैं। याकूब 1:14-15 के शब्दों पर विचार करें: “परन्तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा द्वारा खिंचकर व फंसकर परीक्षा में पड़ता है। जब अभिलाषा गर्भवती होती है तो पाप को जनती है, और जब पाप हो जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है।”
नए नियम में वासना के लिए प्रयुक्त शब्द एपिथुमिया (epithumia) है, जिसका अर्थ है “अभिलाषा”। निस्सन्देह, सभी अभिलाषाएँ बुरी नहीं होती। वास्तव में, नए नियम में एपिथुमिया के सकारात्मक रूप से उपयोग किए जाने के उदाहरण हैं, जैसे कि जब कोई योग्य व्यक्ति उचित रूप से अध्यक्ष बनने की “अभिलाषा” करता है (1 तीमु. 3:1)। परन्तु एपिथुमिया का उपयोग प्रायः पापपूर्ण अभिलाषाओं को व्यक्त करने के लिए किया जाता है, इसलिए एपिथुमिया को “वासना” और “कामुकता” के साथ-साथ “अभिलाषाओं” के रूप में भी प्रस्तुत किया जाता है। वासना किसी भी ऐसी वस्तु की अभिलाषा है जो पापपूर्ण है, जैसे कि अवैध यौन सम्बन्ध, नशा, अनुचित रीति से कमाया गया लाभ, प्रतिशोध, या कुछ और जिसे परमेश्वर मना करता है।
वासना का प्रयोग उन वस्तुओं की इच्छा के सन्दर्भ में भी किया जा सकता है जो स्वयं में पापपूर्ण नहीं हैं। दूसरे शब्दों में, हम एक अच्छी वस्तु की अनुचित रीति से या अनुचित कारणों से लालसा करने पर भी वासना में लिप्त हो सकते हैं। जीवनसाथी की इच्छा रखना पाप नहीं है। परन्तु किसी दूसरे व्यक्ति के जीवनसाथी की इच्छा रखना पाप है। वैध श्रम के लिए उचित मजदूरी पाने की इच्छा रखना पाप नहीं है। परन्तु अपनी भौतिकवादी भूख को सन्तुष्ट करने के लिए या सांसारिक सुरक्षा की लालसा के कारण धन की इच्छा रखना पाप है। विश्राम करना अच्छा है। परन्तु आलस्य का पाप तब होता है जब वह अभिलाषा विकृत हो जाती है। आप समझ गए होंगे। वासना अनुचित की इच्छा और अन्यथा अच्छी वस्तु की अनुचित इच्छा दोनों है। वासना, अपने सभी रूपों और अभिव्यक्तियों में, बिना किसी अपवाद के पापपूर्ण है और इसलिए, परमेश्वर के विरुद्ध एक प्रकार का विद्रोह दर्शाती है।
इफिसियों में, पौलुस ने एपिथुमिया को उन पापों के रूप में सूचीबद्ध किया है जो ख्रीष्ट के बाहर के जीवन की विशेषता हैं, जब हम सब भी “पहिले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे और अपने शारीरिक तथा मानसिक इच्छाओं को पूरा करते थे” (इफिसियों 2:3)। तीतुस में, हमें बताया गया है कि हमारे हृदय परिवर्तन से पहले हम “विभिन्न प्रकार की वासनाओं और अभिलाषाओं के दास थे” (तीतुस 3:3)। इस प्रकार के पापपूर्ण अभिलाषाओं के लिए समर्पित जीवन मसीही जीवन के साथ पूर्ण रीति से असंगत है।
पतरस वासना (पापपूर्ण अभिलाषाओं) का उल्लेख एक मसीही के जीवन और अविश्वासी के जीवन के बीच अंतर करने के रूप में करता है: “आज्ञाकारी बच्चों के सदृश, अपनी अज्ञानता के समय की पुरानी अभिलाषाओं के अनुसार आचरण न करो” (1 पतरस 1:14)। “हे प्रियो, मैं तुम से आग्रह करता हूँ कि अपने आप को परदेशी व यात्री जानकर उन शारीरिक वासनाओं से दूर रहो जो आत्मा के विरुद्ध युद्ध करती हैं” (1 पतरस 2:11)। वह हमें बताता है कि हमें अब “अपना शेष जीवन मनुष्यों की अभिलाषाओं में नहीं, वरन् परमेश्वर की इच्छानुसार व्यतीत करो (1 पतरस 4:2)।
यीशु ने अपने और अपने सुसमाचार प्रचार-प्रसार का विरोध करने वाले धार्मिक नेताओं को फटकारते हुए कहा कि उनकी “लालसाएँ” (वासनाएँ) उनके पिता शैतान के समान ही थीं (यूहन्ना 8:44)। यीशु वासना की उत्पत्ति को शैतान के दुष्ट हृदय में बताते हैं। इसलिए इसमे कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि वासना या सांसारिक लालसाएँ प्रायः मनुष्य के हृदय में सुसमाचार के बीज को दबा देती हैं (मरकुस 4:19)। अतः वासना सुसमाचार को सुनने के लिए कलीसिया के प्रयासों को असफल करने का लक्ष्य साधती है।
वासना हमारे आक्रामक विरोध के योग्य है। जब यह हमारे बाहर से आती है तो हमें इससे दूर भागना चाहिए और जब यह हमारे हृदयों से निकलती है तो इसे मार देना चाहिए। वासना हमारे लिए उतनी ही बुरी है जितनी कि सभी पाप हमारे लिए बुरे हैं क्योंकि यह हमें बताता है कि विष मीठा है और मरना ही जीना है। आइए हम वासना के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए परमेश्वर के द्वारा दिए गए अनुग्रह के साधनों (पवित्रशास्त्र, विधियाँ, मसीही संगति और प्रार्थना) का पूरा उपयोग करें, ठीक उसी प्रकार जैसे वासना हमारे विरुद्ध युद्ध छेड़ती है। आइए हम यीशु की ओर देखें और उसे अपने हृदय में संजोएँ। उसकी सामर्थ और सुन्दरता किसी भी वस्तु से कहीं अधिक है जिससे संसार हमें लुभा सकता है। यीशु की प्रतिज्ञाएँ सांसारिक लालसाओं के उपहासपूर्ण प्रतिज्ञाओं से कहीं श्रेष्ठतर हैं:
इसलिए यदि तुम ख्रीष्ट के साथ जीवित किए गए तो उन वस्तुओं की खोज में लगे रहो जो स्वर्ग की हैं, जहाँ ख्रीष्ट विद्यमान है और परमेश्वर की दाहिनी ओर विराजमान है। अपना मन पृथ्वी पर की नहीं, परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर लगाओ, क्योंकि तुम तो मर चुके हो और तुम्हारा जीवन ख्रीष्ट के साथ परमेश्वर में छिपा हुआ है। जब ख्रीष्ट, जो हमारा जीवन है, प्रकट होगा, तब तुम भी उसके साथ महिमा में प्रकट किए जाओगे। (कुलुस्सियों 3:1-4)
यह लेख सद्गुण और अवगुण संग्रह का एक भाग है।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।