क्रूस के द्वारा परमेश्वर किसको बचा रहा था? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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क्रूस के द्वारा परमेश्वर किसको बचा रहा था?

सीमित प्रायश्चित्त (limited atonement) का सिद्धान्त (जिसे “निश्चित्त प्रायश्चित्त” (definite atonement) या “विशिष्ट छुटकारा” (particular redemption) भी कहा जाता है) कहता है कि ख्रीष्ट का प्रायश्चित्त चुने हुए लोगों तक (परिसीमा और उद्देश्य में) सीमित था; यीशु ने संसार के सब लोगों के पापों के लिए प्रायश्चित्त नहीं किया। मेरे सम्प्रदाय (denomination) में, हम सेवकाई में प्रवेश करने वाले युवा पुरुषों का परीक्षण करते हैं, और कोई न कोई विद्यार्थी से अवश्य ही पूछता है, “क्या तुम सीमित प्रायश्चित्त पर विश्वास करते हो?” विद्यार्थी का उत्तर होगा, “जी हाँ, मैं विश्वास करता हूँ कि ख्रीष्ट का प्रायश्चित्त सब के लिए पर्याप्त और कुछ के लिए प्रभावकारी है,” जिसका अर्थ है कि क्रूस पर ख्रीष्ट की मृत्यु का मूल्य इतना महान् था कि वह पूरे इतिहास के सब लोगों के पापों को ढाँपने के लिए पर्याप्त है, परन्तु वह उन्हीं लोगों पर लागू होता है जो ख्रीष्ट पर विश्वास करते हैं। परन्तु, यह कथन इस विवाद के वास्तविक केन्द्र तक नहीं पहुँचता है, जो कि क्रूस में परमेश्वर के उद्देश्य  से सम्बन्धित है।

परमेश्वर की अनन्त योजना को मूल रीति से समझने के दो ढंग हैं। एक समझ यह है कि अनादिकाल से, परमेश्वर की इच्छा थी कि पतित मानव जाति में से जितने सम्भव हों उतने लोगों को बचाया जाए, इसलिए उसने छुटकारे की योजना बनाई जिसमें वह अपने पुत्र को पतित लोगों के पाप उठाने वाले के रूप में जगत में भेजेगा। यीशु क्रूस पर जाकर उन सब के लिए मरेगा जो किसी न किसी समय पर उस पर भरोसा करेंगे। इसलिए यह योजना प्रयोजनात्मक (provisional) थी—परमेश्वर ने सब लाभ उठाने वालों के लिए प्रायश्चित्त का प्रयोजन किया, अर्थात् सब विश्वास करने वालों के लिए। विचार यह है कि यीशु सम्भवतः (potentially) सब के लिए मरा, परन्तु सैद्धान्तिक रूप से यह भी (theoretically) सम्भव है कि सब कुछ व्यर्थ में था क्योंकि जगत का प्रत्येक व्यक्ति यीशु के कार्य को ठुकरा सकता है और अपने अधर्म और पाप में मृतक रहने को चुन सकता है। इस प्रकार से, परमेश्वर की योजना को विफल किया जा सकता था, क्योंकि यह सम्भव था कि कोई भी इसका लाभ न उठाता। कलीसिया में आज अधिकतर लोग यही सोचते हैं—कि यीशु प्रयोजनात्मक रीति से सब के लिए मरा। अन्तिम विश्लेषण में, उद्धार का होना या न होना प्रत्येक व्यक्ति पर निर्भर होता है।

धर्मसुधारवादी (Reformed) दृष्टिकोण परमेश्वर की योजना को दूसरी रीति से समझता है। यह कहता है कि अनादिकाल से परमेश्वर ने ऐसी योजना बनाई जो प्रयोजनात्मक नहीं थी। यह एक ऐसी योजना थी जिसके लिए कोई अन्य वैकल्पिक योजना नहीं थी, जो तब कार्य करती है जब पहली योजना विफल हो जाती। इस योजना के अन्तर्गत, परमेश्वर ने यह आज्ञप्ति (decree) दी कि वह पतित मानवता में से एक निश्चित लोगों की संख्या को बचाएगा, जिन्हें बाइबल चुने हुए (elect) कहती है। यह सिद्ध रीति से पूरी की गई, और ख्रीष्ट के लहू का एक भी बूँद व्यर्थ में नहीं बहा।

अ-धर्मसुधारवादी (non-Reformed) दृष्टिकोण का निहातार्थ यह है कि परमेश्वर पहले से नहीं जानता है कि कौन बचाया जाएगा। इस कारण से, आज ईश्वरविज्ञानी कह रहे हैं, “परमेश्वर उतने अधिक लोगों को बचाता है जितनों को बचा पाना उसके लिए सम्भव है।” परमेश्वर कितने लोगों को बचा सकता है? उसके पास कितने लोगों को बचाने की सामर्थ्य है? यदि वह वास्तव में परमेश्वर है, तो उसके पास उन सब को बचाने की सामर्थ्य होगी। उसके पास कितने लोगों को बचाने का अधिकार है? क्या परमेश्वर किसी के भी जीवन में कार्य नहीं कर सकता है, जैसे उसने मूसा के जीवन में, अब्राहम के जीवन में, या प्रेरित पौलुस के जीवन में किया, जिससे कि वह उन्हें अपने साथ छुटकारे के सम्बन्ध में जोड़ ले? निश्चय ही उसके पास यह करने का अधिकार है।

हम यह नकार नहीं सकते हैं कि बाइबल “जगत” के लिए यीशु की मृत्यु की बात करती है। यूहन्ना 3:16 इस प्रकार की भाषा का उत्कृष्ट उदाहरण है। परन्तु नये नियम में, और यूहन्ना के सुसमाचार में भी, एक सन्तुलन प्रदान करने वाला अन्य दृष्टिकोण भी है, जो हमें बताता है कि यीशु ने सबके लिए नहीं वरन् अपनी भेड़ों के लिए अपना प्राण दे दिया। यहाँ यूहन्ना के सुसमाचार में, यीशु अपनी भेड़ों के विषय में कहता है जिन्हें पिता ने उसको दिया है।

यूहन्ना 6 में, हम देखते हैं कि यीशु ने कहा, “मेरे पास कोई नहीं आ सकता जब तक पिता जिसने मुझे भेजा उसे अपने पास खींच न ले” (यूहन्ना 6:44), और “खींच” के रूप में जिस शब्द को अनुवादित किया गया है, उसका वास्तविक अर्थ है “विविश करना।” यीशु ने उस अध्याय में यह भी कहा, “वह सब जो पिता मुझे देता है, मेरे पास आएगा” (यूहन्ना 6:37)। उसके कहने का अर्थ यह था कि वे ही लोग पुत्र के पास आएँगे जिन्हें पिता ने पुत्र के पास आने के लिए निर्धारित किया है, और उनके अतिरिक्त कोई और नहीं आएगा। इस प्रकार से, आपका उद्धार, आरम्भ से अन्त तक, उस परमेश्वर की सम्प्रभु आज्ञप्ति पर निर्भर है, जिसने अपने अनुग्रह में होकर आप पर दया दिखाने का निर्णय लिया है, आप में किसी बात को देखकर नहीं जो इसकी माँग कर रही थी, परन्तु पुत्र के प्रति प्रेम के कारण। मेरे मसीही होने का एकमात्र कारण यह है कि मैं पिता की ओर से पुत्र को दिया गया एक उपहार हूँ। और यह किसी भी उस कार्य के कारण नहीं है जो मैंने किया है या मैं कर सकता हूँ। 

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।