पश्चात्ताप कैसे दिखता है? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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पश्चात्ताप कैसे दिखता है?

भजन 51 को जो एक पश्चात्तापी भजन है, जो दाऊद द्वारा तब लिखा गया जब नातान नबी ने उसके पाप से उसे चिताया। नातान ने घोषणा की कि बतशेबा को अपनी पत्नी होने के लिए लेने में और उसके पति ऊरिय्याह की हत्या में दाऊद ने परमेश्वर के प्रति घोर पाप किया था।

दाऊद द्वारा व्यक्त की गई व्यथा और गहरे पछतावे को देखना महत्वपूर्ण है, परन्तु हमें यह भी समझना है कि हृदय का पश्चात्ताप परमेश्वर पवित्र आत्मा का कार्य है। उस [दाऊद] पर हुए पवित्र आत्मा के प्रभाव के कारण ही दाऊद पश्चात्तापी है। न केवल इतना, किन्तु जब वह इस प्रार्थना को लिखता है तो वह पवित्र आत्मा की प्रेरणा में होकर लिख रहा है। भजन 51 में पवित्र आत्मा प्रदर्शित करता है कि वह हमारे हृदय में पश्चात्ताप को कैसे उत्पन्न करता है। भजन को देखते समय हम इस बात को ध्यान में रखें।

भजन 51 का आरम्भ होता है: “हे परमेश्वर, अपनी करुणा के अनुसार मुझ पर अनुग्रह कर: अपनी बड़ी दया के अनुसार मेरे अपराधों को मिटा दे” (51:1)। यहाँ हम एक ऐसे तत्व को देखते हैं जो पश्चात्ताप के लिए आधारभूत है। सामान्यतः, जब एक व्यक्ति अपने पाप के विषय में सचेत होता है और उससे फिरता है, तो वह स्वयं को परमेश्वर की दया पर छोड़ देता है। वास्तविक पश्चात्ताप का पहला फल इस बात की पहचान है कि हमें दया की परम आवश्यकता है। दाऊद परमेश्वर से न्याय की माँग नहीं करता है। वह जानता है कि यदि परमेश्वर न्याय में होकर उससे व्यवहार करे, तो वह तुरन्त नष्ट हो जाएगा। इसके परिणामस्वरूप, दाऊद अपने पाप-अंगीकार को दया की याचना के साथ आरम्भ करता है।

जब दाऊद परमेश्वर से अपने अपराधों को मिटाने के लिए कहता है, तो वह परमेश्वर से कह रहा है कि वह उसके प्राण से कलंक मिटा दे, उसकी अधार्मिकता को ढाँपे, और उस पाप से उसको शुद्ध करे जो अब उसके जीवन का स्थाई भाग है। इसलिए वह कहता है, “मेरे अधर्म से मुझे पूर्णतः धो दे, और मेरे पाप से मुझे शुद्ध कर” (51:2)।

क्षमा और शुद्धिकरण के विचार एक-दूसरे से सम्बन्धित तो हैं, परन्तु वे एक ही बात नहीं हैं। नये नियम में, प्रेरित यूहन्ना लिखता है, “यदि हम अपने पापों को मान लें तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है” (1 यूहन्ना 1:9)। पश्चात्ताप के भाव में, हम परमेश्वर के सामने जाते हैं और अपने पापों का अंगीकार करते हैं, और हम न केवल क्षमा की माँग करते हैं, वरन् उस पाप को न करने के लिए हम सामर्थ्य भी माँगते हैं। जिस प्रकार से दाऊद इस भजन में करता है, हम विनती करते हैं कि दुष्टता के प्रति हमारे झुकाव को समाप्त कर दिया जाए।

दाऊद फिर लिखता है, “क्योंकि मैं अपने अपराधों को जानता हूँ, और मेरा पाप निरन्तर मेरे सम्मुख रहता है” (51:3)। यह केवल कोई असावधान दोष को मानना नहीं है। वह तो एक त्रस्त पुरुष है; वह कहता है, “मैं जानता हूँ कि मैं दोषी हूँ।” अपने दोष को घटाने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। स्वयं को धर्मी ठहराने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। किन्तु, हम प्रायः कारण देने में बहुत निपुण होते हैं और अपने पापी व्यवहार को क्षमा करने के लिए सब प्रकार के कारण देने में फुर्तीले हैं। परन्तु इस स्थल में, पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के द्वारा, दाऊद को ऐसी स्थिति में लाया जाता है जिसमें वह परमेश्वर के सामने सत्यनिष्ठ है। वह अपने दोष को मानता है, इस बात को समझते हुए कि उसका पाप सर्वदा उपस्थित है। वह उसे हटा नहीं सकता है, और यह बात उसको पूर्ण रीति से त्रस्त करती है।

फिर वह कहता है, “मैंने केवल तेरे ही विरुद्ध पाप किया है, और जो तेरी दृष्टि में बुरा है वही किया है” (51:4)। एक अर्थ में दाऊद यहाँ अतिशयोक्ति का उपयोग कर रहा है। उसने ऊरिय्याह, ऊरिय्याह के परिवार और मित्र, बतशेबा, और परमेश्वर के लोगों के सम्पूर्ण देश के प्रति भयानक रूप से पाप किया है। परन्तु दाऊद समझता है कि पाप मूल रूप से परमेश्वर के प्रति अपराध है, क्योंकि केवल परमेश्वर ही एकमात्र सिद्ध प्राणी है। क्योंकि परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी का न्यायी है, सभी पापों को परमेश्वर की व्यवस्था के उल्लंघन के रूप में परिभाषित किया जाता है और यह उसकी पवित्रता के प्रति अपराध है। दाऊद इस बात को जानता है और इसे मान लेता है। वह मनुष्यों के प्रति अपने पाप की वास्तविकता को घटा नहीं रहा है, परन्तु वह इस बात को पहचान रहा है कि उसका पाप मूल रीति से परमेश्वर के विरुद्ध है।

फिर वह एक ऐसा कथन कहता है जिसे प्रायः अनदेखा किया जाता है। यह 4 पद के दूसरे भाग में पाया जाता है और यह सच्चे पश्चात्ताप की एक बहुत ही सामर्थी अभिव्यक्ति है जिए हम पवित्रशास्त्र में पाते हैं: “इसलिए तू अपनी बात में खरा, और न्याय करने में सच्चा ठहरता है” (51:4)। दाऊद मूल रीति से कह रहा है, “हे परमेश्वर,आपके पास मेरा न्याय करने का पूरा अधिकार है, और यह बात तो स्पष्ट है कि मैं आपके न्याय और आपके प्रकोप को छोड़ और किसी बात के योग्य नहीं हूँ।” दाऊद मानता है कि परमेश्वर खरा है और कि उसके पास दाऊद का न्याय करने का पूरा अधिकार है। वह परमेश्वर के साथ कोई मोल-भाव नहीं किया जा रहा है।

“देख, मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ, और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा। देख तू तो हृदय की सच्चाई से ही प्रसन्न होता है, और मन की गहराई में मुझे बुद्धि सिखाएगा” (51:5-6)। परमेश्वर हमसे केवल सच्चाई ही नहीं चाहता है, परन्तु वह चाहता है कि सच्चाई हमारे भीतर से निकले। दाऊद मान लेता है कि वह उस बात को करने में विफल हुआ जिसे करने की आज्ञा परमेश्वर ने दी थी, अर्थात् उसकी आज्ञाकारिता प्रायः बाहरी दिखावा होती है, न कि ऐसे कार्य जो उसके अस्तित्व के केन्द्र से प्रवाहित होते हैं।

फिर दाऊद पुनः शुद्धिकरण के लिए विनती करता है: “जूफे से मुझे शुद्ध कर तो मैं पवित्र हो जाऊँगा, मुझे धो, और मैं हिम से भी अधिक श्वेत बनूँगा” (51:7)। हम दाऊद की वाणी में पूर्ण बेबसी को सुन सकते हैं। दाऊद यह नहीं कहता है, “हे परमेश्वर, एक मिनट के लिए रुकिए। इससे पहले कि मैं प्रार्थना को आगे बढ़ाऊँ, मुझे अपने हाथ धोने हैं। मुझे धुले जाने की आवश्यकता है।” दाऊद जानता है कि वह अपने दोष के कलंक को अपने आप मिटाने में सक्षम नहीं है। वह उसकी पूर्ति नहीं कर सकता है। यह मान लेने में हमें अवश्य ही दाऊद के साथ जुड़ जाना चाहिए कि हम अपने स्वयं के पापों का प्रायश्चित्त नहीं कर सकते हैं।

यशायाह नबी के माध्यम से, परमेश्वर ने बाद में यह प्रतिज्ञा दी,

आओ, हम आपस में वाद-विवाद करें, तुम्हारे पाप चाहे लाल रंग के हों, तौभी वे हिम के समान श्वेत हो जाएँगे; चाहे वे किरमिजी लाल ही क्यों न हों, वे ऊन के समान उजले हो जाएँगे (यशायाह 1:18)। जब वह हमें कीचड़ में पड़ा हुआ देखता है तो वह हमें निर्मल करने में प्रसन्न होता है।

फिर दाऊद कहता है, “मुझे हर्ष और आनन्द की बातें सुना” (51:8क)। पश्चात्ताप करना पीड़ादायक होता है। किसको पाप अंगीकार करने और दोष को मानने में आनन्द प्राप्त होता है? दोषबोध आनन्द का सबसे सामर्थी विनाशक है। जबकि दाऊद इस क्षण में प्रसन्न नहीं है, वह परमेश्वर से विनती करता है कि वह उसके प्राण को पुनःस्थापित करे और उसको फिर से आनन्द और हर्ष की अनुभूति करने दे। वह यह कहने के द्वारा अपनी बात को रखता है, “जो हड्डियाँ तू ने तोड़ डाली हैं वे मग्न हो जाएँ।” क्या यह एक रोचक वाक्यांश नहीं है? वह कहता है,

हे परमेश्वर, तूने मुझे कुचला है। मेरी हड्डियाँ टूटी हैं; शैतान या नातान ने मेरी हड्डियों को नहीं तोड़ा, परन्तु जब तूने मेरे दोष के विषय में मुझे कायल किया, तो तूने मेरी हड्डियों को तोड़ा। इसलिए मैं तेरे सामने एक टूटे हुए पुरुष के रूप में खड़ा होता हूँ, और मैं तभी आगे बढ़ पाऊँगा यदि तू मुझे चंगा करे और मेरे आनन्द और हर्ष को लौटाए।

फिर वह कहता है, “अपना मुख मेरे पापों की ओर से फेर ले, और मेरे सब अधर्मों को मिटा डाल। हे परमेश्वर, मुझ में शुद्ध हृदय उत्पन्न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा फिर से जागृत कर” (51:9-10)। ईश्वरीय-पुनःसृष्टि (divine re-creation) का कार्य ही शुद्ध हृदय होने का एकमात्र साधन है। मैं अपने भीतर इसको उत्पन्न करने में असमर्थ हूँ। केवल परमेश्वर ही शुद्ध हृदय को उत्पन्न कर सकता है, और व हमारे पापों को मिटाने के द्वारा निश्चय ही शुद्ध हृदय उत्पन्न करता है।

फिर दाऊद विनती करता है, “मुझे अपने सामने से निकाल न दे, और अपने पवित्र आत्मा को मुझ से अलग न कर” (51:11)। दाऊद समझता है कि किसी भी पापी के लिए यही सबसे बुरी बात हो सकती है। वह जानता है कि यदि हम अपश्चात्तापी बने रहेंगे, तो परमेश्वर वास्तव में हमें निकाल देगा। यीशु चेतावनी देता है कि जो लोग उसको नकारेंगे, उन्हें सर्वदा के लिए परमेश्वर से अलग किया जाएगा। परन्तु पश्चात्ताप की प्रार्थना विश्वासी के लिए शरणस्थान है। यह उस व्यक्ति की भक्तिपूर्ण प्रतिक्रिया है जो जानता है कि वह पाप में है। इस प्रकार की प्रतिक्रिया को

उन लोगों के जीवन में चिन्ह-स्वरूप पाया जाना चाहिए जिनका हृदय-परिवर्तित हुआ है।

दाऊद आगे कहता है, “अपने उद्धार का आनन्द मुझे फिर से दे, और उदार आत्मा देकर मुझे सम्भाल ले। तब मैं अपराधियों को तेरा मार्ग सिखाऊँगा, और पापी तेरी ओर फिरेंगे” (51:12-13)। हम प्रायः सुनते हैं कि लोगों को मसीहियों की उपस्थिति में होना अच्छा नहीं लगता है क्योंकि मसीही लोग आत्म-सन्तुष्ट, स्व-धर्मी व्यवहार को, या बहुत भोले और दूसरों को कम पवित्र दिखाने वाले व्यवहार को प्रदर्शित करते हैं। परन्तु ऐसा नहीं होना चाहिए। मसीहियों के पास आत्म-सन्तुष्ट होने के लिए कुछ नहीं हैं; हम धर्मी लोग नहीं हैं जो अधर्मियों को सुधारने का प्रयास कर रहे हैं। जैसा कि एक प्रचारक ने कहा, “सुसमाचार-प्रचार में एक भिखारी दूसरे भिखारी को बताता है कि वह रोटी कहाँ प्राप्त कर सकता है।” विश्वासी और अविश्वासी के मध्य मुख्य अन्तर क्षमा है। ख्रीष्ट के नाम का सेवक होने के लिए केवल यह बात किसी को योग्य बनाती है कि उस व्यक्ति ने क्षमा का अनुभव किया है और वह उसके विषय में दूसरों को बताना चाहता है।

हे प्रभु, मेरे होंठों को खोल दे, कि मेरा मुँह तेरी स्तुति-प्रशंसा करे। क्योंकि तू बलि से प्रसन्न नहीं होता, नहीं तो मैं उसे चढ़ाता; तू होमबलि से भी प्रसन्न नहीं होता। टूटा मन परमेश्वर के योग्य बलिदान है; हे परमेश्वर, तू टूटे और पिसे हुए हृदय को तुच्छ नहीं जानता (51:15-17)। यहीं पर हम नबूवतीय पश्चात्ताप के हृदय और प्राण को देखते हैं। भक्तिपूर्ण पश्चात्ताप की सच्ची प्रवृत्ति “टूटे और पिसे हुए हृदय” वाक्यांश में पाई जाती है। दाऊद कह रहा है कि यदि वह अपने पापों का प्रायश्चित्त स्वयं कर पाता, तो वह कर देता; परन्तु वर्तमान स्थिति में, उसकी एकमात्र आशा है कि परमेश्वर अपनी दया में होकर उसको स्वीकार करे।

बाइबल हमें स्पष्ट रीति से बताती और हमें अप्रत्यक्ष रूप से दिखाती भी है कि परमेश्वर घमण्डियों का विरोध करता है पर दीन लोगों पर अनुग्रह करता है। दाऊद जानता है कि यह सच है। भले ही वह इतना टूटा हुआ है, वह परमेश्वर को जानता है और यह भी जानता है कि परमेश्वर पश्चात्तापी लोगों से कैसे व्यवहार करता है। वह समझता है कि परमेश्वर कभी भी टूटे और पिसे हुए हृदय से घृणा नहीं करता है। परमेश्वर हमसे यही चाहता है। धन्यवाणियों में यीशु के मन में यही बात थी जब उसने कहा, धन्य हैं वे जो शोक करते हैं, क्योंकि “वे सान्त्वना पाएँगे” (मत्ती 5:4)। यह स्थल केवल किसी प्रिय जन की मृत्यु पर शोक करने के विषय में नहीं है, परन्तु उस दुःख के विषय में भी जिसे हम अनुभव करते हैं जब हम अपने पाप के द्वारा कायल किए जाते हैं। यीशु हमें आश्वासन देता है कि जब हम अपने पाप के कारण शोक करते हैं, परमेश्वर अपने पवित्र आत्मा के द्वारा हमें सान्त्वना देगा।

मेरा सुझाव होगा कि सभी मसीहियों को भजन 51 को कंठस्थ करना चाहिए। यह भक्तिपूर्ण पश्चात्ताप का एक सिद्ध उदाहरण है। मेरे जीवन के अनेक समयों में, मैंने प्रभु के पास आकर कहा है, “हे परमेश्वर, मुझ में शुद्ध हृदय उत्पन्न कर,” या, “मेरे अपराधों को मिटा दे,” या “जूफे से मुझे शुद्ध कर तो मैं पवित्र हो जाऊँगा, मुझे धो, और मैं हिम से भी अधिक श्वेत बनूँगा।” बहुत बार मैंने प्रार्थना की है, “हे प्रभु, अपने उद्धार का आनन्द मुझे फिर से दे,” और कहा है, “मैंने केवल तेरे ही विरुद्ध पाप किया है।” जब हम अपने दोषबोध की वास्तविकता के कारण पराजित होने की अनुभूति करते हैं, हमारे पास शब्द नहीं होते हैं कि कैसे परमेश्वर के सामने अपने पश्चात्ताप को व्यक्त करें। उन समयों में पवित्रशास्त्र के शब्दों का हमारे होंठो पर होना सच में एक आशीष है।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।