धन्य हैं वे जिनके मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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धन्य हैं वे जिनके मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे

यीशु ने कहा कि वे लोग परमेश्वर को देखेंगे जो भीतर से शुद्ध हैं। 1 यूहन्ना में हम आनन्दप्रद दर्शन (the beatific vision) की प्रतिज्ञा देखते हैं: “देखो, पिता ने हमें कैसा महान् प्रेम प्रदान किया है कि हम परमेश्वर की सन्तान कहलाएँ; और वही हम हैं” (1 यूहन्ना 3:1क)। यूहन्ना प्रेरितीय आश्चर्य की एक अभिव्यक्ति के साथ अपनी पत्री के इस भाग को आरम्भ करता है। यह बात अद्भुत और आश्चर्यजनक है कि ऐसे लोगों को परमेश्वर के परिवार में गोद लिया जाता है जिनके मन शुद्ध नहीं हैं। हम अपने स्वयं के चरित्र के आधार पर उस सम्बन्ध के योग्य ही नहीं हैं; फिर भी, हमें परमेश्वर की सन्तान कहा गया है।

यूहन्ना आगे कहता है:

इस कारण संसार हमें नहीं जानता, क्योंकि संसार ने उसे भी नहीं जाना। प्रियो, हम परमेश्वर की सन्तान हैं और अब तक यह प्रकट नही हुआ कि हम क्या होंगे। पर यह जानते हैं कि जब वह प्रकट होगा तो हम उसके सदृश होंगे, क्योंकि हम उसको ठीक वैसा ही देखेंगे जैसा वह है। प्रत्येक जो उस पर ऐसी आशा रखता है, वह अपने आप को वैसा ही पवित्र करता है जैसा कि वह पवित्र है। (1 यूहन्ना 3:1-3)

लोगों के पास प्रायः प्रश्न होते हैं कि स्वर्ग में सब कुछ कैसा होगा। हम लोग कैसे होंगे? क्या हम एक-दूसरे को जानेंगे। क्या हम उतनी ही आयु के जैसे दिखेंगे जितनी आयु के हम मरते समय थे? या क्या हमारे पास ऐसी महिमामय देह होगी जो शाश्वत है? हम अपने समय का उपयोग कैसे करेंगे? हम सर्वदा इन बातों के विषय में अनिश्चित होते हैं, और यूहन्ना भी अनिश्चित था, क्योंकि उसने कहा, “और अब तक यह प्रकट नही हुआ कि हम क्या होंगे।” हमें इसकी कुछ झलक दी गई हैं कि स्वर्ग कैसा होगा, किन्तु हमारे पास सम्पूर्ण चित्र नहीं है कि जब हम उस पार जाएँगे तो हमें क्या अपेक्षा करनी चाहिए। यूहन्ना हमारी समझ की सीमाओं के विषय में जानता था और इन बातों से सम्बन्धित प्रकाशन की उन सीमाओं के विषय में भी जिसे उसने प्रभु से प्राप्त किया था, परन्तु वह हमें अन्धेरे में टटोलने के लिए नहीं छोड़ देता है। हम अभी नहीं जानते हैं कि हम क्या होंगे, परन्तु इतना तो हम जानते हैं कि: हम उसके समान होंगे, अर्थात् ख्रीष्ट के समान।

अन्य खण्डों में, जब नया नियम ख्रीष्ट के पुनः आगमन के समय उसके राजत्व की परिपूर्णता की बात करता है, वह प्रकाशन की भाषा का उपयोग करता है, जिसका अर्थ है “अनावरण।” उस समय, ख्रीष्ट को प्रकट किया जाएगा; वह अपनी पूर्ण महिमा में प्रकट होगा। जब बाइबल उसे पुनः देखने की बात करती है तो हमें बताया जाता है कि जब वह इस अनावरण में प्रकट होता है, तब हम उसे देखेंगे; प्रत्येक आँख उसे देखेगी। इस प्रकार से ये खण्ड हमारे ध्यान को इस आशा पर लगाते हैं कि हम ख्रीष्ट को उसकी महिमा की परिपूर्णता में देखेंगे।

त्रिएकता की ईश्वरविज्ञानीय परिभाषा कहती है कि पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा व्यक्ति में तीन हैं, परन्तु सारतत्त्व में या प्राणी में एक हैं। यदि यह सम्भव है, तो यह सत्य ख्रीष्ट को उसकी महिमा की परिपूर्णता में आमने-सामने देखने से भी महान् बात की प्रतिज्ञा देता है। हम केवल परमेश्वर के सिद्ध स्वरूप की अभिव्यक्ति को ही नहीं देखेंगे; हम तो परमेश्वर को उसके सारतत्त्व में आमने-सामने देखेंगे। निस्सन्देह यह एक कठिन दार्शनिक और ईश्वरविज्ञानीय प्रश्न को उठाता है: यदि परमेश्वर आत्मा है, तो फिर बाइबल कैसे उसे उसके सारतत्त्व की शुद्धता में देखने की बात कर सकती है, जबकि उसका शुद्ध सारतत्त्व आत्मिक और अदृश्य है?

इस प्रश्न के विषय में जोनाथन एडवर्ड्स (Jonathan Edwards) के पास कुछ रुचिकर विचार थे। उस विचार में वे निश्चय ही अनुमान लगा रहे थे, परन्तु जब भी मैं इसके विषय में सोचता हूँ तो मैं उत्साहित हो जाता हूँ। हम प्रत्यक्षदर्शी होने को बहुत महत्व देते हैं; कोई कहेगा कि यह बात सत्य है क्योंकि उन्होंने उसे अपनी आँखों से देखा था। हम जानते हैं कि शारीरिक रीति से देखने की क्षमता कितनी महत्वपूर्ण है, और अन्धा व्यक्ति उसे प्राप्त करने के लिए कुछ भी देने के लिए तैयार होगा। इसलिए, देखने के लिए हमारे पास कार्यशील आँखों के साथ-साथ सही रीति से चित्रों को समझाने वाला मस्तिष्क भी चाहिए। परन्तु देखने की क्षमता पर्याप्त नहीं है; हमें प्रकाश की आवश्यकता है। हम अन्धकार में नहीं देख सकते हैं। एडवर्ड्स ने कहा कि जिन अनुभवों को हम प्रत्यक्ष (direct) और माध्यम रहित (immediate) प्रत्यक्षदर्शी अनुभव समझते हैं, वास्तव में तो वे अप्रत्यक्ष (indirect) और माध्यम पर निर्भर (mediated) अनुभव हैं। वे प्रकाश, अनुभूति, तंत्रिका उत्तेजना, इत्यादि के माध्यम से होते हैं। एडवर्ड्स के अनुसार, परमेश्वर का परम दर्शन तो आँखों के बिना होता है। वह मानव प्राण द्वारा परमेश्वर के सारतत्त्व की प्रत्यक्ष और माध्यम रहित समझ होगी—यह तो समझ की एक पूर्णतः पारलौकिक प्रणाली होगी। परमेश्वर को देख पाने में सब बाधाएँ हटा दी जाएँगी, और हम अपने प्राणों में परमेश्वर के अस्तित्व की प्रत्यक्ष, माध्यम रहित समझ से परिपूर्ण होंगे।

यीशु ने कहा, “धन्य हैं वे जिनके मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे।” अभी हमें परमेश्वर का दर्शन पाने से रोकने वाली बात हमारी अशुद्धता, अर्थात् हमारा पाप। यूहन्ना ने कहा कि जब हम उसे देखेंगे, तो हम उसके समान होंगे, क्योंकि हम उसको वैसा देखेंगे जैसा वह है। बना रहने वाला प्रश्न यह है कि क्या परमेश्वर हमें स्वर्ग में महिमान्वित करेगा, जिससे कि हम उसको वैसे देख पाएँ जैसा वह है, या क्या परमेश्वर इस रीति से स्वयं को हम पर प्रकट करेगा, जो कि हमें शुद्ध कर देगा। हम इसका उत्तर नहीं जानते हैं, परन्तु इसके विषय में सोचना रुचिकर है, क्योंकि परमेश्वर के स्वभाव के प्रत्यक्ष, माध्यम-रहित दर्शन से अधिक महान् शुद्धिकरण का अभिकर्ता और कुछ नहीं हो सकता है। यूहन्ना कहता है कि इस भविष्य के दर्शन की प्रतिज्ञा भी अभी हमारे शुद्धिकरण का आरम्भ करने के लिए कार्य करती है। इसलिए, आपके प्राण की परिपूर्णता के लिए सर्वोच्च प्रतिज्ञा के रूप में सर्वदा इसे अपने सामने रखें।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।