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बाइबल किसने लिखी? परमेश्वर ने। यदि इसे अधिक सटीक रूप में कहें तो, परमेश्वर वह ईश्वरीय लेखक है जिसने विभिन्न मानवीय लेखकों का उपयोग करके वही लिखा जो वह लिखवाना चाहता था। अर्थात्, परमेश्वर प्राथमिक लेखक है और मनुष्य द्वितीयक लेखक हैं। इस प्रकार की द्वैध लेखन-शैली का उल्लेख सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र में मिलता है। उदाहरण के लिए: “यह सब इसलिये हुआ कि जो प्रभु [प्राथमिक लेखक] ने भविष्यद्वक्ता [यशायाह, द्वितीयक लेखक] के द्वारा कहा था, वह पूरा हो” (मत्ती 1:22; साथ ही देखें मरकुस 12:36; इब्रानियों 3:7 और 4:7; 2 पतरस 1:21)। परम्परागत रूप से, पवित्रशास्त्र को लिखवाने में परमेश्वर की इस कार्य को “उत्प्रेरणा” कहते है, जिसका अर्थ है कि पवित्रशास्त्र परमेश्वर के स्वाँस से निकला है (2 तीमुथियुस 3:16)।
प्राथमिक लेखन
सीधे-सीधे उन खण्डों (जैसे 2 तीमुथियुस 3:16) के अतिरिक्त जो परमेश्वर को पवित्रशास्त्र का लेखक घोषित करते हैं, और भी कई रोचक खण्ड हैं जो ईश्वरीय लेखन की पुष्टि करते हैं। आइए हम वैसे तीन प्रकार के खण्ड पर दृष्टि डालें।
कुछ स्थानों पर पवित्रशास्त्र को व्यवहारिक रूप से परमेश्वर के समान रखा गया है। रोमियों (9:17) में, पौलुस निर्गमन (9:16) से उद्धरण करता है, जहाँ मूसा से कहा गया था कि वह फ़िरौन को परमेश्वर के वचन सुनाए। परन्तु पौलुस यह नहीं लिखता, “परमेश्वर फ़िरौन से कहता है,” परन्तु लिखता है, “पवित्रशास्त्र फ़िरौन से कहता है। स्पष्ट रूप से, पौलुस का अर्थ है कि परमेश्वर ने फ़िरौन से कहा, परन्तु पौलुस के मन में परमेश्वर का बोलना और पवित्रशास्त्र का बोलना एक-दूसरे से गहराई से जुड़ा हुआ है। इसी प्रकार, गलतियों (3:8) में, जब पौलुस यह दिखाने के लिए तर्क दे रहा है कि विश्वास द्वारा धर्मी ठहराए जाने का सिद्धान्त पुराने नियम में भी था, तो वह उत्पत्ति (12:3), की ओर संकेत करता है, जो परमेश्वर के भविष्य-दृष्टि वाले पक्ष को दिखाता है। परन्तु इसका उल्लेख करते समय पौलुस यह नहीं लिखता, “परमेश्वर ने पहले से देखा,” वरन् लिखता है, “पवित्रशास्त्र ने पहले से देखा।” एक बार फिर से, परमेश्वर और पवित्रशास्त्र को एक-दूसरे से गहनता से जुड़ा हुआ दिखाया गया है।
पुराने नियम के कुछ पद ऐसे हैं जहाँ परमेश्वर प्रत्यक्ष रूप से वक्ता नहीं दिखाई देता, परन्तु नए नियम का लेखक उसे ही वक्ता के रूप में उद्धृत करता है। इब्रानियों (1:5–13) में पुराने नियम से सात उद्धरण दिए गए हैं। इनमें से कुछ उद्धरण ऐसे हैं जिनमें परमेश्वर सीधे बोलता है, और कुछ ऐसे हैं जिनमें वह प्रत्यक्ष वक्ता नहीं है। फिर भी, इब्रानियों का लेखक हर उद्धरण को इस प्रकार आरम्भ करता है: “परमेश्वर कहता है” या “वह कहता है।” इसलिए, चाहे पुराने नियम के सन्दर्भ में परमेश्वर का प्रत्यक्ष वचन हो या न हो, इब्रानियों का लेखक सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र को किसी न किसी स्तर पर परमेश्वर का वचन मानता है।
1 कुरिन्थियों (9:8–10) पर ध्यान दीजिए। पौलुस, जब सेवकों को आर्थिक रूप से सहयोग देने की उचितता पर चर्चा करता है, तो यह तर्क देता है कि वह अपना निष्कर्ष किसी “मानवीय अधिकार” पर नहीं, वरन् “मूसा की व्यवस्था” पर आधारित कर रहा है। वह आगे व्यवस्थाविवरण (25:4) का उद्धरण देता है, जो कहता है कि काम करते समय बैलों का मुँह न बाँधो। इस उद्धरण के बाद पौलुस प्रश्न करता है, “क्या परमेश्वर केवल बैलों की ही चिन्ता करता है? क्या वह निश्चित रूप से हमारे लिये नहीं कहता?”—अर्थात् हाँ, परमेश्वर बैलों की चिन्ता करता है, पर उससे कहीं अधिक वह मनुष्यों की चिन्ता करता है। यहाँ पौलुस “मूसा की व्यवस्था में लिखा है” को परमेश्वर की “चिन्ता” और परमेश्वर के “कहने” के बराबर मानता है। यह “मानवीय अधिकार” के विपरीत है। यद्यपि मूसा स्पष्टतः एक मनुष्य था, फिर भी पौलुस उसे मात्र एक मानवीय अधिकार नहीं मानता। क्यों? क्योंकि पौलुस स्पष्ट रूप से विश्वास करता है कि व्यवस्थाविवरण का परमप्रधान लेखक स्वयं परमेश्वर है।
द्वितीयक लेखन
इसमें कोई संदेह नहीं कि बाइबल के लेखकों का विश्वास था कि मनुष्यों ने पवित्रशास्त्र को लिखा। कई बार एक बाइबल लेखक दूसरे लेखक का नाम लेकर उल्लेख करता है। उदाहरण के लिए, दानिय्येल यिर्मयाह के लेखन की पुष्टि करता है (दानिय्येल 9:2), यीशु मूसा के लेखन की पुष्टि करता है (मरकुस 7:10), और पतरस पौलुस के लेखन की पुष्टि करता है (2 पतरस 3:15–16)। इसके अतिरिक्त, प्रायः (परन्तु सर्वदा नहीं) बाइबल लेखक स्वयं के नाम का भी स्पष्ट रूप से उल्लेख करता है—उदाहरण के लिए, यहेजकेल (यहेजकेल 1:1–3), पौलुस (गलातियों 1:1), और यहूदा (यहूदा 1)।
पवित्रशास्त्र की उत्प्रेरणा के लिए, परमेश्वर ने मानवीय लेखकों के साथ कैसे कार्य किया? यह निस्संदेह ही एक रहस्य है, परन्तु हमें बाइबल से कुछ संकेत मिलते हैं। कभी-कभी ही बाइबिल लेखक स्पष्ट रूप से कहते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें वे शब्द सीधे लिखवाए जो उन्होंने लिखे (निर्गमन 34:27; यिर्मयाह 36:4; प्रकाशितवाक्य 2–3)। अधिकतर समय बाइबल लेखक केवल यह कहते हैं कि “यहोवा का वचन मुझ पर आया” (होशे 1:1; मीका 1:1; साथ ही देखें गलातियों 1:12; प्रकाशितवाक्य 1:1)। कभी-कभी कोई लेखक यह जानकारी भी देता है कि उसने अपनी पुस्तक के लिए सामग्री कहाँ से एकत्र की (गिनती 21:14; यहोशू 10:13; 1 राजा 11:41; लूका 1:1–4)। कहीं-कहीं के सीधे-सीधे लिखवाए गए भागों को छोड़कर, परमेश्वर ने सामान्यतः प्रत्येक लेखक का उपयोग उसके व्यक्तित्व, पृष्ठभूमि और लेखन शैली के अनुसार किया। उदाहरण के लिए, सुलैमान के पास असाधारण बुद्धि थी (1 राजा 3), और उसके नीतिवचन सुरक्षित रखे गए हैं (नीतिवचन 1:1; 25:1)। यहेजकेल एक याजक था (यहेजकेल 1:3), और उसकी पुस्तक में मन्दिर के कई दृष्टान्त मिलते हैं (यहेजकेल 40–47)। यूहन्ना की लेखन-शैली और शब्दावली यूहन्ना, 1–3 यूहन्ना और प्रकाशितवाक्य में समान रूप से दिखाई देती है। पौलुस फरीसी परम्परा में शिक्षित था (फिलिप्पियों 3:5), और उसकी व्यवस्था के विषय में गहरी समझ उसके लेखन में स्पष्ट दिखती है (रोमियों 3:21; गलातियों 2:16; 1 तीमुथियुस 1:9–10)। परमेश्वर का इस प्रकार लेखकों का उनके स्वभाव और योग्यताओं के अनुसार उपयोग करने को प्रायः “सजीव (ऑर्गैनिक) उत्प्रेरणा” कहलाता है। परमेश्वर ने मानव लेखकों को निर्जीव वस्तुओं (असजीव) के समान नहीं, वरन् उनकी विशिष्टताओं के साथ सजीव व्यक्तियों के रूप में प्रयोग किया। फिर भी, प्रत्येक शब्द वही था जो परमेश्वर चाहता था कि लिखा जाए।
तो बाइबल किसने लिखी? हाँ, परमेश्वर ने। वही ईश्वरीय, सर्वोच्च और प्राथमिक लेखक है। पर अपनी संप्रभुता (प्रभुत्व) में उसने मनुष्यों को द्वितीयक लेखक के रूप में प्रयोग किया।
यह लेख मूलतः लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़ ब्लॉग में प्रकाशित किया गया।

