क्या यीशु के पास एक स्वभाव है, या दो? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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क्या यीशु के पास एक स्वभाव है, या दो?

वर्ष 451 में, कलीसिया ने चाल्सीदोन की महासभा (Council of Chalcedon) को आयोजित किया, जो इतिहास की एक अति महत्वपूर्ण महासभा थी। उसको कई विधर्मताओं का सामना करने के लिए आयोजित किया गया था, जिसमें मॉनोफिसाइट (Monophysite) विधर्मता सबसे प्रमुख थी। मॉनोफिसाइट  शब्द में एक उपसर्ग और एक मूल शब्द है। उपसर्ग, मोनो (mono), का अर्थ है “एक,” और मूल शब्द, फुसिस (phusis) को स्वभाव के रूप में अनुवादित किया जाता है। इस प्रकार से मोनोफुसिस  या मॉनोफिसाइट  का सरल अर्थ है “एक स्वभाव।”

मॉनोफिसाइट विधर्मता को मानने वाले दावा करते थे कि यीशु के पास दो स्वभाव, अर्थात् ईश्वरीय स्वभाव और मानवीय स्वभाव नहीं थे, परन्तु केवल एक ही स्वभाव था। वह एक स्वभाव न तो पूर्ण रीति से ईश्वरीय था न ही पूर्ण रीति से मानवीय। वह तो, आपके दृष्टिकोण के अनुसार, एक परमेश्वरीय मानवीय स्वभाव या फिर एक मानवीय परमेश्वरीय स्वभाव था। यह विधर्मता दो कारणों से बहुत गम्भीर थी। एक ओर, यह ख्रीष्ट के पूर्ण ईश्वरत्व को नकारती थी। दूसरी ओर, यह यीशु की वास्तविक मानवता को नकारती थी। उसके विरुद्ध, चाल्सीदोन की महासभा ने घोषणा की कि ख्रीष्ट वेरे होमो, वेरे डेउस (vere homo, vere Deus) था, अर्थात्, “सच में मनुष्य और सच में परमेश्वर,” एक जन में दो स्वभाव।

हमें मानव स्वभाव और ईश्वरीय स्वभाव के मिलन को कैसे समझना चाहिए? बाइबल कहती है कि देहधारण में, त्रिएकता के द्वितीय जन ने मानव स्वभाव को धारण किया। फिर भी जब उसने देह को धारण किया, और मानव स्वभाव को धारण किया तो उसने मानव स्वभाव को ईश्वरीय नहीं बना दिया। मानव स्वभाव मानवीय ही बना रहा।

चाल्सीदोन की महासभा ने, देहधारण के रहस्य को समझाते हुए और यीशु के दो स्वभावों की पुष्टि करते हुए कहा कि उसके दो स्वभाव इस सिद्ध रीति से एक साथ मिल गए कि वे भ्रमित या मिश्रित नहीं हैं, और न ही विभाजित और पृथक थे। हम उन्हें मॉनोफिसाइट विधर्मता को मानने वालों के समान एक साथ मिश्रित नहीं कर सकते हैं, जिसमें या तो देह को ईश्वरीय बना दिया जाता है या आत्मा को मानवीय। वे सर्वदा और सर्वत्र एक साथ मिले हुए हैं। चाल्सीदोन के चार नकारात्मक शब्दों को इस वाक्यांश द्वारा समझाया गया है, “प्रत्येक स्वभाव अपने गुणों को बनाए रखता है।” अर्थात्, देहधारण में, पुत्र ने अपने किसी भी गुण को नहीं त्यागा। ईश्वरीय स्वभाव अभी भी अनन्त, असीम, सर्वज्ञानी, सर्वोपस्थित और सर्वशक्तिशाली है। यह उन सब गुणों को प्रकट करता है जो परमेश्वर के हैं। जब उसने यीशु में मानव स्वभाव को धारण किया, तो परमेश्वर ने परमेश्वर होना नहीं छोड़ दिया। उसके साथ ही, मानव स्वभाव ने अपने गुणों को बनाए रखा, और वह सीमित, नियन्त्रित, एक समय में एक ही स्थान पर उपस्थित होने वाला, ज्ञान में सीमित, और सामर्थ्य में सीमित था। मानवता के वे सभी गुण यीशु के मानवता के गुण बने रहे।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।