क्या पाप के स्तर होते हैं? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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क्या पाप के स्तर होते हैं?

ऐतिहासिक रीति से देखा जाए, तो रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेन्ट दोनों ने समझा है कि पाप के स्तर होते हैं। रोमन कैथोलिक कलीसिया प्राणघातक (mortal) और क्षम्य (venial) पाप में भेद करती है। इस भेद का अर्थ यह है कि कुछ पाप इतने घिनौने, जघन्य, और गम्भीर हैं, कि उन पापों का किया जाना इस अर्थ में प्राणघातक है कि वे विश्वासी के प्राण में वास कर रहे धर्मीकरण के अनुग्रह को घात कर देते हैं। उनके ईश्वरविज्ञान में, प्रत्येक पाप उस स्तर तक विनाशकारी नहीं है। कुछ वास्तविक पाप हैं जो क्षम्य पाप हैं। ये अपने परिणामों के सन्दर्भ में कम गम्भीर पाप हैं, और उनमें धर्मीकरण-घात को करने की वह क्षमता नहीं है जो प्राणघातक पापों में है।

बहुत से सुसमाचारवादी (evangelical) प्रोटेस्टेन्ट लोगों ने पाप के स्तर के विचार को ठुकरा दिया है, क्योंकि वे जानते हैं कि प्रोटेस्टेन्ट धर्मसुधार (Reformation) ने प्राणघातक और क्षम्य पाप के मध्य के उस भेद को ठुकरा दिया था जिसे रोमन कैथोलिक कलीसिया मानती थी। इसके परिणामस्वरूप, वे इस निष्कर्ष पर पहुँच गए कि प्रोटेस्टेन्टवाद में पापों के मध्य भेद नहीं हैं।

हमें पुनः धर्मसुधारकों के विचारों की ओर लौटना चाहिए। जॉन कैल्विन (John Calvin) रोमन कैथोलिक कलीसिया और उनके द्वारा प्राणघातक और क्षम्य पाप के मध्य किए गए भेद के एक सुस्पष्ट आलोचक थे। कैल्विन ने कहा कि सभी पाप इस अर्थ में प्राणघातक हैं कि वे मृत्यु के योग्य हैं। याकूब की पुस्तक हमें स्मरण दिलाती है, “जो कोई सम्पूर्ण व्यवस्था का पालन करता हो और फिर भी किसी एक बात में चूक जाए तो वह सारी व्यवस्था का दोषी ठहरता है” (याकूब 2:10)। छोटे से छोटा पाप भी परमेश्वर के प्रति विद्रोह है। हम इस स्तर तक अपने कार्यों की गम्भीरता की अनुभूति करने में विफल होते हैं, परन्तु यह सत्य है।

जब मैं पाप करता हूँ, तो मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की इच्छा से अधिक अपनी इच्छा को चुनता हूँ। इसका अर्थ है कि वास्तव में मैं यह कह रहा होता हूँ कि मैं परमेश्वर से अधिक ज्ञानी, बुद्धिमान, धर्मी और सामर्थी हूँ। कैल्विन ने कहा कि सब पाप इस अर्थ में प्राणघातक हैं कि हमारे द्वारा किए गए सबसे छोटे पाप के लिए भी परमेश्वर न्यायसंगत रीति से हमें नाश कर सकता है। वास्तव में तो, पाप का दण्ड मानव सृष्टि के पहले ही दिन दे दिया गया था: “परन्तु जो भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष है – उस में से कभी न खाना, क्योंकि जिस दिन तू उसमें से खाएगा उसी दिन तू अवश्य मर जाएगा” (उत्पत्ति 2:17)। फिर भी परमेश्वर हमसे न्याय के अनुसार व्यवहार नहीं करता है। वह हमसे अनुग्रह के अनुसार व्यवहार करता है, वह हमें जीवित रहने देता है, और वह हमारे छुटकारे के लिए कार्य करता है। कैल्विन ने कहा कि सब पाप इस अर्थ में प्राणघातक हैं कि उनके कारण हम मृत्यु के योग्य हैं, परन्तु यह भी कि कोई भी पाप इस अर्थ में प्राणघातक नहीं है कि वह हमारे बचाने वाले अनुग्रह का विनाश कर सके। हमें अवश्य पश्चात्ताप करना चाहिए, परन्तु पवित्र आत्मा द्वारा लाया गया धर्मीकरण का अनुग्रह हमारे पाप के द्वारा घात नहीं किया जाता है। कैल्विन और सब धर्मसुधारकों ने दृढ़ता पूवर्क कहा कि छोटे पापों में और उन पापों में अन्तर है, जिन्हे वें घिनौने और जघन्य पाप कहते थे।

मसीहियों के लिए यह भिन्नता समझना महत्वपूर्ण है जिससे कि हम एक-दूसरे के साथ अनुग्रहपूर्ण रीति से रह सकें। अनुदारता (pettiness) का पाप, जिसमें लोग समुदाय की छोटी त्रुटियों को अत्यधिक ध्यान देते हैं, वो ख्रीष्ट की देह को फाड़ कर टुकड़े-टुकड़े कर सकता है। जब इसको गपशप और निन्दा की आग से सहायता मिलती है तो बहुत अधिक हानि होती है। हमें अन्य मसीहियों के संघर्ष और विफलताओं के प्रति धैर्य और सहनशीलता रखने के लिए बुलाया गया है। ऐसी बात नहीं है कि हमें पाप के प्रति ढीला होना है, क्योंकि नये नियम में कुछ विशिष्ट पाप बताए गए हैं जो इतने गम्भीर हैं कि कलीसिया में उनकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। व्यभिचार गम्भीर है। कौटुम्बिक व्यभिचार कलीसियाई अनुशासन की माँग करता है। मतवालापन, हत्या, और परस्त्रीगमन का नाम बारम्बार लिया गया है। ये पाप इतने विनाशकारी हैं कि जब वे प्रकट होते हैं, तो कलीसियाई अनुशासन की प्रक्रिया होनी चाहिए।

जब हम पवित्रशास्त्र की चेतावनियों को ध्यान देते हैं तो यह स्पष्ट है कि पाप के विभिन्न स्तर होते हैं। नये नियम में कम से कम बाईस बार लिखा गया है कि स्वर्ग में सन्तों के प्रतिफल के विभिन्न स्तर होंगे। स्वर्ग में विभिन्न स्तर, विभिन्न प्रतिफल, और विभिन्न भूमिकाएँ हैं। बाइबल हमें चेतावनी देती है कि हम अपने न्याय की कठोरता को न बढ़ाएँ। यीशु ने पुन्तियुस पिलातुस से कहा, “जिसने मुझे तेरे हाथ सौंपा है उसका पाप अधिक है” (यूहन्ना 19:11)। यीशु दोष को मापता है और उसका मूल्यांकन करता है, और अधिक दोष और अधिक उत्तरदायित्व के साथ अधिक न्याय आता है। यह नये नियम में पायी जाने वाली एक समान्य शिक्षा है।

पाप और प्रतिफल के स्तरों का विचार परमेश्वर के न्याय पर आधारित है। यदि मैं किसी अन्य व्यक्ति से दुगना पाप करूँ, तो न्याय माँग करता है कि दण्ड अपराध के अनुसार हो। यदि मैं किसी अन्य व्यक्ति से दुगना सदाचारी रहा हूँ, तो न्याय माँग करता है कि मुझे अधिक प्रतिफल मिले। परमेश्वर हमें बताता है कि स्वर्ग में प्रवेश केवल यीशु की योग्यता के आधार पर होगा, परन्तु एक बार जब हम स्वर्ग पहुँचते हैं, तो प्रतिफल कार्यों के आधार पर दिए जाएँगे। उन लोगों को भरपूरी से प्रतिफल मिलेगा जो भले कार्यों से भरपूर थे। उन लोगों को स्वर्ग में छोटा प्रतिफल मिलेगा जो भले कार्य में आलसी और असावधान थे। उसी रीति से, उन लोगों को नरक में कठोर यातना दी जाएगी जो परमेश्वर के घोर शत्रु थे। उन लोगों को परमेश्वर के हाथ से कम न्याय मिलेगा जो कम बैरी रहे हैं। परमेश्वर सिद्ध रीति से न्यायी है, और जब वह न्याय करता है, वह सब परिस्थितियों को ध्यान में रखेगा। यीशु ने कहा, “मैं तुमसे कहता हूँ, जो भी निकम्मी बात मनुष्य बोलेंगे, न्याय के दिन वे उसका लेखा देंगे” (मत्ती 12:36)।

इस बात पर बल देना हमारे लिए महत्वपूर्ण क्यों है? अनेक बार मैंने ऐसे पुरुषों से बात की है जो वासना से संघर्ष करते हैं और वे स्वयं से या मुझसे कहते हैं, “अब तो मुझे व्यभिचार भी करना चाहिए क्योंकि मैं पहले ही वासना का दोषी हूँ। परमेश्वर की दृष्टि में मैं और बुरी स्थित में नहीं हो सकता हूँ, इसलिए मुझे कार्य को पूरा ही कर लेना चाहिए।” मैं सर्वदा उत्तर देता हूँ, “जी हाँ, आप और बुरी स्थिति में हो सकते हैं।” यथार्थ व्यभिचार का न्याय, वासना के न्याय से कई गुना अधिक कठोर होगा। परमेश्वर हम से उस स्तर पर व्यवहार करेगा, और छोटा अपराध कर चुके व्यक्ति के लिए यह कहना मूर्खता होगा कि, “मैं दोषी तो हूँ ही; अब तो मुझे कोई घोर अपराध भी करना चाहिए।” परमेश्वर हमें ऐसा सोचने से रोके। जब हम मसीही विवेक और मसीही चरित्र का निर्माण करने का प्रयास करते हैं, तो हमें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।