कलीसियाई इतिहास और संस्कृति के साथ सम्बन्ध - लिग्निएर मिनिस्ट्रीज़
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कलीसियाई इतिहास और संस्कृति के साथ सम्बन्ध

सम्पादक की टिप्पणी: यह टेबलटॉक पत्रिका श्रंखला का नौवा अध्याय है: चिन्ता

अपनी आज की संस्कृति के साथ अपने सम्बन्ध के लिए हम कलीसियाई इतिहास से क्या सीख सकते हैं? मैं एक चेतावनी के साथ प्रारम्भ करता हूँ: हमें कलीसियाई इतिहास के प्रसिद्ध व्यक्तियों की कहानियों को उनके समान बनने और उनके सांस्कृतिक सन्दर्भ को पुनःउत्पन्न करने की कल्पना को बढ़ावा देने के लिए नहीं पढ़ना चाहिए। वह न मात्र घमण्ड की बात होगी (“मैं मानता हूँ कि मैं अगला लूथर हूँ”), परन्तु यह इस बात को भी पहचानने में विफल हो जाएगा कि प्रभु की हम सभी के लिए भिन्न-भिन्न बुलाहटें हैं। ‌मैं सदैव कुरिन्थुस के मसीहियों के लिए पौलुस के आदेश से प्रभावित होता हूँ: जहाँ हो वहीं रहो, जिस दशा में बुलाए गए थे वही करते रहो (1 कुरिन्थियों 7:17-24)। हम अपने समाज और आस-पास से इतने अधिक प्रभावित होते हैं कि हम यह आभास कर सकते हैं कि हमारे सामने विकल्पों का संसार है: “मैं कौन हो सकता हूँ?” सम्भावनाओं की सूची में “लूथर” या “कैल्विन” को जोड़ देना अत्यन्त सरल है। अन्तहीन विकल्पों का आधुनिक भाव इन्टरनेट के आगमन और हमारे अपने ऑनलाइन अवतारों को रूप देने की सम्भावनाओं के द्वारा बिगड़ा ही है। नहीं, हमें वह होना है जिसे होने के लिए प्रभु ने हमें बुलाया है, ख्रीष्ट की समानता में नए सिरे से बनाए गए लोग; हमें कोई और नहीं बनना है। और जिस सांस्कृतिक सन्दर्भ में उसने हमें रखा है हमें उसमें स्वयं बन कर रहना है। यहाँ तक कि ख्रीष्ट का अनुकरण करने की बाइबलीय आज्ञा का अर्थ यह नहीं कि उसका विश्ष्ट कार्य हमारा हैं; ऐसा सोचना सर्वश्रेष्ठ ईशनिन्दा की बात होगी। मुझे अपने कार्य को उस संस्कृति में करना है जिसमें प्रभु ने मुझे रखा है, उस संस्कृति को इस प्रकार से विकसित होते हुए देखते हुए जो कि अपने अनोखेपन के साथ ख्रीष्ट को सम्मान देगी, न कि मात्र मसीही पूर्ववर्ती संस्कृति में घड़ी को उल्टा चला कर।

तब भी, कलीसियाई इतिहास हमारे लिए व्यक्तिगत और सांस्कृतिक उदाहरणों को प्रदान कर सकता है और उसे करना भी चाहिए। इन्हें ऐसे उदाहरण होना चाहिए जिनसे हमें कुछ सीमा तक भेत करते हुए सीखना चाहिए। हमें कैल्विन का अनुकरण करना है जैसा कि उसने ख्रीष्ट का अनुकरण किया, परन्तु हमें कैल्विन और हमारे तथा कैल्विन के सांस्कृतिक सन्दर्भ और हमारे सांस्कृतिक सन्दर्भ के अन्तर के विषय में सचेत रहना चाहिए। उदाहरण के लिए, इक्कीसवीं शताब्दी में अतिसरलीकृत रूप से प्रतिरोपित किए गए धर्मसुधार के साथ मुख्य समस्या यह है कि राजनीतिक स्थिति से उनकी स्थिति हमारी अपनी बहुत भिन्न थी। मसीही जगत के युग में रहते हुए, सोलहवीं शताब्दी के धर्मसुधारक प्रायः न्यायाधीशों के अधिकार का उपयोग करके प्रोटेस्टेन्टवाद के परिवर्तन को लागू करने में सक्षम थे। उदाहरण के लिए, अंग्रेज 1552 में यह जान कर निन्द से जागे  कि उनका राष्ट्र औपचारिक रूप से प्रोटेस्टेन्ट था, निस्सन्देहः धर्मसुधारवादी। वह राजा एडवर्ड VI की संसद में पारित अधिनियम के द्वारा सम्पादित किया गया। पवित्र रोमी साम्राज्य के नगरों में वह ऐसा ही था: प्रोटेस्टेन्ट बनने का निर्णय नगर परिषदों द्वारा राजनीतिक स्तर पर अधिनियमित किया गया था, प्रायः व्यावहारिक धर्मसुधार से बहुत पहले।

हमारे आज के सन्दर्भ में ऐसा होना लगभग असम्भव है। यदि हम धर्मसुधार को होते हुए देखें, तो यह लोगों के मध्य सुसमाचार के प्रचार के माध्यम से होगा। मानवीय रूप से कहें तो, हम सच्चे रूप से मसीही संसद या महासभाओं से शताब्दियाँ दूर हैं। धर्मसुधारकों के कार्यक्रमों के कुछ पहलू आज भी लागू होते हैं (वचन का प्रचार वैसे करें जैसा वे करते हैं, एलिज़ाबेथन कलीसिया के समान पास्टरों को प्रशिक्षित करें) परन्तु बहुत सारी बातें अनुप्युक्त हैं—यहाँ तक की वचन का प्रचार को भी प्रोटेस्टेन्ट सरकार द्वारा पहले से तैयार किए गए उपदेशों की पुस्तकों से पादरियों द्वारा प्रचार करवाते हुए नियन्त्रित किया गया। इसलिए, अपने स्वयं की संस्कृति के साथ सम्बन्ध के लिए कलीसियाई इतिहास से सीखने के लिए हमें विस्तृत रणनीतियों और कार्यक्रमों के स्थान पर बड़े स्तर पर मसीही विश्वासयोग्यता के लिए प्रेरणा को देखना चाहिए। इसके विपरीत, हमारी संस्कृति के लिए अधिक निकटतम उदाहरण आरम्भिक कलीसिया में प्राप्त होंगे जब मसीहियों ने मूर्तिपूजक संस्कृति का सामना किया, न कि धर्मसुधार के युग में जब यूरोप का कई अर्थों में “ईसाई-करण” हो गया था।

शताब्दियों से हमारे दिनों में उदाहरणों और विधियों को स्थानान्तरित करने की तुलना में इतिहास से एक सूक्ष्म शिक्षा लेना कठिन है, इसलिए, इसमें उनके समयों और हमारे अपने समयों के विषय में अच्छे ज्ञान की आवश्यकता होगी। जिन लोगों के पास उन अनुकूलनों को करने का ऐतिहासिक कौशल नहीं है वे अभी भी अपने पूर्वजों को उनके उदाहरणों से विश्वासयोग्यता के लिए उन्हें प्रेरित करने दे सकते हैं। इतिहास का बहुत कम ज्ञान रखने वाला मसीही कलीसियाई इतिहास को पढ़ने के द्वारा अद्भुत प्रोत्साहन और चुनौती को पा सकता है।

जब कि हम अपने परिवार के इतिहास को पढ़ते हैं, एक बात बहुत स्पष्ट हो जाती है: हमारे मसीही पूर्वजों ने हर स्तर पर अपने आपको अपनी संस्कृति से सम्बन्धित रखा। धर्मसुधार एक सुसमाचार आन्दोलन था जिसके राजनीतिक, कानूनी, आर्थिक, शैक्षिक और कलात्मक लागूकरण थे। यह साधारणतः मसीहियों द्वारा चिन्ता में अपने हाथों को मलने और इस विषय पर तर्क-वितर्क किए बिना हुआ कि उन्हें कितना सम्बन्धित रहना चाहिए था (हमारे युग से एक और भिन्नता)। वे अत्यन्त सरलता से हुए क्योंकि मसीहियों ने महान आदेश का पालन किया: उन्होंने सुसमाचार का प्रचार किया और फिर आज्ञाकारी जीवन जीने का प्रयास किया। जब वे ऐसा कर रहे थे, उन्होंने न्यायधीश या वकील या शिक्षक या कलाकार या किसान के रूप में सेवारत थे, जिन्होंने इस रीति से सेवा करने का प्रयास किया जैस कि वे ख्रीष्ट की सेवा कर रहे हों (कुलुस्सियों 3:23), और इस प्रकार, अपनी विश्वासयोग्य आज्ञाकारिता के माध्यम से और सुसमाचार की घोषणा को विस्थापित किए बिना उन्होनें निस्सन्देह मसीही संस्कृतियों का निर्माण किया। यदि उन्होनें ऐसा न किया होता, तो यह सम्भव नहीं था कि हमने उनके विषय में सुना भी होता, क्योंकि एक असम्बन्धित, निजीकृत विश्वास का व्यापक प्रभाव न्यूनतम ही होता। हमारा अपना युग ऐसा समय है जिसमें गहरी जड़े विकसित करने की आवश्यक्ता है, परन्तु हमें बचाव के लिए एकत्रित होने और हमारे आस-पास के संसार से सम्पर्क तोड़ने से भ्रमित नहीं होना चाहिए। जब हम उस सम्बन्ध में विश्वासयोग्यता से जीने का प्रयास करते हैं, कलीसियाई इतिहास निश्चित रूप से, विश्वासयोग्य जीवन की प्रोत्साहित करने वाली कहानियों, और इसके विपरीत की लाभकारी चेतावनियों के साथ उन विशिष्ट पाठों में हमारी सहायता करेगा जिन्हें प्रायः व्यावहारिक रीति से करना कठिन होता है।

यह लेख मूलतः टेबलटॉक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
गैरी विलियम्स
गैरी विलियम्स
डॉ. गैरी विलियम्स युनाइटेड किंगडम के लण्डन सेमिनेरी के पास्टर अकादमी के निर्देशक हैं। वे वेस्टमिन्स्टर थियोलॉजिकल सेमिनेरी में एक अतिथि प्राध्यापक और प्योरिटन रिफॉर्मड थियोलॉजिकल सेमिनेरी में एक अंशकालिक प्राध्यापक हैं। वे उसकी करुणा सदा की है (His Love Endures Forever) और शान्त साक्षी (Silent Witnesses) के लेखक हैं।