यदि परमेश्वर सम्प्रभु है, तो मनुष्य स्वतन्त्र कैसे हैं? - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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यदि परमेश्वर सम्प्रभु है, तो मनुष्य स्वतन्त्र कैसे हैं?

परमेश्वर सर्वाधिक स्वतन्त्र है, अर्थात्, उसकी स्वतन्त्रता असीम है। वह सम्प्रभु है। उसकी सम्प्रभुता के प्रति सबसे अधिक उठाई जाने वाली आपत्ति यह है कि यदि परमेश्वर सच में सम्प्रभु है, तो मनुष्य स्वतन्त्र नहीं हो सकता है। पवित्रशास्त्र हमारी मानव स्थिति का वर्णन करने के लिए स्वतन्त्रता  शब्द को दो विशिष्ट रीति से उपयोग करता है: बाध्यकारी स्वतन्त्रता (freedom from coercion), जिसमें मनुष्य बिना किसी बाध्यता के निर्णय लेने के लिए स्वतन्त्र है, और नैतिक स्वतन्त्रता (moral freedom), जिसे हमने पतन के समय खो दिया था, जिसके कारण हम अपने शरीर की बुरी लालसाओं के दास बना दिए गए थे। मानववादी (humanists) विश्वास करते हैं कि मनुष्य न केवल बिना किसी बाध्यता के, परन्त बुराई की ओर स्वाभाविक झुकाव के बिना भी, चुनाव कर सकता है। हम ख्रीष्टीयों को मानव स्वतन्त्रता के विषय में इस मानववादी और ईश्वर-रहित दृष्टिकोण से सुरक्षित रहना चाहिए।

ख्रीष्टीय दृष्टिकोण यह है कि परमेश्वर इच्छा-शक्ति के साथ हमारी सृष्टि करता है, अर्थात् हम में चुनाव करने की क्षमता के साथ। हम इच्छा-शक्ति युक्त प्राणी हैं। परन्तु सृष्टि में दी गई स्वतन्त्रता सीमित है। परमेश्वर की स्वतन्त्रता अन्ततः हमारी स्वतन्त्रता को सीमित करती है। इसी बात पर हम ईश्वरीय सम्प्रभुता और मानव स्वतन्त्रता के मध्य संघर्ष का सामना करते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि परमेश्वर की सम्प्रभुता को मानव स्वतन्त्रता द्वारा सीमित किया जाता है। यदि यह बात सत्य है, तो मनुष्य सम्प्रभु है, परमेश्वर नहीं। धर्मसुधारवादी (Reformed) विश्वास शिक्षा यह देता है कि मानव स्वतन्त्रता वास्तविक है परन्तु यह परमेश्वर की सम्प्रभुता द्वारा सीमित की जाती है। हम अपनी स्वतन्त्रता के द्वारा परमेश्वर के सम्प्रभु निर्णयों को निष्प्रभावी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि परमेश्वर की स्वतन्त्रता हमारी स्वतन्त्रता से बढ़कर है।

मानवीय परिवार के सम्बन्ध एक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। अभिभावक बच्चे पर अधिकार रखते हैं। बच्चे के पास स्वतन्त्रता तो है, परन्तु अभिभावक के पास उससे अधिक है। बच्चे की स्वतन्त्रता अभिभावकों की स्वतन्त्रता को उस रीति से सीमित नहीं करती है जिस प्रकार से अभिभावकों की स्वतन्त्रता बच्चे की स्वतन्त्रता को सीमित करती है। जब परमेश्वर के गुणों की बात आती है, तो हमें समझना चाहिए कि परमेश्वर सबसे अधिक स्वतन्त्र है।

जब हम कहते हैं कि परमेश्वर सम्प्रभु है, तो हम उसकी स्वतन्त्रता के विषय में बात कर रहे होते हैं, यद्यपि हम ऐसा सोचते हैं कि सम्प्रभुता का अर्थ स्वतन्त्रता से बहुत भिन्न है। परमेश्वर एक इच्छा-शक्ति युक्त प्राणी है। उसके पास इच्छा-शक्ति है और वह निर्णय लेता है। जब वह निर्णय लेता है और अपनी इच्छा-शक्ति का उपयोग करता है, तो वह इसे सम्प्रभुता में होकर करता है क्योंकि वह स्वयं सर्वोच्च अधिकारी है। उसकी स्वतन्त्रता सबसे स्वतन्त्र है। केवल उसके पास सर्वोच्च स्वायत्तता (autonomy) है; अपने लिए वह स्वयं ही व्यवस्था है।

मनुष्य स्वायत्तता और असीमित स्वतन्त्रता की खोज करते हैं, इस इच्छा के साथ कि वे किसी के प्रति उत्तरदायी न हों। एक वास्तविक अर्थ में, पतन के समय यही हुआ था। शैतान ने आदम और हव्वा को स्वायत्तता प्राप्त करने का, अर्थात् परमेश्वर के जैसे बनने का, और पूर्ण छुटकारे के साथ कुछ भी करने का लालच दिया। उस वाटिका में शैतान एक ऐसे स्वतन्त्रता आन्दोलन का आरम्भ कर रहा था, जिससे मनुष्य दोष से तथा परमेश्वर के प्रति जवाबदेही होने से मुक्त हो जाते। परन्तु केवल उसके अर्थात् परमेश्वर के पास ही स्वायत्तता है।

यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

आर.सी. स्प्रोल
आर.सी. स्प्रोल
डॉ. आर.सी. स्प्रोल लिग्नेएर मिनिस्ट्रीज़ के संस्थापक, सैनफर्ड फ्लॉरिडा में सेंट ऐन्ड्रूज़ चैपल के पहले प्रचार और शिक्षण के सेवक, तथा रेफर्मेशन बाइबल कॉलेज के पहले कुलाधिपति थे। वह सौ से अधिक पुस्तकों के लेखक थे, जिसमें द होलीनेस ऑफ गॉड भी सम्मिलित है।